राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-३१९६/२००६
(जिला मंच, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-३६८/२००२ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १२-१०-२००६ के विरूद्ध)
यूनियन बैंक आफ इण्डिया, ऐशबाग ब्रान्च, लखनऊ द्वारा चीफ मैनेजर, श्री बी0सी0 बेहेरा।
............ अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
शिव शंकर गुप्ता पुत्र स्व0 नन्नूमल गुप्ता निवासी ६९, राम नगर, आलगबाग, लखनऊ।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- ०९-०५-२०१८.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-३६८/२००२ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १२-१०-२००६ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार उसका एक बचत खाता संख्या-९६६७ अपीलार्थी बैंक में है। इस खाते के संचालन हेतु चेक बुक उपलब्ध कराई गई है। उक्त खाते में परिवादी के हस्ताक्षर हिन्दी में हैं। एक व्यक्ति मुसरत अली पुत्र रमजान अली निवासी कसाईबाड़ा फतेहगंज, लखनऊ जो परिवादी की पहचान का व्यक्ति है वह काफी समय से परिवादी से ५०,०००/- रू०
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उधार मांग रहा था। क्योंकि मुसरत अली का रिकार्ड अच्छा नहीं है और परिवादी उसको उधार देने से मना नहीं करना चाहता था क्योंकि मना करने पर परिवादी तथा मुसरत अली के मध्य कटुता पैदा हो सकती थी, इसलिए उसको टालने की नियत से परिवादी ने जानबूझकर ५०,०००/- रू० का एक एकाउण्ट पेची चेक सं0-९११८९ दिनांक २९-०४-२००२ काट दिया और उस पर अँग्रेजी में हस्ताक्षर कर दिए कि बैंक द्वारा भुगतान न किया जाए और आपत्ति दर्शा दी जाय। दिनांक ०७-०६-२००२ को परिवादी जब बैंक में अपनी पासबुक में इन्द्राज कराने गया तो उसे ज्ञात हुआ कि उपरोक्त चेक का भुगतान मुसरत अली के खाते में बैंक द्वारा कर दिया गया। इस सन्दर्भ में परिवादी ने दिनांक ०८-०५-२००२ को एक पत्र अपीलार्थी को प्रेषित किया किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: चेक की धनराशि ५०,०००/- रू० मय ब्याज दिलाए जाने तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
अपीलार्थी के कथनानुसार परिवादी अपीलार्थी बैंक का एक सम्मानित उपभोक्ता था जिसके द्वारा अधिक धनराशि का सम्व्यवहार बैंक से किया जाता था। ऐसी परिस्थिति में जब प्रश्नगत चेक अपीलार्थी बैंक के समक्ष भुगतान हेतु प्रस्तुत किया गया और खाताधारक के हस्ताक्षर में भिन्नता पाई गई तब परिवादी से तत्काल टेलीफोन पर सम्पर्क किया। परिवादी ने उपरोक्त चेक का भुगतान किए जाने हेतु निर्देशित किया क्योंकि अन्यथा परिवादी की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचती। परिवादी द्वारा सूचित किया गया कि हस्ताक्षर भूल जाने के कारण यह त्रुटि हो गई। परिवादी द्वारा यह भी सूचित किया गया कि वह शीघ्र ही त्रुटि का निवारण कर देगा। अत: परिवादी के आश्वासन पर चेक का भुगतान कर दिया गया। काफी समय बीत जाने के बाद बैंक द्वारा परिवादी को बुलाया गया। परिवादी पत्र दिनांकित ०८-०५-२००२ के साथ उपस्थित हुआ तथा एक बनावटी कहानी प्रस्तुत की गई जिसके द्वारा परिवादी यह स्वयं स्वीकार करता है कि वह जिस व्यक्ति के पक्ष में चेक जारी किया गया उसे बेवकूफ बनाना चाहता था। जब अपीलार्थी बैंक
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परिवादी के प्रभाव में नहीं आया तब उसके द्वारा प्रश्नगत परिवाद योजित किया।
विद्वान जिला मंच ने प्रस्तुत प्रकरण में अपीलार्थी बैंक एवं परिवादी दोनों को सामूहिक रूप से लापरवाह मानते हुए परिवादी १५,०००/- रू० की अदायगी हेतु निर्देशित किया।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामील आदेश दिनांक १९-०१-२०१८ द्वारा पर्याप्त मानी गई। प्रत्यर्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण में चेक की धनराशि भुगतान चेकधारक के पक्ष में की गई और स्वीकृत रूप से इस चेक पर परिवादी के हस्ताक्षर थे। परिवादी ने बैंक से चेकी की धनराशि का भुगतान न किए जाने हेतु काई निर्देश्ा निर्गत नहीं किया। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादी अपीलार्थी बैंक का सम्मानित उपभोक्ता था और भुगतान से पूर्व टेलीफोन द्वारा चेक के भुगतान पर परिवादी की सहमति प्राप्त की जा चुकी थी।
प्रत्यर्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
निर्विवाद रूप से चेक परिवादी द्वारा जारी किया गया और उस पर परिवादी द्वारा हस्ताक्षर किए गये। परिवादी द्वारा चेक का भुगतान रोके जाने के सन्दर्भ में कोई निर्देश भी अपीलार्थी को बैंक को नहीं दिए गये। अपीलार्थी बैंक का यह भी कथन है कि चेक का भुगतान किए जाने से पूर्व प्रत्यर्थी/परिवादी की सहमति प्राप्त कर ली गई थी। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई।
हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का
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उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, जो अपास्त किए जाने योग्य है। तद्नुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-३६८/२००२ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १२-१०-२००६ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-३.