न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 38 सन् 2016ई0
शिवनाथ पुत्र स्व0 भगेलू निवासी प्रीतमपुर थाना सैयदराजा जिला चन्दौली।
...........परिवादी बनाम
1-जिलाधिकारी,चन्दौली।
2-दि ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 9 तल विकास दीप बिल्डिंग 22 स्टेशन रोड लखनऊ 226019।
.............................विपक्षी
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी से किसान दुर्घटना बीमा की राशि रू0 5,00000/- एवं मानसिक एवं शारीरिक क्षति हेतु रू0 80000/- वाद व्यय हेतु रू0 10000/- कुल रू0 590000/- दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- संक्षेप में परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि परिवादी की पत्नी शान्ति देवी पेशे से किसान थी तथा उत्तर प्रदेश शासन द्वारा सन् 2012-13 तक के लिए किसान दुर्घटना बीमा योजना के अर्न्तगत रू0 500000/- के लिए बीमित थी जिसका प्रीमियम राज्य सरकार वहन करती है। परिवादी की पत्नी शान्ति देवी की मृत्यु दिनांक 31-10-2012 को बरठी कमरौर के पास ट्रेन दुर्घटना में हो गयी जिसका पंचायतनामा व पोस्टमार्टम थाना सैयदराजा के माध्यम से कराया गया।तत्पश्चात परिवादी ने बीमा राशि प्राप्त करने हेतु समस्त अभिलेख के साथ औपचारिकता पूर्ण करके तहसील के माध्यम से दिनांक 19-10-2013 को डाक नं0 1544 द्वारा विपक्षी संख्या 1 के यहॉं प्रेषित किया गया। परिवादी ने आवेदन के निस्तारण के लिए विपक्षी संख्या 1 के कार्यालय के कर्मचारियों से कई बार मिला लेकिन उनके द्वारा न तो क्लेम का निस्तारण किया गया और न ही कोई समुचित जबाब दिया गया।परिवादी ने दिनांक 28-10-2014 को जन सूचना अधिकार के अर्न्तगत तहसीलदार चन्दौली से सूचना मांगी तो तहसीलदार चन्दौली द्वारा दिनांक 18-11-2014 को सूचना दी गयी कि मृतका शान्ति देवी के कृषि दुर्घटना बीमा योजना की पत्रावली पत्रांक संख्या 1544 दिनांक 19-10-2013 द्वारा जिला मुख्यालय को प्रेषित की जा चुकी है। अग्रिम आदेश की सूचना वहीं से प्राप्त की जा सकती है। परिवादी को किसी तरह से विपक्षी संख्या 1 के कार्यालय से दावा के नो क्लेम का आदेश मिला, जिससे परिवादी को काफी मानसिक व शारीरिक परेशानी हुई। परिवादी ने दिनांक 23-12-2015 को विधिक नोटिस विपक्षीगण को दिया कि 15 दिन के अन्दर परिवादी के बीमा दावा का भुगतान/निस्तारण करें, लेकिन काफी समय व्यतीत होने के बाद भी उसके बीमा दावा का भुगतान/निस्तारण विपक्षीगण द्वारा नहीं किया गया। अतः परिवादी ने यह परिवाद दाखिल किया।
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3-विपक्षी संख्या 1 पर नोटिस का तामिला पर्याप्त रूप से हुआ किन्तु उनकी तरफ से न तो कोई उपस्थित हुआ न कोई प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया। अतः मुकदमा उनके विरूद्ध एक पक्षीय रूप से चल रहा है।
4- विपक्षी संख्या 2 द्वारा जबाबदावा प्रस्तुत कर इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि परिवादी की पत्नी शान्ति देवी की मृत्यु दिनांक 31-10-2012 को बरठी कमरौर के पास ट्रेन दुर्घटना में हो गयी है जिसका पंचायतनामा व पोस्टमार्टम थाना सैयदराजा के माध्यम से कराया गया है। विशेष अभिकथन के रूप में संक्षेप में यह अभिकथन किया गया है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं है। परिवादी ने विपक्षी से किसी प्रकार की सेवा हेतु कोई धनराशि अदा नहीं किया है। अतः प्रस्तुत परिवाद अधिनियम के प्रावधानों के अर्न्तगत पोषणीय नहीं है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद में कोई वाद कारण अथवा सेवा में कमी नहीं है और न ही बीमा कम्पनी से कोई अनुतोष की मांग की गयी है। अतः परिवादी का परिवाद धारा 1 (ए)2(1)(9)के प्राविधानों के अर्न्तगत पोषणीय नहीं है और खारिज होने योग्य है। परिवादी ने अपनी पत्नी की मृत्यु ट्रेन दुर्घटना में दिनांक 31-10-2012 को हुई बतायी है लेकिन समय की जानकारी एवं कारण नहीं बताया गया है कि मृतका रेलवे लाइन पर क्या करने गयी थी जबकि रेलवे लाइन पार करना एक अपराध है। परिवादी ने बीमा कम्पनी से कोई बीमा नहीं कराया है और न ही कोई बीमा पालिसी दाखिल किया है। अतः परिवादी विपक्षी बीमा कम्पनी का उपभोक्ता नहीं है और बीमा कम्पनी को गलत ढंग से पक्षकार बनाया गया है यदि विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा द्वारा किसान दुर्घटना का कोई बीमा किया गया होगा तो वह सन् 2010 के बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नवीनीकरण न कराये जाने से उस बीमा के तहत भुगतान नहीं किया जा सकता है। अतः परिवादी का परिवाद खारिज करते हुए विपक्षी बीमा कम्पनी को खर्चा मुकदमा के रूप में रू0 20000/- दिलाया जाय।
5- परिवादी की ओर से अपने परिवाद के अभिकथनों के समर्थन में परिवादी शिवनाथ का शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादी की ओर से खतौनी की नकल,कानूनी नोटिस की नकलें,रजिस्ट्री की मूल रसीद 2 अदद् प्रथम सूचना रिर्पोट की छायाप्रति,परिवादी के बचत बैंक खाता की छायाप्रति,परिवादी की पत्नी के पोस्टमार्टम से सम्बन्धित अभिलेख की छायाप्रति,जन सूचना अधिकार के तहत जिलाधिकारी चन्दौली को दिये गये प्रार्थना पत्र की छायाप्रति व ट्रेजरी चालान की छायाप्रति,जिलाधिकारी कार्यालय को दी गयी सूचना दिनांकित 4-4-2014 व दिनांक 24-12-2014,तहसीलदार चन्दौली द्वारा सूचना मांगे जाने के सम्बन्ध में दिया गया जबाब, जन सूचना अधिकार के तहत दिये गये प्रार्थना पत्रों की छायाप्रतियॉं तथा जन सूचना अधिकार के अर्न्तगत जिलाधिकारी चन्दौली द्वारा दिये गये जबाब,परिवादी शिवनाथ का पहचान सम्बन्धी प्रमाण पत्र,किसान दुर्घटना बीमा दावा प्रपत्र की छायाप्रति,आवरण सूचना पत्र,लेखपाल द्वारा बीमा धारक की मृत्यु के प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर व वोटर लिस्ट की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी है।
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6- इसीप्रकार विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपने जबाबदावा के समर्थन में वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक एस0के0 अग्रवाल का शपथ पत्र दाखिल है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में कमिश्नर बोर्ड आफ रेवेन्यू उत्तर प्रदेश को प्रेषित पत्र दिनांकित 11-10-2010 की छायाप्रति तथा दिनांक 14-7-2011 को बैठक के आयोजन एवं उसमें कृत्य कार्यवाही सम्बन्धी अभिलेख दाखिल किया गया है।
7- परिवादी तथा विपक्षी संख्या 2 की अेर से लिखित बहस दाखिल है एवं उनके अधिवक्तागण की मौखिक बहस सुनी गयी। पत्रावली का पूर्ण रूपेण परिशीलन किया गया।
8- परिवादी की ओर से यह तर्क दिया गया कि परिवादी की पत्नी मृतका शान्ति देवी एक किसान थी और उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले प्रत्येक किसान जिनका नाम राजस्व अभिलेख में दर्ज है का राज्य सरकार द्वारा किसान दुर्घटना बीमा योजना के अर्न्तगत रू0 500000/- का बीमा कराया गया है जिसका प्रीमियम राज्य सरकार अदा करती है। परिवादी की पत्नी शान्ति देवी एक किसान थी जिसकी मृत्यु दिनांक 31-10-2012 को बरठी कमरौर गांव के पास ट्रेन दुर्घटना में हो गयी जिसका पंचायतनामा तथा पोस्टमार्टम थाना सैयदराजा के माध्यम से कराया गया। परिवादी की पत्नी का नाम राजस्व अभिलेखों में मौजा रेवसां परगना नरवन की आराजी नं0 241 पर दर्ज है इस प्रकार वह एक किसान थी परिवादी की पत्नी की मृत्यु के बाद समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण करते हुए क्षेत्रीय लेखपाल द्वारा ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी के फार्म पर बीमा के तहत मुआवजा दिलाये जाने हेतु प्रार्थना पत्र राजस्व निरीक्षक,तहसीलदार, उप जिलाधिकारी द्वारा प्रति हस्ताक्षरित कराकर डाक नं0 1544/2013 के माध्यम से जिलाधिकारी के यहॉं प्रेषित किया गया है इसके बाद परिवादी बीमा के तहत धनराशि प्राप्त करने हेतु जिलाधिकारी कार्यालय में कई बार गया लेकिन उसे पैसा प्राप्त नहीं हुआ। अन्त में उसने जन सूचना अधिकार के तहत प्रार्थना पत्र दिया तब अनेक बार तहसील व जिलाधिकारी कार्यालय में दौडने के बाद अन्ततः उसे यह जानकारी दी गयी कि’’ खतौनी में उत्तराधिकारी का नाम दर्ज नहीं है सम्बन्घित तहसील को आपत्ति का निराकरण हेतु दावा वापस किया गया परन्तु कोई परिवर्तन नहीं किया गया,दावा निरस्त करने की संस्तुति की जाती है’’ यह लिखकर परिवादी का क्लेम खारिज कर दिया गया है। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि जब संशोधन हेतु दावा तहसील को वापस किया गयाथा तो राजस्व कर्मचारियों का यह दायित्व था कि वे खतौनी में मृतका शान्ति देवी के वारिस का नाम संशोधित करते हुए उसके वारिसों को किसान बीमा योजना के अर्न्तगत प्राप्त होने वाली धनराशि दिलावे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस प्रकार उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किये और घोर लापरवाही की। परिवादी ने इस सम्बन्ध में कानूनी नोटिस भी दिया लेकिन इसका भी कोई जबाब नहीं दिया गया। विपक्षी संख्या 1 पर नोटिस का तामिला होने के बावजूद न तो उपस्थित हुए और न ही कोई जबाबदावा या साक्ष्य दाखिल किये। अतः परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है। विपक्षी संख्या 2 को
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इसलिए पक्षकार बनाया गया है क्योंकि विपक्षी संख्या 2 अर्थात ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी के फार्म पर ही क्लेम दाखिल कराया गया था। परिवादी की ओर से शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य दाखिल किया गया है जिसके आधार पर परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
9- इसके विपरीत विपक्षी संख्या 2 ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी की ओर से मुख्य रूप यह तर्क दिया गया है कि प्रस्तुत मामले में उनके विरूद्ध कोई वाद कारण नहीं दिखाया गया है और केवल उन्हें परेशान करने के लिए इस मुकदमें में पक्षकार बनाया गया है। बीमा कम्पनी से कोई अनुतोष भी नहीं मांगा गया है। विपक्षी के अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि चूंकि परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी से कोई बीमा नहीं कराया है अतः वह उपभोक्ता नहीं है उनके द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि विपक्षी ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी से बीमा करने का जो अनुबंध उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया गया है उसका कोई नवीनीकरण सन् 2010 के बाद नहीं कराया गया है। अतः परिवाद उसके विरूद्ध पोषणीय नहीं है इस सम्बन्ध में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कमिश्नर/सेकेट्री बोर्ड आफ रेवेन्यू उत्तर प्रदेश को दिनांक 11-11-2010 को पत्र प्रेषित किया गया था तथा उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ को भी इस सम्बन्ध में सूचित किया गया था तथा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में यह प्रकरण ले जाया गया था जिसके सम्बन्ध में अभिलेख विपक्षी संख्या 2 द्वारा दाखिल किया गया है।
10- उभय पक्ष को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में परिवाद में किये गये अभिकथन अस्पष्ट है प्रस्तुत मामले में परिवादी ने पहले ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी को परिवादी संख्या 2 के रूप में पक्षकार बनाया था बाद में संशोधित करते हुए उसे विपक्षी संख्या 2 के रूप में पक्षकार बनाया गया है इसी प्रकार विपक्षी संख्या 1 के रूप में जिलाधिकारी महोदय चन्दौली को पक्षकार बनाया गया है जबकि विधिक रूप से जिलाधिकारी को व्यक्तिगत रूप से किसी मुकदमें में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता बल्कि उत्तर प्रदेश शासन को बजरिये कलेक्टर पक्षकार बनाया जा सकता है इसप्रकार प्रस्तुत परिवाद में कानूनी त्रुटि पायी जाती है। इसी प्रकार पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा दाखिल क्लेम इस आधार पर निरस्त किया गया है कि राजस्व अभिलेख में मृतका शान्ति देवी के वारिसों का नाम दर्ज नहीं है। पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादी की ओर से जो क्लेम जिलाधिकारी के यहॉं दाखिल किया गया उसमे मृतका शान्ति देवी की उम्र 60 वर्ष दिखायी गयी है अतः स्वाभाविक है कि शान्ति देवी के बच्चे भी रहे होगे या यदि बच्चे नहीं थे तो इस सम्बन्ध में परिवाद में स्पष्ट रूप से यह अभिकथन किया जाना चाहिए था कि मृतका शान्ति देवी को कोई संतान नही थी और परिवादी शिवनाथ उनका एक मात्र उत्तराधिकारी है किन्तु परिवाद में ऐसा कोई अभिकथन नहीं किया गया है अतः इस आधार पर भी परिवादी के परिवाद में कानूनी त्रुटि पायी जाती है।
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11- पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादी की पत्नी की मृत्यु दिनांक 31-10-2012 को होना कहा जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष हुई कार्यवाही का जो विवरण कागज सं0 8/3 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष विपक्षी ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी द्वारा यह तथ्य प्रकाश में लाया गया कि उत्तर प्रदेश शासन द्वारा देय प्रीमियम का 10 प्रतिशत धनराशि उपलब्ध नहीं करायी गयी है। अतः बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 12-10-2010 के उपरान्त के दावों को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि आई0आर0डी0ए0 के निर्देश इसी प्रकार के है और बीमा कम्पनी के तर्को को सुनने के बाद माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह अपेक्षा की गयी कि दिनांक 12-10-2010 के बाद के कार्यकाल को अनाच्छादित कार्यकाल घोषित किया जाय और इस सम्बन्ध में कम्पनी को देय प्रीमियम के सम्बन्ध में शासन द्वारा शीघ्र निर्णय लिया जाय।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जिस समय परिवादी की पत्नी की मृत्यु होना कहा जाता है उस समय विपक्षी ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी किसान बीमा योजना के अर्न्तगत धनराशि देने के लिए बाध्य थी ऐसा कोई साक्ष्य या अभिलेख परिवादी की ओर से दाखिल नहीं किया गया है। अतः बीमा कम्पनी को किसी धन के भुगतान हेतु उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। जहॉंतक विपक्षी संख्या 1 अर्थात जिलाधिकारी चन्दौली का प्रश्न है तो व्यक्तिगत रूप से उन्हें भी किसी धन के भुगतान हेतु आदेशित किया जाना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता। उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए फोरम की राय में परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है और उसका परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद निरस्त किया जाता है। मुकदमें के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगे।
(लक्ष्मण स्वरूप) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक-31-12-2016