Uttar Pradesh

StateCommission

A/1997/1413

Union Bank Of India - Complainant(s)

Versus

Mohd. Waqar Mirza - Opp.Party(s)

Subhash Goswami And Rajesh Chadha

13 Aug 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1997/1413
( Date of Filing : 14 Aug 1997 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Bank Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Mohd. Waqar Mirza
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 13 Aug 2021
Final Order / Judgement

सुरक्षि‍त

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

 

                                                                                    अपील संख्‍या- 1413/1997

 

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्‍या- 204/1993 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14-07-1997 के विरूद्ध)

 

1- जनरल मैनेजर, यूनियन बैंक आफ इण्डिया, 239 विधान भवन मार्ग मुम्‍बई।

2- रीजनल जनरल मैनेजर, रीजनल आफिस, 100 चन्‍द्रा निवास, टी. कालेज रोड, हुसैनाबाद, जौनपुर।

3- ब्रांच मैनेजर, यूनियन बैंक आफ इण्डिया, मेन ब्रांच, लाल बहादुर शास्‍त्री मार्ग, जौनपुर।

                                               अपीलार्थी/विपक्षीगण

                              बनाम 

मोहम्‍मद वकार मिर्जा, पुत्र श्री अहमद मिर्जा, प्रोपराइटर पॉपी प्‍लास्टिक इण्‍डस्‍ट्रीज, 179, ढ़ालगड़ टोला जौनपुर (यू0पी0)

                                                 .प्रत्‍यर्थी/परिवादी

मक्ष:-

 माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य

 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित :    कोई नहीं।

 

दिनांक: 13-09-2021

 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

                                                                                                     निर्णय

 

  प्रस्‍तुत अपील, परिवाद संख्‍या- 204/93 मोहम्‍मद वकार मिर्जा बनाम जनरल मैनेजर, यूनियन बैंक आफ इण्डिया व दो अन्‍य में विद्वान जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, जौनपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश

 

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दिनांक 14-07-1997 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

विद्वान जिला फोरम/आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न‍ आदेश पारित किया है:-

" परिवाद आं‍शिक रूप से डिक्री किया जाता है। परिवादी मु0 1000/-रू०स्‍टैम्‍प खर्च व मार्जिन मनी के रूप में पावेगा तथा परिवादी मानसिक व्‍यथा, शारीरिक कष्‍ट, दौड़धूप व सम्‍पर्क करने के पत्राचार और अधिवक्‍ता के माध्‍यम से उत्‍तर भेजने में तथा लोन निरस्‍त करने के परिणामस्‍वरूप हुई हानि के भुगतान के मद में कुल 5000/-रू० विपक्षी से पाने का अधिकारी है। उसी प्रकार परिवादी 10,000/-रू० बतौर एडवांस मेसर्स सिंह वेल्डिंग एण्‍ड इंजीनियरिंग वर्क्‍स को भेजा वह रकम तथा लोन में आंवटित किये जाने की तिथि से देयता की तिथि तक उस पर 12 प्रतिशत ब्‍याज सहित विपक्षी से पाने का अधिकारी है। उसी प्रकार परिवादी 4000/-रू० जो उसने बतौर एडवांस लखनऊ इलेक्ट्रिक कंम्‍पनी को दिया वह रकम तथा लोन निरस्‍त करने की तिथि से देयता की तिथि पर उस पर 12 प्रतिशत सैकड़ा सालाना ब्‍याज की दर से विपक्षी बैंक से पाने का अधिकारी है। परिवादी इस परिवाद का  वाद व्‍यय भी मु0 250/-रू० विपक्षी बैंक से प्राप्‍त करेगा। बैंक को आदेशित किया जाता है कि फोरम के आदेश पारित होने के तीन माह के अन्‍दर उपरोक्‍त सारी रकम परिवादी को अदा कर देवें।"

परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने विपक्षी बैंक से अंकन 1,50,000/-रू० लोन के लिए आवेदन किया था। महा प्रबन्‍धक जिला उद्योग केन्‍द्र जौनपुर ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी को सूचित किया कि अंकन

 

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88,000/-रू० टर्म लोन तथा 53,000/-रू० वर्किंग कैपिटल के रूप में स्‍वीकार किया गया है। मार्जिन मनी अल्‍पसंख्‍यक निगम से प्राप्‍त की गयी। यूनियन बैंक आफ इण्डिया जौनपुर ने दिनांक 14-08-92 को मेसर्स सिंह वेल्डिंग एण्‍ड इंजीनियरिंग वर्क्‍स कानपुर को  मैनुअल प्‍लाण्‍ट/ मशीनरी व अन्‍य उपकरण की आपूर्ति का आदेश दिया । इस कम्‍पनी द्वारा आपूर्ति से पूर्व अग्रिम रकम मांगी गयी। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने बैंक से अग्रिम धनराशि देने के लिए निवेदन किया परन्‍तु बैंक ने असमर्थता जाहिर की। तब प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने स्‍वयं अंकन 5000/-रू० की धनराशि दिया। परन्‍तु बैंक द्वारा दिनांक 28-06-1993 को सूचित किया गया कि चॅूकि लोन स्‍वीकृत हुए 6 माह से अधिक का समय व्‍यतीत हो चुका है जिसका प्रयोग नही किया गया है। इसलिए अब लोन जारी नहीं किया जाएगा। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने शाखा प्रबन्‍धक को दिनांक 07-07-93, दिनांक 09-07-93, एवं दिनांक 15-07-93 को पत्र लिखे और निर्णय पर पुन: विचार करने के लिए अनुरोध किया। परन्‍तु शाखा प्रबन्‍धक ने बदनियति से पुन: ऋण स्‍वीकृति का प्रार्थना पत्र मान लिया और नये सिरे से ऋण की प्रक्रिया प्रारम्‍भ कर दी और तरह-तरह की तकनी‍की आपत्तियां दर्ज कर दी। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने मशीन लगाने के लिए शेड की स्‍थापना के बजाए अपने निजी कमरे में ही मशीन लगाने का प्रस्‍ताव दिया। तब बैंक ने सामान आदि रखने के बारे में पूछा और उसे उलझाकर समय व्‍यतीत कर दिया और बदनियति से स्‍वीकृत ऋण दिनांक 10-08-1993 को निरस्‍त कर दिया।

विपक्षी बैंक का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने जिला उद्योग केन्‍द्र के समक्ष ऋण के लिए आवेदन प्रस्‍तुत किया था जो उत्‍तरदायी बैंक को प्रेषित किया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने कार्यस्‍थल के लिए लम्‍बाई चौड़ाई 40x15 फिट

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अंकित किया एवं भूमि स्‍वामी के रूप में अपना नाम बताया। मार्जिन मनी स्‍वीकृत होने के बावजूद  कार्यशाला भवन में बिजली के कनेक्‍शन आदि के पूर्ण होने के बाद ही ऋण का आवंटन किया जाना था। परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी की इस स्‍तर से औपचारिकताएं अधूरी रहीं। मार्जिन मनी प्राप्‍त करने में स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने देरी की। शीघ्र ही मार्जिन मनी प्राप्‍त होने की आशा में मेसर्स सिंह वेल्डिंग एण्‍ड इंजीनियरिंग वर्क्‍स कानपुर को मशीन उपकरण की आपूर्ति का आदेश दिया गया था। कार्यस्‍थल का निरीक्षण करने पर पाया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपने रिहायशी मकान के आंगन में एक टीनशेड  बनाएगा जबकि प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट में कार्यशाला भवन निर्मित अवस्‍था में होना प्रकट किया था। परन्‍तु यह जाहिर हुआ कि उसने कार्यशाला भवन की व्‍यवस्‍था नहीं की। मशीन स्‍थापित करने के लिए प्‍लटफार्म नहीं बनाया । विद्युत कनेक्‍शन प्राप्‍त नहीं किया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के निजी कमरे में मशीनरी स्‍थापित नहीं हो सकती थी, उद्योग प्रारम्‍भ नहीं हो सकता था। लाभ की कोई सम्‍भावना नहीं थी। ऋण की राशि असुरक्षित थी। इस परिस्थिति में प्रत्‍यर्थी/परिवादी की योजना में अव्‍यवहारिक एवं अलाभप्रद देखते हुए उ०प्र० अल्‍पसंख्‍यक वित्‍त एवं विकास निगम लि0 लखनऊ को मार्जिन मनी वापस कर दी गयी और वित्‍तीय सहायता का प्रस्‍ताव निरस्‍त कर दिया गया।

दोनों पक्षकारों के साक्ष्‍यों पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा उपरोक्‍त निर्णय/आदेश पारित किया गया है।

इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध यूनियन बैंक आफ इण्डिया तथा एक अन्‍य द्वारा अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गयी है कि जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध है। स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने

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मशीनरी स्‍थापित करने के लिए भवन की व्‍यवस्‍था नहीं की। प्‍लेटफार्म स्‍थापित नहीं किया, विद्युत कनेक्‍शन प्राप्‍त नहीं किया। उसके निजी कमरे में उद्योग स्‍थापित नहीं हो सकता था इसलिए ऋण निरस्‍त किया गया।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा को सुना गया। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।

पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि स्‍वयं जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में ऋण जारी करने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी को जब मुख्‍य अनुतोष प्राप्‍त करने के लिए स्‍वीकार्य है तब सम्‍भावित रूप से किसी प्रकार की आर्थिक क्षति की पूर्ति के रूप में धनराशि प्राप्‍त करने के लिए वह अधिकृत नहीं है। स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा ऋण प्राप्‍त करने के उद्देश्‍य एवं अपने कर्तव्‍यों का निर्वहन नहीं किया गया है। कार्यशाला स्‍थापित नहीं की गयी, प्‍लेटफार्म स्‍थापित नहीं किया गया,  विद्युत कनेक्‍शन प्राप्‍त नहीं किया गया। इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में ऋण राशि उन्‍मुक्‍त करने का कोई अवसर नहीं था। बैंक का दायित्‍व है कि वह यह सुनिश्चित करे की जो ऋण स्‍वीकृत किया जा रहा है उस ऋण से स्‍थापित होने वाले उद्योग में ऋण प्राप्‍तकर्ता को लाभ हो और उस लाभ की राशि में से ऋण बैंक को वापस चुकाया जा सकेगा। यदि बैंक के समक्ष यह स्थिति मौजूद नहीं है तब बैंक द्वारा किसी भी स्‍तर पर स्‍वीकृत ऋण को निरस्‍त किया जा सकता है। बैंक द्वारा ऋण निरस्‍त करके सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी है। इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति प्राप्‍त करने का अधिकारी नहीं है। अत: जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश  अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।

                    

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आदेश

प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्‍त किया जाता है।

      आशुलिपिेक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 (सुशील कुमार)                                            (राजेन्‍द्र सिंह)            

      सदस्‍य                                                          सदस्‍य

 

कृष्‍णा–आशु0

कोर्ट-2

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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