जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 869/2011
श्री अरूण गुप्ता, आयु लगभग 55 वर्ष,
पुत्र स्व0 श्री श्याम नारायण गुप्ता,
निवासी- 08ए, क्लेस्क्वायर,
जिला लखनऊ। ......... परिवादी
बनाम
1. बैंक आॅफ इंडिया,
शाखा नवल किशोर रोड,
हजरतगंज, लखनऊ।
द्वारा शाखा प्रबंधक।
2. बैंक आॅफ इंडिया (मुख्यालय),
स्टार हाउस सी0-050 जी0 ब्लाक,
वान्द्रा कुर्ला काम्पलेक्स ईस्ट।
द्वारा प्रभारी अधिकारी मुम्बई-400051
3. बैंक आॅफ इंडिया,
स्टार हाउस, विभूति खंड,
गेमती नगर, लखनऊ।
द्वारा जोनल अधिकारी।
4. भारतीय जीवन बीमा निगम लि0,
बाॅसी, सिद्धार्थनगर, उ0प्र0। ..........विपक्षीगण
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
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निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी सं01 से रू.19,159.00 मय ब्याज, मानसिक क्षति के रूप में रू.3,00,000.00 व वाद व्यय के रूप में रू.1,50,000.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में परिवादी का कथन है कि उसके पक्ष में विपक्षी सं0 4 द्वारा एक चेक रू.19,159.00 का परिवादी की पाॅलिसी के विरूद्ध सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया का दिया गया था। परिवादी ने उपरोक्त चेक बैंक स्लिप के माध्यम से दिनांक 13.01.2010 को विपक्षी सं0 1 के यहां अपने खाते में जमा करने हेतु, जमा किया था ताकि परिवादी के खाते में चेक की धनराशि सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया से अंतरित होकर परिवादी के खाते में जमा हो सके। दिनांक 13.01.2010 से परिवादी द्वारा जमा की गयी चेक की धनराशि परिवादी के खाते में आज तक जमा नहीं हो सकी है। परिवादी ने समय-समय पर दिनांक 14.02.2011, 28.02.2011 तथा 04.03.2011 को विपक्षी सं0 1 को प्रार्थना पत्र दिये, किंतु विपक्षी सं0 1 द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया और न ही किसी पत्र का उत्तर दिया गया जो बैंकिंग सेवा की नियमावली का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। परिवादी ने विपक्षी सं0 4 के कार्यालय में जाकर परिवादी ने व्यक्तिगत संपर्क किया तथा लिखित प्रार्थना पत्र दिया कि चेक सं.816765 दिनांक 22.01.2010 को सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया से आहरण हो चुका है जिसकी पुष्टि स्वयं संबंधित बैंक से कर ली गयी है। विपक्षी सं0 1 की ओर से कोई भी पुष्टि या उत्तर परिवादी को अब तक नहीं दिया गया कि उक्त चेक दिनांक 22.01.2010 को डेबिट होने के उपरांत सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया, लखनऊ से वापस मिला अथवा नहीं तथा किन परिस्थितियों में उक्त चेक की धनराशि परिवादी के खाते में क्यों नहीं जमा किया और न ही उक्त चेक परिवादी को वापस ही मिला, अतः यह चेक
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परिवादी द्वारा बैंक में जमा किये जाने के बाद दिनांक 13.01.2010 के बाद कहां गयी। विपक्षी सं0 1 एक बैंक है तथा विपक्षी सं0 2 व 3 उनके नियंत्रक अधिकारी है और प्रस्तुत प्रकरण की जानकारी विपक्षी सं0 3 को भी मौखिक रूप से दी गयी जिस पर केवल यही आश्वासन दिया गया कि कुछ दिन बाद उसका कार्य हो जायेगा। विपक्षी सं0 4 के विरूद्ध परिवादी का कोई क्लेम नहीं है केवल यह चेक परिवादी के पक्ष में निर्गत किया गया है तथा उनकी बैंक सेन्ट्रल बैंक लखनऊ से डेबिट हो गया है तथा इस तथ्य को सिद्ध करने हेतु परिवादी द्वारा पक्षकार बनाया गया है। परिवादी द्वारा दिनांक 13.01.2010 से अब तक निरंतर पत्र व्यवहार एवं व्यक्तिगत संपर्क किया गया, परंतु उसके चेक की धनराशि उसके खाते में क्यों नहीं जमा हो सकी इसका समुचित कारण न तो स्पष्ट किया जा रहा है और न ही चेक की धनराशि उसके खाते में जमा ही की जा रही है। अतः परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी सं01 से रू.19,159.00 मय ब्याज, मानसिक क्षति के रूप में रू.3,00,000.00 व वाद व्यय के रूप में रू.1,50,000.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी सं0 1, 2 व 3 को नोटिस भेजी गयी, परंतु उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, अतः उनके विरूद्ध आदेश दिनांक 06.08.2012 द्वारा एकपक्षीय कार्यवाही की गयी।
विपक्षी सं0 4 की ओर से लिखित कथन दाखिल किया गया जिसमें मुख्यतः यह कथन किया गया है कि परिवादी के पक्ष में विपक्षी सं0 4 द्वारा परिवादी की पाॅलिसी सं.291738212 के विरूद्ध सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया का चेक सं. 816765 रू.19,159.00 दिनांकित 28.12.2009 दिया गया था। चेक सं.816765 दिनांकित 28.12.2009 रू.19,159.00 का भुगतान उत्तरदाता द्वारा किया जा चुका है। उत्तरदाता सक्षम अधिकारी
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द्वारा चेक जारी किया जाना एवं भुगतान सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया द्वारा किया जाना स्वीकार है। उत्तरदाता के विरूद्ध कोई अनुतोष नहीं चाहा गया है केवल जारी किए गए चेक की पुष्टि एवं बैंक को अंतरित किए गए धन की पुष्टि चाही गई है, जिसको उत्तरदाता स्वीकार करता है। उत्तरदाता के खाते से संबंधित चेक का भुगतान दिनांक 22.01.2010 को विपक्षी सं0 1 व 3 को किया जा चुका है। उक्त परिवाद परिवादी एवं विपक्षी सं0 1 व 3 के मध्य का है, अतः उत्तरदाता विपक्षी सं0 4 को परिवादी से व्यय दिलाया जाये।
परिवादी की ओर से अपना शपथ पत्र दाखिल किया गया। विपक्षी सं0 4 की ओर से श्री ए0के0 खरे, प्रशासनिक अधिकारी (विधि), भारतीय जीवन बीमा निगम का शपथ पत्र दाखिल किया गया। परिवादी की ओर से लिखित बहस दाखिल की गयी। विपक्षी सं0 4 की ओर से भी लिखित बहस मय स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की गयी।
उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
अब देखना यह है कि क्या परिवादी द्वारा विपक्षी सं0 4 से प्राप्त चेक सं.816765 रूपये 19,159.00 जो कि सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया, शाखा प्रतापपुर वासी, जनपद सिद्धार्थनगर का था, विपक्षी सं0 1 के बैंक में अपने खाते में धनराशि जमा करने हेतु दिया गया या नहीं तथा क्या सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया, सिद्धार्थ नगर द्वारा चेक की धनराशि निर्गत करने पर भी उक्त धनराशि परिवादी के खाते में विपक्षी सं0 1 लगायत 3 द्वारा जमा नहीं की गयी थी तथा क्या विपक्षी सं0 1 लगायत 3 द्वारा सेवा में कमी की गयी या नहीं, यदि हां तो उसके प्रभाव।
स्वीकृत रूप से विपक्षी सं0 4 द्वारा एक चेक सं.816765 रू.19,159.00 परिवादी के पक्ष में जारी किया गया जैसा कि
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स्वयं विपक्षी सं0 4 का कथन है। परिवादी द्वारा उक्त चेक विपक्षी सं0 1 के यहां अपने खाते में जमा किया गया जैसा कि न केवल उसका कथन है, अपितु उसके द्वारा दिनांक 13.01.2010 को उक्त चेक विपक्षी सं0 1 के यहां जमा करने की बवनदजमत विपस दाखिल की है जिससे स्पष्ट होता है कि परिवादी के खाता सं.680010100010395 में सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया का चेक सं.816765 रू.19,159.00 जमा किया गया था। परिवादी के अनुसार उपरोक्त चेक की धनराशि उसके खाते में जमा न होने पर उसके द्वारा काफी प्रयास किये गये। इस संबंध में उसके द्वारा न केवल शपथ पर कथन किया गया, अपितु उसके द्वारा बैंक आॅफ इंडिया को लिखे गये पत्रों की कार्बन काॅपी दाखिल की गयी है जिससे दृष्टिगत होता है कि विपक्षी सं0 1 को दिनांक 14.02.2011 एवं 28.02.2011 तथा 04.03.2011 को जमा किये गये चेक की धनराशि खाते में न जमा होने के संबंध में पत्राचार किया गया था। परिवादी की ओर से विपक्षी सं0 4 को एक पत्र अपने चेक की धनराशि खाते में जमा न होने के संबंध में लिखा गये पत्र दिनांक 20.06.2010 को दाखिल किया गया है जिसमें विपक्षी सं0 4 की ओर से यह तथ्य अंकित किया गया है कि प्रश्नगत चेक दिनांक 22.01.2010 को सेन्ट्रल बैंक से धनराशि निर्गत किये जाने का तथ्य अंकित किया गया है जिससे यह स्पष्ट होता है कि परिवादी का प्रश्नगत चेक सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया दिनांक 22.01.2010 को क्लियर कर दिया गया था। उक्त बसमंतंदबम के बाद भी विपक्षी सं0 1 द्वारा परिवादी के खाते में धनराशि को अंकित नहीं किया गया था। इस प्रश्न का समुचित उत्तर वस्तुतः विपक्षी सं0 1 लगायत 3 द्वारा ही दिया जा सकता था कि उनके द्वारा परिवादी द्वारा जमा किये गये चेक की धनराशि को संबंधित बैंक सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया द्वारा क्लियर करने
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के बाद भी उनके खाते में क्यों नहीं जमा की गयी, किंतु बैंक आॅफ इंडिया विपक्षी सं0 1 लगायत 3 द्वारा इस संबंध में कोई उत्तर नहीं दिया गया है। उल्लेखनीय है कि नोटिस निर्गत किये जाने के बावजूद विपक्षी सं0 1 लगायत 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई उत्तर दिया गया है और न ही प्रति शपथ पत्र दाखिल किया गया है। इन परिस्थितियों में विपक्षी सं0 1 व 3 की ओर से वस्तुतः इस बात का कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया है कि किन कारणों से परिवादी द्वारा जमा किये गये चेक की धनराशि संबंधित बैंक से क्लियर होने के बावजूद भी परिवादी के खाते में नहीं जमा की गयी है, जबकि स्वयं विपक्षी सं0 4 का कथन है कि संबंधित चेक का भुगतान विपक्षी सं0 1 व 3 को किया जा चुका है। परिवादी द्वारा अपने साक्ष्य से यह स्पष्ट किया गया है कि उसके द्वारा विपक्षी सं0 4 से एक चेक विपक्षी सं0 1 के यहां अपने खाते में जमा किया गया, किंतु चेक संबंधित बैंक से क्लियर होने के बावजूद भी उसकी धनराशि परिवादी के खाते में विपक्षी सं0 1 व 3 द्वारा जमा नहीं की गयी। स्पष्टतया विपक्षी सं0 1 व 3 द्वारा इस संबंध में सेवा में गंभीर कमी की गयी है। परिणामस्वरूप, परिवादी चेक की धनराशि रू.19,159.00 मय ब्याज के विपक्षी सं0 1 व 3 से प्राप्त करने का अधिकारी है। साक्ष्य से यह भी स्पष्ट होता है कि परिवादी को इस संबंध में विपक्षी सं0 1 व 3 द्वारा मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किया गया है, अतः परिवादी विपक्षी सं0 1 व 3 से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है। साथ ही वह वाद व्यय भी विपक्षी सं0 1 व 3 से प्राप्त करने का अधिकारी है।
विपक्षी सं0 2 को पक्षकार बनाये जाने का न तो कोई कारण दृष्टिगत होता है और न ही उनके विरूद्ध कोई अनुतोष चाहा गया है। परिणामस्वरूप, विपक्षी सं0 2 के विरूद्ध यह
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परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। इस प्रकार विपक्षी सं0 4 को भी मात्र उसके द्वारा जारी किये गये चेक के कारण पक्षकार बनाया गया है, किंतु न तो उसके विरूद्ध कोई कथन किया गया है और न ही कोई अनुतोष चाहा गया है, अतः विपक्षी सं0 4 के विरूद्ध कोई आदेश जारी किया जाना समीचीन नहीं पाया जाता है।
आदेश
परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0 1 व 3 को संयुक्त व पृथक रूप से आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को रू.19,159.00 (रूपये उन्नीस हजार एक सौ उनसठ) मय 9 प्रतिशत ब्याज परिवाद दाखिल करने की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक अदा करें।
विपक्षी सं0 1 व 3 को यह भी आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को मानसिक कष्ट के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में रू.5,000.00 (रूपये पांच हजार मात्र) एवं वाद व्यय के रूप में रू.3,000.00 (रूपये तीन हजार मात्र) अदा करें।
विपक्षी सं0 1 व 3 उपरोक्त आदेश का अनुपालन एक माह में करें।
(अंजु अवस्थी) (विजय वर्मा)
सदस्या अध्यक्ष
दिनांकः 12 अगस्त, 2015