राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-३४७/२०२१
(जिला उपभोक्ता मंच/आयोग, जौनपुर द्वारा परिवाद सं0-१५६/२०१८ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २६-०६-२०२१ के विरूद्ध)
स्व0 विमला उपाध्याय (मृतक) द्वारा विधिक वारिसान,
1/1, सुभाष चन्द्र पुत्र श्री अद्याचरन उपाध्याय, ग्राम महेशपुर, पोस्ट-खपरहा, थाना सिकरारा, तहसील सदर, जिला जौनपुर।
................. अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम्
यूनियन बैंक आफ इण्डिया द्वारा बैंक मैनेजर, सिकरारा ब्रान्च, जिला जौनपुर, यू0पी0।
............... प्रत्यर्थी/विपक्षी।
समक्ष:-
१. मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री अनिल कुमार मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : २२-११-२०२२.
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता मंच/आयोग, जौनपुर द्वारा परिवाद सं0-१५६/२०१८ विमला उपाध्याय बनाम प्रबन्धक यूनियन बैंक आफ इण्डिया, में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २६-०६-२०२१ के विरूद्ध अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता मंच ने परिवादीगण द्वारा मांगे गए अनुतोष को इस आधार पर खारिज कर दिया कि बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई।
परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी जो एक कृषक है, ने किसान क्रैडिट कार्य खाता सं0-४०२२०५०३०११८९१ पर दिनांक २८-०१-२००९ को ऋण प्राप्त किया था जो पूरा चुकता कर दिया गया। इसके बाद पुन: दिनांक ०२-०९-२०१४ को उसी खाते पर ७०,०००/-
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रू० ऋण प्राप्त किया गया। दिनांक १६-०९-२०१४ को २२,०००/- रू० एवं दिनांक १८-०९-२०१४ को ४३,०००/- रू० जमा कर दिए और इस प्रकार केवल ५,०००/- रू० का ऋण अवशेष रहा। आगे कथन किया गया कि दिनांक १२-०१-२०१५ को १५००/- रू०, दिनांक २४-०२-२०१५ को २,०००/- रू० व दिनांक २७-०२-२०१५ को ३१४७/- रू० जमा कर दिए गए और ऋण राशि से अधिक राशि जमा की गई। पुन: दिनांक ०२-०३-२०१७ को ०२.०० लाख रू० का ऋण प्राप्त किया गया। दिनांक ०२-११-२०१७ को कुल ऋण चुकता कर दिया गया और ९३/- रू० अधिक जमा किया गया। परिवादिनी द्वारा दिनांक १२-०९-२०१८ को खाता बन्द करने एवं अदेयता प्रमाण पत्र जारी करने का अनुरोध किया गया परन्तु बैंक द्वारा कहा गया कि दिनांक २६-०३-२०१८ को १५,१९४/- रू० ब्याज का देय है और अंकन ९५/- रू० काटकर १५,०९८/- रू० परिवादिनी को जमा करना है। यह भी कथन किया गया कि दिनांक २६-०३-२०१८ से ३१-०३-२०१८८ तक की अवधि का ९८/- रू० अतिरिक्त ब्याज का जमा करना है। चूँकि परिवादिनी द्वारा समस्त राशि जमा कर दी गई है और बैंक द्वारा अदेयता प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है और न ही खाता बन्द किया जा रहा है इसलिए विवश होकर उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी बैंक का कथन है कि परिवादिनी द्वारा स्वयं १५,०९८/- रू० जमा किया गया। यह राशि दिनांक १२-०९-२०१८ को जमा की गई इसके बाद का ब्याज जोड़ा जाना बाकी है। परिवादिनी को खाते का कुल विवरण प्राप्त कराकर अवशेष राशि जमा कराने का आग्रह किया गया परन्तु अवशेष राशि जमा न कर अवैध रूप से परिवाद योजित किया गया।
दोनों पक्षों के साक्ष्यों पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि बैंक द्वारा जो विवरण प्रस्तुत किया गया है वह विश्वसनीय है, इसलिए परिवाद खारिज कर दिया गया।
इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्ता मंच ने साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है। स्वयं बैंक द्वारा प्रस्तुत किए गए खाते के विवरण से साबित होता है कि परिवादिनी द्वारा अधिक राशि जमा की गई है। जिला
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उपभोक्ता मंच का यह निष्कर्ष साक्ष्य के विपरीत है कि अंकन १५,०९८/- रू० ब्याज के अन्तर के रूप में बकाया है।
हमारे द्वारा अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों/अभिलेखों एवं प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का सम्यक रूप से परिशीलन व परीक्षण किया गया।
परिवादिनी के खाते से सम्बन्धित जो चार्ट बैंक द्वारा प्रस्तुत किया गया है वह अपील पत्रावली पर दस्तावेज सं0-२२ है। इस दस्तावेज के अवलोकन से जाहिर होता है कि दिनांक ०२-११-२०१७ को परिवादिनी द्वारा अंकन २,५००/- रू० जमा किया गया और इस तिथि पर परिवादिनी पर ९५/- रू० बकाया था परन्तु दिनांक २६-०३-२०१८ को ब्याज के अन्तर के रूप में परिवादिनी पर १५,१९४/- रू० बकाया दर्शित किया गया परन्तु ब्याज का अन्तर किस अवधि का है, किस करार के तहत है, इसका कोई उल्लेख उक्त विवरण पत्र में मौजूद नहीं है।
बहस के दौरान् भी बैंक की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया कि १५,१९४/- रू० का जो ब्याज दर्शाया गया है वह किस ब्याज राशि के अन्तर की राशि है। चूँकि खाता बैंक द्वारा संचालित किया जा रहा है इसलिए बैंक पर यह तथ्य साबित करने का भार है कि उनके द्वारा किस ब्याज राशि के अन्तर का १५,१९४/- रू० परिवादिनी पर बकाया दर्शाया गया है और चूँकि बैंक यह साबित करने में विफल रहा है कि १५,१९४/- रू० ब्याज की किस राशि के अन्तर के कारण परिवादिनी पर बकाया दर्शाया गया है इसलिए परिवादिनी का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है।
जिला उपभोक्ता मंच ने परिवादिनी के परिवाद को साक्ष्य के विपरीत निर्णीत करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया है जो, अपास्त किया जाता है और इस न्यायालय द्वारा अपीलीय निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए निम्न निर्देश के साथ प्रस्तुत अपील स्वीकार करते परिवाद स्वीकार किया जाता है :-
‘’ विपक्षी बैंक को निर्देशित किया जाता है कि परिवादिनी के प्रश्नगत खाते में
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दिनांक २६-०३-२०१८ को बकाया दर्शित १५,०९८/- रू० की राशि को तथा इसके बाद जो राशि ब्याज की राशि जोड़ना बताया गया है उस राशि को समाप्त करे और परिवादिनी को अदेयता प्रमाण पत्र जारी करे तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन २,०००/- रू० इस निर्णय के एक माह की अवधि के अन्दर अदा करे। ‘’
वैयक्तिक सहायक/आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायूमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-१.