राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-602/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, आजमगढ़ द्धारा परिवाद सं0-78/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22.9.2021 के विरूद्ध)
मन्सा देवी पत्नी स्व0 रामदेव राम, निवासी ग्राम अविलासन, पोस्ट भुजही, जिला आजमगढ़ उ0प्र0। ........... अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम
यूनियन बैंक आफ इण्डिया द्वारा शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा रायपुर, जनपद मऊ उ0प्र0। …….. प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 06.6.2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/परिवादिनी मन्सा देवी द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, आजमगढ़ द्वारा परिवाद सं0-78/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22.9.2021 के विरूद्ध पंजीकृत डाक के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। प्रश्नगत निर्णय/आदेश के द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादिनी का परिवाद खारिज दिया है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादिनी का बचत खाता सं0-491702010003284 प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 यूनियन बैंक आफ इण्डिया में खोला गया था, जो अपीलार्थी/परिवादिनी एवं उसके स्व0 पति रामदेव के संयुक्त नाम से है, अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा अपने पति के साथ संयुक्त रूप से दिनांक 11.01.2002 को रू0 10,000.00 का एक एफ0डी0आर0 लिया गया, जिसकी परिपक्वता अवधि 05 वर्ष (11.01.2007) एवं ब्याज दर 8.5 प्रतिशत
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थी। अपीलार्थी/परिवादिनी एवं उसके स्व0 पति द्वारा दिनांक 08.01.2005 को दूसरा एफ0डी0आर0 सं0-5929805 लिया गया, जो कि 1,00,000.00 रू0 का था, जिसकी परिपक्वता अवधि 12 माह (08.01.2006) एवं ब्याज दर 5.25 प्रतिशत निर्धारित की गई थी। प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 यूनियन बैंक आफ इण्डिया द्वारा बताया गया कि यदि इस अवधि के उपरांत भी रकम निकाली नहीं जाएगी तब स्वत: यह रकम इसी योजना में जमा मानी जाएगी और प्राप्त होने वाले लाभ भी मिलेंगे।
अपीलार्थी/परिवादिनी के अनुसार उसके पति की मुत्यु दिनांक 17.02.2007 के पश्चात जमा रसीद की फोटोप्रति के साथ जब प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहॉ सम्पर्क किया तो प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा बताया गया कि दोनों फिक्स डिपाजिटों की धनराशि का भुगतान हो चुका हैं तथा दिनांक 07.01.2005 को खाता बन्द कर दिया गया। अपीलार्थी/परिवादिनी के पति द्वारा फिक्स डिपाजिट की रकम के भुगतान लेने के संदर्भ में उससे कभी कोई जिक्र नहीं किया गया था और न ही दोनों फिक्स डिपाजिट की रकम का भुगतान लेने कभी प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहॉ ही गये थे। प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा यह स्पष्ट नहीं बताये जाने के कारण कि उन्होंने किसको भुगतान किस तिथि में किया अपीलार्थी/परिवादिनी ने जरिए आर0टी0आई0 एक्ट, 2005 के प्रावधान के तहत दिनांक 31.5.2015 को सूचना मॉगी, जो उसे नहीं मिलने पर दिनांक 22.7.2014 को प्रथम अपील प्रेषित की, तब सार्वजनिक सूचना अधिकार कार्यालय यूनियन बैंक आफ इण्डिया गोरखपुर द्वारा प्रेषित सूचना दिनांक 05.7.2014 प्राप्त हुई जिसके द्वारा सूचित किया गया कि शाखा रिकार्ड के अनुसार खाता सं0-159 दिनांक 13.10.2003 को तथा खाता सं0-188 दिनांक 16.02.2006 को बन्द होकर श्री रामदेव राम व श्रीमती मंसा देवी के संयुक्त खाता सं0-3284 में राशि जमा हुई है।
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प्रत्यर्थी/विपक्षी से प्राप्त सूचना गलत होने की स्थिति में पुन: दिनांक 22.9.2014 को उसके द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी के यहॉ सूचना आवेदन प्रस्तुत किया परन्तु कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई एवं दिनांक 22.9.2014 को प्रस्तुत प्रथम अपील पर भी अपीलीय अधिकारी द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिए जाने पर केन्द्रीय सूचना आयोग के सम्मुख दिनांक 06.01.2015 को दि्वतीय अपील प्रस्तुत की एवं दिनांक 07.4.2016 को जब मामले की सुनवाई की गई तब प्रत्यर्थी/विपक्षी के सी0पी0आई0ओ0 द्वारा दी गई सूचना बिल्कुल विपरीत थी तथा यह अवगत कराया गया कि खाता सं0-491702010003284 को दिनांक 04.11.1997 को 500.00 रू0 की राशि से खोला गया एवं उसके पश्चात उस खाते से कोई सम्यव्यवहार नहीं किया गया अत्एव अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से अपने दोनों एफ0डी0आर0 की जमा धनराशि मय ब्याज एवं क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इंकार किया गया तथा यह कथन किया गया कि अपीलार्थी/परिवादिनी उपभोक्ता नहीं है। यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी/परिवादिनी के पति श्री रामदेव राम एवं परिवादिनी ने संयुक्त नाम से तथा "कोई अथवा उत्तरजीवी" के निर्देश के साथ प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की शाखा में अपना बचत खाता सं0-3284 खोला था तथा श्री रामदेव राम एवं परिवादिनी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की शाखा में अपने संयुक्त नामों से एफ0डी0आर0 में उपरोक्त धनराशि को निवेश करना स्वीकार भी किया गया। परन्तु कालान्तर में दिनांक 10.10.2002 को श्री रामदेव राम ने मूल सावधि जमा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके उक्त सावधि जमा रसीद को परिपक्वता तिथि से पूर्व ही तोड़कर उसकी धनराशि को अपने बचत खाता सं0-3284 में जमा करने हेतु
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अनुरोध किया, अत्एव दिनांक 13.10.2003 को उक्त सावधि जमा खाता सं0-159 को परिपक्वता तिथि से पहले तोड़कर उसकी धनराशि को श्री रामदेव राम एवं परिवादिनी के बचत खाता सं0-3284 में जमा करा दी गई।
कालान्तर में पुन: दिनांक 14.02.2006 को श्री रामदेव राम द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 की शाखा में उपस्थित होकर मूल सावधि जमा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके उक्त सावधि जमा खाता सं0-188 की धनराशि को उनके बचत खाता सं0-3284 में जमा करने हेतु अनुरोध किया, अत्एव दिनांक 16.02.2006 को उक्त सावधि जमा खाता सं0-188 को परिपक्वता तिथि से पहले तोड़कर उसकी धनराशि को श्री रामदेव राम एवं परिवादिनी के बचत खाता सं0-3284 में जमा करा दी गई। मूल सावधि जमा प्रमाण पत्र प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 के पास उपलब्ध है।
उपरोक्त दोनों ही सावधि जमा रसीदों को तोड़ दिए जाने के कारण उनकी तोड़ने की तिथि के बाद से ऐसी जमा रसीदों की रकम के सापेक्ष कोई ब्याज की रकम श्री रामदेव राम व परिवादिनी के बचत खाते में जमा नहीं हुई, जैसा कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत पास बुक की प्रति से भी प्रकट होता है। प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा परिवादिनी एवं उसके पति को कभी भी ऐसा आश्वासन नहीं दिया गया कि उनके उपरोक्त सावधि जमा खाते उनकी परिपक्वता तिथि के बाद स्वत: नवीनीकृत हो आएंगे। अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 को कभी भी उसके पति की मृत्यु के सम्बन्ध में कोई सूचना या मृत्यु प्रमाण पत्र आदि उपलब्ध नहीं कराया गया एवं मृत्यु के बाद भी बचत खाते का संचालन किया जा रहा है, इस प्रकार अपीलार्थी/परिवादिनी समस्त तथ्यों से अवगत रही एवं तथ्यों को छिपाती रही। परिवाद गलत तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है, जो निरस्त होने योग्य है।
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विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथनों एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत परिवादिनी के परिवाद को खारिज कर दिया है।
प्रस्तुत अपील नवीन वाद के रूप में आज सुनवाई हेतु सूचीबद्ध है, पिछली कई तिथियों से कार्यालय द्वारा इंगित त्रुटियों के निवारण हेतु दिनांक 10.12.2021 एवं दिनांक 10.02.2022 को अपीलार्थी को समय प्रदान किया जाता रहा, परन्तु कार्यालय द्वारा इंगित त्रुटियों का निवारण आज दिनांक तक अपीलार्थी द्वारा सुनिश्चित नहीं किया गया है। आज पुन: अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
मेरे द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: विधि अनुकूल है तथा उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता अपील स्तर पर प्रतीत नहीं हो रही है, अत्एव प्रस्तुत अपील बलहीन होने एवं पैरवी न किये जाने तथा अपीलार्थी की अनुपस्थिति के कारण निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1