राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या-110/2018
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, भदोही द्वारा इजरा वाद संख्या 06/2018 में पारित आदेश दिनांक 10.05.2018 के विरूद्ध)
Union Bank of India through Branch Manager Suriyanawa, Tehsil-Bhadohi, District-SantRavidasnagar.
....................पुनरीक्षणकर्ता
बनाम
1. Rajendra Prasad s/o Shetala Prasad r/o village-sherpurGopalaha Ta Chauthar, Paragana and Tehsil-Bhadohi, District-SantRavidas Nagar.
2. Bholanath s/o Ahibaran r/o village- sherpur, Gopalaha, Paragana and Tehsil-Bhadohi, District-SantRavidas Nagar.
3. MunniLal s/o Vipati r/o village-Bhanipur Ta Chauthar, Paragana and Tehsil-Bhadohi, District-SantRavidas Nagar.
4. The New India Insurance company Limited through its Branch Manager, Branch office Kamaruddin building Azimullah Crossing main road, Bhadohi, District-SantRavidas Nagar.
5. Srinath s/o Mata Jatan r/o SherpurGopalaha Ta Chauthar, Paragana and Tehsil-Bhadohi, District-SantRavidas Nagar. ....................विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री कपीश श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण सं0-1,2,3 व 5 की ओर से उपस्थित : सुश्री तारा गुप्ता,
विद्वान अधिवक्ता।
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विपक्षी सं0-4 की ओर से उपस्थित : श्री अंचल मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 24-05-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
इजरा वाद संख्या-06/2018 राजेन्द्र प्रसाद आदि बनाम यूनियन बैंक आफ इण्डिया आदि में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, भदोही द्वारा पारित आदेश दिनांक 10.05.2018 के विरूद्ध यह पुनरीक्षण याचिका विपक्षी/निर्णीत ऋणी यूनियन बैंक आफ इण्डिया की ओर से धारा-17 (1) (बी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री कपीश श्रीवास्तव उपस्थित आये हैं। विपक्षीगण संख्या-1, 2, 3 व 5 की की ओर से विद्वान अधिवक्ता सुश्री तारा गुप्ता उपस्थित आईं हैं। विपक्षी संख्या-4 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अंचल मिश्रा उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने यह आदेशित किया है कि इस केस के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए मंच के मत में यह उचित होगा कि कर्ज की धनराशि ज्यादातर अदा हो चुकी है। अत: विपक्षी संख्या-1 बैंक उपरोक्त नोटिस दिनांक 01.05.2015 के अनुसार जमा धनराशि में से 3,09,708.50/-रू0
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प्राप्त करे और अवशेष धनराशि परिवादीगण को दे दिया जाय। इससे न्याय का हित सिद्ध होगा। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित आदेश में यह भी आदेशित किया है कि विपक्षी संख्या-1 बैंक अर्थात् पुनरीक्षणकर्ता ने जो अनुरोध किया है कि उसे 4,18,242/-रू0 दिलाया जाये यह न्यायोचित नहीं लगता क्योंकि परिवादीगण लघु व सीमान्त किसान हैं उन्हें ऋण राहत योजना में लाभ दिया गया है। वाहन लूटे जाने के बाद उनकी आय का श्रोत खत्म हो गया है। इसलिए वे कर्ज अदा नहीं कर सके इन परिस्थितियों में विपक्षी संख्या-1 अर्थात् पुनरीक्षणकर्ता निर्णय के अनुसार 3,09,708.50/-रू0 प्राप्त करेंगे तथा शेष धनराशि जो बीमा कम्पनी ने जमा किया है उसे परिवादीगण प्राप्त करेंगे।
पुनरीक्षणकर्ता बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश परिवाद में जिला फोरम द्वारा पारित निष्पादन अधीन निर्णय और आदेश के विरूद्ध है। जिला फोरम ने परिवादी/डिक्रीदारगण द्वारा विपक्षी संख्या-1 बैंक, जो वर्तमान में पुनरीक्षणकर्ता है, से लिये गये कर्ज की देयता के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया है। अत: जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता बैंक के ऋण के सम्बन्ध में विपक्षीगण, जो निष्पादन अधीन निर्णय के परिवादी/डिक्रीदारगण हैं, की जो देयता निर्धारित की है वह जिला फोरम के अधिकार से परे है और निष्पादन अधीन निर्णय का विषय नहीं है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्त कर निष्पादन अधीन निर्णय का पालन करने हेतु
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जिला फोरम को निर्देशित किया जाना आवश्यक है।
विपक्षीगण संख्या-1, 2, 3 व 5 की विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने जो आदेश पारित किया है, वह न्याय की दृष्टि से उचित है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
विपक्षी संख्या-4 दि न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी संख्या-4 ने निष्पादन अधीन निर्णय के अनुसार बीमा धनराशि जिला फोरम में जमा कर दी है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद संख्या-67/2011 राजेन्द्र प्रसाद आदि बनाम यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा सुरियावॉं आदि में जिला फोरम द्वारा पारित निष्पादन अधीन आदेश निम्न है:-
''परिवाद आंशिक रूप से वादीगण के पक्ष में स्वीकार किया जाता है तद्नुसार विपक्षी संख्या-2 को निर्देशित किया जाता है कि वह बीमित धनराशि 3,06,515/-रू0 (तीन लाख छह हजार पांच सौ पन्द्रह रू0) तथा इस पर दिनांक 27-02-2009 से 6 प्रतिशत साधारण ब्याज आंगणित करके सर्वप्रथम विपक्षी संख्या-1 बैंक को जहां से परिवादीगण ने कर्ज लिया था कर्ज की धनराशि मय ब्याज जो भी बनती हो उसे 2 माह में अदा करे तथा इसके उपरान्त यदि कोई धनराशि अवशेष बचती है तो वह प्रतिकर के रूप में वादीगण को अदा करें इसके अतिरिक्त विपक्षी संख्या-2 वादीगण को मानसिक व आर्थिक क्षति के रूप में 5,000/-रू0 (पांच हजार रू0)
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तथा खर्चा मुकदमा 5,000/-रू0 (पांच हजार रू0) अतिरिक्त नियत तिथि तक अदा करेंगे।''
जिला फोरम के निष्पादन अधीन आदेश से स्पष्ट है कि जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 बैंक से परिवादीगण द्वारा लिये गये ऋण के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया है और न ही ऋण धनराशि का निर्धारण किया है। जिला फोरम ने मात्र यह कहा है कि बीमा कम्पनी बीमि䇶ఀत धनराशि 3,06,515/-रू0 बैंक को परिवादीगण द्वारा लिये गये कर्ज व उस पर देय ब्याज के लिए अदा करेगी और यदि ऋण धनराशि में बीमा धनराशि का समायोजन करने के बाद कोई धनराशि अवशेष बचती है तो उसे परिवादीगण को अदा करेगी। इस प्रकार निष्पादन अधीन आदेश के द्वारा पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 बैंक के ऋण के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं दिया गया है। अत: जिला फोरम ने जो पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 बैंक से विपक्षी/परिवादीगण द्वारा लिये गये ऋण की धनराशि की देयता के सम्बन्ध में आदेश पारित किया है वह निष्पादन अधीन निर्णय के विरूद्ध है। इजरा न्यायालय द्वारा ऐसा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है। यदि डिक्रीदार/परिवादीगण को पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 बैंक से लिये गये ऋण के सम्बन्ध में कोई विवाद या शिकायत है तो उसके सम्बन्ध में वे विधि के अनुसार परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं, परन्तु वर्तमान इजरा वाद में डिक्रीदार/परिवादीगण और
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विपक्षी बैंक के बीच ऋण की धनराशि या ऋण की देयता के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर स्पष्ट है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश जिला फोरम के निष्पादन अधीन आदेश के विरूद्ध है और अधिकार रहित है। अत: पुनरीक्षण याचिका स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्त करते हुए पत्रावली जिला फोरम के इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि जिला फोरम अपने निष्पादन अधीन आदेश के अनुसार विपक्षी संख्या-2 बीमा कम्पनी द्वारा जमा बीमित धनराशि का निस्तारण पहले पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 बैंक के ऋण व ब्याज की अदायगी के सम्बन्ध में करे और यदि बैंक के ऋण की अदायगी के बाद कोई अवशेष धनराशि बचती है तो उसे डिक्रीदार/परिवादीगण को अदा करे।
विपक्षी/डिक्रीदार/परिवादीगण का यदि पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1 बैंक से ऋण के सम्बन्ध में या ऋण की धनराशि के सम्बन्ध में कोई विवाद है या कोई शिकायत है तो वे विधि के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र हैं।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1