राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
सुरक्षित।
अपील संख्या:-275/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, शाहजहॉंपुर द्वारा परिवाद संख्या 124/2018 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनॉंक 17.03.2021 के विरूद्ध)
1-Divisional Railway Manager, Ambala Division, Northern Railway, Rail Vihar, Near Ambala Bus Stand, Ambala Cantt, Haryana.
2- Divisional Railway Manager, Moradabad Division, Northern Railway, Moradabad.
3-Station Superintendent, Railway Station Shahjahanpur.
4-Concerning Reservation Clerk, Reservation Center, Northern Railway Shahjahanpur Through Chief Reservation Supervisor, Reservation Center. Shahjahanpur.
5-NeetuLal TTE, Express Train No. 15012, Coach No. B-1 Dated 11.06.2018 through Divisional Railway Manager, Ambala Division, Northern Railway, Rail Vihar, Near Ambala Bus Stand, Ambala Cantt,Haryana. . ..........अपीलार्थीगण।
Versus
Anoop Kumar S/o Sri Ram Kumar R/o Mohalla Ammenjai, Jalalnagar, Pargana &Tehsil Sadar District Shahjahanpur.
.............प्रत्यर्थी।
समक्ष:-
1.मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2.मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :श्री वैभव राज विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री अखिलेश त्रिवेदी विद्वान अधिवक्ता।
दिनॉंक:-25-08-2021
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी द्वारा यह अपील अन्तर्गत धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-19 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता आयोग, शाहजहॉंपुर द्वारा परिवाद संख्या-124/2018 अनूप कुमार बनाम नीटू लाल व अन्य में पारित निर्णय व आदेश दिनॉंक 17-03-2021 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है।
संक्षेप में अपील के आधार हैं कि विद्वान जिला आयोग ने तथ्यों व परिस्थितियों और विधि पर विचार नहीं किया और यह समझने में भूल की कि बिना वैध टिकट के यात्रा करना प्रतिबन्धित है। परिवादी द्वारा बिना टिकट यात्रा रेलवे अधिनियम-1989 का उल्लंघन है। धारा-55 रेलवे अधिनियम 1989 कहता है कि कोई व्यक्ति किसी भी रेलवे के डिब्बे में बतौर यात्री स्वयं प्रवेश करेगा और उसके पास विधि सम्मत टिकट या रेलवे अधिकृत व्यक्त्ि की अनुमति होना चाहिए। धारा-137 कहता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी सवारी गाड़ी में धारा-55 के उल्लंघन में रहता है या पूर्व प्रयोग किये गये टिकट पर यात्रा करता है तब वह दण्ड का भागी है। इसके पश्चात अपीलार्थी ने रेलवे अधिनियम की विभिन्न धाराओं को बताते हुए कहा कि विद्वान जिला आयोग ने परिवाद के तथ्यों को नहीं देखकर त्रुटि कारित की है और उसने किन परिस्थितियों में अपीलार्थी संख्या-5 को अपना टिकट दिया जबकि वह उचित वर्दी नहीं पहने था। परिवाद में प्रत्यर्थी ने कहा कि मूल टिकट अपीलार्थी संख्या-5 के पास था। परिवाद में ऐसा कोई तथ्य साबित नहीं हुआ जिससे दुराचरण या सेवा में कमी सिद्ध होती हो। विद्वान जिला आयोग ने बिना किसी कमी के रेलवे को उत्तरदायी ठहराया जो उचित नहीं है। यदि किसी रेलवे के कर्मचारी ने कोई दुराचरण या उपेक्षा बरती हो उसके लिये अपीलार्थी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। विद्वान जिला आयोग को बिना किसी निश्चयात्मक साक्ष्य के वाद का निस्तारण किया और मात्र सम्भावनाओं और प्रकल्पनाओं के आधार पर निर्णय उदघोषित किया। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध और त्रुटियुक्त है, तथा मामला वैधानिक तथ्यों के विपरीत है। विद्वान जिला आयोग ने क्षेत्राधिकार और सेवा शर्तों के अधीन निर्णय पारित किया है। अत: प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए वर्तमान अपील स्वीकार की जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वैभव राज तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अखिलेश त्रिवेदी को सुना तथा प्रश्नगत निर्णय, अभिकथनों और साक्ष्यों का अवलोकन किया।
विद्वान जिला आयोग, शाहजहॉंपुर ने अपने निर्णय में कहा है कि परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में रेलवे में दर्ज कराये शिकायत जिसमें शिकायकर्ता स्वयं अनूप कुमार परिवादी हैं एवं शाहजहॉंपुर से चण्डीगढ़ यात्रा करने की टिकट की मूल प्रति एवं चण्डीगढ़ से शाहजहॉंपुर के यात्रा के टिकट की छायाप्रति एक ई-टिकट की छायाप्रति एवं 4,325/- रूपये रेलवे को भुगतान करने की रसीद की कार्बन प्रति प्रस्तुत की गयी है। इतना ही नहीं यात्रा से संबंधित रेवले द्वारा जो चार्ट तैयार किया गया है, वह भी परिवादी द्वारा दाखिल किया गया है जिसमें परिवादी एवं यात्रा करने वाले उसके परिवार के सदस्यों का नाम अंकित है। परिवादी का मुख्य कथन यह है कि उसने मूल टिकट टी0टी0ई0 महोदय को दिया जिससे उनके द्वारा कहीं गिरा दिया गया और सीट नं0 34 का सत्यापन करने के पश्चात पुन: उनसे मॉंग किया गया ऐसी स्थिति में परिवादी की तरफ से प्रस्तुत तमाम दस्तावेजों पर विचार करने के उपरान्त हम यह पाते हैं कि परिवादी एवं उनके परिवार के सदस्य वैध यात्री के रूप में प्रश्नगत तिथि को चण्डीगढ़ से शाहजहॉपुर के लिये यात्रा कर रहे थे और चार्ट में नाम एवं टिकट की छाया प्रति होने के बावजूद यदि विपक्षी संख्या-01 द्वारा टिकट होने के पश्चात कोई धनराशि वसूली गयी तो नि:सन्देह रूप से वह अवैध वसूली है जिसके लिये एक मात्र विपक्षी संख्या 01 उत्तरदायी है। इसके लिये रेलवे या रेलवे के अन्य उच्च अधिकारी किसी भी रूप में उत्तरदायी नहीं हैं।
इस मामले में परिवादी अनूप कुमार ने एक परिवाद पत्र विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्तुत किया और याचना की कि उससे अवैध तरीके से वसूले गये 4,325/- रूपये विपक्षी संख्या-01 नीटू लाल से वापस दिलाया जाए तथा 40,000/- रूपये आर्थिक क्षति और 1,60,000/- रूपये मानसिक कष्ट के लिये दिया जाए। परिवादी ने दिनॉंक 11.06.2018 को चण्डीगढ़-लखनऊ एक्सप्रेस ट्रेन नं0 15012 से चण्डीगढ़ से शाहजहॉंपुर के लिये ए0सी0 कोच बी-1 में यात्रा के लिये टिकट लेकर सीट आरक्षित कराया था। टिकट का पी0एन0आर0 नम्बर-2446323573 था एवं टिकट नं0-002757404 था जो शाहजहॉंपुर रेलवे स्टेशन के आरक्षण काउन्टर से खरीदा गया था जिसके द्वारा कन्फर्म सीट नं0-17, 18, 19 ,21 एवं 34 मिला था और अपने परिवार बच्चों के साथ उपरोक्त कोच संख्या बी-1 में बैठा था। आवेदक अपना सामान ट्रेन में रख रहा था। इसी बीच विपक्षी संख्या 01 नीटू लाल टी0टी0ई0 अम्बाला मण्डल कोच संख्या बी-1 में आ गये जो कि बिना वर्दी के थे और आवेदक से टिकट मॉगा तो उनके परिवादी ने अपना मूल टिकट दे दिया। सीट नं0-17,18, 19 व 21 के सवारी का मिलान करके सीट नं0-34 की सवारी का मिलान करने चले गये। थोड़ी देर बाद टी0टी0ई0 महोदय पुन: आकर टिकट की मॉग की चॅूंकि सबके सामने नीटू लाल को टिकट देने की बात को कहा जिस पर वह काफी नाराज होकर ट्रेन से उतारने की बात कही एवं बदतमीजी करने लगे एवं ट्रेन से उतारने का भी प्रयास करने लगे और आवेदक का कुछ भी नहीं सुने और लगातार अपमानित करते रहे और अकेले में बुलाकर बात निपटाने की बात पर दबाव बनाने लगे जिसके लिये आवेदन तैयार नहीं हुआ और आवेदक नीटू लाल जी अपना मूल टिकट मांगने लगा। इस पर नीटू लाल टी0टी0ई0 ने जी0आर0पी0 एवं अन्य टी0टी0ई को बुला लिया। चॅूंकि टिकट का फोटो स्टेट भी आवेदक सुरक्षित रखा था एवं पहचान पत्र भी रखा था। लेकिन टी0टी0ई महोदय जेल भेजने एवं ट्रेन से उतारने की धमकी देते रहे और 4,325/- रूपये की अवैध रसीद काट दिये।
परिवादी अपने परिवार एवं बच्चों के साथ था इसलिए रसीद में लिखा 4325/- रूपये देने के लिए बाध्य हो गया एवं उसका भुगतान कर दिया जिसका की पूर्व में टिकट लेते समय भी परिवादी ने भुगतान किया था। स्पष्ट है कि परिवादी का वैध टिकट एवं सीटों का वैध आरक्षण होने के बावजूद नीटू लाल टी0टी0ई ने 4,325/- रूपये की वसूली कर ली और उन्हीं सीटों को पुन: आवंटित कर दिया। रसीद संख्या 03938799 वास्ते मु0 4,325/- रूपये है। इस कृत्य के लिये नीटू लाल टी0टी0ई0 अकेले उत्तरदायी हैं। ये इनके जो नीटू लाल के भ्रष्ट आचरण का द्योतक है,जिसकी शिकायत शाहजहॉपुर रेलवे स्टेशन पर मौखिक एवं शिकायत पुस्तिका पर दर्ज किया गया। आवेदक पढ़ा-लिखा एडवोकेट है जिसे घोर अपमानित किया गया है और आर्थिक एवं मानसिक कष्ट पहुंचाया गया है। विपक्षी संख्या 01 नीटू लाल अन्य विपक्षीगण का अधीनस्थ कर्मचारी है। इसलिए अन्य विपक्षीगण भी विपक्षी संख्या 01 के कृत्य के लिये उत्तरदायी हैं एवं आवेदक के प्रति सेवा में घोर त्रुटि एवं कमी किये हैं। जबकि आवेदक ने कोई गलती नहीं किया है। चॅूंकि आवेदक ने दिनॉंक 15.06.2018 को एक शिकायत पत्र भेजा उस पर कोई कार्यवाही हुई और न ही अवैध रूप से वसूली गयी धनराशि ही वापस की गयी।
विपक्षीगण का कथन है कि चण्डीगढ़ से गाड़ी चलने के बाद परिवादी ने विपक्षी को बताया कि उसके पास मूल टिकट नहीं है, कहीं रह गया है। इस पर विपक्षी ने नियमों की जानकारी देते हुए कहा कि आपको किराया पुन: देना होगा किन्तु कोई जुर्माना नहीं देना होगा। विपक्षी ने कहा कि वह वकील है और उसने किराया देने से इनकार किया तब विपक्षी ने परिवादी से मोबाइल पर अपने अधिकारी से बात करायी तब परिवादी ने अधिकारी से गाली-गलौज किया, इसकी सूचना वाणिज्य नियंत्रक अंबाला को दिया जिस पर सशस्त्र बल की सेना आयी तब परिवादी से 4,325/-रूपये किराया लिया गया। विपक्षी ने कोई गलती नहीं की है उसने अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वहन किया है। परिवादी के शिकायती पत्र की जॉच रेलवे अधिकारी द्वारा किया गया जो असत्य पाया गया, इसलिए परेशान करने की नियत से यह परिवाद प्रस्तुत किया।
परिवादी का पी0एन0आर0 नम्बर-24323573 था और उसे निश्चित सीट संख्या-17 ,18, 19, 21 और 34 मिला था। स्पष्ट है कि 17, 18, 19 और 21 की सीट पास-पास थी जबकि 34 उससे दूरी पर थी। विपक्षी का कहना है कि टिकट संग्रहक बिना वर्दी के था तब पढ़े लिखे विधि वेत्ता विद्वान अधिवक्ता ने उसको अपना टिकट क्यों दिया। आमतौर पर ट्रेन में चलने वाले टी0टी0ई0 कर्मचारी अपना कोट गर्मी में उतार देते हैं अथवा कहीं रख देते हैं। उनके साथ टिकट जॉचने का चार्ट तथा टिकट पुस्तिका होती है, जिसके आधार पर उन्हें टिकट कलेक्टर माना जाता है। यदि अधिवक्ता महोदय ने उन्हें अपना टिकट जॉंच हेतु दिया तो ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि वह एक अनाधिकृत व्यक्ति को अपना टिकट जॉचने के लिये दे रहा है। आमतौर पर टी0टी0ई0 ऐसे टिकट को अपने साथ जॉंच हेतु रख लेता है जिसे अलग-अलग सीटे आवंटित अथवा आरक्षित होती हैं। यह मामला एक तुच्छ प्रकृति का मामला था जिसको रेलवे विभाग की लापरवाही के कारण बड़ा बना दिया गया। यदि मान लिया जाए कि उनके पास मूल टिकट नहीं था तब आरक्षित चार्ट में उनका नाम, उनकी आयु, टिकट नम्बर, पी0एन0आर0 नम्बर अंकित रहता है। रेलवे का कार्य यात्रा करने वाले यात्रियों की सुविधा में सहायता देना होता है न कि उनसे रूपया वसूलने का। परिवार सहित यात्रा करने वाले व्यक्ति के पास अपना पहचान पत्र होता है। जबकि परिवादी के पास सबकुछ था, तब उससे पुन: टिकट का शुल्क लेना अवैधानिक और गलत था। रेलवे की आय बढ़ाने का यह साधन अवैधानिक और अमानवीय है।
इस मामले में टी0टी0ई0 महोदय का आचरण भी ठीक नहीं पाया गया। ट्रेन में आमतौर पर टी0टी0ई0 की कार्यवाही से आम जनता भली-भॉंति परिचित है। अनारक्षित व्यक्तियों को आरक्षित बोगी में बैठाकर ले जाना आम बात है वह भी बिना टिकट के मात्र कुछ पैसों के लिये। उसे वहॉं पर अपने कर्तव्य याद नहीं आता है।
विद्वान जिला आयोग ने अपने प्रश्नगत निर्णय दिनॉंक 17.03.2021 में समस्त तथ्यों को देखते हुए निर्णय पारित किया है और उस निर्णय में हम किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं समझते हैं1 उपरोक्त तथ्यों व परिस्थितियों के अन्तर्गत यह अपील सव्यय निरस्त होने योग्य है और प्रश्नगत निर्णय पुष्ट होने योग्य है।
वर्तमान अपील सव्यय निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, शाहजहांपुर द्वारा परिवाद संख्या 124/2018 में पारित निर्णय दिनॉंक 17.03.2021 की पुष्टि की जाती है।
पक्षकार अपना खर्च स्वयं वहन करेंगें।
उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
अध्यक्ष सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनॉंकित होकर उदघोषित किया गया।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)(राजेन्द्र सिंह)
प्रदीप कुमार, आशु0
कोर्ट नं0-1