(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 3207/2017
(जिला उपभोक्ता फोरम, सीतापुर द्वारा परिवाद संख्या-73/2008 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 12-09-2017 के विरूद्ध)
संजीव कुमार अग्रवाल पुत्र श्री प्रेम नारायन अग्रवाल, प्रोपराइटर मै0 गोयल ब्रदर्स नि0 जेल रोड, सीतापुर, परगना खैराबाद, तहसील व जिला सीतापुर।
.....अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा ऑंख अस्पताल सीतापुर द्वारा शाखा
प्रबंधक। ...प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री ए0 के0 पाण्डेय।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 29-08-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-73/2008 संजीव कुमार अग्रवाल बनाम् यूनियन बैंक आफ इण्डिया, शाखा ऑंख अस्पताल सीतापुर में जिला फोरम, सीतापुर द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश दिनांक 12-09-2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी संजीव कुमार अग्रवाल ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री ए0 के0 पाण्डेय उपस्थित आए है। प्रत्यर्थी को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजी गयी है जो अदम तामील वापस नहीं आयी हैं अत: प्रत्यर्थी पर नोटिस का तामीला पर्याप्त माना गया है फिर भी प्रत्यर्थी बैंक की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह मै0 गोयल ब्रदर्स, जेल रोड, सीतापुर के नाम से स्व-नियोजन से अपने व अपने परिवार के जीवन-यापन हेतु इनवर्टर, बैटरी, गैस गीजर, आटो इलेक्ट्रिक पार्टस मारूती स्पेयर पार्टस आदि का व्यापार करता है जिसके लिए उसने विपक्षी बैंक से वर्ष 2000 में रू0 3,00,000/- कैश क्रेडिट लिमिट की सुविधा प्राप्त की थी, जो वर्ष 2003 में बढ़कर रू0 4,00,000/- और वर्ष 2005 में बढ़कर 6,00,000/-रू0 हो गयी थी।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा यह बताया गया था कि आर्थिक सहायता धनराशि से किये जा रहे व्यापार से संबंधित स्टाक का बीमा अपीलार्थी/परिवादी के खर्च पर करवाया जाना आवश्यक होगा। अत: अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों को निर्देशित कर दिया था कि बीमा कराकर बीमा प्रीमियम का भुगतान अपीलार्थी/परिवादी के ऋण खाते से करते रहे। अत: प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के बीमा प्रीमियम का भुगतान उसके ऋण खाते से करते हुए वर्ष 2000 से वर्ष 2007 तक अपीलार्थी/परिवादी के नाम
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बीमा पालिसी ली गयी थी, उसके आगे पुन: बीमा के लिए अपीलार्थी/परिवादी की किसी अनुमति या निर्देश की आवश्यकता नहीं थी, परन्तु दिनांक 23-10-2007 की मध्य रात्रि को प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा करायी गयी बीमा पालिसी की अवधि समाप्त होने के बाद प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा बीमा पालिसी अपीलार्थी/परिवादी के बैंक खाते से प्रीमियम धनराशि का भुगतान कर नवीनीकृत नहीं करायी गयी, न ही इस संदर्भ में अपीलार्थी/परिवादी को कोई सूचना दी गयी, उसके बाद दिनांक 29-01-2008 की सायं विद्युत लाईन से सार्ट-सर्किट के कारण अपीलार्थी/परिवादी की दुकान में आग लग गयी जिससे दुकान का समस्त स्टाक/सामान (रहतिया) कागजात आदि जलकर नष्ट हो गया तथा दुकान व गोदाम में रखा 11,00,000/-रू0 का स्टाक और रू0 60,000/- नकद एवं दुकान के बाहर खड़ी मारूति वैन जलकर नष्ट हो गयी। अपीलार्थी/परिवादी ने अग्निकाण्ड की सूचना प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक में दिनांक 30-01-2008 को दी जिसकी प्राप्ति की रसीद दिनांक 31-01-2008 को प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने दी। तब उसी दिन प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने अपीलार्थी/परिवादी को सूचित किया कि उसकी बीमा पालिसी का नवीनीकरण नहीं कराया गया था इस कारण बीमा पालिसी प्रभावी नहीं थी। यह जानकर परिवादी आश्चर्यचकित हुआ और उसे कष्ट हुआ।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि पूर्व की भॉंति प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की बीमा कराने की जिम्मेदारी थी, परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने अपने दायित्व के निर्वहन में चूक की है और सेवा में कमी की है अत: प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक अपीलार्थी/परिवादी को हुई क्षति की पूर्ति हेतु उत्तरदायी है। अत: जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष चाहा है:-
- यह कि बीमित धनराशि प्राप्त हो जाने के समय से क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 8,50,000/- की धनराशि परिवादी को विपक्षी बैंक से दिलायी जाए।
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- यह कि विपक्षी बैंक को निर्देशित किया जाये कि वह परिवादी को ऋण का जो कि विपक्षी बैंक के द्वारा मै0 गोयल ब्रदर्स के नाम से खाता है के संबंध में दिनांक 01-02-2008 से परिवाद की अंतिम निर्णय तक किसी भी रूप में ब्याज आरोपित न करें।
- यह कि विपक्षी द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं में असावधानीपूर्वक कार्य करते हुए कमी करने के कारण परिवादी को हुई असुविधा मानसिक कष्ट एवं आर्थिक क्षति आदि की क्षतिपूर्ति करवाये जाने हेतु कम से कम रू0 2,00,000/- की धनराशि क्षतिपूर्ति के रूप में विपक्षी बैंक से परिवादी को दिलायी जाए।
- परिवाद के व्यय खर्च एवं अन्य जो मा0 न्यायालय न्यायोचित समझे दिलाया जाए।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी बैंक ने अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक से बीमा कराने हेतु स्थायी निर्देश नहीं दिये गये थे। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक से बीमा कराने का अनुरोध किया गया तब विपक्षी बैंक ने तत्संबंध में बाध्यता न होते हुए भी अपीलार्थी/परिवादी के स्टाक का बीमा करा दिया था। दिनांक 23-10-2007 की मध्य रात्रि को बीमा समाप्त होने पर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक से पुन: बीमा कराने का अनुरोध नहीं किया गया था।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 31-01-2008 को अग्निकाण्ड की सूचना दी गयी थी और उसी दिन बैंक द्वारा उसे पत्र देते हुए स्पष्ट कर दिया गया था कि माह दिसम्बर,2007 में ऋण नवीनीकरण के समय यथोचित बीमा कराने की शर्त दी गयी थी, परन्तु ऋण नवीनीकरण पत्र पर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अभिस्वीकृति प्रदान किये जाने के बाद भी न तो उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक को बीमा प्रभावी होने की कोई सूचना दी और न ही बीमा कराने का कोई अनुरोध किया, उसने स्वयं बीमा कराने में चूक की है। विपक्षी बैंक ने अपने दायित्वों के निर्वहन में चूक नहीं की है।
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लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने कहा है कि दिनांक 10-01-2005 को अपीलार्थी/परिवादी ने विपक्षी बैंक के पक्ष में अपने माल व लेनदारियों का दृष्टिबन्धक करते हुए एक दृष्टिबन्धक इकरारनामा निष्पादित किया था जिसकी शर्त संख्या-10(1) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि दृष्टिबन्धक प्रतिभूति का बीमा अपीलार्थी व बैंक के संयुक्त नाम से कराया जायेगा जिसके प्रपत्र अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक को दिये जायेंगे। इसके साथ ही शर्त संख्या-10 के उपशर्त संख्या-2 में उपबंधित है कि यदि ऋणी द्वारा बीमा नहीं कराया जाता है तो बैंक द्वारा बीमा कराया जा सकता है परन्तु बैंक पर इसकी कोई बाध्यता नहीं होगी।
लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने कहा है कि परिवादी को संविदा के अनुसार माल का बीमा स्वयं कराना था और बैंक किसी भी दशा में बीमा कराने के लिए बाध्य नहीं था। प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की सेवा में कोई कमी नहीं है। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने कहा है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक और अपीलार्थी/परिवादी के बीच ऋणी और ऋणदाता का संबंध है। अत: अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और दोनों के बीच विवाद का निस्तारण दीवानी न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हाइपोथिकेशन एग्रीमेंट की शर्त संख्या-10(1) व 10(2) के आधार पर यह माना है कि बीमा कराने हेतु विपक्षी बैंक की बाध्यता नहीं थी। बीमा कराने की पूर्ण जिम्मेदारी अपीलार्थी/परिवादी की थी और उसने बीमा नहीं कराया है अत: वह आग लगने से हुई क्षति के लिए प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। अत: जिला फोरम ने आक्षेपित आदेश के द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय तथ्य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/विपक्षी अपीलार्थी/परिवादी के ऋण की धनराशि की सुरक्षा हेतु अपीलार्थी/
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परिवादी की दुकान का बीमा वर्ष 2000 से 23-10-2007 तक की अवधि के लिए बराबर अपीलार्थी/परिवादी के निर्देश व सहमति से उसके ऋण खाते से प्रीमियम धनराशि की कटौती कर कराता रहा है अत: दिनांक 23-10-2007 के बाद बीमा कराने का दायित्व उसी पर था, परन्तु उसने दिनांक 23-10-2007 को बीमा समाप्त होने के बाद नया बीमा नहीं कराया है और न बीमा समाप्त होने की सूचना अपीलार्थी/परिवादी को दिया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि हाइपोथिकेशन एग्रीमेंट दिनांक 10-01-2005 की शर्त संख्या-10(1) व 10(2) से यह स्पष्ट है कि बीमा कराने का दायित्व प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक पर भी था और बीमा अपीलार्थी/परिवादी व प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के नाम संयुक्त रूप से होना था। चूंकि वर्ष 2000 से लेकर 2007 तक बराबर प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक अपीलार्थी/परिवादी की दुकान व स्टाक का बीमा कराता रहा है अत: दिनांक 23-10-2007 को बीमा पालिसी समाप्त होने पर नया बीमा कराने का दायित्व उसी पर था और यदि वह नया बीमा स्वयं नहीं कराना चाहता था तो इसकी सूचना अपीलार्थी/परिवादी को उसे देनी चाहिए थी। बीमा पालिसी विपक्षी बैंक की अभिरक्षा में थी इस कारण बीमा समाप्ति की तिथि की जानकारी अपीलार्थी/परिवादी को नहीं थी। अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने दिनांक 23-10-2007 के बाद अपीलार्थी/परिवादी के खाते में पर्याप्त धन उपलब्ध होते हुए भी अपीलार्थी/परिवादी के स्टाक व दुकान का बीमा नहीं कराया है और अपने दायित्व के निर्वहन में चूक की है इस प्रकार उसने सेवा में कमी की है और अपीलार्थी/परिवादी को क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक उत्तरदायी है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Corporation Bank Vs. Sandhya Shenoy & Anr. में पारित निर्णय संदर्भित को किया है जो I(2009) CPJ 34 (NC) के वाद में प्रकाशित है। इसके साथ ही अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Leatheroid Plastics
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Pvt. Ltd. Vs. Canara BankII (2019) CPJ 147 (NC)
मैंने अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/परिवादी व प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के बीच हुए करार पत्र दिनांक 29 मई, 2005 के प्रस्तर-6 में अंकित है कि “That all the Hypothecated goods, the subject of this Agreement, shall be insured by the Borrower against fire risk and any other risk as may be necessary and required by the Bank in its discretions, in the joint names of the Borrower and the Bank with some insurance company/companies approved by the Bank to the extent of at least 10% in excess of the invoice value or the market value whichever is lesser of the hypothecated goods and that the cover Note/s or the insurance Ploicy/Policies Certificate/s shall be delivered to the Bank, If the Borrower fails to effect such insurance, the bank may insure the said hypothecated goods against fire and other risk as may be deemed necessary by the Bank in its discretion in such joint names and debit the premium and other charges to such account or accounts as the case may be.”
अपीलार्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा संदर्भित मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Corporation Bank Vs. Sandhya Shenoy & Anr. के वाद में पारित उपरोक्त निर्णय में बैंक और ऋणी के बीच ऋण करार का क्लाज-10 निम्न था :-
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“The borrowers shall themselves insure and are bound to keep insured from time-to-time at their expense, the hypothecated goods described in Schedule A and stored in the godowns or premises described in Schedule B with any Insurance Company as agreed to by the Bank to the extent of …….(Rs.……) for one year from this date or from such other date but not later than in their names jointly with the name of the bank or in such other names as agreed to by the Bank and shall deliver such policy or policies to the bank. If the borrowers fail to insure the goods and/or keep them insured from time-to-time as required of them by the Bank, it shall be open to the bank and the bank is hereby at liberty to offer such insurance in joint names as aforesaid or in its own name with a Company of its choice at the expenses of the Borrowers and charge such expenses and the premia on such policy or policies to such account(s) of the Borrowers from time-to-time standing in the books of the Bank at any of its branches. The Borrowers shall be bound to assign the benefits of the insurance policies standing in their names, in favour of the Bank and the Bank is hereby entitled to the benefits of all such policies.”
ऋण करार की उपरोक्त शर्त के आधार पर मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह माना है कि ऋणी द्वारा बीमा कराने पर विफल रहने पर बैंक को छूट थी कि वह बंधक माल का बीमा कराता और पूर्व वर्षों में बैंक ने ऋणी के मौखिक निर्देश पर उसका बीमा कराया था अत: प्रश्नगत
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अवधि में बैंक द्वारा बीमा न कराया जाना और बैंक द्वारा बीमा न कराने की सूचना ऋणी को न दिया जाना बैंक की सेवा में कमी है।
अपीलार्थी के द्वारा संदर्भित मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Leatheroid Plastics Pvt. Ltd. Vs. Canara Bank के वाद में दिये गये निर्णय जो II (2019) CPJ 147 (NC) में प्रकाशित है, में Allahabad Bank Vs. J.D.S. Electronic Company, I (2007) CPJ 270 (NC) के वाद में दिये गये पूर्व निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Allahabad Bank Vs. J.D.S. Electronic Company के वाद में दिये गये निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धरत है :-
“It is admitted case of the parties that for preceding two years the stocks and equipments, etc. were got, insured by the petitioner bank and premjum amount debited in the account of respondent. It is not the case of petitioner that any notice was given calling upon the respondent to get the hypothecated stocks and equipment, ete. Insured directly by it for the subsequent year in which occurrence took place. In that backdrop, we do not find any illegality or jurisdictional error in the orders passed by For a below holding the petitioner bank deficient in service on ground of its not having got insured the hypothecated stocks and equipments, etc. and paying the said amount to the respondent. Revision is without merit. Dismissed as such with cost of Rs 3,500 to the respondent.”
अपीलार्थी/परिवादी एवं प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के बीच हुए ऋण करार के उपरोक्त क्लाज-6 से स्पष्ट है कि बीमा पालिसी ऋणी एवं बैंक के नाम संयुक्त रूप से होनी थी और बीमा पालिसी बैंक को डिलीवर की जानी थी। ऋण करार के क्लाज-6 में यह भी प्राविधान है
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कि ऋणी द्वारा बीमा कराने में विफल रहने पर बैंक Hypothecated goods का स्वयं बीमा कराकर बीमा प्रीमियम की धनराशि ऋणी के खाते से डेबिट कर सकती थी। पिछले वर्षों में बैंक ने बीमा कराया है और बीमा प्रीमियम की धनराशि अपीलार्थी/परिवादी के ऋण खाता से डेबिट किया है। इसके साथ ही उल्लेखनीय है कि बीमा पालिसी बैंक के पास रही है। अत: दिनांक 23-10-2007 को बीमा पालिसी समाप्त होने पर पिछले वर्षों की भांति Hypothecated goods का बीमा बैंक को कराना चाहिए था। परन्तु बैंक ने न तो बीमा कराया है और न ही बैंक द्वारा बीमा पालिसी दिनांक 23-10-2007 को समाप्त होने की सूचना ऋणी अपीलार्थी/परिवादी को दी गयी है। बीमा पालिसी करार के अनुसार बैंक को दी गयी है और बैंक के पास रही है। अत: बीमा पालिसी की अवधि समाप्त होने की सूचना बैंक द्वारा निर्णीत ऋणी को दिया जाना आवश्यक था। परन्तु बैंक ने पालिसी समाप्त होने की सूचना अपीलार्थी/परिवादी को दिया जाना प्रमाणित नहीं किया है। अत: माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांत और सम्पूर्ण तथ्यों एवं साक्ष्यों को देखते हुए यह मानने हेतु उचित आधार है कि प्रत्यर्थी बैंक की सेवा में कमी है जिससे अपीलार्थी/ परिवादी के Hypothecated स्टाक का बीमा दिनांक 23-10-2007 के बाद नहीं कराया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी स्वनियोजन से जीविकोपार्जन हेतु प्रश्नगत व्यापार करता है। अत: वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1)(डी) के स्पष्टीकरण के अनुसार उपभोक्ता है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की कमी के कारण अपीलार्थी/परिवादी के Hypothecated स्टाक का बीमा नहीं हुआ है और दिनांक 31-01-2008 को आग से क्षति कारित होने पर वह बीमा क्लेम के लाभ से वंचित हुआ है। अत: अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी बैंक से क्षति की
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धनराशि दिलाया जाना आवश्यक है। दिनांक 23-10-2007 को समाप्त होने वाली पालिसी में बीमित सम्पत्ति का मूल्य 8,50,000/- रहा है और वाणिज्य कर विभाग ने दिनांक 01-04-2007 से दिनांक 31-12-2007 की अवधि के कर निर्धारण आदेश में अंतिम रहतिया 8,37,380/-रू0 माना है।
बैंक ने आग से नष्ट हुए सामान का सर्वे कराकर क्षति का आंकलन नहीं किया है। अत: वाणिज्य कर विभाग द्वारा दिनांक 31-12-2007 को स्वीकार की गयी अंतिम रहतिया एवं दिनांक 01-04-2007 से 31-12-2008 की कर निर्धारण आदेश में अंकित बिक्री और घोषित खरीद को दृष्टिगत रखते हुए आग से अपीलार्थी/परिवादी को हुई क्षति रू0 6,00,000/- निर्धारित किया जाना उचित है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना एवं निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश अपास्त कर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा प्रत्यर्थी बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह अपीलार्थी/परिवादी को रू0 6,00,000/- (छ: लाख रूपया) क्षतिपूर्ति परिवाद की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज के साथ अदा करें, साथ ही रू0 10,000/- वाद व्यय भी उसे दे।
प्रत्यर्थी बैंक उपरोक्त धनराशि का समायोजन अपीलार्थी/परिवादी के ऋण की अवशेष धनराशि यदि हो, में करने हेतु स्वतंत्र है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0