राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2519/2002
(जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या-96/01 में पारित निर्णय दिनांक 10.09.2002 के विरूद्ध)
यूनियन बैंक आफ इंडिया, रामपुर ब्रांच जिला जौनपुर द्वारा
मैनेजर। .....अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती सावित्री देवी पत्नी श्री शंभूनाथ पाण्डेय निवासी ग्राम
सिमूही परगना एण्ड तहसील मदियान्हू जिला जौनपुर(यू.पी.)
......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चडढा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 21.04.2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 96/01 सावित्री देवी बनाम यूनियन बैंक आफ इंडिया में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 10.09.2002 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। परिवाद स्वीकार करते हुए बैंक को निर्देशित किया गया है कि ऋण राशि पर साधारण ब्याज 15.50 प्रतिशत की दर से लगाया जाए और परिवादी द्वारा जमा की गई राशि समायोजित करने के पश्चात संशोधित लेखा विवरण परिवादिनी को उपलब्ध कराए।
2. परिवाद पत्र के तथ्यों के अनुसार वर्ष 1994 में अंकन रू. 180000/- में ट्रैक्टर क्रय किया था, परन्तु बैंक द्वारा बैंक ऋण की राशि रू. 181000/- दर्शाई है और बैंक चक्रवृद्धि ब्याज की दर से ऋण की वसूली कर रहा है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण ऋण समय पर अदा नहीं कर
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सकी। बैंक द्वारा कोई हिसाब-किताब नहीं दिया गया, इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. बैंक का कथन है कि परिवादिनी को उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है। अंकन रू. 181000/- का ऋण 15.50 प्रतिशत छमाही ब्याज के साथ ट्रैकटर क्रय करने के लिए ऋण लिया था, परन्तु ऋण राशि जमा नहीं की गई, इसलिए वसूली प्रमाणपत्र प्रेषित किया गया।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि परिवादिनी साधारण ब्याज की दर से ऋण राशि जमा करने के लिए उत्सुक है, इसलिए उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
5. इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय तथ्य एवं विधि के विपरीत है। ब्याज राशि ऋण अदा करते समय संशोधित हो चुकी है, बैंक को ब्याज राशि हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।
6. केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना। प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
7. यथार्थ में ब्याज राशि की वसूली पक्षकारों के मध्य निष्पादित करार के अनुसार वसूल हो सकती है। जिला उपभोक्ता मंच को ब्याज राशि साधारण हो या चक्रवृद्धि हो, इस बिन्दु को तय करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अपीलार्थी बैंक का कथन है कि प्रत्येक 6 माह पर ब्याज राशि मूलधन में शामिल की जानी थी और इस राशि पर ब्याज लगाना था। परिवादिनी का यह कथन नहीं है कि ऐसा कोई करार निष्पादित नहीं हुआ
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है। परिवादिनी ने स्वयं स्वीकार किया है कि नियमित रूप से ऋण राशि की अदायगी नहीं हो सकी है, इसलिए वसूली प्रमाणपत्र बैंक द्वारा जारी किया गया है। यथार्थ में कोई उपभोक्ता परिवाद का मामला नही बनता। बैंक द्वारा सेवा में किसी प्रकार की कमी नहीं की गई। जिला उपभोक्ता मंच ने विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है। तदनुसार अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
8. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की
वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2