राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१०५५/२०१४
(जिला फोरम/आयोग, मऊ द्वारा परिवाद सं0-६०/२०१३ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-०४-२०१४ के विरूद्ध)
यूनियन बैंक आफ इण्डिया, चौक ब्रान्च, मऊनाथभंजन, जिला मऊ, रीजनल आफिस, हरिहर प्रसाद मार्ग, दाउदपुर, जिला गोरखपुर द्वारा ब्रान्च मैनेजर/रीजनल मैनेजर।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
सुरेन्द्र राम निवासी ग्राम व पोस्ट बड़ागॉंव, तहसील सदर, जिला मऊ।
...........प्रत्यर्थी/परिवादी।
पुनरीक्षण सं0-५८/२०१४
(जिला फोरम/आयोग, मऊ द्वारा परिवाद सं0-६०/२०१३ में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक १६-०४-२०१४ के विरूद्ध)
यूनियन बैंक आफ इण्डिया, चौक ब्रान्च, मऊनाथभंजन, जिला मऊ, रीजनल आफिस, हरिहर प्रसाद मार्ग, दाउदपुर, जिला गोरखपुर द्वारा ब्रान्च मैनेजर/रीजनल मैनेजर।
...........पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी।
बनाम
सुरेन्द्र राम निवासी ग्राम व पोस्ट बड़ागॉंव, तहसील सदर, जिला मऊ।
...........प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी/पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- १७-०९-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपील सं0-१०५५/२०१४ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग, मऊ द्वारा परिवाद सं0-६०/२०१३ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-०४-२०१४ के विरूद्ध योजित की गई है।
पुनरीक्षण सं0-५८/२०१४ जिला फोरम/आयोग, मऊ द्वारा परिवाद सं0-६०/२०१३ में पारित आदेश दिनांक १६-०४-२०१४ के विरूद्ध योजित की गई है। यह अपील एवं पुनरीक्षण एक ही मामले से सम्बन्धित हैं, अत: इस अपील एवं पुनरीक्षण का निस्तारण साथ-साथ
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किया जा रहा है। अपील सं0-१०५५/२०१४ अग्रणी होगी।
अपील सं0-१०५५/२०१४ में अपीलार्थी का संक्षेप में कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने विद्वान जिला फोरम के समक्ष एक दावा प्रस्तुत किया कि उसका अपीलार्थी बैंक में खाता था जिससे उसने दिनांक १०-०७-२०१२ को १२,०००/- रू० निकाले और तब उसके खाते में कुल ४,७६,३४२/- रू० अवशेष था। दिनांक ०५-०८-२०१२ को उसकी पेंशन धनराशि ११,७८४/- रू० इस खाते में जमा हुई। वह दिनांक २४-०८-२०१२ को १०,०००/- रू० निकालने के लिए जब बैंक गया तब उसे बताया गया कि उसके खाते में केवल १८/- रू० शेष है। जब उसने पूछा तब उसे बताया गया कि यह धनराशि ए0टी0एम0 द्वारा निकाली गई है। परिवादी का कथन है कि उसने कभी भी ए0टी0एम0 कार्ड लिया ही नहीं और न कभी उसने पैसा निकाला।
अपीलार्थी ने अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया और कहा कि परिवादी के आवेदन पत्र दिनांक २९-०६-२०१२ और उसके परिप्रेक्ष्य में उसे ए0टी0एम0 कार्ड जारी किया गया था जो उसने दिनांक १३-०७-२०१२ को प्राप्त किया और उसने ए0टी0एम0 रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर भी बनाए। उसको ए0टी0एम0 के पिन के बारे में सारी जानकारी दे दी गई थी। विभिन्न तिथियों में उसके द्वारा ए0टी0एम0 मशीन से पैसा निकाला गया। परिवादी ने इस सम्बन्ध में एफ0आई0आर0 भी अंकित कराई और आपीलार्थी ने सारे अभिलेख प्रस्तुत किए। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने हस्ताक्षर होने से इन्कार किया है जिसके लिए हस्तलेख विशेषज्ञ की आवश्यकता थी। विद्वान जिला फोरम ने अपीलार्थी के हस्तलेख विशेषज्ञ की आख्या मंगाए जाने सम्बन्धी आवेदन पत्र को दिनांक १६-०४-२०१४ को निरस्त कर दिया और इसके बाद शीघ्रता से दिनांक १७-०४-२०१४ को बिना साक्ष्यों का मूल्यांकन किए प्रश्नगत निर्णय पारित किया।
विद्वान जिला फोरम ने कहा कि ए0टी0एम0 रजिस्टर पर मौजूद हस्ताक्षर अलग हैं किन्तु उनके द्वारा किसी हस्तलेख विशेषज्ञ से इसकी जांच नहीं कराई गई। विद्वान जिला फोरम का निर्णय मात्र परिकल्पनाओं और अनुमानों पर आधारित है। विद्वान जिला फोरम ने कहा कि बैंक ने मूल दस्तावेज प्रस्तत नहीं किए। विभिन्न बैंकों के ए0टी0एम0 से धन की निकासी की गई है इसलिए ए0टी0एम0 सी.सी. टी.वी. फुटेज को
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अपीलार्थी बैंक प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं था। ए0टी0एम0 से पैसा निकालते समय अति गोपनीय पिन का प्रयोग किया जाता है जो उपभोक्ता के पास होता है। विद्वान जिला फोरम ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि ए0टी0एम0 कार्ड और पिन गोपनीय होता है और यह केवल उपभोक्ता को ही मालूम होता है। विद्वान जिला फोरम का निर्णय सही तथ्यों पर आधारित नहीं है। अत: वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय अपास्त किया जाए।
पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र में भी अपील के तथ्यों का ही समावेश किया गया है और यह प्रार्थना की गई है कि मा0 आयोग विद्वान जिला फोरम से अभिलेखों को मंगाते हुए पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करे और प्रश्नगत आदेश को अपास्त करे लेकिन इस प्रार्थना में प्रश्नगत आदेश का कोई दिनांक नहीं दिया गया है जबकि पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र के शुरू में आदेश दिनांक १६-०४-२०१४ का हवाला दिया गया है और अपील में दिनांक १७-०४-२०१४ के आदेश का हवाला दिया गया है।
दिनांक १७-०४-२०१४ को विद्वान जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेश दिया कि वह परिवादी को ४,८८,१२६/- रू० मय ब्याज तथा २०,०००/- रू० मानसिक उत्पीड़न हेतु और ५,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में अदा करे। पुनरीक्षण याचिका में प्रश्नगत आदेश दि० १६-०४-२०१४ द्वारा विपक्षी बैंक के हस्तलेख विशेषज्ञ की राय मंगाए जाने सम्बन्धी प्रार्थना पत्र को निरस्त करने का आदेश पारित किया गया है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिकथनों, अभिलेखों का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
हमने प्रश्नगत निर्णय दिनांक १७-०४-२०१४ का अवलोकन किया। विद्वान जिला फोरम ने लिखा है कि विपक्षी सं0-१ की तरफ से प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया जिसमें खाता खुलवाना स्वीकार किया गया है तथा शेष तथ्यों से इन्कार किया गया है। विद्वान जिला फोरम ने लिखा है कि इस मामले में मूल अभिलेख प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। विद्वान जिला फोरम ने यह माना कि खाता खुलवाने वाले आवेदन पत्र में मौजूद हस्ताक्षर ए0टी0एम0 रजिस्टर में मौजूद हस्ताक्षर को देखने से स्पष्ट होता है कि दोनों अलग-अलग हैं। इसी आधार पर परिवाद स्वीकार किया गया।
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हमने प्रस्तुत अभिलेखों का अवलोकन किया। अपीलार्थी द्वारा जिस फार्म को ए0टी0एम0 फार्म बताया गया है और जिसकी नकल पत्रावली पर है उसमें सत्यापित करने वाले अधिकारी के सामने किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं। इसके अतिरिक्त जहॉं पर अँग्रेजी में लिखा है Recd अर्थात् प्राप्त किया उसके नीचे किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं। ए0टी0एम0 फार्म के सबसे ऊपर जहॉं पर यह लिखा जाता कि पहले डेबिट कार्ड पर क्या नाम लिखवाना चाहा है वह सारे बॉक्स खाली हैं।
अपीलार्थी बैंक की ओर से कहा गया कि बैंक में खाता खुलवाने का आवेदन पत्र भरा गया था जिसकी प्रति संलग्न है। इसमें भी छोटे मार्ग अर्थात् शॉर्टकट का उपयोग किया गया है। इसमें कटिंग भी मौजूद है। इसमें तीन स्थानों पर सुरेन्द्र राम के हस्ताक्षर मौजूद हैं। बताया गया कि यह हस्ताक्षर ए0टी0एम0 रजिस्टर में मौजूद सुरेन्द्र राम के हस्ताक्षर से मेल खाते हैं जिसका हम लोगों ने अवलोकन किया और पाया कि ये दोनों हस्ताक्षर आपस में नहीं मिलते और यह नंगी ऑंखों से देखने से ही स्पष्ट होता है।
प्रमुख प्रश्न तो यह है कि जब ए0टी0एम0 फार्म पर ए0टी0एम0 कार्ड और पिन, किट प्राप्त करने से सम्बन्धित हस्ताक्षर मौजूद ही नहीं हैं तब यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि ए0टी0एम0 कार्ड और पिन परिवादी को प्रदान किए गए हों। यह सिद्ध करने का भार अपीलार्थी बैंक का था कि उसके द्वारा ए0टी0एम0 कार्ड और पिन एक बन्द लिफाफे में उपभोक्ता को प्रदान किए गए और परिवादी ने प्राप्त कर अपने हस्ताक्षर बनाए। पिन सील रहता है लेकिन ए0टी0एम0 कम डेबिट कार्ड पर १६ डिजिट की संख्या रहती है और वह क्या संख्या थी, इसका भी कोई सन्दर्भ नहीं है। जब ए0टी0एम0 कार्ड और पिन का दिया जाना ही संदिग्ध है और अपीलार्थी बैंक इसको सिद्ध नहीं कर सका है तब ए0टी0एम0 द्वारा धनराशि निकासी परिवादी द्वारा किए जाने का कोई औचित्य ही नहीं होता। इसके अतिरिक्त जो धनराशि ए0टी0एम0 से आहरित की गई है वह भी बड़ी विलक्षण क्रम और धनराशि में है। जैसे कि दस, दस व पॉंच हजार रूपये अर्थात् २५,०००/- रू० एक दिन में निकाले गए हैं। इसी प्रकार अलग-अलग तिथियों में प्रति दिन तीन बार दस, दस व पॉंच हजार रूपये के क्रम में ए0टी0एम0 से निकासी की गई है। एक साधारण आदमी जिसको ए0टी0एम0 कार्ड दिया जाता है वह भी लगातार कई दिन
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तक ऐसे क्रम का अनुपालन नहीं करता है।
इस प्रकार समस्त तथ्यों को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस मामले में अपील बलहीन है और निरस्त होने योग्य है।
जहॉं तक पुनरीक्षण याचिका का सम्बन्ध है, माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनेक दृष्टान्तों में कहा गया है कि न्यायालय स्वयं में सबसे सक्षम हस्तलेख विशेषज्ञ है, अत: प्रश्नगत आदेश विधि सम्मत है और उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार पुनरीक्षण याचिका भी निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील सं0-१०५५/२०१४ निरस्त की जाती है तथा पुनरीक्षण सं0-५८/२०१४ निरस्त की जाती है। जिला फोरम/आयोग, मऊ द्वारा परिवाद सं0-६०/२०१३ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १७-०४-२०१४ एवं परिवाद सं0-६०/२०१३ में ही पारित आदेश दिनांक १६-०४-२०१४ की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
इस निर्णय की मूल प्रति अग्रणी अपील सं0-१०५५/२०१४ में रखी जाए तथा एक प्रमाणित प्रति पुनरीक्षण सं0-५८/२०१४ में रखी जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.