राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-277/2022
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या 188/2016 में पारित आदेश दिनांक 26.02.2022 के विरूद्ध)
काजी मुहम्मद अतीक, निवासी- 13-वी नाथमल पुर, मौलाना आजाद गर्ल्स स्कूल रोड, गोरखपुर
........................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1. जनरल मैनेजर, पी एण्ड एचआर डिपार्टमेन्ट आफ पर्सनल (ई0आर0डी0) यूनियन बैंक आफ इण्डिया, सेन्ट्रल आफिस, 239, विधान सभा मार्ग, नरीमन प्वाइन्ट, मुम्बई-400021
2. सी0ई0ओ0 एण्ड मैनेजिंग डायरेक्टर, यूनियन बैंक आफ इण्डिया, सेन्ट्रल आफिस, 239, विधान सभा मार्ग, नरीमन प्वाइन्ट, मुम्बई-400021
...................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री काजी मुहम्मद अतीक, स्वयं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 06.05.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी काजी मुहम्मद अतीक द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या-188/2016 काजी मुहम्मद अतीक बनाम जनरल मैनेजर पी एण्ड एचआर, डिपार्टमेन्ट आफ पर्सनल, यूनियन बैंक आफ इण्डिया व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.02.2022 के विरूद्ध योजित की गयी।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी, प्रत्यर्थी/विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया में सेवारत था, जिसने दिनांक 18.09.1984 को लिपिक कैडर में उपरोक्त प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक में कार्यभार ग्रहण किया, तदोपरान्त माह मई, 2001 में
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अपीलार्थी/परिवादी की पदोन्नति अधिकारी के पद पर हुई तथा उसकी तैनाती ब्रांच मैनेजर, खैराबाद ब्रांच, जिला मऊ में हुई जहॉं माह जुलाई 2007 में उसके द्वारा उपरोक्त ब्रांच के ब्रांच मैनेजर के रूप में पदभार गहण किया गया। उपरोक्त बैंक शाखा में अनेकों अव्यवस्था एवं अनैतिक कार्य किये गये, जिसके सम्बन्ध में अपीलार्थी/परिवादी के विरूद्ध प्रशासनिक कार्यवाही की गयी तथा उक्त कार्यवाही के अन्तर्गत प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी को अनिवार्य सेवा-निवृत्त किया गया। उपरोक्त अनिवार्य सेवा-निवृत्त किये जाने की तिथि दिनांक 19.05.2011 सुनिश्चित की गयी, जिसके विरूद्ध अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अपील प्रस्तुत की गयी, जो उसके विरूद्ध निर्णीत हुई। तदोपरान्त माननीय उच्च न्यायालय, लखनऊ बेंच, इलाहाबाद के सम्मुख रिट याचिका योजित की गयी, जो अन्ततोगत्वा निरस्त की गयी, जिसके विरूद्ध विशेष अपील दाखिल की गयी है, जो लम्बित है।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपने परिवाद पत्र में निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने की प्रार्थना की:-
“I, therefore, humbly prayed with this Hon’ble Authority may kindly be passed an order for payment of interest @18% on the amount of arrear of pension Rs. 15,40,241/- paid to me from the date it has become due i.e. form 16.05.2011 till the date of actual payment made with compounding interest for delayed period and till the date of judgment of the case and cost.”
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों को विस्तृत रूप से अध्ययन करने के उपरान्त समस्त तथ्यों की सार्थक विवेचना करते हुए एवं विभिन्न न्याय निर्णयों का हवाला देते हुए अपीलार्थी/परिवादी द्वारा मांगे गये
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अनुतोष/प्रार्थना को अस्वीकार किया, साथ ही विद्वान जिला उपभोक्त आयोग द्वारा सेवा से सम्बन्धित समस्त शासनादेश एवं तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए यह पाया कि सरकारी सेवक कदापि उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं वर्णित हो सकता है, जैसा कि धारा-2 (1) (d) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में वर्णित है। यह भी तथ्य सुसंगत रूप से वर्णित किया कि जहॉं तक सेवा की शर्त का प्रश्न है अर्थात् ग्रेच्युटी, जी0पी0एफ0 और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ हेतु व उस पर अर्जित ब्याज आदि के लिए अपीलार्थी/परिवादी विधि पूर्ण कार्यवाही समुचित एवं सम्बन्धित न्यायालय में कर सकता है न कि अन्तर्गत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 ।
मेरे द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को विस्तृत रूप से सुना, परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों का परिशीलन किया तथा प्रस्तुत अपील में वर्णित तथ्यों का परिशीलन किया।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अपील पत्रावली के पृष्ठ 29 की ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया, जो कि DISCIPLINARY AUTHORITY द्वारा पारित आदेश मई 16, 2011 की छायाप्रति है, जिसमें निम्न तथ्य अंकित किये गये हैं:-
“MAJOR PENALTY OF COMPULSORY RETIREMENT FROM THE SERVICES OF THE BANK WITH IMMEDIATE EFFECT BE AND IS HEREBY IMPOSED ON SHRI Q.M.ATTEQ.”
उपरोक्त कथन के समर्थन में अपीलार्थी/परिवादी द्वारा किसी प्रकार का कोई सम्यक उत्तर अथवा स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया जा सका, न ही उनके द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में किसी प्रकार की विधिक त्रुटि ही इंगित की जा सकी।
समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत अपील निष्प्रयोज्य है, अतएव प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1