(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1295/2013
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, चन्दौली द्वारा परिवाद सं0- 43/2011 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 30.05.2012 के विरुद्ध)
1. Sr. Superintendent of Post Offices East Division, Varanasi.
2. Sub Post Master, Post Office Thanapur District Chandauli Varanasi.
………..Appellants
Versus
The Manager, Vishwanath singh Ucchtar Madhyamik Vidhyalaya Chandauli.
………Respondent
समक्ष:-
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
माननीया डॉ0 आभा गुप्ता, सदस्य
अपीलार्थीगण की ओर से : श्री सुनील शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री बी0के0 उपाध्याय,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 25.04.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 43/2011 प्रबंधक विश्वनाथ सिंह बनाम उप डाकपाल डाकघर व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, चन्दौली द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 30.05.2012 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
2. संक्षेप में प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन परिवाद पत्र में इस प्रकार हैं कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी विश्वनाथ सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का प्रबंधक है उसने डाकघर के नाम से डाकघर धानापुर में एन0एस0सी0 नं0- 48ई0ई0 490277 मूल्य 10,000/-रू0 33 डी0डी0 414477 मूल्य 5,000/-रू0 54सी0सी0 मूल्य 1,000/-रू0, 675027 मूल्य 1,000/-रू0 तथा 675028 मूल्य 1,000/-रू0 दि0 04.11.2003 को क्रय किया था जिसकी परिपक्वता तिथि दि0 04.11.2009 थी। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन इस प्रकार आया कि यह धनराशि डाकघर धानापुर में जमा है जिसकी नवीनीकरण के अभाव में क्षति हो रही है। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह भी कथन आया कि उसने एन0एस0सी0 को जिला विद्यालय निरीक्षक, चन्दौली के नाम से प्लेज भी कर दिया था। इसकी परिपक्वता की तिथि दि0 04.11.2009 के पश्चात ब्याज सहित पाने से बंधन मुक्त करते हुए दि0 27.04.2010 को जिला विद्यालय निरीक्षक से आदेश भी निर्गत करा दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार दि0 20.09.2010 को उप डाकपाल डाकघर धानापुर, चन्दौली द्वारा सूचित किया गया कि इन एन0एस0सी0 का भुगतान बिना ब्याज के देय है तथा कार्यालय द्वारा नियम विरुद्ध एन0एस0सी0 जारी कर दी गई है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने एन0एस0सी0 में वर्णित धनराशि ब्याज सहित प्राप्त करने हेतु एवं अन्य खर्चे सहित 5,000/-रू0 अनुतोष दिलाये जाने हेतु वाद प्रस्तुत किया गया।
3. परिवाद में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का जवाब दावा आया जिसमें कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा वर्णित राष्ट्रीय बचत पत्रों को जिला विद्यालय निरीक्षक, चन्दौली को बन्धक रखा गया है। महानिदेशक डाक भारत सरकार नई दिल्ली के ज्ञापन दि0 08.03.1995 के अनुसार राष्ट्रीय बचत पत्रों एवं विकास पत्रों को किसी संस्था या उसकी किसी फण्ड के नाम निवेश दि0 01.04.1995 से बन्द कर दिया गया है। अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का कथन आया कि उपरोक्त वर्णित राष्ट्रीय बचत मूल्य कुल 18,000/-रू0 संस्था के नाम जारी कर दिए गए जो महानिदेशक डाक भारत सरकार के ज्ञापन दि0 09.03.1995 के निर्देशों के विरुद्ध था।
4. अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह भी कथन आया कि राष्ट्रीय बचत पत्रों को जारी कराने में तत्कालीन उप डाकपाल श्री कन्हैया राम की गलती थी तथा प्रत्यर्थी/परिवादी की भी गलती थी। इन आधारों पर परिवाद निरस्त करने की मांग की गई।
5. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद पत्र रू0 28,828/- की धनराशि के लिए आज्ञप्त किया गया तथा इस पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक अदायगी तक 08 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज एवं अन्य क्षतिपूर्ति सहित परिवाद आज्ञप्त किया गया जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि उक्त नेशनल सेविंग सार्टीफिकेट नियमों के विरुद्ध जारी कर दिए गए थे एवं वादोत्तर में वर्णित ज्ञापन का उल्लंघन करते हुए जारी हुए थे, अत: इस पर कोई ब्याज देय नहीं है। भारत सरकार के नोटिफिकेशन दि0 08.03.1995 किसी संस्था के नाम नेशनल सेविंग सार्टीफिकेट जारी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस कारण प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में जारी किए गए। विकास पत्रों पर कोई ब्याज देय नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा इस बिन्दु पर विचार नहीं किया गया है कि नेशनल सेविंग सार्टीफिकेट जारी होने में चूक वश गलती हुई थी, अत: इस गलती का लाभ प्रत्यर्थी/परिवादी नहीं उठा सकता है। इन नेशनल सेविंग सार्टीफिकेट जारी होने में सब पोस्ट मास्टर श्री कन्हैया राम द्वारा गलती की गई थी, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी के द्वारा भी इन विकास पत्रों को खरीदने में गलती की गई थी। इस कारण कोई ब्याज देय नहीं है। इन आधारों पर प्रश्नगत निर्णय व आदेश दि0 30.05.2012 अपास्त किए जाने की प्रार्थना की गई है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री सुनील शर्मा एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया।
8. उभयपक्ष के अभिकथनों पर विचार करने के उपरांत यह प्रदर्शित होता है कि प्रश्नगत एन0एस0सी0 व विकास पत्र दि0 04.11.2003 को जारी कर दिए गए थे एवं उक्त दस्तावेजों में उभयपक्ष के मध्य ब्याज दिए जाने का करार हुआ था। अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की ओर से ब्याज न दिए जाने के सम्बन्ध में एक मात्र आपत्ति यह लग गई है कि महानिदेशक डाक, भारत सरकार, नई दिल्ली के ज्ञापन दि0 08.03.1995 के द्वारा यह निर्देश दिया गया था कि किसी संस्था या किसी फण्ड के नाम से निवेश दि0 01.04.1995 से बन्द कर दिया गया है। उक्त निवेश के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि उक्त निवेश एन0एस0सी0 जारी होने के दि0 04.11.2003 के उपरांत दि0 01.04.1995 से बन्द किया गया है, अत: पूर्व के करार दोनों पक्षों के मध्य प्रभावी रहेंगे।
9. महानिदेशक (डाक), भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा निर्गत ज्ञापन को जनरल क्लाज एक्ट के अनुसार विधि की श्रेणी में माना जायेगा एवं यह स्थापित विधि है कि कोई भी विधि पूर्वगामी जब कि (Reteropestide) तभी मानी जायेगी जब उक्त विधि में स्पष्ट रूप से उल्लेख हो कि यह विधि, आदेश सरकारी ज्ञापन आदि पूर्वगामी है। प्रस्तुत मामले में डाक विभाग के उपरोक्त ज्ञापन में ऐसा उल्लेख होने का कोई वर्णन नहीं है जब कि स्वयं अपीलार्थीगण/विपक्षीगण ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि दि0 01.04.1995 के उपरांत किसी संस्था अथवा फण्ड के नाम से निवेश उक्त ज्ञापन से बाधित किया गया है। अत: उक्त ज्ञापन को पूर्वगामी नहीं माना जा सकता है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय श्याम सुन्दर बनाम राम कुमार (2001)8 एस0सी0सी0 पृष्ठ 24, बृज मोहन दास लक्ष्मण दास बनाम कमिश्नर इंकमटैक्स (1997) 1 एस0सी0सी0 पृष्ठ 352-354, कमिश्नर इंकमटैक्स बनाम पोद्दार सीमेंट प्रा0लि0 (1997)5 एस0सी0सी0 पृष्ठ 482 (पृष्ठ 506) में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि विधि का बदलाव स्वत: पूर्वगामी उपधारित नहीं किया जा सकता है। भले ही इसमें ''यह उद्घोषणा की जाती है'' अथवा किसी संदेह को दूर करने हेतु जैसे शर्त लिखे हों।
10. मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय केशवराम इंडस्ट्रीज एण्ड काटन मिल्स लि0 बनाम सी0डब्ल्यू0डी0 ए.आई.आर. 1966 सुप्रीम कोर्ट पृष्ठ 1370 में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि पक्षकारों के मध्य हुई संविदा से सम्बन्धित उत्तरदायित्व संविदा निष्पादन के समय ही देखे जायेंगे। प्रस्तुत मामले पर मा0 सर्वोच्च न्यायालय का उपरोक्त निर्णय लागू होता है। डाक विभाग के प्रश्नगत ज्ञापन को स्वत: ही पूर्वगामी नहीं माना जा सकता है एवं प्रश्नगत एन0एस0सी0 संविदा के समय की शर्तों के अनुसार निष्पादित होना युक्त-युक्त एवं न्यायोचित है।
11. इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय पियरलेस जनरल फाइनेंस एण्ड कम्पनी बनाम रिजर्व बैंक आफ इंडिया रिट पिटीशन सिविल 677 वर्ष 1991 आदेश दिनांकित 19.02.1992 तथा एम0एम0 इक्वा टेक्नोलॉजी लि0 बनाम कमिश्नर इंकमटैक्स सिविल अपील सं0- 4742/2021 आदेश दिनांकित 11.08.2021 का उल्लेख करना भी उचित होगा। उपरोक्त निर्णयों में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि पक्षकारों के मध्य यदि संविदा होती है एवं इस सम्बन्ध में आर0बी0आई0 अथवा सरकार का कोई विधि अथवा आदेश जारी होता है तो भी यह आदेश इंवेस्टर के हित के विपरीत नहीं माना जायेगा जब तब कि स्पष्टत: उक्त आदेश में इसका उल्लेख न किया गया हो।
12. उपरोक्त समस्त निर्णयों को दृष्टिगत रखते हुए यह पीठ इस मत की है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण डाक विभाग इस आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी विद्यालय को प्रश्नगत एन0एस0सी0 ब्याज इत्यादि से वंचित नहीं कर सकता है। उक्त दस्तावेज निष्पादित होने के उपरांत डाक विभाग द्वारा ऐसा निर्देश जारी कर दिया गया था कि किसी संस्था अथवा फण्ड के नाम से ज्ञापन जारी होने के उपरांत की तिथि से निवेश नहीं किया जायेगा। जिला उपभोक्ता आयोग ने उचित प्रकार से प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रश्नगत दस्तावेजों की समस्त धनराशि दिलवायी है जिसमें कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती है जिसके आधार पर प्रश्नगत निर्णय व आदेश में हस्तक्षेप किया जाए, अत: प्रश्नगत निर्णय व आदेश पुष्ट होने योग्य है एवं अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
13. अपील निरस्त की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थीगण द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (डॉ0 आभा गुप्ता)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-3