Uttar Pradesh

StateCommission

A/1596/2018

National Handicraft - Complainant(s)

Versus

Union Bank Of India - Opp.Party(s)

Sanjay Kumar Verma

16 Sep 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1596/2018
( Date of Filing : 04 Sep 2018 )
(Arisen out of Order Dated 24/07/2018 in Case No. C/409/2010 of District Saharanpur)
 
1. National Handicraft
Saharanpur
...........Appellant(s)
Versus
1. Union Bank Of India
Saharanpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 16 Sep 2019
Final Order / Judgement

                                                                                                        

                                                                                                                              (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 

अपील सं0- 1596/2018

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद सं0- 109/2010 में पारित आदेश दि0 24.07.2018 के विरूद्ध)

National Handicraft, Abdul salam road, Kutubsher, Saharanpur, through Proprietor Shri Rais ahmad.

                                                                               ……….Appellant

                                                     Versus

1. Union bank of India, Branch Manager, Saharanpur through Branch Manager, Purani mandi, Saharanpur.

2. Union bank of India, Regional office, 19 B, Rajpura road, Dehradun, through Chief Manager.

                                                                         ………..Respondents

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष   

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजय कुमार वर्मा, विद्वान अधिवक्‍ता।  

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा के सहयोगी श्री सतीश          

                             चन्‍द्र श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।  

 

दिनांक:- 10.10.2019  

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                 

निर्णय

          परिवाद सं0- 109/2010 नेशनल हैण्‍डीक्राफ्ट बनाम यूनियन बैंक आफ इंडिया में जिला फोरम, सहारनपुर द्वारा पारित आदेश दि0 24.07.2018 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

          जिला फोरम ने परिवादी को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्‍ता नहीं माना है। अत: परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य न मानकर आक्षेपित आदेश के द्वारा निरस्‍त कर दिया है, जिससे क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी/परिवादी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।  

          अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री संजय कुमार वर्मा और प्रत्‍यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा के सहयोगी श्री सतीश चन्‍द्र श्रीवास्‍तव उपस्थित आये हैं।

          मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

          अपीलार्थी की ओर से लिखित तर्क प्रस्‍तुत किया गया है।

          मैंने लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।  

          अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के विरुद्ध इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि अपीलार्थी/परिवादी नेशनल हैण्‍डीक्राफ्ट्स के नाम से वुड कार्विग का सामान बनाने व रिपेयर करने का कारोबार करता है। उसने अपना बैंक खाता विपक्षीगण के बैंक में विपक्षी सं0- 1 के यहां खुलवा रखा है और सभी कारोबार और लेने देन अपने बैंकर प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के माध्‍यम से करता है। वह विदेशों को भी अपना सामान निर्यात करता है। इसी क्रम में उसे एक ऑर्डर मै0 अमन मार्बल एण्‍ड वुड हैण्‍डीक्राफ्ट्स 6545 प्‍लैट एवेन्‍यू, वेस्‍ट हिल्‍स, लांग बीच पार्ट- ।। जांस एन्जिल कैलीफोर्निया 91307 अमेरिका के प्रोपराइटर हरजेन्‍द्र सिंह से प्राप्‍त हुआ तब उसने सामान बनवाकर व पैक कराकर कार्यालय सहायक आयुक्‍त सीमा कस्‍टम से जांच कराकर अमेरिका भिजवाया जिसका शिपिंग बिल नं0- 164/3064 था और जी0आर0नं0-बी0ए0-250981 था तथा इनवाइस नं0- 19/2864 था। इस माल का मूल्‍य 4,06,554/-रु0 था जो डॉलर में 9014.50 डॉलर था। उसने अपना यह माल न्‍यूयार्क लोजस्टिक सर्विसेज आई0एन0सी0 के माध्‍यम से भिजवाया था और माल के सम्‍बन्‍ध में सभी कागजात व दस्‍तावेज व बिलआफ एक्‍सचेंज एवं बिल्‍टी आदि विपक्षी सं0- 1 के माध्‍यम से अमेरिका भिजवाया था, जिसे 4,06,555/-रु0 प्राप्‍त कर कंसाइनी को दिया जाना था और प्राप्‍त धनराशि प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के बैंक खाता में जमा किया जाना था।

          परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण ने अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दिये गये कागजात को अपने सहयोगी बैंक वाशिंगटन मिथयुल बैंक कैलीफोर्निया को डी0एच0एल0 कोरियर के माध्‍यम से दि0 10.08.2004 को भिजवाया और प्रत्‍यर्थी/विपक्षी सं0- 1 ने अपनी सेवा हेतु 1,515/-रु0 अपीलार्थी/परिवादी से दि0 05.10.2004 को प्राप्‍त किया, परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण ने पैसा वसूल कर अपीलार्थी/परिवादी के खाते में जमा नहीं करवाया और न ही अपीलार्थी/परिवादी को उसके दस्‍तावेज व बिल्‍टी आदि वापस किये। इस प्रकार प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक ने सेवा में कमी की है और उनका कार्य अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस है। अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण से शिकायत की और व्‍यक्तिगत रूप से भी मिला, परन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है और प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण से अपने माल की कीमत 4,06,554/-रु0 दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है। साथ ही ब्‍याज व मानसिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति और वाद व्‍यय भी मांगा है।

          जिला फोरम के समक्ष प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण सं0- 1 व 2 की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है और परिवाद का विरोध किया गया है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण ने अपने लिखित कथन की धारा 15 में कहा है कि परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्‍ता नहीं है। अत: परिवाद ग्राह्य नहीं है।

          जिला फोरम ने उभय पक्ष के तर्क को सुनकर एवं उभय पक्ष के अभिकथन पर विचार कर यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की सेवा वाणिज्यिक उद्देश्‍य से प्राप्‍त किया है। अत: वह धारा 2(1)d उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्‍ता नहीं है और परिवाद ग्राह्य नहीं है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आक्षेपित आदेश के द्वारा निरस्‍त कर दिया है।

          अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश तथ्‍य और विधि के अनुकूल नहीं है। अपीलार्थी ने विदेशी क्रेता को भेजे गये माल के कागजात प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के माध्‍यम से भेजा है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण को प्रतिनिधि विदेशी बैंक के माध्‍यम से माल का मूल्‍य प्राप्‍त कर अपीलार्थी/परिवादी के खाते में क्रेडिट करना था। ऐसी स्थिति में यह स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रश्‍नगत संव्‍यवहार प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक से कोई लाभ अर्जित करने अथवा व्‍यापार करने के लिए नहीं किया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)d के अंतर्गत उपभोक्‍ता है और परिवाद जिला फोरम के समक्ष ग्राह्य है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने आक्षेपित आदेश के द्वारा परिवाद को अग्राह्य मानकर जो निरस्‍त किया है वह विधि विरुद्ध है।

          प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश विधि अनुकूल है। अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक की सेवा व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से प्राप्‍त की है। अत: अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है और परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अतर्गत ग्राह्य नहीं है।

          मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

          धारा 2(1)घ उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्‍ता को निम्‍न प्रकार से परिभाषित किया गया है:-

          ‘’उपभोक्‍ता’’ से ऐसा कोई व्‍यक्ति अभिप्रेत है जो-

          (i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है, और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न, जो ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है या ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किन्‍तु इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्‍यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्‍त करता है; और       

          (ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उपभोग करता है) और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है) ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है (लेकिन इसमें कोई ऐसा व्‍यक्ति शामिल नहीं है, जो ऐसी सेवाओं को किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए उपाप्‍त करता है;)

          (स्‍पष्‍टीकरण- इस खण्‍ड के प्रयोजनों के लिए ‘’वाणिज्यिक प्रयोजन’’ में किसी व्‍यक्ति द्वारा माल का उपयोग और सेवाओं का उपाप्‍त नहीं करता जिसका उसने अनन्‍य रूप से स्‍व-नियोजन उपाय से अपनी जिविका उपार्जन के प्रयोजन के लिए क्रय और उपयोग किया है;)

          परिवाद पत्र के कथन से स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने विदेशी क्रेता से प्राप्‍त आदेश के अनुपालन में अपना माल विदेशी क्रेता को भेजा है और भेजे गये माल के कागजात प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक के माध्‍यम से विदेशी क्रेता को इस शर्त से भेजा है कि प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के विदेशी प्रति‍निधि बैंक द्वारा माल के मूल्‍य का भुगतान प्राप्‍त कर माल से सम्‍बन्धित कागजात विदेशी क्रेता को दिये जायेंगे और प्राप्‍त धनराशि अपीलार्थी/परिवादी के खाते में प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक द्वारा क्रेडिट की जायेगी। अत: यह स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण के बैंक की सेवा वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्‍त की है। अत: धारा 2(1)घ उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिभाषित उपभोक्‍ता अपीलार्थी/परिवादी नहीं है और परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य नहीं है।

          जिला फोरम ने परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अग्राह्य मानकर जो निरस्‍त किया है वह विधि अनुकूल है। जिला फोरम के आदेश में किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है। अत: अपील निरस्‍त की जाती है।

          उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

    

                    (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                                              

                                          अध्‍यक्ष                            

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 

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