Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/1898

Union Bank Of India - Complainant(s)

Versus

Syed Muzahid Rizvi - Opp.Party(s)

R Chaddha

30 Apr 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/2649
( Date of Filing : 30 Dec 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Syed Mujahid Rizvi
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Union Bank Of India
a
...........Respondent(s)
First Appeal No. A/2011/1898
( Date of Filing : 07 Oct 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Bank Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Syed Muzahid Rizvi
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 30 Apr 2019
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।                                                                                                           

                                                           सुरक्षित    

अपील सं0-१८९८/२०११

(जिला मंच, सीतापुर द्वारा परिवाद सं0-१०५/२००४ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०३-०९-२०११ के विरूद्ध)

यूनियन बैंक आफ इण्डिया, ग्रीकगंज, सीतापुर द्वारा मैनेजर।

                                    .............         अपीलार्थी/विपक्षी।

बनाम

सैय्यद मुजाहिद रिजवी, ८१, कजियारा, जिला सीतापुर।

                                     ............          प्रत्‍यर्थी/परिवादी।

अपील सं0-२६४९/२०११

(जिला मंच, सीतापुर द्वारा परिवाद सं0-१०५/२००४ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०३-०९-२०११ के विरूद्ध)

सैय्यद मुजाहिद रिजवी पुत्र स्‍व0 श्री जफर वकील, निवासी ८१, कजियारा, जिला सीतापुर।                               .............      अपीलार्थी/परिवादी।

बनाम

यूनियन बैंक आफ इण्डिया, ग्रीकगंज ब्रान्‍च, सीतापुर द्वारा ब्रान्‍च मैनेजर।

                                       ............         प्रत्‍यर्थी/विपक्षी।

समक्ष:-

१-  मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

२-  मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्‍य।

अपीलार्थी बैंक की ओर से उपस्थित: श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्‍हा विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक :- ३०-०५-२०१९.

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

 

निर्णय

प्रस्‍तुत अपीलें, जिला मंच, सीतापुर द्वारा परिवाद सं0-१०५/२००४ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०३-०९-२०११ के विरूद्ध योजित की गई हैं। दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित की गई हैं। अत: दोनों अपीलें साथ-साथ निर्णीत की जा रही हैं। अपील सं0-१८९८/२०११ अग्रणी होगी।

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी का एक बैंक लाकर सं0-४१७ अपीलार्थी बैंक में लगभग ०४ वर्ष से था। अपने इस लाकर में परिवादी अपने बहुमूल्‍य जेवरात व कागजात सुरक्षा की दृष्टि से रखता था। अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍येक माह के हिसाब से लाकर का किराया लिया जाता  था। दिनांक ०३-०२-२००४ को परिवादी ने अपने लाकर को ऑपरेट किया। उसका

 

 

-२-

सभी सामान सुरक्षित था। दिनांक ०३-०३-२००४ को परिवादी अपने एफ0डी0आर0 आदि के नवीनीकरण हेतु कागजात निकालने बैंक गया। परिवादी ने सभी आवश्‍यक प्रपत्र एक हैण्‍ड बैंग में रखे थे जो हैण्‍ड बैग लाकर के ऊपर रख दिया था।  दिनांक   ०३-०३-२००४ को परिवादी ने लाकर को ऑपरेट किया तथा उसमें रखा हैण्‍ड बैग लेकर घर आ गया। परिवादी ने घर आकर अपना हैण्‍ड बैग जैसे ही खोला तो बैग खोलते ही परिवादी सकते में आ गया कि बैग के अन्‍दर रखे सभी प्रपत्र दीमक द्वारा बिल्‍कुल नष्‍ट किए जा चुके थे। परिवादी दिनांक ०५-०३-२००४ को पुन: बैंक गया तथा अपने लाकर को अन्‍दर से देखा तो उसके अन्‍दर काफी दीमक मौजूद थी जिसकी सूचना परिवादी ने तुरन्‍त बैंक अधिकारियों को दी किन्‍तु बैंक अधिकारियों ने परिवादी से अपशब्‍द कहे और बैंक से चले जाने को कहा। अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने के कारण परिवादी के २,५०,०००/- रू० कीमत के आवश्‍यक प्रपत्र पूर्णत: नष्‍ट हो गये। परिवादी ने दिनांक ०८-०४-२००४ को अपने अधिवक्‍ता के माध्‍यम से अपीलार्थी को एक नोटिस भी भिजवाई किन्‍तु अपीलार्थी बैंक द्वारा कोई जबाव नहीं दिया गया। अत: कागजात नष्‍ट हो जाने से २,५०,०००/- रू० की क्षतिपूर्ति तथा भाग-दौड़ में कथित रूप से हुए खर्च २५,०००/- रू०, परेशानी हेतु क्षतिपूर्ति के रूप में २५,०००/- रू० तथा वाद व्‍यय हेतु ५,०००/- रू० अपीलार्थी बैंक से दिलाए जाने हेतु प्रश्‍नगत परिवाद जिला मंच में परिवादी द्वारा योजित किया गया।

अपीलार्थी बैंक द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया। अपीलार्थी बैंक के कथनानुसार अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी को किराए पर लाकर दिया गया था। परिवाद व बैंक के मध्‍य सम्‍बन्‍ध पट्टादाता एवं पट्टा गृहीता के हैं। प्रत्‍यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी बैंक का उपभोक्‍ता नहीं है। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि अपीलार्थी को यह जानकारी नहीं है कि लाकर में क्‍या सामान था तथा उसकी क्‍या स्थिति थी। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने लाकर में कथित रूप से दीमक लगे हाने की जानकारी दिनांक ०५-०३-२००४ हो होनी बताई है किन्‍तु उसी दिन कोई शिकायत परिवादी द्वारा नहीं की गई बल्कि

 

 

-३-

एक माह बाद सोच समझकर विद्वेषपूर्ण मंशा के साथ अपीलार्थी को हानि पहुँचाने व अपने को लाभ‍ान्वित करने के उद्देश्‍य से मनगढ़न्‍त व झूठे तथ्‍यों से नोटिस प्रेषित की गई तथा झूठा परिवाद योजित किया गया। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि यदि परिवादी द्वारा लाकर में रखे गये प्रपत्रों में दीमक लगने का कथित तथ्‍य सही भी हो तब भी बैंक लाकर रखने से पूर्व ही, दीमक के विद्यमान होने के कारण सम्‍भव हुआ होगा।

विद्वान जिला मंच ने प्रश्‍नगत निर्णय द्वारा परिवाद स्‍वीकार करते हुए अपीलार्थी बैंक को आदेशित किया कि वह ५०,०००/- रू० क्षतिपूर्ति के रूप में तथा ५,०००/- रू० वाद व्‍यय के रूप में कुल ५५,०००/- रू० प्रत्‍यर्थी/परिवादी को एक माह के अन्‍दर भुगतान करे। यह भी आदेशित किया कि परिवादी इस धनराशि पर निर्णय के दिनांक से ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज भी पाने का अधिकारी है।

इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर अपील सं0-१८९८/२०११ परिवाद के विपक्षी बैंक द्वारा तथा अपील सं0-२६४९/२०११ परिवाद के परिवादी श्री सैय्यद मुजाहिद रिजवी द्वारा योजित की गई है। 

हमने अपीलार्थी बैंक की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आलोक सिन्‍हा के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि अपीलार्थी व प्रत्‍यर्थी/परिवादी के मध्‍य पट्टादाता एवं पट्टा गृहिता का सम्‍बन्‍ध है, अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी बैंक का उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि परिवाद के अभिकथनों में परिवादी ने दिनांक ०३-०३-२००४ को अपने लाकर का संचालन करना अभिकथित किया है। परिवाद के अभिकथनों में प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा यह भी अभिकथित किया गया है कि दिनांक ०३-०३-२००४ को बैंक के लाकर से उसने अपना हैण्‍ड बैग निकाला। इस हैण्‍ड बैग में उसके कुछ एफ0डी0आर0 रखे थे। यह एफ0डी0आर0

 

 

-४-

दीमक लगने के कारण नष्‍ट हो गये जिसकी शिकायत प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने दिनांक ०५-०३-२००४ को अपीलार्थी बैंक के अधिकारियों से किया जाना परिवाद में अभिकथित किया है किन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा ऐसी कोई शिकायत दिनांक ०३-०३-२००४ अथवा ०५-०३-२००४ को अपीलार्थी बैंक के अधिकारियों से नहीं की गई, बल्कि एक महीना बाद प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा गलत तथ्‍यों के आधार अपीलार्थी बैंक को नोटिस भेजी गई। अपीलार्थी बैंक की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि बैंक के लाकर स्‍टील के बने होते हैं उनमें दीमक लगने का कोई प्रश्‍न नहीं है। अपीलार्थी बैंक की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अतिरिक्‍त अन्‍य किसी लाकरधारक द्वारा दीपक लगने की शिकायत नहीं की गई। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि बैंक के लाकर में दीमक मौजूद होने के सन्‍दर्भ में कोई साक्ष्‍य प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं की गई। जिला मंच द्वारा पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य का उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया गया है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि जिला मंच द्वारा तर्कपूर्ण आधारों पर प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया गया है किन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा वांछित सभी अनुतोष प्रदान न करके जिला मंच द्वारा त्रुटि की गई है।

उल्‍लेखनीय है कि जिला मंच के समक्ष प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा ऐसी कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं की जिससे यह प्रमाणित हो कि वस्‍तुत: प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा लिए गये लाकर में दीमक लगी थी। प्रश्‍नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि जिला मंच द्वारा प्रश्‍नगत लाकर को इस आधार पर दीमक ग्रस्‍त होना माना है कि अपीलार्थी बैंक द्वारा यह साबित नहीं किया गया कि दीमक का ट्रीटमेण्‍ट लाकरों के सन्‍दर्भ में कब कराया गया। विद्वान जिला मंच का यह निष्‍कर्ष हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा इस तथ्‍य से इन्‍कार नहीं किया गया कि प्रश्‍नगत लाकर स्‍टील का बना हुआ नहीं है। स्‍टील के लाकरों का दीमक ग्रस्‍त होना अस्‍वाभाविक प्रतीत होता है। परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत लाकर

 

 

-५-

की कोई निरीक्षण आख्‍या प्रस्‍तुत नहीं की गई है ओर न ही कोई विशेषज्ञ आख्‍या इस सन्‍दर्भ में प्रस्‍तुत की गई है कि स्‍टील के लाकर किस प्रकार दीमक ग्रस्‍त हो गये।

यह तथ्‍य भी उल्‍लेखनीय है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी यह स्‍वयं स्‍वीकार करता है कि प्रश्‍नगत एफ0डी0आर0 एक हैण्‍ड बैग के अन्‍दर रखे गये थे। दिनांक ०३-०३-२००४ को प्रश्‍नगत लाकर संचालित करके प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा हैण्‍ड बैग निकाला गया। हैण्‍ड बैग को घर पर खोलने पर परिवादी को यह ज्ञात हुआ कि बैग के अन्‍दर रखे एफ0डी0आर0 दीमक लगने के कारण पूर्णत: नष्‍ट हो गये। यदि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के इस कथन को तर्क के लिए स्‍वीकार भी कर लिया जाय कि लाकर दीमक ग्रस्‍त था तब ऐसी स्थिति में स्‍वाभाविक रूप से सर्वप्रथम हैण्‍ड बैग को क्षतिग्रस्‍त होना चाहिए था। यदि हैण्‍ड बैग सुरक्षित था तो स्‍वाभाविक रूप से हैण्‍ड बैग में रखे अभिलेख भी सुरक्षित रहते। ऐसी परिस्थिति में इस सम्‍भावना से इन्‍कार नहीं किया जा सकता कि लाकर में कथित रूप से रखे हुए एफ0डी0आर0 प्रारम्‍भ से ही दीमक ग्रस्‍त होने के कारण अन्‍तत: क्षतिग्रस्‍त हो गये।

यह तथ्‍य भी उल्‍लेखनीय है कि दिनांक ०५-०३-२००४ को प्रत्‍यर्थी/परिवादी को यह ज्ञात हो गया कि लाकर में रखे एफ0डी0आर0 क्षतिग्रस्‍त हो गये हैं तब स्‍वाभाविक रूप से उसी दिन प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा बैंक अधिकारियों को इस सन्‍दर्भ में आपत्ति प्रेषित की जाती। यद्यपि परिवादी ने दिनांक ०५-०३-२००४ को इस सन्‍दर्भ में बैंक के अधिकारियों से शिकायत किया जाना परिवाद में अभिकथित किया है किन्‍तु इस तथ्‍य से अपीलार्थी बैंक द्वारा इन्‍कार किया गया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा ऐसी कोई विश्‍वसनीय साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं की गई जिससे यह प्रमाणित माना जाय कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा इस सन्‍दर्भ में आपत्ति दिनांक ०५-०३-२००४ को ही की गई। अपीलार्थी बैंक का यह भी कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अतिरिक्‍त अन्‍य किसी लाकरधारक द्वारा ऐसी शिकायत नहीं की गई कि बैंक के लाकर दीमक ग्रस्‍त हैं। यह परिस्थिति भी इस सम्‍भावना को

 

 

-६-

बल प्रदान करती है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के एफ0डी0आर0 बैंक लाकर के दीमक ग्रस्‍त होने के कारण क्षतिग्रस्‍त नहीं हुए।

प्रश्‍नगत निर्णय में जिला मंच ने अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रश्‍नगत लाकर में दीमक निरोधक दवा का छिड़काव किए जाने की कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत न किए जाने के कारण प्रश्‍नगत लाकर को दीमक ग्रस्‍त होना माना है। मात्र इस आधार पर जिला मंच के समक्ष प्रश्‍नगत लाकर के सन्‍दर्भ में दीमक निरोधक दवा का छिड़काव प्रमाणित नहीं हुआ, स्‍वत: यह प्रमाणित नहीं माना जा सकता कि परिवादी को आबंटित लाकर दीमक ग्रस्‍त था।

हमारे विचार से जिला मंच द्वारा पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य का उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया गया है। अत: प्रश्‍नगत निर्णय अपास्‍त किए जाने योग्‍य है तथा प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा योजित अपील बलहीन है। तद्नुसार अपील सं0-१८९८/२०११ स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है तथा अपील सं0-२६४९/२०११ निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।  

आदेश

अपील सं0-१८९८/२०११ स्‍वीकार की जाती है एवं अपील सं0-२६४९/२०११ निरस्‍त की जाती हैं। जिला मंच, सीतापुर द्वारा परिवाद सं0-१०५/२००४ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०३-०९-२०११ अपास्‍त किया जाता है।

इस निर्णय की मूल प्रति अपील सं0-१८९८/२०११ में रखी जाय तथा एक प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0-२६४९/२०११ में रखी जाय।   

      इन अपीलों का व्‍यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्‍वयं वहन करेंगे।

      उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।                                    

                                                (उदय शंकर अवस्‍थी)

                                                  पीठासीन सदस्‍य    

 

                                                   (गोवर्द्धन यादव)

                                                      सदस्‍य

प्रमोद कुमार

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट नं.-२.  

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER

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