राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-274/2019
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 82/2017 में पारित आदेश दिनांक 01.11.2018 के विरूद्ध)
Union Bank of India, Branch Itauri bazaar Jaunpur (U.P.) through its Branch Manager, Abhay Shankar.
..................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Bhavnath singh s/o udaybhan singh, sakin mauja: Hadhi, Post Sonikpur, P.s: Sarai Khwaja Tahseel: Shahganj, district: Jaunpur (U.P.)
...................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री शक्ति कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री विजय विक्रम,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 16.01.2020
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-82/2017 भवनाथ सिंह बनाम महाप्रबन्धक यूनियन बैंक भवन 239 विधान भवन मार्ग नरीमन प्वाइन्ट मुम्बई व तीन अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, जौनपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 01.11.2018 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवाद संख्या 82/2017 भवनाथ सिंह बनाम महाप्रबन्धक
-2-
यूनियन बैंक इस प्रकार निस्तारित किया जाता है कि परिवादी विपक्षीगण बैंक से संयुक्त एवं पृथक रूप से जमा की गई प्रश्नगत धनराशि कुल मु0 5,68,000रू0 एवं उस पर जमा करने की भिन्न-भिन्न तिथियो के अनुसार वास्तविक भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित पाने का मुस्तहक है।
इसके अतिरिक्त परिवादी विपक्षीगण से संयुक्त एवं पृथक रूप से शारीरिक मानसिक कष्ट मद में मु0 8,000रू0 एवं वादब्यय के रूप में मु0 1000रू0 अर्थात् 9,000रू0 भी क्षतिपूर्ति के रूप में भी पाने का मुस्तहक है।
विपक्षीगण बैंक को आदेश दिया जाता है कि उपरोक्त अज्ञप्तशुदा धनराशि एक माह के अन्दर परिवादी को भुगतान किया जाना सुनिश्चित करे।
यदि एक माह के अन्दर विपक्षीगण बैंक द्वारा उपरोक्त अज्ञप्तशुदा धनराशि का भुगतान नही किया जाता है तो क्षतिपूर्ति की धनराशि मु0 9,000रू0 पर भी निर्णय की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज देय होगा।''
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया, ब्रांच इटौरी बाजार जौनपुर की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री शक्ति कुमार शर्मा और प्रत्यर्थी की ओर से
-3-
विद्वान अधिवक्ता श्री विजय विक्रम उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से लिखित तर्क प्रस्तुत किया गया है। मैंने लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के महाप्रबन्धक, जनरल मैनेजर, क्षेत्रीय प्रबन्धक और शाखा प्रबन्धक के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विभिन्न तिथियों में उसने अपने चालू खाता संख्या-415902010003230 में कुल 5,68,000/-रू0 जरिया रसीद विपक्षी संख्या-4 बृजनन्दन गुप्ता, शाखा प्रबन्धक एवं उनके कर्मचारियों पर विश्वास करते हुए उनकी शाखा में विभिन्न तिथियों में जमा किया था, जिसका विवरण निम्न है:-
दिनांक | खाता संख्या | जमाराशि | जमाकर्ता |
27.09.2014 | 415902010003230 | 50,5000/- | भवनाथ सिंह |
20.10.2014 | | 26,000/- | |
19.12.2014 | | 20,000/- | |
26.12.2014 | | 50,000/- | |
13.01.2015 | | 35000/- | |
12.02.2015 | | 1,30,000/- | |
-4-
10.03.2015 | | 10000/- | |
06.04.2015 | | 40,000/- | |
31.12.2015 | | 60,000/- | |
12.01.2016 | | 27,000/- | |
01.02.2016 | | 63,000/- | |
04.04.2016 | | 57,500/- | |
अफवाहन जब उसे पता चला कि विपक्षीगण के बैंक में जमा धनराशि का गबन किया गया है तब उसने अपनी पासबुक को अपडेट करने हेतु बैंक की विपक्षी संख्या-4 की शाखा में दिया तब विपक्षी संख्या-4 शाखा प्रबन्धक ने हीला हवाली करने के बाद पासबुक में प्रविष्टि किया, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी को पता चला कि रसीदों के अनुसार सम्पूर्ण धनराशि जमा नहीं की गयी है। तब अपने खाते का स्टेटमेन्ट प्राप्त करने के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी ने बैंक को सूचना दिया, परन्तु बैंक द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया और न ही प्रश्नगत धनराशि उसके खाते में जमा की गयी। अत: क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या-4 अपीलार्थी बैंक के शाखा प्रबन्धक ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है और न ही परिवाद हेतु कोई वाद हेतुक उत्पन्न हुआ है। लिखित कथन में कहा गया है कि दिनांक 22.09.2014 को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा
-5-
40,000/-रू0 जमा किया गया है और 10,000/-रू0 निकाला गया है। दिनांक 27.09.2014, 20.10.2014, 19.12.2014 एवं 26.12.2014 को कोई धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में बैंक के अभिलेखों के अनुसार जमा नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या-4 अपीलार्थी बैंक के शाखा प्रबन्धक ने कहा है कि दिनांक 13.01.2015 को 35,000/-रू0, दिनांक 22.02.2015 को 1,30,000/-रू0, दिनांक 10.03.2015 को 10,000/-रू0, दिनांक 06.04.2015 को 4000/-रू0 और दिनांक 31.12.2015 को 60,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी ने जमा नहीं किया है। इन तिथियों में यह धनराशि जमा करने का प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन गलत है। लिखित कथन में कहा गया है कि दिनांक 12.01.2016, 01.02.2016 और 04.04.2016 को भी प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित धनराशि जमा नहीं की गयी है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों
पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 5,68,000/-रू0 की धनराशि अपने खाते में जमा की है, जिसे विपक्षी बैंक ने उसके खाते में जमा न कर सेवा में कमी की है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी माना है कि परिवाद पत्र में कथित विवाद उपभोक्ता विवाद है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य है। अत: जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है। अत: जिला
-6-
फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी बैंक ने अपने ब्रांच आफिस के कर्मचारी के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 10.04.2017 को दर्ज करायी है। प्रथम सूचना रिपोर्ट की जानकारी होने पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह परिवाद गलत कथन के आधार पर प्रस्तुत किया है, जो कालबाधित है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की कथित धनराशि बैंक में जमा नहीं है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई धनराशि अदा करने हेतु बैंक उत्तरदायी नहीं है। जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है और निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी बैंक में प्रश्नगत धनराशि जमा की है और उसकी रसीद प्रस्तुत किया है, परन्तु अपीलार्थी बैंक के कर्मचारी शाखा प्रबन्धक ने यह धनराशि उसके खाते में बैंक में जमा नहीं की है और उसका अपयोजन किया है। बैंक अपने कर्मचारी या शाखा प्रबन्धक द्वारा किये गये कृत्य हेतु वाइकेरियस लाइबिल्टी के सिद्धान्त पर उत्तरदायी है। जिला फोरम का निर्णय तथ्य और विधि के अनुकूल है और उसमें किसी हस्तक्षेप की
-7-
आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभय पक्ष के तर्क के बाद अपीलार्थी बैंक के शाखा प्रबन्धक श्री अभय शंकर ने शपथ पत्र के साथ प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रश्नगत खाता का स्टेटमेन्ट प्रस्तुत किया है। शपथ पत्र में यह भी कहा है कि अपीलार्थी बैंक की शाखा के कर्मचारी बृजेश कुमार के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही की जा रही है और उन्हें निलम्बित कर चार्जशीट दी जा चुकी है। शपथ पत्र के साथ श्री बृजेश कुमार के विरूद्ध पुलिस में दर्ज कराई गयी प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति भी प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रस्तुत बैंक एकाउन्ट स्टेटमेन्ट से स्पष्ट है कि प्रश्नगत धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाता में जमा नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने प्रश्नगत धनराशि बैंक में जमा किया है, परन्तु बैंक के कर्मचारी ने प्रश्नगत धनराशि उसके एकाउन्ट में जमा न कर उसका अपयोजन किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने सभी 12 प्रश्नगत जमा धनराशि की जमा पर्ची मूल रूप से जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है। बैंक के तत्कालीन शाखा प्रबन्धक, कैशियर या अन्य कर्मचारी का शपथ पत्र प्रस्तुत कर जमा पर्ची पर उनके हस्ताक्षर से इन्कार नहीं किया गया है। अत: परिवाद पत्र एवं परिवादी के शपथ पत्र व प्रस्तुत जमा पर्चियों पर विश्वास न करने का उचित कारण नहीं है।
अपीलार्थी बैंक की प्रश्नगत शाखा के कैशियर के विरूद्ध खाता
-8-
धारक की जमा धनराशि का गबन करने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करायी गयी है, जिसमें कैशियर के विरूद्ध यह आरोप है कि उसने खाता धारक द्वारा दी गयी धनराशि उसके बैंक खाता में जमा न कर उसका अपयोजन किया है। अपीलार्थी बैंक की ओर से प्रस्तुत अभिलेखों से भी स्पष्ट है कि कैशियर बृजेश कुमार के विरूद्ध उपरोक्त के सम्बन्ध में विभागीय कार्यवाही भी की जा रही है।
उपरोक्त विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने खाता में प्रश्नगत धनराशि जमा किया जाना साबित किया है। जिला फोरम का यह निष्कर्ष कि यह धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बैंक में जमा किया जाना साबित है, साक्ष्य की सही विवेचना पर आधारित है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसे पता चला कि बैंक कर्मी द्वारा जमा धनराशि का गबन किया गया है तब उसने अपनी पासबुक अपडेट करने हेतु बैंक में प्रस्तुत किया और बैंक द्वारा पासबुक अपडेट करने पर प्रश्नगत जमा धनराशि उसके खाता में जमा न होने की जानकारी उसे हुई। तब उसने बैंक को सूचना दिया है और परिवाद प्रस्तुत किया है।
बैंक कर्मचारी द्वारा जमा धनराशि जमा पर्ची के माध्यम से प्राप्त करने के बाद जमा धनराशि की प्रविष्टि उसी समय पासबुक में न किया जाना अपने आप में बैंक की सेवा में कमी है। जमा पर्ची के माध्यम से बैंक में धनराशि जमा करने पर उसी समय
-9-
जमा धनराशि की प्रविष्टि पासबुक में बैंक कर्मी द्वारा न किये जाने की शिकायत खाता धारक द्वारा न किये जाने का उचित कारण है। खाता धारक को बैंक पर विश्वास होता है और उसकी जमा पर्ची जमा का प्रमाण उसके पास होता है।
बैंक अपने कर्मचारी के कृत्य हेतु Vicarious Liability के सिद्धान्त पर उत्तरदायी है।
गीता जेठानी आदि बनाम एयरपोर्ट अथार्टी आफ इण्डिया आदि III (2004) C.P.J. 106 N.C. के निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने कहा है कि Pendency of criminal case is no bar for complaint under Consumer Protection Act 1986. माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश निम्न है;
“For the same reason, we also reject the contention raised by the learned Counsel for the AAI that as the criminal matter is pending before the Additional Chief Metropolitan Magistrate, Patiala House, these proceedings may not be adjudicated. In our view, criminal proceedings are to be decided on the basis of the Evidence Act as well as procedural laws, such as, Criminal Procedure Code and other such relevant provisions. Standard of proof is altogether different in criminal matters. The judgment in these proceedings, qua deficiency in service rendered by the AAI, is not
-10-
binding in criminal prosecution.”
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर जो आदेश पारित किया है, वह उचित है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपील सव्यय निरस्त की जाती है। अपीलार्थी, प्रत्यर्थी/परिवादी को 10,000/-रू0 अपील व्यय भी अदा करेगा।
अपीलार्थी की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1