सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 255 सन 2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.04.2005 के विरूद्ध)
अपील संख्या 890 सन 2005
1. यूनियन बैंक आफ इण्डिया, कचगांव, शाखा जिला जौनपुर द्वारा अधिकृत हस्ताक्षरी/प्रबंधक।
2 यूनियन बैंक आफ इण्डिया, कपूरथला काम्पलेक्स, अलीगंज लखनऊ द्वारा जनरल मैनेजर ।
3; यूनियन बैंक आफ इण्डिया, रीजनल आफिस होटल रिवर व्यू, जौनपुर द्वारा असिस्टेंट जनरल मैनेजर ।
4. यूनियन बैंक आफ इण्डिया, सेन्ट्रल आफिस 239, विधान सभा मार्ग, नरीमन प्वाइंट, मुम्बई द्वारा चेयरमैन एवं मैनेजिंग डाइरेक्टर ।
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थीगण
-बनाम-
राम प्रसाद मौर्या, पुत्र श्री रामनिहोर मौर्या, निवासी ग्राम गद्दीपुर परगना जफराबाद तहसील, सदर जिला जौनपुर ।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री राजेश चड्ढा।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - कोई नहीं ।
दिनांक:-09-05-2019
श्री गोवर्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 255 सन 2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.04.2005 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है ।
प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी रेलवे विभाग में वर्ष 1980 से गैंगमैन के पद पर कार्यरत है। परिवादी ने दिनांक 23.02.2001 को अपीलकर्ता संख्या 01 की शाखा में 20 हजार रू0 जी0पी0एफ0 की धनराशि का चेक संख्या 752282 अपने बचत खाता संख्या 3571 में जमा किया । माह मई में उसको लड़की की शादी के लिए पैसे की आवश्यकता होने पर उसने चेक की धनराशि के लिए अपीलार्थी संख्या 01 से सम्पर्क किया जिसने उक्त चेक की पूर्ण धनराशि के पैसे को न देकर विशेष परिस्थितियों को देखते हुए परिवादी/प्रत्यर्थी को 10 हजार रू0 दे दिया। चेक की शेष धनराशि की अदायगी के लिए परिवादी अपीलार्थी संख्या 01 से सम्पर्क करता रहा, लेकिन उसे चेक की शेष धनराशि का भुगतान नहीं किया गया । अन्तत: परिवादी ने दिनांक 19.06.2001 को अपीलकर्ता संख्या 01 को नोटिस भेजा और चेक की धनराशि प्राप्त न होने पर परिवादी ने जिला मंच के समक्ष चेक की धनराशि की अदायगी तथा क्षतिपूर्ति हेतु परिवाद योजित किया।
अपीलकर्ता की ओर से प्रतिवादपत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अपीलकर्ता के कथनानुसार परिवादी ने अपीलकर्ता संख्या 01 के यहां चेक जमा की थी सरकारी कारोबार शाखा लखनऊ द्वारा पेयेबुल थी तथा डी0आर0एम0 आफिस हजरतगंज, लखनऊ द्वारा जारी की गयी थी। परिवादी से उक्त चेक प्राप्त करने के बाद अपीलकर्ता संख्या 01 ने उसका भुगतान प्राप्त करने हेतु यूनियन बैंक आफ इण्डिया सेवा शाखा लखनऊ को भेजा । उक्त चेक भुगतान हेतु एस0बी0आई0 सरकारी कारोबार शाखा लखनऊ को प्रस्तुत किया गया जिसने बिना भुगतान के ही उक्त चेक यू0बी0आई0 सेवा शाखा लखनऊ को वापस कर दिया, जिस पर भुगतान न होने कारण अंकित था और उसे बी0के0 कूरियर के माध्यम से अपीलकर्ता संख्या 01 को भेज दिया लेकिन उक्त चेक अपीलकर्ता संख्या 01 के पास नहीं पहुंच सका। चेक बिना भुगतान वापस हुआ, इसकी जानकारी के बगैर अपीलकर्ता संख्या 01 ने दिनांक 08.05.2001 को 9,102.40 रू0 का ओवरड्राफ्ट परिवादी को दिया । दिनांक 08.05.2001 को परिवादी के खाते में 897.60 रू0 क्रेडिट वैलेंस था और उक्त ओवरड्राफ्ट की वजह से परिवादी ने दिनांक 08.05.2001 को अपने खाते से 10 हजार रू0 निकाल कर अपना कामकाज किया । परिवादी के उपरोक्त चेक का भुगतान न मिलने के कारण परिवादी के बचत खाते में रू0 9102.40 रू0 आज भी ओवरड्राफ्ट है जिसकी ब्याज सहित अदायगी के लिए परिवादी जिम्मेदार है। परिवादी ने अदाकर्ता बैंक स्टेट बैंक आफ इण्डिया सरकारी कारोबार शाखा लखनऊ तथा डी0आर0एम0 हजरतगंज लखनऊ चेक जारीकर्ता को प्रस्तुत परिवाद में पक्षकार नहीं बनाया है, जो परिवाद में आवश्यक पक्षकार थे। अपीलकर्ता ने परिवादी से कई बार कहा कि वह एस0बी0आई0 सरकारी कारोबार शाखा लखनऊ से नान पेमेंट सर्टीफिकेट प्राप्त करके डी0आर0एम0 लखनऊ से नया चेक प्राप्त कर ले, जिस पर परिवादी ने कोई ध्यान नहीं दिया। परिवादी के ध्यान न देने पर अपीलकर्ता ने अपनी सेवा शाखा लखनऊ से विवादित चेक का नान पेमेंट सर्टिफिकेट प्राप्त करके परिवादी को भेजा और दूसरा चेक प्राप्त करने का अनुरोध किया फिर भी परिवादी ने दूसरा चेक प्राप्त करके नहीं दिया। डी0आर0एम0 लखनऊ से दूसरा चेक प्राप्त किए बिना परिवादी को भुगतान सम्भव नहीं है और दूसरा चेक सिर्फ परिवादी ही प्राप्त कर सकता है, अत: अपीलकर्ता के कथनानुसार उनकी सेवा में कोई त्रुटि नहीं है।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलकर्ता को परिवादी को चेक संख्या 752282 की शेष धनराशि 10 हजार रू0 निर्णय होने की तिथि से 2 माह के अन्दर अदा करने का निर्देश दिया तथा शेष अनुतोष निरस्त किया जिससे क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढ़ा के तर्क सुने। प्रत्यर्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ ।
अपीलकर्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अपीलकर्ता संख्या 01 की शाखा में परिवादी द्वारा जमा किया गया चेक भुगतान हेतु उनके द्वारा सर्विस शाखा लखनऊ भेजा जिन्होंने यह चेक अदाकर्ता बैंक एस0बी0आई लखनऊ को भुगतान प्राप्त करने हेतु भेजा किंतु एस0बी0आई0 लखनऊ द्वारा चेक का भुगतान नहीं किया गया तथा मेमो सहित अपीलकर्ता की सर्विस शाखा लखनऊ को भेज दिया। सर्विस शाखा लखनऊ द्वारा यह मेमो मै0 बी0के0 कूरियर के माध्यम से अपीलकर्ता शाखा को भेजा गया किंतु यह चेक तथा मेमो रास्ते में गायब हो गए, अत: अपीलकर्ता ने परिवादी से द्वितीय चेक डी0आर0एम0 लखनऊ से प्राप्त करने की प्रार्थना की साथ ही अपनी सर्विस शाखा लखनऊ से भी प्रार्थना की नान पेमेंण्ट एस0बी0आई0 से प्राप्त किया जाए। एस0बी0आई से अपीलकर्ता बैंक की सेवा शाखा द्वारा यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया गया था और इसे परिवादी को प्राप्त कराया गया तथा परिवादी से अनुरोध किया गया कि वह द्वितीय चेक प्राप्त करके भुगतान हेतु प्रस्तुत करे। अपीलकर्ता की ओर से यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी की पुत्री की शादी के तथ्य को ध्यान में रखते हुए मानवता के आधार पर परिवादी को 10 हजार रू0 का ओवरड्राफ्ट प्रदान किया गया किंतु जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया । अपीलकर्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच का यह निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण है कि अपीलकर्ता का दायित्व था कि वह अपने माध्यम से चेक क्लीयरंस कराते। यदि किसी कारणवश चेक गायब हो जाता है तो अपीलकर्ता बैंक उपभोक्ता को भुगतान की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।
प्रस्तुत प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है क प्रश्नगत चेक का भुगतान अपीलकर्ता बैंक शाखा द्वारा नहीं किया जाना था चेक का भुगतान एस0बी0आई0 सरकारी कारोबार शाखा लखनऊ द्वारा किया जाना था। अपीलकर्ता बैंक में परिवादी ने अपने चेक का भुगतान अपने बचत खाते में किए जाने हेतु प्रस्तुत किया था। स्वाभाविक रूप से इस चेक का भुगतान संबंधित बैंक से प्राप्त करने का दायित्व अपीलकर्ता बैंक का था। अपीलकर्ता बैंक यह स्वीकार करता है कि चेक का भुगतान अदाकर्ता बैंक एस0बी0आई0 सरकारी कारोबार शाखा द्वारा नहीं किया गया। अपीलकर्ता बैंक यह भी स्वीकार करता है कि अदाकर्ता बैंक एस0बी0आई0 सरकारी कारोबार शाखा लखनऊ के माध्यम से प्रश्नगत चेक तथा चेक का भुगतान न किए जाने के संबंध में मेमो अपीलकर्ता संख्या-2 की सेवा शाखा को भेजा गया। सेवा शाखा द्वारा प्रश्नगत चेक तथा मेमो बी0के0 कूरियर के माध्यम से अपीलकर्ता संख्या 01 की शाखा को भेजा गया किंतु यह चेक अपीलकर्ता संख्या 01 बैंक को प्राप्त नहीं हो सका। अपीलकर्ता बैंक का यह भी कथन है कि अपीलकर्ता बैंक ने प्रयास करके एस0बी0आई0 की सेवा शाखा से नान पेमेंण्ट प्रमाण पत्र प्राप्त करके परिवादी को उपलब्ध करा दिया जिससे परिवादी प्रश्नगत चेक के स्थान पर द्वितीय चेक प्राप्त कर सके।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत चेक भुगतान हेतु अपीलकर्ता संख्या 01 को दिनांक 23.02.2001 को प्रेषित किया तथा इस चेक का नान पेमेंट प्रमाण पत्र अपीलकर्ता बैंक ने परिवादी को अपने पत्र दिनांक 05.08.2002 द्वारा प्राप्त कराया। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता बैंक की लापरवाही के कारण परिवादी के प्रश्नगत चेक का नानपेमेंट प्रमाणपत्र लगभग ढ़ाई वर्ष के विलम्ब के उपरांत प्राप्त हो सका। बिना नान पेमेण्ट प्रमाणपत्र के परिवादी दूसरा चेक प्राप्त नहीं कर सकता था। उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत चेक परिवादी के जी0पी0एफ0 की धनराशि से संबंधित था। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि परिवादी एक अल्प वेतन भोगी कर्मचारी है। परिवादी ने प्रश्नगत चेक की धनराशि अपनी पुत्री की शादी के लिए प्राप्त की थी किंतु अपीलकर्ता बैंक की लापरवाही के कारण स्वाभाविक रूप से परिवादी को अत्याधिक मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट सहन करना पड़ा होगा।
यद्यपि प्रश्नगत चेक की धनराशि के भुगतान का दायित्व निर्विवाद रूप से अपीलकर्ता बैंक का नहीं था किंतु प्रस्तुत प्रकरण में अपीलकर्ता बैंक ने कलेक्टिंग बैंकर के रूप में अपने दायित्व का उचित निर्वहन न करके सेवा में कमी कारित की है, अत: परिवादी को 5000.00 रू0 क्षतिपूर्ति की अदायगी कराया जाना न्यायसंगत होगा।
प्रश्नगत निर्णय तद्नुसार संशोधित किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय अपास्त किया जाता है। अपीलकर्ता बैंक को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय की प्रति प्राप्त किए जाने की तिथि से एक माह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादी को पॉच हजार रू0 क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान करे। निर्धारित अवधि में भुगतान न करने की स्थिति में परिवाद योजित किए जाने की तिथि से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक अपीलकर्ता बैंक उक्त धनराशि पर छह प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज का भी भुगतान परिवादी को करेंगे।
उभय पक्ष इस अपील का अपना अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA)