राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 935/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मऊ द्वारा परिवाद सं0- 135/2013 में पारित आदेश 06.04.2016 के विरूद्ध)
- Union bank of India, Naraiband branch, Maunathbhanjan, District Mau, Through its Branch Manager.
- P.K. Patnaik, Union bank of India, Narainband Branch, District Mau.
Versus
Sitaram yadav, S/o Late Sh. Devraj yadav, R/o Village Badua Godam, Post Badua Godam, Thana Saralakhansi, District Mau.
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 22.12.2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 135/2013 सीताराम यादव बनाम यूनियन बैंक ऑफ इंडिया व एक अन्य में जिला फोरम, मऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 06.04.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवाद आंशिक रूप से विपक्षीगण के विरुद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को आदेशति किया जाता है कि वे निर्णय के दो माह के अन्दर परिवादी के खाता (UBI) सं0- 433802010007507 में मु0 153914/-रू0 मय ब्याज दर 06 प्रतिशत सालाना के जमा करें तथा परिवादी को मानसिक कष्ट के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में मु0 10,000/-रू0 व वाद व्यय के रूप में मु0 3,000/-रू0 भी अदा करे”।
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित हुए हैं। प्रत्यर्थी पर नोटिस तामीला पर्याप्त माने जाने के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर व आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन कर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शाखा नरई बांध मऊनाथभंजन में उसका खाता सं0- 433802010007507 है जिसके माध्यम से उसके वेतन का भुगतान होता है जिससे आवश्यकतानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी धनराशि की निकासी करता है। उसके इस खाते का ए0टी0एम0 नम्बर 5576644338003104 है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दि0 21.12.2012 को उसके उपरोक्त खाता में 1,21,487/-रू0 का अवशेष था। उसके बाद परिवादी के उक्त खाते में उसके वेतन की धनराशि जमा होती रही है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दि0 21.12.2012 से 01.03.2013 तक भिन्न-भिन्न धनराशि उसके उपरोक्त खाते से विपक्षी बैंक व उसके कर्मचारियों से धोखाधड़ी करके निकाली गई है जिसका योग 2,09443.99/-रू0 है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दि0 25.03.2013 को उसने अपने खाता से ए0टी0एम0 कार्ड के माध्यम से 5,000/-रू0 निकाला तो उसके खाते में अवशेष धनराशि 4,944/-रू0 अंकित मिली जिसे देखकर उसे आश्चर्य हुआ और उसने बैंक के कर्मचारियों से जब खाता चेक करवाया तो उसे ज्ञात हुआ कि उसके खाते से उपरोक्त 2,09443.99/-रू0 की धनराशि भिन्न-भिन्न तिथियों पर निकाली गई है। उसके बाद दि0 28.03.2013 को उसने विपक्षी/बैंक के शाखा प्रबंधक को शिकायती प्रार्थना पत्र रजिस्टर्ड डाक से भेजा। विपक्षी बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक को भी शिकायती प्रार्थना पत्र भेजा और लोकपाल से भी शिकायत की गई। इसके साथ ही दि0 29.03.2013 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने थाना कोतवाली में प्रार्थना पत्र दिया जिसके आधार पर विपक्षी सं0- 2 पी0के0 पटनायक शाखा प्रबंधक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के विरुद्ध अपराध सं0- 168/2013 अंतर्गत धारा 419, 420 भा0दं0वि0 पंजीकृत किया गया और पुलिस द्वारा विवेचना प्रारम्भ की गई। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसके खाते में दि0 28.03.2013 को 4060/-रू0 व 17,709/-रू0, दि0 16.04.2013 को 16,380.18/-रू0, 16,573.09/-रू0 और 806.92/-रू0 कुल 55,529.19/-रू0 जमा भी किया गया है और इस सम्बन्ध में जब प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त विपक्षी/बैंक के शाखा प्रबंधक विपक्षी सं0- 2 से जानकारी हासिल करना चाहा तो उन्होंने बताया कि उसके खाता की धनराशि उसके खाते में वापस आ रही है वह यह क्यों बतायें कि किसके द्वारा खाते में धनराशि वापस आ रही है? परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा है कि दि0 21.12.2012 को अपने खाते से 9,000/-रू0 निकालने के बाद उसने दि0 24.03.2013 तक अपने खाते से कोई और धनराशि नहीं निकाला है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि परिवादी के सम्बन्धित खाते से विवादित रकम इण्टरनेट शापिंग के जरिए जिसे पी0ओ0एस0 (प्वाइंट ऑफ सेल) कहा जाता है से आहरित की गई है। इसके तहत खाते से सीधे पैसा आटोमेटिक सिस्टम से कट जाता है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि खाते में पैसा पुन: आटोमेटिक सिस्टम से आ गया है। कदापि यह पैसा अन्य स्रोत से जमा नहीं हुआ है। लिखित कथन में विपक्षीगण ने कहा है कि परिवादी द्वारा शिकायत करने पर सारी जानकारी दी गई है और स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट व ए0टी0एम0 सेल से विस्तृत विवरण मंगाकर परिवादी को दिया गया है। पुलिस द्वारा जांच के दौरान भी सभी कागजात उपलब्ध कराये जा चुके हैं।
विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में कहा गया है कि विवादित रकम हरगिज विपक्षी बैंक व उसके कर्मचारियों द्वारा आहरित नहीं की गई है और न उसके आहरण में उनकी संलिप्तता रही है। गलत कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह उल्लेख किया है कि इतना निश्चित है कि बैंक के स्तर से यह गड़बड़ी हुई है तभी तो 3-4 माह बाद ए0टी0एम0 सेल मुम्बई से पांच बार में 55,529/-रू0 खाते में वापस आया है। अत: इस कमी के लिए विपक्षी बैंक जिम्मेदार है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के विरुद्ध है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने सभी प्रश्नगत 35 संव्यवहार आन लाइन इण्टरनेट शापिंग हेतु अपने ए0टी0एम0 कार्ड से दि0 21.12.2012 से 28.03.2013 तक की अवधि में किया है। ए0टी0एम0 कार्ड नम्बर व पिन नम्बर की जानकारी धारक के अतिरिक्त किसी अन्य को नहीं हो सकती है। अत: ए0टी0एम0 कार्ड का प्रयोग धारक के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा किया जाना सम्भव नहीं है। ए0टी0एम0 कार्ड व पिन नम्बर यदि किसी दूसरे व्यक्ति की जानकारी में आया है तो इसके लिए ए0टी0एम0 कार्ड धारक उत्तरदायी है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्येक प्रश्नगत विदड्राल के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी को एलर्ट काल प्रत्यर्थी/परिवादी के मोबाइल पर एस0एम0एस0 के माध्यम से प्रेषित किया गया है। अत: प्रत्येक विदड्राल से प्रत्यर्थी/परिवादी अवगत रहा है। उसका यह कथन गलत है कि उसने दि0 25.03.2013 को 5,000/-रू0 निकाला तब उसे अपने प्रश्नगत खाता से विदड्राल की जानकारी हुई है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद निरस्त किया जाना आवश्यक है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम के0के0 भल्ला में पारित निर्णय जो II (2011) CPJ 106 (NC) में प्रकाशित है संदर्भित किया है।
मैंने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा संदर्भित उपरोक्त निर्णय में यह मत व्यक्त किया गया है कि अपीलार्थीगण का सी0सी0टी0वी0 कैमरा कथित संव्यवहार के समय काम न करने के आधार पर कपट पूर्ण ढंग से ए0टी0एम0 कार्ड और पिन नम्बर का प्रयोग कर अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा रूपया की निकासी सम्भव नहीं है। अत: कैमरा न काम करने के आधार पर बैंक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से कथित विदड्राल इण्टरनेट शापिंग के जरिए किया गया है और विपक्षी बैंक ने प्रत्यर्थी/परिवादी की शिकायत प्राप्त होने पर उसके खाते से सम्बन्धित स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट व ए0टी0एम0 सेल से विस्तृत विवरण मंगाकर उसे दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में 55,529.19/-रू0 जो वापस जमा किया है वह भी आटोमेटिक सिस्टम से जमा किया गया है। अत: जिला फोरम ने जो 55,529.19/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में ए0टी0एम0 सेल मुम्बई से पांच बार पुन: जमा करने के आधार पर अपीलार्थी/विपक्षीगण बैंक व उसके कर्मचारियों को दोषी माना है और उनकी संलिप्तता मानी है वह विधि सम्मत नहीं दिखता है। प्रत्यर्थी/परिवादी का ए0टी0एम0 कार्ड व पिन नम्बर प्रत्यर्थी/परिवादी से भिन्न किसी व्यक्ति को तभी मालूम हो सकता है जब प्रत्यर्थी/परिवादी उसे बताये अथवा उसे दे। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से इस बात को न तो स्पष्ट रूप से अभिकथित किया गया है और न ही इसका कोई साक्ष्य दिया गया है कि उसका ए0टी0एम0 कार्ड दि0 25.12.2012 से 25.03.2013 तक की अवधि में उसकी अभिरक्षा में था और उसका पिन नम्बर की किसी और व्यक्ति को जानकारी नहीं थी।
परिवाद पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की रिपोर्ट पर परिवाद के विपक्षी सं0- 2 श्री पी0के0 पटनायक शाखा प्रबंधक के विरुद्ध अपराध सं0- 168 अंतर्गत धारा 419, 420 आई0पी0सी0 थाना कोतवाली जनपद मऊ में पंजीकृत किया गया है और उसकी विवेचना पुलिस द्वारा की जा रही है। अत: पुलिस विवेचना से ही स्थिति स्पष्ट होगी कि क्या प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से जो धनराशि इण्टरनेट शापिंग के माध्यम से निकाली गई है उसके लिए अपीलार्थी/विपक्षी बैंक या उसके कर्मचारी उत्तरदायी हैं अथवा उनकी संलिप्तता रही है? पुलिस विवेचना का परिणाम क्या रहा है? पुलिस ने आरोप पत्र न्यायालय प्रेषित किया है या अन्तिम रिपोर्ट, यह स्पष्ट नहीं है। अत: पुलिस विवेचना के सम्बन्ध में उभयपक्ष को स्थिति स्पष्ट करने एवं अभिलेख प्रस्तुत करने का अवसर देकर जिला फोरम द्वारा परिवाद में पुन: विधि के अनुसार निर्णय पारित किया जाना आवश्यक है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए परिवाद जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया जाता है कि जिला फोरम उभयपक्ष को पुलिस विवेचना के सम्बन्ध में स्थिति स्पष्ट करने व अभिलेख प्रस्तुत करने का अवसर देकर पुन: विधि के अनुसार निर्णय पारित करे।
उभयपक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 25.01.2018 को उपस्थित हों।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को वापस की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1