सुरक्षित।
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या:-446/2006
(जिला उपभोक्ता आयोग, बिजनौर द्वारा परिवाद संख्या 595/2003 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनॉंक 20.01.2006 के विरूद्ध)
Union Bank of India, Haldaur Branch, District-Bijnor, through its Authorized Signatory/Manager.
……………Appellant.
Versus
1-Sri Ramnath Singh, S/o Mr. Chandan Singh R/o Bhoor, opposite Police Station-Haldaur, District-Bijnor.
2-National Insurance co. Ltd, Najeebabad Branch, Bijnor, through its Manager.
……………..Respondent/Opp. Parties.
समक्ष:-
1.मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2.मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।
दिनॉंक:-01-09-2021
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, विद्वान जिला आयोग बिजनौर द्वारा परिवाद संख्या-595/2003 रामनाथ सिंह बनाम प्रबन्धक यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया में पारित निर्णय व आदेश दिनॉंकित 20-01-2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है।
संक्षेप में प्रत्यर्थी का कथन है कि परिवादी ने एक परिवाद संख्या 595/2003 जिला फोरम बिजनौर में प्रस्तुत किया। परिवादी का कथन था कि उसने यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा हल्दौर से वर्ष1998 में भैंस के लिये दस हजार रूपये ऋण लिया था, उसकी भैंस बीमारी से दिनॉंक 20-012-2002 को मर गयी, इसका बीमा प्रतिपक्षी संख्या-02 से किया था। एक तिहाई ऋण अनुदान के रूप में छूट दिये जाने के योग्य है। यह अनुदान भी प्रतिवादी नम्बर-01 ने परिवादी को नहीं दिया। भैंस के मरने के बाद दिनॉंक 21-12-2002 को उसका पोस्टमार्टम पशु चिकित्साधिकारी हल्दौर ने किया। परिवादी की भैंस के कान का टोकन संख्या-एन0बी0डी0 6238 को निकालकर प्रतिपक्षी नम्बर-02 के मांगने पर परिवादी ने जमा कर दिया था। जब प्रतिपक्षी नम्बर-01 से निकला टैग मॉंगा गया था प्रतिपक्षी नम्बर-01 ने लिखकर दे दिया कि टैग खो गया। अत: उसे धनराशि नहीं मिल सकी। उसके द्वारा इस संबंध में विद्वान जिला फोरम/आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया।
परिवादी ने जब विपक्षी के यहॉं अपना दावा प्रस्तुत किया और उसके साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मूल्यांकन प्रमाण पत्र तथा टैग प्रस्तुत किया। दुर्भाग्वश उस टैग का दूसरा हिस्सा अपीलार्थी बैंक से कहीं खो गया और अपीलार्थी बैंक ने प्रत्यर्थी संख्या-02 नेशनल इं0कं0लि0 को इस बारे में सूचना दी। बीमा कम्पनी ने अपीलार्थी के इस प्रत्यावेदन को अस्वीकार कर दिया। विद्वान जिला फोरम/आयोग ने बीमा कम्पनी को दोषी मानने के बजाए अपीलार्थी बैंक पर ही सारा दोष स्थापित किया और उसके विरूद्ध आदेश पारित किया गया। विद्वान जिला फोरम/आयोग ने इस तथ्य को नहीं देखा कि प्रश्नगत टैग अपीलार्थी को भैंस की मृत्यु के समय प्राप्त कराया गया जिसका सत्यापन पशु चिकित्सक ने भी किया, और बाद में इसे बीमा कम्पनी को दिया गया। यही टैग पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी अंकित था। विद्वान जिला फोरम/आयोग ने यह नहीं देखा कि बीमा पॉलिसी लागू थी और प्रश्नगत टैग बीमा कम्पनी को परिवादी ने प्रदान किया था और उसके द्वारा दूसरा टैग अपीलार्थी द्वारा उपलब्ध नहीं कराने के कारण दावा अस्वीकृत किया गया। विद्वान जिला फोरम/आयोग ने क्षेत्राधिकार से परे जाकर काम किया और समर्थनकारी साक्ष्य का अवलोकन नहीं किया अत: वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए विद्वान जिला फोरम/आयोग के प्रश्नगत निर्णय को अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा को सुना। प्रत्यर्थी संख्या-02 की ओर से आपत्ति प्रस्तुत है किन्तु उनकी ओर से कोई तर्क प्रस्तुत करने के लिये उपस्थित नहीं हुआ। प्रत्यर्थी संख्या-01 पर नोटिस की तामीला पर्याप्त है। अत: हमने स्वयं पत्रावली का सम्यक रूप से परीक्षण किया।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि विपक्षी संख्या-01 ने अपने पत्र दिनॉंकित 03-09-2003 द्वारा नेशनल इं0कं0 को सूचित किया है कि भैंस का टैग नम्बर एन0बी0डी0/6238 उनकी शाखा से कहीं गुम हो गया था। विद्वान जिला फोरम/आयोग ने यह माना कि बैंक द्वारा टैग खो देना उनकी घोर लापरवाही का प्रतीक है और इसके आधार पर परिवाद पत्र अस्वीकृत करते हुए विपक्षी संख्या-01 यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया को आदेश दिया कि वह 10,000/-रूपये मय ब्याज के साथ परिवादी के खाते में जमा करे।
नेशनल इं0कं0 की ओर से मृत्यु प्रमाण पत्र में भैंस का टैग नंबर एन0बी0डी0/6238 अंकित है और यह प्रमाणपत्र पशु चिकित्साधिकारी द्वारा दिनॉंक 21-12-2002 को प्रदान किया गया है। पशु चिकित्साधिकारी ने इस संबंध में एक प्रमाण पत्र भी दिया है जिसमें कहा गया है कि रामनाथ सिंह की भैंस की दिनाँक 30-11-2001 को 9.00 बजे सुबह मृत्यु को प्राप्त हुई जिसका पोस्टमार्टम दिनॉंक 30-11-2001 को पूर्वान्ह 1.00 बजे किया गया और इसका टैग नम्बर एन0बी0डी0/6238 है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी टैग का नम्बर एन0बी0डी0/6238 लिखा हुआ है। वैल्यूएशन सर्टिफिकेट में भी टैग का नम्बर यही अंकित है। टैग की दूसरी प्रति यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया से अगर कहीं लुप्त हो गयी और इस तथ्य को बैंक मान रहा है तब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब पोस्टमार्टम के समय भैंस के कान में वही टैग नम्बर पाया गया जो बीमित भैंस का था तब मात्र दूसरा हिस्सा न होने से क्या बीमा कम्पनी दावा अस्वीकृत कर देगी? पशु चिकित्सक का प्रमाण पत्र, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, वैल्यूएशन सर्टिफिकेट हर जगह भैंस का वही टैग नम्बर अंकित है जिसके संबंध में बीमा कराया गया है।
बीमा कम्पनी की ओर से इस मामले में आपत्ति प्रस्तुत की गयी है। बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि एक ही सिद्धान्त है टैग नहीं तो दावा नहीं। बीमा कम्पनी ने अपनी प्रति में लिखा है कि पोस्टमार्टम के समय पशु चिकित्सक के पास टैग होना यह साबित नहीं करता कि वह बीमा कम्पनी ने प्राप्त किया। टैग बैंक द्वारा खो दिया गया अत: इसके लिये बैंक उत्तरदायी है। प्रश्नगत निर्णय में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और वह निर्णय विधि सम्मत है।
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में कहा है कि उसने टोकन विपक्षी संख्या-01 के मॉंगने पर उनके कार्यालय में जमा कर दिया था और वहीं से टैग खो गया तथा बैंक ने बाद में कह दिया कि टैग खो गया है। यहॉं पर एक बात स्पष्ट है कि पोस्टमार्टम के समय वैल्यूएशन रिपोर्ट के समय तथा भैंस की मृत्यु प्रमाण पत्र बनाते समय टोकन संबंधित पशु चिकित्सक ने पाया जिसे बाद में परिवादी ने अपीलार्थी बैंक में जमा कर दियाऔर वहीं से टोकन खो गया। इस संबंध में बैंक का दोष है क्योंकि यह बैंक का दायित्व था कि वह टोकन बीमा कम्पनी को देता। परिवादी के पास टोकन था इसलिए परिवादी बीमाकृत धनराशि पाने का अधिकारी है। चॅूंकि इस मामले में सम्पूर्ण लापरवाही बैंक की ही सिद्ध होती है अत: बैंक ही इस धनराशि को देने के लिये उत्तरदायी है।
अत: समस्त तथ्यों को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस मामले में विद्वान जिला फोरम/आयोग बिजनौर द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय उचित है और वर्तमान अपील बलहीन होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील सव्यय निरस्त की जाती है। विद्वान जिला फोरम/आयोग बिजनौर का प्रश्नगत निर्णय व आदेश दिनॉंक 20.01.2006 की पुष्टि की जाती है।
पक्षकार अपना खर्च स्वयं वहन करेंगें।
उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनॉंकित होकर उदघोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
प्रदीप कुमार आशु0
कोर्ट नं0-3