(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-668/1997
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद संख्या-172/1994 में पारित निणय/आदेश दिनांक 29.03.1997 के विरूद्ध)
1. यूनियन बैंक आफ इण्डिया, ब्रांच कैंटोनमेंट, 341-सी, सदर ब्रांच, झांसी कैण्ट, (यू.पी.) द्वारा मैनेजर/प्रींसिपल आफिसर श्री एस.सी.अग्रवाल।
2. यूनियन बैंक आफ इण्डिया, 117/एच-1/240, पाण्डू नगर, द्वारा रिजनल मैनेजर।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
श्री उदित कोहली पुत्र स्व0 श्री बी.एल. कोहली, पार्टनर मै0 आटो सेण्टर, 239/1, सिविल लाइन्स, झांसी। (मृतक)
1/1. श्रीमती रेनू कोहली पत्नी स्व0 श्री उदित कोहली।
1/2. विकास कोहली पुत्र स्व0 श्री उदित कोहली।
1/3. रंजन कोहली पुत्र स्व0 श्री उदित कोहली।
1/4. सुगन्धा कोहली पुत्री स्व0 श्री उदित कोहली।
1/5. श्रीमती सुदर्शना कोहली माता स्व0 श्री उदित कोहली।
सभी निवासीगण मकान नं0-41, सिविल लाइन्स, जिला झांसी।
(प्रतिस्थापित विधिक वारिसान)
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/प्रतिस्थापित विधिक वारिसान
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री पंकज कुमार सिन्हा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 20.09.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-172/1994, उदित कोहली बनाम दि ब्रांच मैनेजर, यूनियन बैंक आफ इण्डिया तथा एक अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, झांसी द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 29.03.1997 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया गया है कि वर्ष 1992-93 के लेखा विवरण की समस्त प्रविष्टियां परिवादी को दो माह के अन्दर प्रदान करें। अंकन 10,000/- रूपये प्रतिकर तथा अंकन 2,000/- रूपये वाद व्यय अदा करने का भी आदेश दिया गया है।
2. परिवाद पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी का विपक्षी बैंक में खाता है। परिवादी L/C एवं C/C लिमिट का प्रयोग कर रहा है। परिवादी ने वर्ष 1992-93 के लिए अपने खाते की समस्त प्रविष्टियों की मांग की थी। विपक्षी संख्या-1 ने दिनांक 18.05.1994 के पत्र द्वारा सूचित किया कि दिनांक 08.09.1993 को सभी प्रविष्टियां उपलब्ध कराई जा चुकी हैं, इसलिए वर्ष 1992-93 की प्रविष्टियां प्राप्त करने के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
3. विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में उल्लेख किया गया है कि परिवादी LC एवं CC का प्रयोग नहीं कर रहा हैं, उसने अंकन 35,00,000/- रूपये का ऋण LC लिमिट तथा अंकन 10,00,000/- रूपये का ऋण CC लिमिट एवं अंकन 20,00,000/- रूपये का ऋण LG लिमिट में प्राप्त किया है, परन्तु इस ऋण को वापस नहीं लौटाया है, इसलिए विपक्षीगण द्वारा उसके विरूद्ध एवं उसके गारण्टर के विरूद्ध सीनियर डिविजनल न्यायालय के समक्ष दावा प्रस्तुत किया गया है।
4. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि सिविल वाद का इस परिवाद से कोई संबंध नहीं है। परिवादी द्वारा मांगी गई सूचनाएं उपलब्ध न कराने के कारण सेवा में कमी की गई है। तदनुसार उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया है।
5. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश विधि विरूद्ध है। बैंक द्वारा सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गई है। परिवादी सिविल कोर्ट के माध्यम से हाईकोर्ट के माध्यम से वर्ष 1992-93 की प्रविष्टियां प्राप्त करने के संबंध में सभी उपलब्ध अनुतोष की मांग कर चुका है। यथार्थ में परिवादी से ऋण की वसूली का मामला है, इसलिए असत्य कथनों पर परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
6. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री पंकज कुमार सिन्हा उपस्थित आए। प्रत्यर्थीगण की ओर से पर्याप्त सूचना के बावजूद कोई उपस्थित नहीं हुआ। अत: केवल अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. स्वंय परिवाद में वर्णित तथ्यों के अवलोकन से ज्ञाता होता है कि परिवादी के विरूद्ध सिविल न्यायालय में उसके द्वारा लिए गए ऋण की वसूली का मामला बैंक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। सिविल न्यायालय के समक्ष न केवल वर्ष 1992-93 एवं प्रत्येक वर्ष की प्रविष्टियां बैंक द्वारा प्रस्तुत की जाएंगी या की गई हैं। परिवादी सुगमता से सिविल न्यायालय से प्रविष्टियां प्राप्त कर सकता है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करने का कोई विधिसम्मत आधार नहीं था। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा सिविल वाद लम्बित रहते हुए भी अनावश्यक रूप से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद को ग्रहण किया और निस्तारित किया, जो विधिसम्मत नहीं है। अत: प्रश्नगत निर्णय/आदेश अपास्त होने और अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 29.03.1997 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय/आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3