Uttar Pradesh

StateCommission

RP/57/2017

National Seeds Corp. Ltd - Complainant(s)

Versus

Virendra Singh - Opp.Party(s)

Alka Saxena

02 Aug 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. RP/57/2017
(Arisen out of Order Dated 16/12/2015 in Case No. Ex/38/2014 of District Mainpuri)
 
1. National Seeds Corp. Ltd
Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. Virendra Singh
Mainpuri
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Petitioner:
For the Respondent:
Dated : 02 Aug 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

पुनरीक्षण संख्‍या-57/2017

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी द्वारा इजरा वाद संख्‍या 38/2014 में पारित आदेश दिनांक 16.12.2015 के विरूद्ध)

National Seeds Corporation, New Delhi-110012, through its Regional Manager, Regional Office, Lucknow.

                                   ...................पुनरीक्षणकर्ता

बनाम

1. Virendra Singh Son of Sri. Vishnu Dayal resident  of                        

  Gandhi Nagar, Vikas Khand, Weber, District-Mainpuri.

2. Khand Vikas Adhikari, Vikas Khand, Weber,  District-          

  Mainpuri.                          ...................विपक्षीगण

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : सुश्री अलका सक्‍सेना,                           

                               विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 02-08-2017         

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-94/2007 वीरेन्‍द्र सिंह बनाम खण्‍ड विकास अधिकारी व एक अन्‍य जिला फोरम, मैनपुरी ने निर्णय और आदेश दिनांक 02.09.2009 के द्वारा निरस्‍त कर दिया है, जिसके विरूद्ध परिवादी वीरेन्‍द्र सिंह ने धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष अपील संख्‍या-1700/2009 वीरेन्‍द्र सिंह बनाम खण्‍ड विकास अधिकारी व एक अन्‍य प्रस्‍तुत की, जिसे आयोग ने निर्णय और आदेश दिनांक 31.01.2014 के द्वारा स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

''अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्‍या-094/2007 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश अपास्‍त किया जाता है।

 

-2-

प्रत्‍यर्थी संख्‍या-2/विपक्षी संख्‍या-2, डायरेक्‍टर सेन्‍ट्रल स्‍टेट फार्म, जेटसर 335309 जिला गंगा नगर (राजस्‍थान) को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी/अपीलार्थी के हुए फसल नुकसान की एक माह में जॉंच कराकर भरपाई करें। मानसिक संताप स्‍वरूप रू0 5,000/- व वाद व्‍यय स्‍वरूप रू0 500/- भी परिवादी/अपीलार्थी को भुगतान करें।

उक्‍त निर्णय/आदेश का अनुपालन 2 माह में करना सुनिश्चित करें। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो विपक्षी संख्‍या-2/प्रत्‍यर्थी  संख्‍या-2, उक्‍त धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज भी अदा करेगा।

उभय पक्ष इस अपील का व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

इस निर्णय की सत्‍य प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाय।''

अपील में पारित उपरोक्‍त आदेश के अनुपालन में जिला फोरम, मैनपुरी के समक्ष इजरा वाद संख्‍या-38/2014 परिवाद के परिवादी वीरेन्‍द्र सिंह ने प्रस्‍तुत किया है, जिसमें जिला फोरम ने आक्षेपित आदेश दिनांक 16.12.2015 पारित करते हुए डिक्रीदार/परिवादी की क्षति का आंकलन कर 1,50,000/-रू0 क्षति की धनराशि निर्धारित की है और निर्णीत ऋणी द्वारा जमा धनराशि 1,02,930/-रू0 का समायोजन करते हुए शेष धनराशि 47,070/-रू0 और अदा करने हेतु निर्णीत ऋणी को आदेशित किया है। जिला फोरम के इसी आदेश से क्षुब्‍ध होकर निर्णीत ऋणी ने यह पुनरीक्षण याचिका धारा-17 (1) (बी) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की है।

पुनरीक्षणकर्ता/निर्णीत ऋणी की विद्वान अधिवक्‍ता का कथन है कि अपील में पारित उपरोक्‍त निर्णय के द्वारा राज्‍य आयोग ने निर्णीत ऋणी को आदेशित किया है कि वह परिवादी/अपीलार्थी के हुए फसल नुकसान की एक माह में जॉंच कराकर भरपाई करे और मानसिक संताप स्‍वरूप 5000/-रू0 तथा 500/-रू0 वाद व्‍यय उसे प्रदान करे।

 

 

-3-

पुनरीक्षणकर्ता/निर्णीत ऋणी की विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि पुनरीक्षणकर्ता/निर्णीत ऋणी ने राज्‍य आयोग द्वारा पारित इस आदेश का पूर्णतया पालन कर जांच कर डिक्रीदार/परिवादी को हुई क्षति का आंकलन किया है और क्षतिपूर्ति की धनराशि एवं अपील में राज्‍य आयोग द्वारा प्रदान की गयी क्षतिपूर्ति की धनराशि व               वाद व्‍यय की धनराशि मिलाकर 1,16,293/-रू0 का भुगतान डिक्रीदार/परिवादी को कर दिया है।

पुनरीक्षणकर्ता/निर्णीत ऋणी की विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि अपील में आयोग द्वारा पारित निर्णय में क्षति का आंकलन निर्णीत ऋणी को स्‍वयं कर भुगतान हेतु निर्देशित किया गया है। अत: अपील में आयोग द्वारा पारित निर्णय के विपरीत जिला फोरम द्वारा इजरा वाद में क्षति का आंकलन किया जाना अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है।

मैंने पुनरीक्षणकर्ता/निर्णीत ऋणी की विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क पर विचार किया है।

विपक्षीगण को रजिस्‍टर्ड डाक से नोटिस भेजी गयी है। विपक्षी संख्‍या-1 की नोटिस इस प्रविष्टि के साथ वापस आयी है कि इस नाम का कोई व्‍यक्ति नहीं है, जबकि यह नोटिस विपक्षी संख्‍या-1 को उसी पते पर भेजी गयी है जो उसने अपना पता परिवाद पत्र में दिया है। अत: विपक्षी संख्‍या-1 पर नोटिस का तामीला पर्याप्‍त माना गया है। विपक्षी संख्‍या-2 की नोटिस 30 दिन से अधिक का समय बीतने के बाद भी वापस नहीं आयी है। अत: उस पर भी नोटिस का तामीला पर्याप्‍त माना गया है। फिर भी विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: पुनरीक्षणकर्ता की विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुनकर पुनरीक्षण याचिका का निस्‍तारण किया जा रहा है।

प्रश्‍नगत आदेश इजरा वाद में पारित किया गया है और यह विधि मान्‍य स्‍थापित सिद्धान्‍त है कि इजरा वाद निष्‍पादन अधीन निर्णय अथवा डिक्री के विपरीत नहीं जा सकता है। जिला फोरम द्वारा राज्‍य आयोग द्वारा अपील में पारित निर्णय और आदेश का निष्‍पादन किया जा रहा है, जो ऊपर अंकित  किया  गया  है,  उससे

 

-4-

स्‍पष्‍ट है कि डिक्रीदार/परिवादी को हुई क्षति का आंकलन निर्णीत ऋणी जो वर्तमान में पुनरीक्षणकर्ता है को करने का निर्देश दिया गया है और स्‍वयं आंकलन कर उक्‍त क्षतिपूर्ति का भुगतान उसे करने को कहा गया है। ऐसी स्थिति में राज्‍य आयोग के उपरोक्‍त निर्णय के विरूद्ध जिला फोरम द्वारा क्षति का आंकलन स्‍वयं किया जाना अधिकार रहित और विधि विपरीत है। यदि राज्‍य आयोग द्वारा अपील में पारित इस निष्‍पादन अधीन निर्णय और आदेश                  दिनांक 31.01.2014 के अनुपालन में निर्णीत ऋणी द्वारा किए गए क्षति आंकलन से डिक्रीदार/परिवादी सन्‍तुष्‍ट नहीं हैं तो वह विधि के अनुसार उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत परिवाद प्रस्‍तुत कर अथवा अन्‍य विधिक प्रक्रिया अपनाकर चुनौती दे सकता है, परन्‍तु इजरा न्‍यायालय निष्‍पादन अधीन निर्णय में पारित आदेश व निर्देश के विरूद्ध नहीं जा सकती है। उसे निष्‍पादन अधीन निर्णय का ही अनुपालन करना है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर जिला फोरम द्वारा क्षतिपूर्ति का किया गया आंकलन निष्‍पादन अधीन निर्णय के विरूद्ध और अधिकार रहित है। अत: उसे अपास्‍त किया जाता है और जिला फोरम को निर्देशित किया जाता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि क्‍या अपील संख्‍या-1700/2009 वीरेन्‍द्र सिंह बनाम खण्‍ड विकास अधिकारी व एक अन्‍य में आयोग द्वारा पारित निर्णय और आदेश                दिनांक 31.01.2014 का अनुपालन पुनरीक्षणकर्ता/निर्णीत ऋणी द्वारा कर दिया गया है।

पुनरीक्षणकर्ता/निर्णीत ऋणी जिला फोरम के समक्ष उपरोक्‍त इजरा वाद में दिनांक 05.09.2017 को उपस्थित हों।

पुनरीक्षण याचिका उपरोक्‍त प्रकार से अन्तिम रूप से निस्‍तारित की जाती है।

 

    (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

अध्‍यक्ष

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
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