राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-६१२/२०१३
(जिला मंच, मऊ द्वारा परिवाद सं0-२३/२००७ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०६-०२-२०१३ के विरूद्ध)
ब्रान्च मैनेजर, यूनियन बैंक आफ इण्डिया, ब्रान्च उफरौली, जनपद-मऊ।
................. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
१. लाल चन्द निवासी मर्यादपुर, तहसील मधुबन, जिला मऊ।
.................. प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. मैनेजर/प्रौपराइटर, चन्द्रा आटोमोबाइल्स, जिला मऊ।
३. जयराम यादव एजेण्ट, एजेन्सी आयशर ट्रैक्टर, जिला मऊ (मृतक-डिलीटिड)।
४. फूल चन्द हरिजन साकिन प्यारेपुर, तहसील मधुबन जिला मऊ।
.................. प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-१ की ओर से उपस्थित :- श्री वीर राघव चौबे विद्वान अधिवक्ता।
शेष प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : २०-०३-२०२०.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, मऊ द्वारा परिवाद सं0-२३/२००७ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०६-०२-२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी ने दिनांक २५-१०-२००५ को एक आयशर ट्रैक्टर एक सिलेण्डर अपीलार्थी बैंक से ऋण लेकर प्रत्यर्थी सं0-२ के माध्यम से क्रय किया। उपरोक्त ट्रैक्टर की कीमत २,२०,०००/- रू० थी तथा ट्रैक्टर लेने के उपरान्त एक तोले का सोने का सिक्का परिवादी को मिलना था। परिवादी को ट्रैक्टर के साथ ट्रॉली लेने की आवश्यकता थी लिहाजा परिवादी ने अपीलार्थी बैंक से २,९५,०००/- रू० ऋण लेने के लिए प्रार्थना की थी। परिवादी अपनी इच्छानुसार ट्रैक्टर लेने के उपरान्त ट्रॉली खरीदता किन्तु अपीलार्थी तथा परिवाद के अन्य विपक्षीगण ने आपस में मिलजुल कर २,९५,०००/- रू० में केवल आयशर ट्रैक्टर एक सिलेण्डर दिया।
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शेष धनराशि परिवादी को वापस नहीं की। परिवादी को धोखधड़ी की नीयत से विश्वास में लेकर परिवादी से दस्तखत करने को कहा। उनके कहने पर जहॉं-जहॉं कहा परिवादी ने विश्वास पर दस्तखत कर दिए। अपीलार्थी ने सारा रूपया परिवाद के विपक्षी सं0-२ को दे दिया। जब विपक्षी सं0-२ ने परिवादी को उपरोक्त ट्रैक्टर दिया था तब उसका मीटर व बैटरी खराब थी। उसे बदलने के लिए परिवादी ने विपक्षी सं0-२ से कहा तो उसने हीला-हवाली करते हुए बदलने से इन्कार कर दिया। बैटरी व मीटर की कीमत ६७००/- रू० थी। अपीलार्थी तथा परिवाद के अन्य विपक्षीगण ने साज करके परिवादी से ७५,०००/- रू० अधिक ले लिया किन्तु परिवादी को ट्रॉली नहीं दी गई और न ही ट्रॉली का पैसा दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह भी कथन है कि अपीलार्थी तथा परिवाद के अन्य विपक्षीगण ने आपस में मिलकर ए0आर0टी0ओ0 कार्यालय में साजिश करके परिवादी के नाम के साथ रामबचन पुत्र दधिवल, चन्द्रदेव पुत्र संत एवं पवारू पुत्र बन्धन के नाम भी प्रश्नगत ट्रैक्टर के पंजीयन प्रमाण पत्र में दर्ज करा दिए। प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी अपीलार्थी से शेष रूपया वापस प्राप्त करने हेतु दौड़-भाग करता रहा तथा अपीलार्थी से हिसाब-किताब मांगा किन्तु अपीलार्थी ने कोई हिसाब-किताब नहीं दिया। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह भी कथन है कि सोने का सिक्का भी प्रत्यर्थी सं0-२ ने नहीं दिया जिसकी कीमत १२,०००/- रू० थी। प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार दौड़-धूप में परिवादी का २०,०००/- रू० का नुकसान हुआ। अत: परिवादी ने कथित रूप से ७५,०००/- रू० का अधिक भुगतान प्राप्त करने, सोने का सिक्का कीमती १२,०००/- रू० परिवादी को न देने, दौड़-धूप में हुए व्यय के २०,०००/- रू० कुल १,१३,७००/- रू० की बसूली हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया।
अपीलार्थी के कथनानुसार कुल २,९५,०००/- रू० का ऋण अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी तथा परिवाद के अन्य विपक्षीगण को प्रश्नगत आयशर ट्रैक्टर के क्रय हेतु तथा अन्य कृषि उपकरण के क्रय हेतु स्वीकृत किया गया। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि वादी जिस-जिस सामान का कोटेशन फर्म का प्रस्तुत करता है उसी के बाबत् बैंक ऋणी को अपनी शाखा पर सामान की जांच कर सन्तुष्ट होकर फर्म को भुगतान
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ऋणी से सन्तुष्टि प्रमाण पत्र लेने के बाद करता है। उसी प्रक्रिया के तहत ऋणी को ट्रैक्टर, सामान प्राप्त होने के बाद लिखित सन्तुष्टि प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद फर्म को भुगतान किया गया है। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि उपरोक्त ऋण की अदायगी में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दिनांक ०४-१०-२००७ को ०२.०० लाख रू० तथा दिनांक ३१-०३-२०१२ को १०,०००/- रू० का भुगतान किया गया। शेष बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। अत: परिवादी के विरूद्ध उक्त ऋण के सम्बन्ध में २,९६,९३७/- रू० की बसूली हेतु बसूली प्रमाण पत्र दिनांक ०५-१०-२०१२ को जारी किया गया।
प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा भी प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रत्यर्थी सं0-२ के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की पूर्ण सन्तुष्टि पर तथा उसके द्वारा सन्तुष्टि प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के उपरान्त परिवादी को ट्रैक्टर प्रदान किया गया। क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादी एवं अन्य सहऋणियों द्वारा आवेदन संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया गया, अत: सेल लैटर प्रत्यर्थी/परिवादी तथा अन्य आवेदनकर्ताओं के नाम जारी किया गया।
प्रश्नगत निर्णय में जिला मंच द्वारा यह मत व्यक्त किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा तथा अन्य सहआवेदनकर्ताओं द्वारा प्रश्नगत ट्रैक्टर के सन्दर्भ में सन्तुष्टि प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया था तथा ट्रैक्टर पूर्ण सन्तुष्टि में प्राप्त किया गया। प्रत्यर्थी सं0-२, ३ व ४ द्वारा सेवा में कोई कमी जिला मंच द्वारा नहीं मानी गई किन्तु जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा शपथ पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी का ऋण शासन द्वारा माफ किया जा चुका है। इस शपथ पत्र के खण्डन में कोई प्रतिशपथ पत्र प्रस्तुत न किए जाने के कारण परिवाद के कथनों पर विश्वास करते हुए जिला मंच द्वारा यह माना गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के ट्रैक्टर का कर्ज माफ हो गया। तद्नुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलार्थी बैंक को आदेशित किया गया कि वह परिवादी का ऋण माफ हो जाने के कारण उसके द्वारा जमा की गई धनराशि परिवादी को एक माह में वापस करे तथा उसके ट्रैक्टर के मूल कागजात वापस करे तथा क्षतिपूर्ति के रूप में २०,०००/- रू० अदा करे।
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अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्यर्थी सं0-१ के विद्वान अधिवक्ता श्री वीर राघव चौबे के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी सं0-२ व ४ की ओर से नोटिस की तामील के बाबजूद तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ। प्रत्यर्थी सं0-३ की मृत्यु हो जाने के उपरान्त अपीलार्थी के प्रार्थना पत्र पर अपील मेमो से उसका नाम डिलीट कर दिया गया।
अपीलार्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवाद के अभिकथनों में परिवादी द्वारा अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध कुछ अभिकथित नहीं किया गया है। परिवाद के अभिकथनों में परिवादी द्वारा यह अभिकथित नहीं किया गया है कि उसके द्वारा लिया गया ऋण शासन द्वारा माफ कर दिया गया है, अत: ऋण की अदायगी में किए गये भुगतान की वापसी का कोई अनुतोष नहीं चाहा गया है, इसके बाबजूद जिला मंच ने मात्र परिवादी के शपथ पत्र पर विश्वास करते हुए यह मान लिया कि प्रश्नगत ऋण माफ किया जा चुका है तथा परिवाद में इस सन्दर्भ में कोई अनुतोष नहीं मांगे जाने के बाबजूद प्रश्नगत ऋण के सन्दर्भ में परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि परिवादी को वापस किए जाने हेतु आदेश पारित किया गया। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रश्नगत ऋण के सन्दर्भ में कोई ऋण माफी योजना शासन द्वारा घोषित नहीं की गई है। परिवादी द्वारा लिया गया ऋण, ऋण माफी योजना वर्ष २००८ से आच्छादित भी नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय को उचित बताते हुए अपील निरस्त किए जाने की प्रार्थना की।
उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत निर्णय के विरूद्ध कोई अपील प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा योजित नहीं की गई है। प्रश्नगत निर्णय में प्रश्नगत वाहन के डीलर द्वारा की गई बिक्री में डीलर द्वारा सेवा में कोई त्रुटि न किया जाना माना गया है। परिवादी ने परिवाद के अभिकथनों में यह अभिकथित नहीं किया है कि परिवादी को दिया गया ऋण शासन
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द्वारा माफ किया जा चुका है और न ही उक्त ऋण के सम्बन्ध में परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि की वापसी का केाई अनुतोष मांगा गया है। जिला मंच ने मात्र परिवादी द्वारा प्रस्तुत किए गये शपथ पत्र के आधार पर जबकि इस सन्दर्भ में कोई अतिरिक्त साक्ष्य परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं की गई, यह मान लिया गया कि परिवादी को दिया गया ऋण शासन द्वारा माफ किया जा चुका है जबकि अपीलार्थी का यह स्पष्ट कथन है कि परिवादी को प्रदान किया गया ऋण शासन द्वारा माफ नहीं किया गया है। अपीलीय स्तर पर भी प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है िजससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि परिवादी को दिया गया ऋण शासन द्वारा माफ किया जा चुका है।
ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन न करते हुए तथा पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य का उचित परिशीलन न करते हुए त्रुटिपूर्ण पारित किए जाने के कारण अपास्त किए जाने योग्य है। अपील तद्नुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील, स्वीकार की जाती है। जिला मंच, मऊ द्वारा परिवाद सं0-२३/२००७ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०६-०२-२०१३ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.