Uttar Pradesh

Chanduali

CC/64/2016

Jagi - Complainant(s)

Versus

Union Bank of India - Opp.Party(s)

Suresh Singh

19 Apr 2017

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/64/2016
 
1. Jagi
W/O Gama Village-Jamuda Post-Ghoshwa Thana-Saiyadraja
Chandauli
UP
...........Complainant(s)
Versus
1. Union Bank of India
Saiyadraja Thana-Saiyadraja ke Samne Dist-Chandauli
Chandauli
UP
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 19 Apr 2017
Final Order / Judgement

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 64                              सन् 2016ई0
जागी पत्नी श्री गामा निवासिनी ग्राम जमुडा पो0 घोषवा जिला चन्दौली।
                                        ...........परिवादिनी                                                                                                                                    बनाम
1-शाखा प्रबन्धक,यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा सैयदराजा थाना सैयदराजा के सामने जिला चन्दौली।
                                             ............विपक्षी
उपस्थितिः-
 रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
 लक्ष्मण स्वरूप, सदस्य
                                                                                                   निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1-    परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी से जब्त की गयी जमा धनराशि रू0 16000/- एवं शारीरिक,आर्थिक एवं मानसिक क्षति हेतु रू0 20000/- एवं वाद व्यय हेतु रू0 5000/- दिलाये  जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2-    परिवादिनी की ओर से परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादिनी ग्रामीण अनपढ महिला है और उसने सुना था कि बैंक में रूपया रखने से दुगुना हो जाता है।  परिवादिनी ने दिनांक 21-11-2003 को रू0 16000/- लेकर विपक्षी के बैंक में गयी तो विपक्षी द्वारा कुछ कागजात पर अंगूठा लगवाकर कहा गया कि आप रूपया जमा कर दिजीये 12 वर्षो के बाद मिलेगा और कागजात दो तीन दिन बाद मिलेगा। परिवादिनी ने बैंक खाता संख्या 21119 में रू0 16000/- जमा कर दिया। परिवादिनी को दिनांक 24-11-2003 को विपक्षी द्वारा बचत पासबुक देकर कहा गया कि 12 वर्ष बाद लाने पर पैसा मिलेगा। परिवादिनी पासबुक को फिक्स का कागजात समझकर उसे अपने बक्से में रख दिया और अपने किसी पढे लिखे को नहीं दिखाया। परिवादिनी के पुत्र की तबियत खराब होने पर परिवादिनी ने अपने पुत्र को बताया कि कुछ रूपये जमा किये है निकाल लेते है। परिवादिनी ने अपनी पासबुक अपने पुत्र को दिखायी तो उसके पुत्र ने बताया कि यह बचत पासबुक है इसमे रूपया दुगुना नहीं होता है केवल साधारण व्याज ही मिलता है। परिवादिनी अपने पुत्र के साथ विपक्षी के बैंक में पैसा निकालने के लिये  दिनांक 9-4-2016 को गयी तो विपक्षी द्वारा परिवादिनी से के0वाई0सी0, परिचय पत्र आदि जमा करने को कहा गया। परिवादिनी ने उपरोक्त कागजात व फोटो बैंक को दिया तो विपक्षी द्वारा दो दिन बाद आने को कहा। परिवादिनी जब पुनः विपक्षी के बैंक में गयी तो विपक्षी द्वारा अवगत कराया गया कि पैसा नहीं मिलेगा। परिवादिनी अपने अधिवक्ता के साथ दिनांक 2-7-2016 को विपक्षी के बैंक में गयी तो बैंक मैनेजर द्वारा अवगत कराया गया कि रिजर्व बैंक के नियम के अनुसार 10 वर्षो तक खाते का संचालन न होने पर खाते को सीज कर दिया जाता है और उसमे जमा धनराशि बैंक की पूंजी हो जाती है। तत्पश्चात परिवादिनी के अधिवक्ता ने विपक्षी बैंक के महाप्रबन्धक सतर्कता अधिकारी और अन्य अधिकारियों के पास पत्राचार किया लेकिन कोई सुनवाई नही हुई तब परिवादिनी ने यह परिवाद दाखिल किया है।
                                                                                                  2
3-    विपक्षी बैंक की ओर से जबाबदावा दाखिल कर परिवादिनी के परिवाद के कथनों को इन्कार करते हुए अतिरिक्त कथन में कहा गया है कि परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी को परेशान करने की गरज से दाखिल किया गया है जो निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादिनी ने अपने जमाशुदा धनराशि को निकाल लिया है और उसके पासबुक में तत्समय इद्राज न होने का फायदा लेना चाहती है।बैंकिग प्रणाली के अभिलेखों में कम्प्यूटर से काम करने की प्रक्रिया वर्ष 2006 से आरम्भ हुई और लेजर को कम्प्यूटराइज्ड कर उसका स्टेटमेन्ट बनाकर एक रजिस्टर में सुरक्षित रखा गया है। वर्ष 2008 के प्रारम्भ में बैंक में कोर बैकिंग प्रणाली चालू हुई तो लेजर में अद्यतन स्टेटमेन्ट सी.बी.एस. में आ गया। परिवादिनी के खाते में वर्ष 2008 के प्रारम्भ से रू0 1321/- था। दिनांक 27-7-2014 को परिवादिनी के खाते की धनराशि व्याज सहित रू0 1648/- थी और वह धनराशि बैंकिग नियमों के अनुरूप रिर्जव बैंक को वापस चली गयी और वर्तमान समय में परिवादिनी के खाते में कोई धनराशि नहीं है। रिर्जव बैंक के नियमानुसार 10 वर्ष से ज्यादा समय तक खाते से लेन-देन न करने पर खाता डारमेट हो जाता है और खाते की अवशेष धनराशि रिर्जव बैंक को वापस हो जाती है। 10 वर्ष से ज्यादा पुराना बैंकिग रिकार्ड बैकिंग सरकुलर के अनुसार निरस्त कर दिये जाते है। वर्तमान समय में सी.बी.एस.कम्प्यूटर लेजर के अलावा बैंक के पास कोई अन्य दस्तावेजी प्रमाण नहीं है। इस प्रकार विपक्षी बैंक के द्वारा सेवा में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं की गयी है और परिवाद खारिज किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
4-    परिवादिनी की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया गया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में बचत खाता की छायाप्रति,आधार कार्ड की छायाप्रति,रजिस्ट्री रसीद की मूल प्रति एवं परिवादिनी द्वारा बैंक के महाप्रबन्धक को प्रेषित प्रार्थना पत्र की छायाप्रति,दाखिल की गयी है। विपक्षी बैंक की ओर से श्री मृत्युजय कुमार शाखा प्रबन्धक का शपथ पत्र दाखिल किया गया है।
5-    उभय पक्ष के अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी है पक्षकारों की ओर से दाखिल लिखित तर्क तथा पत्रावली का सम्यक रूपेण परिशीलन किया गया।
6-    परिवादिनी की ओर से तर्क दिया गया कि परिवादिनी एक अनपढ देहाती महिला है उसने यह सुना था कि बैंक में पैसा जमा करने पर वह पैसा 10-12 वर्षो में दुगुना हो जाता है अतः परिवादिनी ने दिनांक 21-11-2003 को यूनियन बैंक आफ इण्डिया की शाखा सैयदराजा में रू0 16000/- जमा किया। बैक के कर्मचारियों ने कुछ कागजात पर परिवादिनी का अंगूठा निशानी लगवाया और कहा कि 12 वर्ष बाद पैसा मिलेगा तथा कागजात 2-3 दिन बाद मिल जायेगा। दिनांक 24-11-2003 को परिवादिनी को पासबुक मिली लगभग 12 वर्ष बाद जब परिवादिनी के पुत्र की तबियत खराब हुई तब उसने अपने पुत्र को यह बताया कि उसने बैंक में पैसा जमा कर रखा है और जब उसने पासबुक अपने पुत्र को दिखाया तो उसने कहा कि यह पैसा बचत खाता में जमा है इस पर साधारण व्याज मिलेगा पैसा दुगुना नहीं होगा। परिवादिनी दिनांक 9-4-2016 को पैसा निकालने 
                                                                                                   3
के लिए बैंक गयी तो उससे के0वाईसी0 के तहत कागजात जमा करवाये गये और 2 दिन बाद जब पुनः परिवादिनी पैसा लेने गयी तो उसे बताया गया कि 10 वर्षो तक खाते का संचालन न होने के कारण परिवादिनी का खाता सील करके सारा पैसा बैंक की पूंजी हो चुकी है। 
7-    परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा तर्क दिया गया कि विपक्षी का यह कथन बिल्कुल गलत है कि बैंक में कम्प्यूटर द्वारा कार्य किया जाना सन् 2006 से प्रारम्भ हुआ है क्योंकि सन् 2003 में परिवादिनी को जो पासबुक प्राप्त हुई है वह कम्प्यूटरीकृत है इसी प्रकार विपक्षी का यह कथन गलत है कि कोर बैंकिग प्रणाली सन् 2008 में चालू की गयी है और परिवादिनी के खाते में सन् 2000 के प्रारम्भ में रू0 1321/- था क्योंकि परिवादिनी ने सन् 2000 में कोई खाता ही नहीं खोला था बल्कि उसका खाता सन् 2003 में खुला है। परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि विपक्षी का यह कथन भी गलत है कि 10 वर्षो तक खाते का संचालन न होने पर खाता डारमेट हो जाता है और खाते की धनराशि भारतीय रिजर्व बैंक को वापस हो जाती है। परिवादिनी के अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादिनी ने जो पासबुक जमा किया है उसके अनुसार उसके खाते में रू0 16000/- सन् 2003 में जमा किया गया है इस खाते से परिवादिनी द्वारा पैसा निकालने का कोई साक्ष्य विपक्षी ने नहीं दिया है क्योंकि वास्तविकता यह है कि परिवादिनी ने कभी पैसा निकाला ही नहीं यदि वह पैसा निकाली होती तो विपक्षी बैंक के अभिलेखों में इसका इन्द्राज अवश्य होता इस प्रकार विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में कमी की गयी है और परिवादिनी अपना पैसा व्याज सहित वापस पाने की अधिकारिणी है और उसका परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
8-    इसके विपरीत विपक्षी के अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि परिवादिनी ने अपना पैसा निकाल लिया है और केवल पासबुक में इन्द्राज न होने के कारण नाजायज फायदा उठाने के लिए उसने गलत दावा दाखिल किया है बैंक में कम्प्यूटर से कार्य करने की प्रक्रिया सन् 2006 से प्रारम्भ हुई है और कोर बैकिग प्रणाली सन् 2008 में प्रारम्भ  हुई है और तब लेजर का अद्यतन स्टेटमेन्ट सी0बी0एस0 में आ गया और उसके मुताबिक सन् 2000 के प्रारम्भ में परिवादिनी के खाते में रू0 1321/-था जो दिनांक 27-7-2014 को व्याज सहित रू0 1648/- हो गया है लेकिन 10 वर्षो से अधिक समय से खाते का संचालन न होने के कारण यह धनराशि बैंकिग नियमों के अनुसार रिजर्व बैंक आफ इण्डिया को वापस चली गयीं। विपक्षी के अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि 10 वर्षो से ज्यादा पुराने रिकार्ड बैंकिग सरकुलर के अनुसार निरस्त कर दिया जाता है और वर्तमान समय में सी0बी0एस0 कम्प्यूअर लेजर के अलावा बैंक के पास अन्य कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है। विपक्षी की ओर से तर्क दिया गया कि बैंक ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादिनी अपना पैसा वापस ले चुकी है और उसका जो रू0 1648/- खाते में शेष बचा था वह बैंकिग नियमों के अनुसार रिजर्व बैंक आफ इण्डिया को वापस किया जा चुका है अतः परिवादिनी

                                                                                                   4
 अब कोई पैसा प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है और उसका परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
9-    उभय पक्ष को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी के शपथ पत्र तथा उसके द्वारा अपनी पासबुक की दाखिल छायाप्रति के अवलोकन से यह बात भलीभांति सिद्ध हो जाती है कि दिनांक 21-11-2003 को परिवादिनी ने अपने बचत बैंक खाते में रू0 16000/- जमा किया है तथा पासबुक में परिवादिनी द्वारा कभी कोई पैसा निकाले जाने का इन्द्राज नहीं है विपक्षी बैंक ने परिवादिनी द्वारा खाते से पैसा निकाले जाने के सम्बन्ध में जो अभिकथन किया है वह बिल्कुल अस्पष्ट है क्योंकि जबाबदावा में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया है कि परिवादिनी ने किस तारीख को कितना पैसा अपने खाते से निकाला है जब कि बैंक का यह दायित्व है कि वह अपने ग्राहक को यह जानकारी दे कि उसका पैसा कब और कैसे खाते से निकाला गया है बैंक की ओर से उनके अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया है कि वर्तमान समय में बैंक में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है और केवल सी0बी0एस0 कम्प्यूटर लेजर ही उपलब्ध है, उनका कथन है कि 10 वर्ष से ज्यादा पुराने रिकार्ड बैंकिग सरकुलर के अनुसार निरस्त कर दिये गये है किन्तु ऐसा कोई सरकुलर विपक्षी की ओर से दाखिल नहीं किया गया है और न ही विपक्षी की ओर से ऐसा कोई नियम दाखिल किया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि 10 वर्ष से खाते से लेन-देन न होने पर किसी ग्राहक के खाते का पैसा रिजर्व बैंक आफ इण्डिया को वापस चला जाय
    इस प्रकार पत्रावली के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि विपक्षी यह सिद्ध करने में विफल रहे है कि परिवादिनी ने अपने खाते से कभी कोई पैसा निकाला है। विपक्षी ने ऐसा कोई कानून या सरकुलर भी दाखिल नहीं किया है जिससे यह सिद्ध हो कि 10 वर्षो तक खाते से लेन-देन न होने पर किसी ग्राहक का पैसा रिजर्व बैंक आफ इण्डिया में चला जायेगा अपने लिखित तर्क में विपक्षी की ओर से यह कहा गया है कि वर्ष 2000 के प्रारम्भ में परिवादिनी के खाते में रू0 1321/- था उपरोक्त कथन बिल्कुल असत्य प्रतीत होते है क्योंकि परिवादिनी के पासबुक के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि उसने बैंक में खाता दिनांक 21-11-2003 को खोला है ऐसी स्थिति में सन् 2000 में उसके खाते में रू0 1321/- होने की बात बिल्कुल गलत हो जाती है। इसी प्रकार विपक्षी की ओर से यह कहा गया है कि कम्प्यूटर से कार्य करने की प्रक्रिया बैंक में सन् 2006 में शुरू हुई। उपरोक्त अभिकथन भी गलत प्रतीत होता है क्योंकि परिवादिनी की ओर से सन् 2003 में खाता खोलने सम्बन्धी सेविग बैंक खाते की जो छायाप्रति दाखिल की गयी है उसका इन्द्राज कम्प्यूटर द्वारा किये गये है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विपक्षी के अभिकथन सिद्ध नहीं होते जबकि परिवादिनी के शपथ पत्र तथा उसके द्वारा दाखिल सेविंग बैंक एकाउण्ट की छायाप्रति से स्पष्ट है कि परिवादिनी ने दिनांक 21-11-2003 अपने खाते में रू0 16000/- जमा किया है इसके बाद कभी भी परिवादिनी द्वारा कोई पैसा खाता से निकाले जाने का कोई साक्ष्य विपक्षी की ओर 
                                                                                                      5
से नहीं दिया गया है ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादिनी का पैसा बैंक द्वारा वापस नहीं किया जाना सेवा में कमी माना जायेगा। अतः परिवादिनी को उसके खाते में जमा रू0 16000/- व्याज सहित दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है। मुकदमें के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 2000/- तथा वाद व्यय के रूप में रू0 1000/- दिलाया जाना भी न्यायोचित प्रतीत होता है और इस प्रकार परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
                                                                                                   आदेश
    परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी के बचत बैंक खाते में जमा रू0 16000/-(सोलह हजार) को दिनांक 21-11-2003 से पैसा अदा होने की तिथि तक बैंक के नियमानुसार व्याज सहित 2  माह में अदा करें। विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह इसी अवधि में परिवादिनी को रू0 2000/-(दो हजार) शारीरिक एवं मानसिक क्षति की क्षतिपूर्ति हेतु एवं रू0 1000/-(एक हजार)बतौर वाद व्यय अदा करें। यदि उक्त अवधि में विपक्षी इस धनराशि को अदा नहीं करता है तो परिवादिनी देय धनराशि पर विपक्षी से 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से निर्णय की तिथि से पैसा प्राप्त होने की तिथि तक व्याज प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी।
 (लक्ष्मण स्वरूप)                                     (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्य                                                अध्यक्ष
                                                 दिनांक-19-4-2017

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

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