Uttar Pradesh

StateCommission

A/2003/1125

Union Bank of India - Complainant(s)

Versus

Islamul Haq Siddiqi - Opp.Party(s)

Rajehs Chadha

28 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2003/1125
( Date of Filing : 02 May 2003 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Bank of India
A
...........Appellant(s)
Versus
1. Islamul Haq Siddiqi
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 28 Mar 2022
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1125/2003

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, संत रविदास नगर भदोही द्वारा परिवाद संख्‍या-134/2001 में पारित निर्णय दिनांक 25.03.2003 के विरूद्ध)

यूनियन बैंक आफ इंडिया भदोही ब्रांच, जिला संत रविदास नगर

यू0पी0 द्वारा सीनियर मैनेजर।                    .....अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम

 

1. मि0 इस्‍लामुल हक सिद्दीकी पुत्र स्‍व0 अली हुसैन सिद्दीकी निवासी

घामापुर तहसील भदोही जिला संत रविदास नगर यू0पी0। 

2.जोनल एकाउन्‍ट आफिसर, सेन्‍ट्रल रेलवे जबलपुर एम.पी.।

                                           ......प्रत्‍यर्थीगण/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित  : श्री राजेश चडढा, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   : श्री टी0एच0 नकवी, विद्वान  अधिवक्‍ता।

दिनांक 28.04.2022

मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.   परिवाद संख्‍या 134/2001 इस्‍लामुल हक सिद्दीकी बनाम शाखा प्रबंधक यूनियन बैंक आफ इंडिया में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 25.03.2003 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी बैंक को आदेशित किया गया है कि चेक की रशि रू. 856/- तथा बतौर क्षतिपूर्ति रू. 5000/- और परिवाद खर्च रू. 500/- अदा करें। बकाया राशि पर 6 प्रतिशत ब्‍याज अदा करने का भी आदेश दिया गया है।

2.   परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि विपक्षी संख्‍या 2 द्वारा दि. 09.01.98 को अंकन रू. 4356/- का चेक परिवादी को भेजा था, जो विपक्षी संख्‍या 1 के यहां संचालित खाता संख्‍या 8781 में दि. 22.01.98 को

-2-

जमा कर दिया गया। जब परिवादी इस पैसे को निकालने के लिए गया तब बताया गया कि अभी तक पैसा नहीं आया है। परिवादी से डुप्‍लीकेट चेक बनाने के लिए कहा गया, परन्‍तु विपक्षी संख्‍या 1 द्वारा बताया गया, चूंकि चेक दिया जा चुका है, इसलिए बतौर सबूत एक इन्‍डेमिनिटी बाण्‍ड व न अदायगी भुगतान प्रमाणपत्र चाहिए,‍ जिसको देने से इंकार कर दिया, इसलिए परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

3.   विपक्षी का कथन है कि परिवादी द्वारा जो चेक जमा किया गया था उसे संग्रह के लिए उसी दिन भेज दिया गया था, परन्‍तु चेक का भुगतान विपक्षी संख्‍या 1 को प्राप्‍त नहीं हुआ। जानकारी करने पर ज्ञात हुआ, चेक कोरियर द्वारा प्राप्‍त नहीं हुआ और रास्‍ते में खो गया है, डुप्‍लीकेट चेक जारी करने का अनुरोध किया गया, परन्‍तु परिवादी की लापरवाही के कारण डुप्‍लीकेट चेक जारी नहीं हुआ। परिवादी को दि. 24.02.99 को अंकन रू. 2500/- ससपेन्‍ट एकाउन्‍ट से दिया गया और अनुरोध किया गया कि डुप्‍लीकेट चेक जमा कराएं, परन्‍तु अग्रिम दी गई राशि को हड़पने के लिए मुकदमा कर दिया गया।

4.   दोनों पक्षकारों के साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि चूंकि अंकन रू. 4356/- का चेक जमा होना स्‍वीकार है, इसलिए बकाया राशि परिवादी को अदा की जाए। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित आदेश पारित किया गया।

5.   इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्‍ता मंच ने चूंकि परिवादी को रू. 3500/- अग्रिम दी जा चुकी है, परन्‍तु उसने डुप्‍लीकेट चेक विपक्षी संख्‍या 2 से प्राप्‍त कर बैंक को जमा नहीं किया है, इसलिए उसे किसी प्रकार की क्षति कारित नहीं हुई है और परिवादी

-3-

पर सेवा में कोई कमी नहीं की गई है, इसलिए जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय अपास्‍त होने योग्‍य है।

6.   दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्‍ताओं को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली का अवलोकन किया गया।

7.   संपूर्ण पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है‍ कि यथार्थ में बैंक की लापरवाही के कारण परिवादी द्वारा जमा किया गया चेक खो गया, परन्‍तु चेक खो जाने का तात्‍पर्य यह नहीं है कि बैंक में उस राशि को जमा मान लिया जाए, जिसका चेक में उल्‍लेख है, क्‍योंकि यथार्थ में चेक में वर्णित राशि कभी भी बैंक को प्राप्‍त नहीं हुई, अत: इस स्थिति के निराकरण के लिए आवश्‍यक था कि यह आदेश पारित किया जाता कि विपक्षी संख्‍या 2 परिवादी के पक्ष में डुप्‍लीकेट चेक जारी कर परिवादी इस डुप्‍लीकेट चेक को विपक्षी संख्‍या 1 के संचालित खाते में जमा कराए और तब विपक्षी संख्‍या 1 इस राशि का संग्रह कर परिवादी के खाते में जमा करे, परन्‍तु कदाचित रूप से यह आदेश नहीं दिया जा सकता, चेक में संपूर्ण वर्णित राशि विपक्षी संख्‍या 1 द्वारा परिवादी को अदा कर दिया जाए, अत: जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध है, जो इस प्रकार संशोधित होने योग्‍य है, जैसाकि ऊपर उल्‍लेख किया गया है।

आदेश

8.   अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि सर्व प्रथम अपीलार्थी इस आशय का प्रमाणपत्र विपक्षी संख्‍या 1 के समक्ष प्रस्‍तुत करेंगे कि प्रश्‍नगत चेक में वर्णित राशि का संग्रह कभी भी नहीं किया जा सके। इसके बाद विपक्षी संख्‍या 2 एक डुप्‍लीकेट चेक परिवादी के पक्ष में जारी

 

-4-

करेंगे। परिवादी इस चेक को प्राप्‍त कर विपक्षी संख्‍या 1 के यहां संचालित अपने खाते में जमा कराएंगे तब विपक्षी संख्‍या 1 इस राशि का भुगतान परिवादी को करेंगे और चूंकि परिवादी को पीड़ा उत्‍पन्‍न हुई है तथा जो परिवाद प्रस्‍तुत करना पड़ा उस मद में परिवादी को रू. 5000/- के स्‍थान पर रू. 2500/- की राशि देय होगी।

     उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

     आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की

वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

         

       (राजेन्‍द्र सिंह)                      (सुशील कुमार)                                                                                                                                                 सदस्‍य                             सदस्‍य

निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

        (राजेन्‍द्र सिंह)                        (सुशील कुमार)                                                                                                                                                  सदस्‍य                             सदस्‍य         

राकेश, पी0ए0-2

कोर्ट-2

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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