अपील संख्या- 550/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, आजमगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-122/2012 में पारित आदेश दिनांक 17.02.2016 के विरूद्ध)
श्रीमती पूनम पत्नी स्व0 रामचन्दर मकान नं0 93 ग्राम देहुला सल्तनत पोस्ट– अतरौलिया तहसील-बूढ़नपुर, जिला-आजमगढ़ उ0प्र0
..............अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा- अतरौलिया आजमगढ़
....................प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री पारसनाथ तिवारी।
विद्वान अधिवक्ता ।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा।
विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक:
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद सं0-122/2012 श्रीमती पूनम बनाम शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक आफ इण्डिया में जिला फोरम आजमगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 17.02.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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"परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह बतौर क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 20,000/-(बीस हजार रूपये) व वादव्यय के रूप में मु0 3000/- निर्णय के 2 माह के अन्दर अदा कर दे। यदि विपक्षी अदायगी में विलम्ब किया जाता है तो इस अवधि के बाद इस धनराशि पर 10% साधारण सालाना ब्याज भी देय होगा।"
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील उपरोक्त परिवाद की परिवादिनी श्रीमती पूनम ने प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री पारसनाथ तिवारी तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित हुए है।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है उसके पति श्री रामचन्दर साउदी अरब में नौकरी करते थे और उनकी मृत्यु वही दुर्घटनावश हो गयी। अत: उनकी मृत्यु का क्लेम चेक संख्या- 372175555 दिनांकित 26.11.2011 के माध्यम से 13,333.33$ का परिवादिनी को प्राप्त हुआ जिसे परिवादिनी ने विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया की शाखा अतरौलिया में दिनांक 30.12.2011 को अपने खाता नम्बर 347502010981819 में जमा किया, परन्तु बार-बार पता करने पर परिवादिनी के खाते में रकम नहीं आयी। यहां तक कि परिवादिनी ने चेक जारी करने वाले को भी पत्र दिनांक 22.09.2012 को लिखा, परन्तु उसका कोई उत्तर नहीं आया। परिवादिनी ने दिनांक 12.09.2011 को विपक्षी बैंक
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के ब्रांच मैनेजर को भी पत्र लिखा परन्तु उन्होंने उत्तर नहीं दिया। अंत में परिवादिनी के पत्र दिनांक 22.09.2012 के बारे में एम्बेसी आफ साऊदी अरेबिया का फोन अपीलार्थी/परिवादिनी के पास आया कि आप पूर्व का चेक वापिस करेंगी तो दूसरा चेक बनवाकर देंगे परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने अपीलार्थी/परिवादिनी को उसके चेक के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी और न ही चेक की धनराशि उसके खाते में दर्ज की गयी। इस प्रकार परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने सेवा में कमी की है। अत: क्षुब्ध होकर परिवादिनी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया है और अपने जमा चेक के सम्बन्ध में स्पष्ट जानकारी देने हेतु विपक्षी बैंक को आदेशित किए जाने का निवेदन किया है। साथ ही 4,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति की भी मांग की है।
विपक्षी बैंक ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कथन किया है कि परिवादिनी द्वारा जमा साउदिया का विदेशी चेक विपक्षी बैंक ने स्पीड एण्ड सेफ कूरियर आजमगढ़ द्वारा दिनांक 18.10.2012 को डाक संख्या 7766 से क्लीयरेन्स के लिए भेजा और यूनाईटेड एयर एक्सप्रेस कोलकाता से यूनियन बैंक आफ इण्डिया 15 इण्डिया एक्सचेंज प्लेस कोलकाता को दिनांक 24.10.2012 को रिसीव कराया गया। लिखित कथन में विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया है कि परिवादिनी को विपक्षी बैंक ने बराबर सूचना दी और जहां से चेक आया था वहां और एक्सचेंज कोलकाता को पत्र दिया, परन्तु कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। लिखित कथन में विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक को डुप्लीकेट चेक प्राप्त हो गयी है और उसे क्लीयरेन्स हेतु दिनांक 27.12.2012 को भेजा गया है। लिखित कथन में विपक्षी बैंक
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की ओर से यह भी कहा गया है कि याचिका में पक्षकार न बनाए जाने का दोष है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह उल्लेख किया है कि विपक्षी बैंक ने परिवादिनी के पूर्व जमा चेक को समय से क्लीयरेन्स में न भेजकर सेवा में कमी किया है। जिला फोरम ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि यदि चेक समय से जमा किया जाता तो उसका परिणाम सकारात्मक हो सकता था और परिवादिनी को भुगतान समय से मिल जाता। ऐसा न करने से ब्याज के साथ-साथ मानसिक पीड़ा के रूप में परिवादिनी को क्षति हुयी है जिसके लिए विपक्षी बैंक जिम्मेदार है। अत: जिला फोरम ने परिवादिनी को 20,000/-रू0 मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाया जाना उचित माना है। इसके साथ ही 3000/-रू0 वादव्यय भी प्रदान किया है और तद्नुसार आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने जो क्षतिपूर्ति अपीलार्थी/परिवादिनी को दिलायी है वह न्यायसंगत नहीं है अत: अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपील प्रस्तुत की है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जमा चेक स्पीड एण्ड सेफ कूरियर आजमगढ़ द्वारा दिनांक 18.10.2012 को डाक संख्या 7766 से क्लीयरेन्स के लिए भेजा गया जो यूनाईटेड एयर एक्सप्रेस कोलकाता से यूनियन बैंक आफ इण्डिया 15 इण्डिया एक्सचेंज प्लेस कोलकाता को दिनांक 24.10.2012 को रिसीव कराया गया है। अत: प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने उक्त चेक के सम्बन्ध में कोई लापरवाही नहीं बरती है अत: प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के विरूद्ध जिला फोरम
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द्वारा पारित निर्णय और आदेश त्रुटिपूर्ण है फिर भी प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने कोई अपील उसके विरूद्ध प्रस्तुत नहीं की है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है अत: अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जो क्षतिपूर्ति की धनराशि की बढोत्तरी हेतु अपील में मांग की गयी है वह कदापि स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है। वाद पत्र के पैरा-2 में परिवादिनी ने कथन किया है कि उसने प्रश्नगत चेक दिनांक 30.12.2011 को प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की शाखा अतरौलिया में जमा किया है। विपक्षी बैंक ने अपने लिखित कथन में कहा है कि वाद पत्र के पैरा-2 में वर्णित चेक उसके बैंक में परिवादिनी द्वारा जमा नहीं किया गया है। इसके साथ ही उसने प्रतिवाद पत्र की धारा-4 में यह कहा है कि वादिनी द्वारा देय विदेशी चेक साउदीया विपक्षी बैंक द्वारा स्पीड एण्ड सेफ कूरियर आजमगढ़ द्वारा दिनांक 18.10.2012 को डाक संख्या 7766 से क्लीयरेन्स के लिए भेजा जो यूनाईटेड एयर एक्सप्रेस कोलकाता से यूनियन बैंक आफ इण्डिया 15 इण्डिया एक्सचेंज प्लेस कोलकाता को दिनांक 24.10.2012 को रिसीव कराया गया है। इसके साथ ही विपक्षी बैंक ने अपने लिखित कथन की धारा-10 में कहा है कि हम विपक्षी बैंक को डुप्लीकेट चेक प्राप्त हो गया है। अत: क्लीयरेन्स हेतु दिनांक 27.12.2012 को भेजा गया है। अत: यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक में जो अपना पहला चेक जमा किया है वह चेक विलम्ब से प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने क्लीयरेन्स हेतु भेजा है और यह चेक प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की शाखा यूनियन बैंक आफ इण्डिया 15 इण्डिया
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एक्सचेंज प्लेस कोलकाता से लापता हुआ है। अत: जिला फोरम ने जो यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा जमा प्रथम चेक के सम्बन्ध में सेवा में त्रुटि की है वह आधारयुक्त और विधि सम्मत है। जिला फोरम के इस निष्कर्ष में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है और प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने जिला फोरम के इस निर्णय को चुनौती देने हेतु कोई अपील प्रस्तुत नहीं की है। वर्तमान अपील में मात्र विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादिनी को जो क्षतिपूर्ति प्रदान किया है वह न्यायसंगत नहीं है। अपीलार्थी/परिवादिनी के कथन से स्पष्ट है कि उसने 13,333.33$ का चेक प्रत्यर्थी/विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया की शाखा अतरौलिया में जमा किया है जो प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की शाखा अतरौलिया ने अपने कोलकाता स्थित कार्यालय को प्रेषित किया है और वहां से यह चेक लापता हुआ है। इस कारण अपीलार्थी/परिवादिनी को चेक की धनराशि का भुगतान होने में करीब 1 साल का विलम्ब हुआ है जैसा कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के लिखित कथन की धारा-10 से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादिनी का डुप्लीकेट चेक क्लीयरेन्स हेतु दिनांक 27.12.2012 को भेजा गया है। ऐसी स्थिति में चेक की धनराशि को देखते हुए इस विलम्ब अवधि हेतु 6 प्रतिशत की दर से अपीलार्थी/परिवादिनी को ब्याज दिलाए जाने पर ब्याज धनराशि करीब 42,000/-रू0 होती है। अत: प्रश्नगत चेक की धनराशि के भुगतान में हुए विलम्ब की क्षतिपूर्ति हेतु अपीलार्थी/परिवादिनी को प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक से 42,000/-रू0 क्षतिपूर्ति दिलाया जाना उचित है। जबकि जिला फोरम ने मात्र 20,000/-रू0 क्षतिपूर्ति दिलायी है। अत: मैं इस मत का हूं कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत अपील स्वीकार करते हुए अपीलार्थी/परिवादिनी को जिला फोरम द्वारा प्रदान
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की गयी क्षतिपूर्ति की धनराशि 20,000/-रू0 से बढ़ाकर 42,000/-रू0 किया जाना उचित है। जिला फोरम ने जो 3000/-रू0 वादव्यय अपीलार्थी/परिवादिनी को प्रदान किया है वह उचित है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश को संशोधित करते हुए प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक को आदेशित किया जाता है कि 42,000/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि और 3000/-रू0 वादव्यय की धनराशि 2 मास के अन्दर वह अपीलार्थी/परिवादिनी को अदा करें। प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा यह धनराशि इस निर्धारित अवधि में अदा न किए जाने पर प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक इस धनराशि पर इस निर्णय की तिथि से अदायगी की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देने हेतु उत्तदायी होगा।
उभयपक्ष अपील में अपना-अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
सुधांशु श्रीवास्तव, आशु0
कोर्ट नं0-1