(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 3158/1998
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद सं0- 82/1995 में पारित निर्णय और आदेश दि0 16.10.1998 के विरूद्ध)
Union of India, the owner of the North Eatsern Railway and Central Railway of India.
………..Appellant
Versus
1. Dr. M.K. gupta aged about 49 years & Maruti gupta aged about 18 years S/o Shri M.K. gupta resident of B-51 Sector B Aliganj Lucknow-20
………..Respondent
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री एम0एच0 खान,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : सुश्री अल्का सक्सेना,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 02.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 82/1995 एम0के0 गुप्ता बनाम नार्थ इस्टर्न रेलवे में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 16.10.1998 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है, जिसके द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, लखनऊ ने परिवाद के विपक्षी को निर्देशित किया है कि 2,000/-रू0 तथा इस धनराशि पर 02 प्रतिशत प्रति मास की दर से ब्याज अदा करे।
2. प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने दि0 23.08.1994 को झांसी से पुणे जाने के लिए दो बर्थ का आरक्षण स्लीपर श्रेणी में कराया था, परन्तु ट्रेन में वह डिब्बा नहीं लगाया गया जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी का आरक्षण किया गया था, इसलिए साधारण डिब्बे में यात्रा करनी पड़ी और मानसिक व शारीरिक कष्ट उठाना पड़ा।
3. अपीलार्थी/विपक्षी का कथन है कि गाड़ी दिल्ली से चलती है तकनीकी कारणों से डिब्बा नहीं लगाया गया और झांसी स्टेशन पर विधिवत घोषणा कर दी गई थी। कोच लगाने या आरक्षित बर्थ लगाने की कोई गारण्टी रेलवे विभाग नहीं लेता है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, लखनऊ ने प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया जिससे इन आधारों पर यह चुनौती दी गई है कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरुद्ध है। रेलवे एक्ट के अंतर्गत निर्मित किए गए नियम 306 के अनुसार जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद संधारणीय नहीं है।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता एम0एच0 खान और प्रत्यर्थी की विद्वान अधिवक्ता सुश्री अल्का सक्सेना को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
6. प्रस्तुत केस में रेलवे एक्ट के अंतर्गत निर्मित टेरिफ नियम 306 इस आधार पर लागू नहीं होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा रिफण्ड की मॉंग नहीं की गई है, क्योंकि उनके द्वारा आरक्षित सीट होने के बावजूद सामान्य श्रेणी में यात्रा की गई है। उनके द्वारा केवल शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना के लिए प्रतिकर की मॉंग की गई है। अपीलार्थी/विपक्षी को यह तथ्य स्वीकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा टिकट बुक कराया गया और प्रश्नगत तिथि पर वह स्लीपर कोच नहीं लगाया गया जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी का टिकट बुक था। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, लखनऊ के निर्णय एवं आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। सिवाय इसका ब्याज दो प्रतिशत प्रति मासिक की दर से दिया गया है जो प्रति मास के हिसाब से 24 प्रतिशत वार्षिक होता है जो अत्यधिक है। अत: ब्याज की राशि इस रूप में परिवर्तित होने योग्य है कि परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक उपरोक्त राशि पर 06 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज देय होगा। अत: अपील अंशत: स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
7. अपील अंशत: स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश इस रूप में परिवर्तित किया जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को देय राशि अंकन 2000/-रू0 पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अन्तिम अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज देय होगा।
8. अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2