Uttar Pradesh

StateCommission

A/2547/2015

P N B - Complainant(s)

Versus

M/S Railway HandlingCooprative Labour Contract Society Ltd - Opp.Party(s)

S M Bajpai

12 Jul 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2547/2015
( Date of Filing : 10 Dec 2015 )
(Arisen out of Order Dated 29/10/2015 in Case No. C/140/2011 of District Saharanpur)
 
1. P N B
Saharanpur
...........Appellant(s)
Versus
1. M/S Railway HandlingCooprative Labour Contract Society Ltd
Saharanpur
...........Respondent(s)
Revision Petition No. RP/147/2015
( Date of Filing : 06 Oct 2015 )
(Arisen out of Order Dated 28/08/2015 in Case No. c/140/2011 of District Saharanpur)
 
1. PNB
Saharanpur
...........Appellant(s)
Versus
1. M/s Railway Handling
Saharanpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 12 Jul 2021
Final Order / Judgement

                                                                                                                                                             सुरक्षि‍त

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                                                                    अपील संख्‍या- 2547/2015

(जिला उपभोक्‍ता आयोग सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्‍या- 140/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29-10-2015 के विरूद्ध)

 

1- पंजाब नेशनल बैंक, ब्रांच शास्‍त्री मार्केट, रायवाला, डिस्ट्रिक सहारनपुर द्वारा सीनियर मैनेजर।

2- पंजाब नेशनल बैंक, रीजनल आफिस न्‍यू ग्रेन मार्केट मुजफ्फर नगर।

3- पंजाब नेशनल बैंक, ब्रांच शास्‍त्री मार्केट, रायवाला, डिस्ट्रिक सहारनपुर द्वारा एम्‍पलाई।

                                                                                                                                                           अपीलार्थीगण

बनाम

मै0 रेलवे हैंडलिंग को-आपरेटिव लेबर कान्‍ट्रैक्‍ट सोसायटी लिमिटेड (रजिस्‍ट्रेशन नं०2151, रजिस्‍टर्ड ऑन 10.04.1973) आफिस जैन बाग, वीर नगर, सहारनपुर, द्वारा इट्स सेक्रेटरी श्री प्रवीन कुमार जैन, पुत्र श्री मेहर चन्‍द जैन, निवासी-जैन बाग, वीर नगर, डिस्ट्रिक सहारनपुर।...............                                           

                                                                                                                                                           प्रत्‍यर्थीगण

समक्ष:-

 माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य

 माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता, श्री एस०एम० बाजपेयी

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित:    विद्वान अधिवक्‍ता श्री अरविन्‍द कुमार

 

दिनांक: 29-07-2021

 

माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

                                                                                                      निर्णय

     प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता आयोग, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-140/2011 मै0 रेलवे हैण्‍डलिंग को-आपरेटिव लेबर कान्‍ट्रैक्‍ट सोसायटी बनाम शाखा प्रबन्‍धक, पंजाब नेशनल बैंक व दो अन्‍य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 29-10-2015  के विरूद्ध धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

2

जिला आयोग ने आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

" परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्‍दर परिवादी को हुए नुकसान हेतु कुल धनराशि अंकन 06,01,000/-रू0 व इस राशि पर परिवाद दायर करने की तिथि से इस निर्णय की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज सहित अदा करें तथा इसके अतिरिक्‍त अंकन 20,000/-रू० की राशि पर दिनांक 10-08-2011 से दिनांक 25-08-2011 तक की अवधि का 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्‍याज भी अदा करें। इसके अतिरिक्‍त विपक्षीगण उपरोक्‍त अवधि में ही परिवादी को मानसिक कष्‍ट एवं सेवा में कमी हेतु अंकन 50,000/-रू० एवं वाद व्‍यय हेतु अंकन 5000/-रू० भी अदा करें। उपरोक्‍त अवधि में अदायगी न करने पर विपक्षीगण द्वारा परिवादी को इस निर्णय की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक अंकन 6,51,000/-रू० की राशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्‍याज भी देय होगा।"

जिला आयोग के निर्णय व आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री एस०एम० बाजपेयी एवं प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अरविन्‍द कुमार उपस्थित हुये हैं।

हमने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

      अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी सोसायटी है जिसका कार्य सरकारी विभागों से लेबर के ठेके

3

 

प्राप्‍त करके सोसायटी के श्रमिक सदस्‍यों से कार्य कराना है और ठेके से प्राप्‍त धनराशि को श्रमिक सदस्‍यों को उनके द्वारा किये गये कार्य के अनुरूप भुगतान करना है। सोसायटी के नियमों के अनुसार प्रत्‍येक 3 वर्ष में चुनाव होकर पदाधिकारी निर्वाचित होते हैं। अपीलार्थी/विपक्षीगण की बैंक की एक शाखा शास्‍त्री मार्केट सहारनपुर में कार्य कर रही है जिसमें उक्‍त सोसायटी के नाम से खाता संख्‍या-3161000100058654 खोला गया है जिसको सोसायटी का सचिव संचालित करता है। दिनांक 04-08-2011 को सोसायटी के खाते में सचिव द्वारा जमा की गयी धनराशि के सापेक्ष और शेष धनराशि 81,157/-रू० जमा थे। सोसायटी को केन्‍द्रीय भण्‍डार निगम सहारनपुर का 2 वर्ष हेतु लेबर का कांटेक्‍ट का ठेका लेने हेतु टेंडर दिनांक 11-08-2011 तक देना था जिसके साथ 100000/-रू० की एफ.डी.आर. जमा की जानी आवश्‍यक थी। किन्‍तु एफ.डी.आर. बनवाने हेतु पैसा कम होने की वजह से सचिव द्वारा दिनांक 10-08-2011 को 20,000/-रू० अतिरिक्‍त उक्‍त खाते में जमा कराये गये जिसकी रसीद अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा दी गयी। सचिव द्वारा 1,00,000/-रू० की एफ.डी.आर. बनवाने हेतु फार्म भी उसी दिन भर कर दिया गया और एक चेक संख्‍या-349277,  1,00,000/-रू० का फार्म के साथ भर कर दिया गया। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा शायं 4.00 बजे एफ.डी.आर. लेने के लिए कहा गया। उक्‍त टेंडर लखनऊ में डाला जाना था जिसके लिए सचिव द्वारा लखनऊ आने-आने का आरक्षण भी कराया गया था। दिनांक 10-08-2011 की शायं 4.00 बजे जब सचिव एफ.डी.आर. लेने अपीलार्थी/विपक्षी के बैंक में गये तो उनका दिया हुआ चेक फर्म के खाते में धनराशि कम होना कहते हुए वापस कर दिया। बाद में पता करने पर ज्ञात हुआ कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने अन्‍य ठेकेदारों से

4

 

साजिश करके उक्‍त दिनांक को जमा कराए गये 20,000/-रू० समिति खाते में जमा न करके उक्‍त 20,000/-रू० किसी हर्षित जैन के खाते में अवैध रूप से हस्‍तांतरित कर दिये हैं। इस प्रकार बैंक द्वारा बिना सोसायटी की पूर्व अनुमति के गलत तरीके से सोसायटी की धनराशि को सोसायटी के ठेके लेने से वंचित करने के उद्देश्‍य से दूसरे खाते में जमा किया गया और सोसायटी को टेंडर से वंचित कर दिया जिससे सोसायटी को 10,00,000/-रू० की क्षति हुयी।

     अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का उक्‍त कार्य उनकी सेवा में कमी के अन्‍तर्गत आता है। परिवादी सोसायटी द्वारा दिनांक 18-08-2011 को इस सम्‍बन्‍ध में अपने अधिवक्‍ता द्वारा एक नोटिस भी अपीलार्थी/विपक्षी बैंक को दिया गया और सेवा में कमी के कारण हुयी हानि की मांग की गयी।

     इसके उत्‍तर में बैंक द्वारा 20,000/-रू० वापस सोसायटी के खाते में जमा करने की सूचना दी गयी किन्‍तु क्षति की कोई पूर्ति नहीं की गयी। अत: परिवादी द्वारा जिला आयोग के समक्ष यह अनुतोष चाहा गया है कि सोसायटी को बैंक से 20,000/-रू० जितनी देरी से सोसायटी के खाते में वापस किये गये उक्‍त अवधि का ब्‍याज दिलाया जाए तथा सेवा में की गयी कमी से हुयी हानि के लिए अंकन 10,00,000/-रू० का टेंडर मूल्‍य मय ब्‍याज 1000/-रू० एवं वाद व्‍यय दिलाया जाए।

     अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला आयोग के समक्ष अपना उत्‍तर पत्र दाखिल किया गया है और कथन किया गया है कि परिवादी सोसायटी को परिवाद दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। परिवाद पोषणीय नहीं है। परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। परिवाद कामर्शियल ट्रांजैक्‍शन की श्रेणी में आता है। उसका उद्देश्‍य लाभ कमाना है।

5

सोसायटी के सचिव का पुत्र हर्षित जैन है। हर्षित जैन ने बैंक से कर्ज लिया हुआ था। प्रवीण कुमार जैन हर्षित जैन के ऋण खाते में गारन्‍टर हैं। बैंक में हर्षित जैन का खाता एन.पी.ए. चला आ रहा था जिसकी जानकारी परिवादी को थी। परिवादी द्वारा एफ.डी.आर. का फार्म भरा गया जिसे सचिव द्वारा विपक्षी संख्‍या-1 व 3 को बिना बताए वापस ले लिया गया और प्रवीन जैन द्वारा गारंटर होने के कारण मौखिक रूप से 20,000/-रू० की धनराशि अपने पुत्र के खाते में जमा कराने के लिए कह कर गये थे और एफ.डी.आर. का फार्म वापस ले गये थे इसलिए परिवादी का कथन है कि एफ.डी.आर. नहीं बनायी गयी, गलत व असत्‍य है। बैंक द्वारा कोई गलती नहीं की गयी है जो भी गलती है वह परिवादी के सचिव की है जिसके लिए सचिव व्‍यक्तिगत रूप से जिम्‍मेदार है। बैंक द्वारा हर्षित जैन व प्रवीण जैन को इस सम्‍बन्‍ध में दिनांक 10-08-2011 को ऋण अदायगी करने हेतु रजिस्‍टर्ड सूचना दी गयी थी इसलिए विपक्षीगण की कोई जिम्‍मेदारी इस सम्‍बन्‍ध में नहीं है। परिवादी को किसी प्रकार की कोई हानि अपीलार्थी/विपक्षीगण के कारण नहीं हुयी है।

     जिला आयोग ने उभय-पक्ष के अभिकथन एवं साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त उपरोक्‍त प्रकार से आदेश पारित किया है।

     अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय विधिपूर्ण नहीं है और सम्‍पूर्ण तथ्‍यों का संज्ञान लिये बिना आक्षेपित निर्णय पारित किया गया है जो अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।

     प्रत्‍यर्थी/परिवादी सोसायटी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि सोसायटी के सदस्‍य लेबर कॉन्‍ट्रैक्‍ट में अपने जीविकोपार्जन के लिए कार्य करते हैं उनका कोई भी उद्देश्‍य लाभ कमाने का नहीं है। परिवादी सोसायटी का कोई भी व्‍यापारिक उद्देश्‍य नहीं है। अत: परिवाद स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

6

हमने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को विस्‍तापूर्वक सुना है और पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों का सम्‍यक अवलोकन किया है।

     पत्रावली का सम्‍यक अवलोकन करने से स्‍पष्‍ट होता है कि सोसायटी द्वारा 1,00,000/-रू० का एफ०डी०आर० बनाने के लिए बैंक को आदेशित किया था परन्‍तु बैंक ने सोसायटी द्वारा जमा की गयी धनराशि 20,000/-रू० सोसायटी की खाते में न जमा करके सचिव के लड़के के ऋण खाते में जमा कर दिया और सोसायटी के निर्देशानुसार 1,00,000/-रू० का ड्राफ्ट नहीं बनाया जिससे बैंक ने सेवा में कमी की है। अपीलार्थी बैंक द्वारा इस सम्‍बन्‍ध में कोई साक्ष्‍य न जिला आयोग के समक्ष और न ही इस आयोग के समक्ष दिया गया। अत: यहॉं यह कहना अनुचित नहीं होगा कि बैंक द्वारा जो पैसा दूसरे खाते में जमा किया गया था उसको उसने उस खाते से निकालकर सोसायटी के खाते में वापस जमा कर दिया। इस सम्‍बन्‍ध में कभी भी सोसायटी द्वारा कोई निर्देश बैंक को नहीं दिया गया। अत: बैंक ने जो भी कार्य किया वह अपने मन से किया न कि किसी के निर्देश पर, जो कि एक बैंक द्वारा सही कार्य की श्रेणी में नहीं आता है। बैंक बिना किसी निर्देश के एक खाते से पैसा निकाल कर दूसरे खाते में या बिना निर्देश के किसी अन्‍य खाते में जमा नहीं कर सकता। अत: अपीलार्थी बैंक का यह कृत्‍य बैंक द्वारा सेवा में घोर कमी को दर्शाता है।

   अपीलार्थी बैंक द्वारा जो यह कथन किया गया कि परिवादी सोसायटी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है अत: वह जिला आयोग के समक्ष वाद दायर करने में सक्षम नहीं थी।

     इस सम्‍बन्‍ध में इस आयोग ने उपभोक्‍ता की परिभाषा को जैसा कि धारा 2 एम 3 और 4 में वर्णित्‍ है का परिशीलन किया जिसके द्वारा यह सिद्ध होता

 

7

है कि सहकारी समिति एवं व्‍यक्तियों का कोई संगम चाहे वह सोसायटी रजिस्‍ट्रीकरण अधिनियम 1860 के अधीन रजिस्‍टर है या नहीं उपभोक्‍ता की श्रेणी में आता है। इसके अतिरिक्‍त अपीलार्थी बैंक द्वारा यह भी आपत्ति की गयी कि परिवादी उपभोक्‍ता नहीं है तथा परिवादी का‍मर्शियल ट्रांजैक्‍शन की श्रेणी में आता है और उसका उद्देश्‍य लाभ कमाना है, इस सम्‍बन्‍ध में प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा यह कहा गया है कि परिवादी सोसायटी में 130 सदस्‍य हैं और सभी सदस्‍य लेबर कांट्रैक्‍ट में अपनी जीविका उपार्जन करने के लिए कार्य करते हैं। इस प्रकार परिवादी का कार्य लेबर कांट्रैक्‍ट के ठेके प्राप्‍त करके अपने श्रमिक सदस्‍यों को रोजगार दिलाना है न कि लाभ कमाना। अत: धारा 2 (एम) 4 के अन्‍तर्गत कोई भी संस्‍था जो सोसायटी एक्‍ट के अन्‍तर्गत रजिस्‍टर्ड हो उपभोक्‍ता है।

     अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से ऐसा कोई साक्ष्‍य पत्रावली पर दाखिल नहीं किया गया जिससे यह साबित हो सके कि परिवादी द्वारा अपने सदस्‍यों के रोजगार हेतु कार्य न करके लाभ कमाने के उद्देश्‍य से अथवा व्‍यापारिक उद्देश्‍य से कार्य किया जा रहा है जबकि प्रत्‍यर्थी/परिवादी सोसायटी द्वारा स्‍पष्‍ट साक्ष्‍य दिया गया है कि परिवादी अपने श्रमिक सदस्‍यों हेतु लेबर के ठेके प्राप्‍त करती है। इस प्रकार उक्‍त कार्य को किसी भी रूप से कामर्शियल ट्रांजैक्‍शन की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण की उक्‍त आपत्ति स्‍वीकार किये जाने योग्‍य नहीं है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1) घ के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता की श्रेणी में आता है। इसके अतिरिक्‍त बैंकिंग सर्विस से संबंधित सभी विवाद उपभोक्‍ता विवाद हैं और बैंक की सेवा में कमी के लिए फोरम में परिवाद दायर किया जा सकता है।

 

8

अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा अपील में दायर आधारों का परिशीलन करने से स्‍पष्‍ट होता है कि पूरे आधारों में कहीं भी क्षतिपूर्ति धनराशि के सम्‍बन्‍ध में कोई भी कथन अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा नहीं कहा गया है जो यह सिद्ध करता हो कि अपीलार्थी को क्षतिपूर्ति धनराशि पर कोई आपत्ति नहीं थी। अन्‍य तथ्‍य यह है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी सोसायटी में कुल सदस्‍यों की संख्‍या-130 है तथा बैंक के एफ.डी.आर. न बनाने के कारण सोसायटी के सदस्‍यों को दो वर्ष के कार्य से वंचित होना पड़ा जिससे उनके सदस्‍यों को दो वर्ष तक कार्य का नुकसान हुआ जिसकी क्षतिपूर्ति हेतु जिला आयोग द्वारा दी गयी धनराशि उचित प्रतीत होती है।

     अपीलार्थी बैंक द्वारा सुनवाई के दौरान कुछ निर्णय की प्रति मंच के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी। हमने बैंक द्वारा दायर निर्णय की प्रतियों का अवलोकन किया गया तथा यह पाया कि कोई निर्णय प्रस्‍तुत वाद के तथ्‍यों के समर्थन में नहीं है। अत: इस पर लागू नहीं हो सकता।

     विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्कों को सुनने तथा पत्रावली का सम्‍यक अवलोकन करने के उपरान्‍त हम यह पाते हैं कि जिला आयोग द्वारा साक्ष्‍यों की पूर्व विवेचना करते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया गया है जो कि विधि सम्‍मत है। परन्‍तु विद्वान अधिवक्‍ता जिला आयोग द्वारा अपने निर्णय में 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज सहित अदा करने का आदेश दिया गया है वह अधिक प्रतीत होता है उसे 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज परिवर्तित करना न्‍यायोचित होगा तथा जिला आयोग द्वारा मानसिक कष्‍ट एवं सेवा में कमी हेतु प्रदान की गयी धनराशि 50,000/-रू० को घटाकर 20,000/-रू० किया जाना उचित होगा।

    

9

                                                                                                      आदेश

प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। जिला आयोग, सहारनपुर द्वारा पारित निर्णय व आदेश दिनांक 29-10-2015 संशोधित करते हुए जिला आयोग द्वारा आदेशित 09 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के स्‍थान पर 07 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज किया जाता है एवं जिला आयोग द्वारा आदेशित मानसिक कष्‍ट एवं सेवा में कमी हेतु प्रदान की गयी धनराशि 50,000/-रू० को घटाकर 20,000/-रू० किया जाता है। शेष अंश यथावत कायम रहेगा।

उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

(विकास सक्‍सेना)                       (गोवर्धन यादव)

    सदस्‍य                                          सदस्‍य                                                    

            

 

कृष्‍णा, आशु0

कोर्ट नं02

 

 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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