राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-672/2017
(जिला फोरम, कानपुर नगर द्धारा परिवाद सं0-268/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23.02.2017 के विरूद्ध)
1- उत्तर मध्य रेलवे द्वारा स्टेशन अधीक्षक, कानपुर सेंट्रल।
2- महाप्रबन्धक, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय इलाहाबाद 211001
3- महाप्रबन्धक, पश्चिम मध्य रेलवे मुख्यालय जबलपुर- 482001
........... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
राघवेन्द्र नरायण शुक्ला, एडवोकेट पुत्र श्री बृज किशोर शुक्ला, निवासी मकान नं0-128/347 के ब्लाक किदवई नगर, कानपुर नगर।
…….. प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री पी0पी0 श्रीवास्तव
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री सर्वेश्वर मेहरोत्रा
दिनांक :-30-9-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-268/2012 राघवेन्द्र नरायण शुक्ला बनाम उत्तर मध्य रेलवे द्वारा स्टेशन अधीक्षक, कानपुर सेन्ट्रल व दो अन्य में जिला फोरम, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 23.02.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15
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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से इस आशय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अन्दर विपक्षीगण, परिवादी को, परिवादी के प्रश्नगत सामान की क्षति के रूप में रू0 46,886.00 मय 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से दिनांक 21.02.12 से तायूम वसूली अदा करें तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय भी अदा करें।”
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 श्रीवास्तव और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश्वर मेहरोत्रा उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
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अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह ट्रेन सं0-18203 बेतवा एक्सप्रेस से दिनांक 21.02.2012 को अपने साले के वैवाहिक समारोह से रायपुर से कानपुर सेन्ट्रल वापस आ रहा था। उसका आरक्षण पी0एन0आर0 नं0-6304026623 पर शयनयान कोच सं0-एस-5 में बर्थ सं0-71 पर था और उसकी पत्नी बच्चे व अन्य सगे सम्बन्धियों को कोच नं0-एस-5 में ही पी0एन0आर0 नं0-6504026114 पर बर्थ सं0-49 से 54 आरक्षित की गई थी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपना 24 इंच के सूटकेस एरिस्ट्रोक्रेट को सुरक्षा की दृष्टि से डबल चैन से बांध कर अपनी पत्नी की लोवर बर्थ के नीचे कुण्डे से बांध दिया और सभी लोग सो गये। प्रात: 6.30 बजे जब ट्रेन सतना स्टेशन पहुंची तो प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी का ध्यान सूटकेस की तरफ गया तो जानकारी हुई कि सूटकेस चोरी कर लिया गया है। परिवाद पत्र के अनुसार सूटकेस में प्रत्यर्थी/परिवादी व उसकी पत्नी की अंगूठियॉ एवं प्रत्यर्थी/परिवादी व उसकी पत्नी और बच्चों के कपड़े आदि रखे थे, जिनकी कुल कीमत सूटकेस सहित करीब 79,000.00 रू0 थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी घटना की जानकारी देने के लिए टी0टी0ई0 को सभी कोचों में ढूंढता रहा, काफी प्रयास
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के बाद टी0टी0ई0 वातानुकूलित कोच में मिला, परन्तु टी0टी0ई0 ने कोई रूचि नहीं दिखाई और कहा कि बॉदा स्टेशन में कन्डेक्टर से मिले। अत: जब ट्रेन बॉदा स्टेशन पहुंची तो परिवादी ने अपना सम्पूर्ण प्रकरण कन्डक्टर को बताया। तो कन्डक्टर ने कहा कि आप टी0सी0 से मिलकर उसको जानकारी दें तब प्रत्यर्थी/परिवादी टी0सी0 से मिला और उन्हें घटना से अवगत कराया तब टी0सी0 प्रत्यर्थी/परिवादी की बर्थ के पास आया और बर्थ के नीचे कुन्डे से लटकी कटी हुई चैन उसे दिखायी गयी तो उसने कहा कि आप कानपुर सेन्ट्रल में अपनी रिपोर्ट दर्ज करायें। अत: जब ट्रेन दिनांक 22.02.2012 को 12.30 बजे दिन में कानपुर सेन्ट्रल पहुंची तब प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा घटना की रिपोर्ट थाना जी0आर0पी0 कानपुर सेन्ट्रल को दी गई जिस पर अ0सं0-138/2012 अन्तर्गत धारा-379 आई0पी0सी थाना-जी0आर0पी0 की पुलिस ने दर्ज किया। थाना जी0आर0पी0 की पुलिस को प्रत्यर्थी/परिवादी ने कटी हुई चैन भी दिखायी, परन्तु पुलिस ने उसे कब्जे में नहीं लिया और प्रकरण सतना को अंतरित कर दिया तथा कहा कि जॉच अधिकारी आवे तो कटी चैन उन्हें दे दें।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि पुलिस ने उसका कोई ब्यान नहीं लिया, न कोई निरीक्षण मौका किया और न ही सह-यात्रियों का कोई ब्यान लिया।
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परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि ट्रेन में यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपीलार्थी/विपक्षीगण के रेल विभाग पर है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण की सेवा में कमी के आधार पर परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और अपने चोरी गये सामानों की कुल कीमत 79,000.00 रू0 क्षतिपूर्ति मॉगी है, साथ ही शारीरिक और मानसिक कष्ट हेतु 3,00,000.00 रू0 की क्षतिपूर्ति और 5,000.00 रू0 वाद व्यय भी मॉगा है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण सं0-1 व 2 ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि रेलवे प्रशासन उस क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं है जो सामान बुक न किया गया हो। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण सं0-1 व 2 ने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का दायित्व था कि वह अपने सामान को रेलवे से बुक कराता अथवा अपने व्यक्तिगत जोखिम पर सामान अपने साथ ले जाता, परन्तु उसने अपने सामान को बुक नहीं कराया है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण सं0-1 व 2 की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना सतना की है जो सतना न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आता है। चोरी की कथित घटना से उत्तर मध्य रेलवे का कोई सम्बन्ध नहीं है। बेतवा एक्सप्रेस का प्रबन्धन कानपुर के स्टाफ द्वारा नहीं किया
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जाता है। जी0आर0पी0 कानपुर के द्वारा प्रकरण से सम्बन्धित समस्त प्रपत्रों को दिनांक 27.02.2012 को सतना स्थानांतरित कर दिया गया था जैसा कि थाना प्रभारी जी0आर0पी0 कानुपर के द्वारा रेलवे प्रशासन को दी गयी रिपोर्ट से स्पष्ट है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण सं0-1 व 2 ने कहा है कि भारतीय रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा-100 के अनुसार भी रेलवे प्रशासन का कोई दायित्व नहीं बनता है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी सं0-3 की ओर से कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: जिला फोरम ने परिवाद की कार्यवाही उसके विरूद्ध एक पक्षीय रूप से की है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि जिला फोरम, कानपुर नगर को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में प्रत्यर्थी/परिवादी के कथन को स्वीकार करते हुए यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के सूटकेस व उसमें रखे माल की शयनयान से चोरी होना रेल की सेवा में कमी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है, जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम कानपुर नगर को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत:
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जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अधिकाररहित और विधि विरूद्ध है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का प्रश्नगत माल बुक नहीं कराया गया था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रश्नगत माल के गायब होने पर रेल विभाग का कोई दायित्व नहीं बनता है। जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है। अत: निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के अनुकूल है और उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी व उसकी पत्नी और बच्चे आरक्षित टिकट से आरक्षित कोच में यात्रा कर रहे थे और आरक्षित कोच में अनाधिकृत रूप से बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश रोकने का दायित्व रेल प्रशासन पर है, परन्तु रेल प्रशासन अपने दायित्व का निर्वहन करने में असफल रहा है, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी के साथ चोरी की यह घटना हुई है। ऐसी स्थिति में रेल प्रशासन अपने दायित्व से नहीं बच सकता है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
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उभय पक्ष के अभिकथन के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी व बच्चों का परिवाद पत्र में कथित पी0एन0आर0 के आरक्षित टिकट से प्रश्नगत ट्रेन में यात्रा करना अविवादित है। प्रश्नगत ट्रेन से यात्रा के दौरान प्रत्यर्थी/परिवादी का सूटकेस और उसमें रखा सामान गायब होना भी अविवादित है।
प्रत्यर्थी/परिवादी की प्रश्नगत ट्रेन से प्रश्नगत यात्रा का अन्तिम पड़ाव कानपुर सेन्ट्रल था और वह ट्रेन से कानपुर सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन उतरा है तथा कथित चोरी की घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना जी0आर0पी0 कानपुर में दर्ज कराया है। अत: वाद हेतुक आंशिक रूप से कानपुर जनपद में जिला फोरम, कानुपर नगर के क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ है और धारा-11 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार जिला फोरम, कानपुर नगर को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। यह कहना उचित नहीं है कि जिला फोरम, कानपुर नगर को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं था।
पुनरीक्षण याचिका संख्या-194 वर्ष 2016 जनरल मैनेजर (जनरल) नार्दन रेलवे व एक अन्य बनाम लखनजी पुरवार में पारित निर्णय दिनांक 16.12.2016 में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने भारतीय रेल अधिनियम 1989 की धारा-100 पर विचार कर निम्न मत व्यक्त किया है:-
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“It would thus been seen that the petitioners can be held liable for the theft of the articles of the complainant only if some negligence or misconduct on the part of a railway official is made out and it is shown that but for the said negligence or misconduct, the loss would not have taken place.”
आरक्षित शयनयान में चेन से बधा सूटकेस यात्रा के दौरान चोरी होना बताया गया है। आरक्षित शयनयान में अनाधिकृत व्यक्ति का प्रवेश ही रेल कर्मी की Negligence या Misconduct का प्रमाण है। इसके साथ ही स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने जब सूटकेस चोरी की सूचना टी0टी0ई0 कन्डक्टर एवं टी0सी0 को दी तब उन्होंने प्रत्यर्थी/परिवादी की कोई मदद नहीं की। अत: रेल कमियों द्वारा Negligence एवं Misconduct कारित किया जाना इस आधार पर भी स्पष्ट है।
धारा-3 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के प्राविधान को दृष्टगत रखते हुए भारतीय रेल अधिनियम, 1989 के प्राविधान वर्तमान परिवाद में बाधक नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर जिला फोरम का निर्णय विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है। जिला फोरम द्वारा प्रदान किया गया अनुतोष उचित है। किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
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उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय,1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000.00 रू0 अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1