(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 543/2016
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्धितीय, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-33/2014 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 24-02-2016 के विरूद्ध)
मेर्स जयसिद्धी सुपर पॉवर प्राईवेट लि0, प्लाट नम्बर-1, रेलवे रोड, साहिबाबाद, जिला गाजियाबाद द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर जयभगवान शर्मा पुत्र स्व0 श्री मूलचनद्र शर्मा, निवासी-461/12, काठी सादरअली स्वर्ग आश्रम रोड हापुड़, जिला हापुड।
.....अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
- यूनियन बैंक आफ इण्डिया, 24 महेश पैलेस नवयुग मार्केट, गाजियाबाद, यू0पी0-201001
- न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 मण्डल कार्यालय आर-1/89, आर.डी.सी. राज नगर, गाजियाबाद, यू0पी0।
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समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित- श्री राजेश चढ्ढा।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित-श्री वकार हाशिम।
दिनांक : 31-12-2019
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-33/2014 मैसर्स जयसिद्धी सुपर पॉवर प्राइवेट लि0 बनाम् यूनियन बैंक आफ इण्डिया व एक अन्य में जिला फोरम, द्धितीय, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 24-02-2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी मैसर्स जयसिद्धी सुपर पॉवर प्राईवेट लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री राजेश चढ्ढा तथा प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री वकार हाशिम उपस्थित आए हैं।
मैंने प्रत्यर्थीगण के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 यूनियन बैंक आफ इण्डिया के यहॉं से दिसम्बर-2007 में कारोबार के संबंध में 20,000,00/-रू0 की बैंक लिमिट ली थी और विपक्षी बैंक द्वारा उसकी फैक्ट्री के स्टाक रॉ मैट्रीरियल तथा उपकरण का बीमा कराया गया था। प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने दिनांक 17-12-2007 को उसके खाते से रू0 7,373/-, दिनांक 05-12-2008 को रू0 4,668/- और दिनांक 08-12-2009 को रू0 6,593/- बीमा प्रीमियम की धनराशि काटी थी और प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 बीमा कम्पनी ने उसे प्राप्त किया था।
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परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि दिनांक 03-10-2011 को लगभग 8.00 बजे रात के समय उसकी फैक्ट्री में आग लग गयी जिसकी सूचना पड़ोसियों द्वारा फायर बिग्रेड को दी गयी और फायर बिग्रेड ने मौके पर आकर आग पर नियंत्रण किया। परिवाद पत्र के अनुसार आग से अपीलार्थी/परिवादी को लगभग 60,00,000/-रू0 की क्षति हुई और उसने प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से सम्पर्क किया तथा उन्हें सूचित किया। उसने अनुरोध किया कि उसका माल 20,00,000/-रू0 हेतु प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमित है उसकी क्षतिपूर्ति दिलायी जाए। परन्तु उसे प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 बीमा कम्पनी से मौखिक रूप से पता चला कि प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा दिसम्बर, 2010 से दिसम्बर, 2011 हेतु फैक्ट्री का बीमा नहीं कराया गया है। उसे प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने इस संदर्भ में कोई लिखित सूचना परिवाद प्रस्तुत करने तक नहीं दिया। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है :-
- यह कि परिवादी को उसकी फैक्ट्री में लगी आग से हुई क्षतिपूर्ति धनराशि अंकन 20,00,000/-रू0 विपक्षीगण से दिलाया जावे।
- यह कि अन्य अनुतोष जो माननीय न्यायालय उचित समझे परिवादी को विपक्षीगण से दिलाया जावे।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और परिवाद का विरोध किया गया है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है और अपीलार्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष विलम्ब क्षमा हेतु कोई आवेदन पत्र प्रस्तुत नहीं किया है अत: जिला फोरम ने परिवाद आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा निरस्त कर दिया है1
अपीलार्थी की ओर से अपील पर बल देने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ है। निश्चित तिथि दिनांक 22-02-2019, 03-07-2019, 13-11-
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2019 और दिनांक 19-11-2019 को लगातार अपील पर बल देने हेतु अपीलार्थी/परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
प्रत्यर्थीगण के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय उचित और विधिसम्मत है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने प्रत्यर्थीगण के विद्धान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र की धारा-5 में अपीलार्थी/परिवादी ने कहा है कि आग लगने के बाद उसने विपक्षी से सम्पर्क किया और सूचित किया कि फैक्ट्री में आग लगने से उसे लगभग 60,00,000/-रू0 की हानि हुई है। उसका जो अंकन 20,00,000/-रू0 का बीमा है उसकी क्षतिपूर्ति बीमा कम्पनी से दिलायी जाए।
अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में यह नहीं कहा गया है कि उसने किस विपक्षी को यह सूचना दी है। उसने विपक्षीगण को आग लगने की कोई सूचना दिया जाना जिला फोरम के समक्ष साबित नहीं किया है। परिवाद पत्र के कथन से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 की बीमा कम्पनी से कथित दुर्घटना के समय उसकी फैक्ट्री का बीमा नहीं था। अत: बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को आग की कथित दुर्घटना में हुई क्षति की पूर्ति किये जाने का प्रश्न नहीं उठता है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार उसने रू0 20,00,000/- की बैंक लिमिट प्रत्यर्थी बैंक से ली थी और बैंक द्वारा ही उसकी फैक्ट्री का बीमा कराया जाता था, परन्तु प्रश्नगत वर्ष में बैंक ने परिवादी की फैक्ट्री का बीमा नहीं कराया है यदि इस आधार पर प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की सेवा में कमी हेतु यह परिवाद माना जाए तो परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से अधिक होता है। परिवाद पत्र से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी बैंक से क्रेडिट लिमिट रू0 20,00,000/- की ली है और उसने 20,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति मांगी है। अत: अपीलार्थी/परिवादी द्वारा बैंक से ली गयी सेवा का मूल्य एवं याचित
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क्षतिपूर्ति की धनराशि मिलाकर परिवाद का मूल्यांकन 40,00,000/-रू0 होता है जो जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है।
आग की दुर्घटना दिनांक 03-10-2011 की बतायी गयी और अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र दिनांक 15-01-2014 को प्रस्तुत किया है परन्तु परिवाद पत्र में यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसे कब ज्ञात हुआ कि बैंक ने संगत वर्ष में उसकी फैक्ट्री का बीमा नहीं कराया है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर प्रत्यर्थी बैंक के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। अत: इस अपील में प्रत्यर्थी बैंक के विरूद्ध परिवाद में कालबाधा के संबंध में कोई मद व्यक्त करना उचित नहीं है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने जो प्रत्यर्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विरूद्ध परिवाद निरस्त किया है उसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है और उपरोक्त निष्कर्ष से स्पष्ट है कि बैंक के विरूद्ध अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है, अत: अपील अपीलार्थी/परिवादी को इस छूट के साथ निरस्त की जाती है कि वह विधि के अनुसार परिवाद सक्षम फोरम में प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के विरूद्ध प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0