(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1933/2015
चन्द्र भूषण पाण्डेय उम्र लगभग 48 वर्ष पुत्र श्री दया शंकर पाण्डेय साकिन अहिरौली पोस्ट-पनीचा, परगना खरीप, जिला बलिया।
........अपीलार्थी
बनाम
1. महाप्रबंधक, सेन्ट्रल रेलवे (सी0आर0), मुम्बई, बी0टी0 मुम्बई।
2. एन0ई0 रेलवे बलिया, महाराष्ट्र, सी0एस0 प्रथम।
..........प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 16.11.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 105/2009 चन्द्र भूषण पाण्डेय बनाम महाप्रबंधक, सेन्ट्रल रेलवे (सी0आर0) मुम्बई, बी0टी0 मुम्बई व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, बलिया द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 24.06.2015 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा रेलवे विभाग को शिकायत नहीं की गई और आरक्षण फार्म नष्ट हो चुका है।
3. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने विधि विरुद्ध निर्णय पारित किया है। अपीलार्थी/परिवादी एयरफोर्स में सेवारत रहा। वारण्ट पर पुणे महाराष्ट्र से बलिया के लिए दि0 19.05.2007 के लिए टिकट आरक्षित कराया था। पुणे से कल्याण के लिए ट्रेन सं0- 1014 में अपीलार्थी/परिवादी की पत्नी तथा चार बच्चों को सीट प्राप्त हुई थी। मुजफ्फर एक्सप्रेस में इसी तिथि के लिए बलिया की यात्रा हेतु सीट आरक्षित थी, परन्तु आरक्षण चार्ट पर दि0 19.05.2007 के स्थान पर दि0 19.03.2007 अंकित था। शिकायत पर बुकिंग क्लर्क ने कहा कि टिकट ठीक हो गया है और जब अपीलार्थी/परिवादी अपने परिवार के साथ ट्रेन में यात्रा करने के लिए चढ़ा तो टी0टी0 ने रोका और कोच पर चढ़ने नहीं दिया तब अपीलार्थी/परिवादी द्वारा सामान्य टिकट लेकर यात्रा की गई जिसके अनुसार यह तथ्य साक्ष्य से साबित था, परन्तु विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अवैध रूप से परिवाद खारिज कर दिया गया।
4. केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
5. अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद में वर्णित तथ्यों के समर्थन में अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया तथा यात्रा से सम्बन्धित टिकट की फोटो प्रति शपथ पत्र के साथ प्रस्तुत की, जिनके अवलोकन से जाहिर होता है कि ट्रेन सं0- 1014 में पुणे से कल्याण जंक्शन के लिए अपीलार्थी/परिवादी उनकी पत्नी तथा चार बच्चों को आरक्षित टिकट जारी किया गया। इसी तिथि को अपीलार्थी/परिवादी द्वारा कल्याण से बलिया के लिए गाड़ी सं0- 1061 में यात्रा करनी थी, परन्तु आरक्षण क्लर्क द्वारा दि0 19.05.2007 के स्थान पर दि0 19.03.2007 की तिथि अंकित कर दी गई। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने इस परिस्थिति पर कोई विचार नहीं किया कि एयरफोर्स से काम के लिए आने वाला कोई व्यक्ति पुणे से कल्याण के लिए दि0 19.05.2007 को बलिया तक की यात्रा के लिए टिकट बुक कराया तब गाड़ी सं0- 1061 में दि0 19.05.2007 के स्थान पर दि0 19.03.2007 किए गए हैं और किन परिस्थितियों में अंकित हो सकते हैं। यह कार्य केवल कम्प्यूटर लिपिक की लिपिकीय त्रुटि के कारण ही सम्भव हो सकता है, अन्यथा नहीं। अपीलार्थी/परिवादी ने इस तथ्य को शपथ पत्र से साबित किया है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष किसी तथ्य को साबित करने के लिए शपथ पत्र का प्रस्तुत करना भी पर्याप्त है जब कि प्रस्तुत केस में अपीलार्थी/परिवादी द्वारा शपथ पत्र के साथ दोनों टिकट की प्रतियां भी दाखिल की गई हैं। आरक्षण आवेदन को प्रस्तुत करने का दायित्व प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण पर था न कि अपीलार्थी/परिवादी पर। यदि प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण द्वारा आरक्षण आवेदन विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया तब भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के अंतर्गत उपधारणा की जानी चाहिए थी कि यदि आरक्षण आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाता तब वह प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण के खिलाफ होता। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश मात्र सम्भावना एवं कल्पना पर आधारित है जो अपास्त होने योग्य है।
6. अब इस बिन्दु पर विचार किया जाना है कि अपीलार्थी/परिवादी को पहुंची शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक क्षति के लिए किस राशि का प्रतिकर प्रदान किया जाए। इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि अपीलार्थी/परिवादी एयरफोर्स में सेवारत है। वह अपनी पत्नी व चार बच्चों के साथ बलिया के लिए यात्रा कर रहा था। कल्याण से बलिया तक गैर आरक्षित सीट पर यात्रा करना कितना पीड़ादायक हो सकता है। इसकी केवल कल्पना की जा सकती है। अपीलार्थी/परिवादी इस देश की सेवा की सुरक्षा में कार्यरत सैनिक है। अत: अपीलार्थी/परिवादी को अपने परिवार के साथ गैर आरक्षित सीट पर यात्रा करने में अत्यधिक मानसिक वेदना एवं पीड़ा का अनुभव हुआ है। इसलिए अपीलार्थी/परिवादी को मानसिक, शारीरिक पीड़ा एवं वेदना के मद में अंकन 60,000/-रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 6,000/-रू0 प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण से दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
7. अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि अपीलार्थी/परिवादी को मानसिक, शारीरिक पीड़ा एवं वेदना के मद में अंकन 60,000/-रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 6,000/-रू0 अदा करें।
उक्त आदेश का अनुपालन 30 दिन के अन्दर सुनिश्चित किया जाए, अन्यथा 30 दिन की अवधि के बाद उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अन्तिम अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देय होगी।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2