Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/432

Vidhut Vitran Khand - Complainant(s)

Versus

Virendra Singh Rawat - Opp.Party(s)

M N Mishra

23 Nov 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/432
( Date of Filing : 16 Mar 2009 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Vidhut Vitran Khand
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Virendra Singh Rawat
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Nov 2023
Final Order / Judgement

मौखिक

राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0 लखनऊ

 

अपील संख्या 432 सन  2009

 

इक्‍जी0 इंजीनियर इले0 डिस्‍ट्रीव्‍यूशन डिवीजन प्रथम दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0, निगत ताज होटल, आगरा एवं ।

........................अपीलार्थी

-बनाम-

विजेन्‍द्र सिंह रावत पुत्र श्री गणपति स्‍वरूप रावत ।

   ....................प्रत्यर्थी

 

 

 समक्ष

मा० न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष ।

 

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन ।

प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता   कोई नहीं ।   

 

दिनांक - 23.11.2023

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उद्घोषित

 

प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्ता आयोग, आगरा (द्वतीय) द्वारा परिवाद संख्या 162 सन 2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 11.12.2008  के विरुद योजित की गयी है।

संक्षेप में, प्रकरण के आवश्‍यक तथ्य इस प्रकार थे कि परिवादी ग्राम धनौली आगरा का मूल निवासी है और एक बड़ा काश्तकार है। परिवादी की जीविका का साधन कृषि है। परिवादी ने अपने पिता के नाम से ग्राम धनौली स्थित अपनी कृषि भूमि की सिंचाई हेतु ट्यूवैल कनेक्शन के लिए खण्ड विकास अधिकारी अकोला, आगरा के माध्यम से आवेदन विपक्षी के कार्यालय मैं समस्त औपचारिकताएँ पूर्ण करते हुए 27.3. 1987 को बुक नंबर 147236 की रसीद संख्या 046 द्वारा मुबलिग 858 रू0 जमा कराए थे जिनकी फोटो प्रति सलग्न है। जिनके उपर विपक्षी के कार्यालय द्वारा डिपोजिटवाइज आर0 ओ0 नंबर 147227 दिनांक 24.3.87 को प्रेषित किया। विपक्षी के कार्यालय की माँग पर परिवादी ने पुनः दिनांक 17.10.87 को 32 रू0 जमा कराए। विपक्षी के कार्यालय द्वारा बताई गई समस्त औपचारिकताएँ पूर्ण करने एवं धनराशि जमा करने के बावजूद प्रार्थी परिवादी को विद्युत कनेक्शन प्रदान नहीं किया गया और वर्षों से निरंतर आश्वासन दिया जाता रहा। परिवादी द्वारा विद्युत कनेक्शन न देने के सम्बन्ध मैं जिलाधिकारी, आगरा एवं जन-प्रतिनिधियाँ से शिकायतें की गई, जिस पर विपक्षीगण ने ट्रांसफॉर्मर की व्यवस्था होने के बाद विद्युत कनेक्शन देने का आश्वासन दिया लेकिन कलेक्शन  नहीं दिया । कनेक्‍शन न मिलने पर परिवादी द्वारा विपक्षी को नोटिस दिए गए, लेकिन उसके बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी इससे परिवादी का लगभग 45,000 रू0 का नुकसान प्रतिवर्ष हुआ और विगत वर्षों में 9,95,000 रुपए का नुकसान हो गया। परिवादी को विपक्षी के कार्यालय में आने-जाने का व्यय व टेलीफोन पर खर्चा भी उठाना पड़ा और मानसिक-आर्थिक नुकसान हुआ अतः कुल 9,95,000 रू0 बतौर क्षतिपूर्ति दिलाए जाने हेतु न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।

विपक्षी ने अपना जवाब दावा प्रस्तुत करते हुए विपक्षी को तलब किया गया। विपक्षी का कथन है कि परिवादी ने 27.3.87 को कनेक्शन के लिए अप्लाई किया था और ये दावा बीस साल बाद किया गया है अत: यह दावा समय से बाधित है और इस फोरम को वाद सुनने का कोई अधिकार नहीं है और केवल इसी आधार पर दावा खारिज होने योग्य है। जो भी आरोप परिवादी ने इसके सम्बन्ध में लगाए है, उनके संबंध में कोई भी दस्तावेज दाखिल नहीं किए। जो भी कहानी कही गई है, गलत है। परिवादी को कोई अधिकार दावा करने का नहीं है और न ही वह किसी प्रकार का क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है। परिवादी को कोई वाद का कारण उत्पन्न नहीं होता। शिकायत कानूनी रूप से चलने योग्य नहीं है। एक्ट को उपभोक्ता के लाभ के लिए बनाया गया है और इस आधार पर यह दावा पोषणीय नहीं है।

विद्वान जिला आयोग ने पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य एवं अभिलेखों के आधार पर यह अवधारित करते हुए कि यह सही है कि उपभोक्ता फोरम में दावा दायर करने के लिए लिमिटेशन के प्रावधान बनाए गए हैं, जिनका पालन उपभोक्ता फोरमों को करना है, लेकिन उपभोक्ता फोरम इस समय नेचुरल न्याय के प्रश्न को देखेगा। जब सालों उपभोक्ता की धनराशि दूसरे पक्ष के पास जमा रहती है और फिर भी उसको जिस चीज के लिए उसने धनराशि जमा की है, वह चीज प्रदान नहीं की जाती, तो विकल्प मैं वह क्षतिपूर्ति के लिए ही उपभोक्ता फोरम के समक्ष आएगा और उपभोक्ता का हित देखते हुए उपभोक्ता फोरम को भी उस पर विचार करना होगा। चूँकि परिवादी का पैसा विपक्षी के पास रहा है और विपक्षी ने इससे इन्कार नहीं किया है । अतः परिवादी को इतने समय से जो कनेक्शन न मिलने के कारण मानसिक कष्ट हुआ है उसके लिए उसे धारा 43 के प्रावधान देखते हुए सह 10,000.00 रू0 की क्षतिपूर्ति मानसिक प्रताड्ना के लिए दिलाया जाना न्यायोचित है। परिवादी यदि आज कनेक्शन लेना चाहता है तो विपक्षी को उसे आज भी कनेक्‍शन प्रदान करना होगा और तदनुसार परिवाद को स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया कि :-

'' परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय के दिनांक से पैंतालीस दिन के अंदर परिवादी को नियमानुसार यदि कोई धनराशि बकाया हो, लेकर विद्युत कनेक्शन दे तथा 10,000.00 रू0  क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करे एवं 2,000.00 रू0 वाद.-व्यय के लिए अदा करें। यदि इस पैंतालीस दिन की अवधि में क्षतिपूर्ति के 10,000.00 रू0 और वादव्यय के 2,000 रू0 परिवादी को अदा नहीं किए जाते तो निर्णय के दिनांक से भुगतान के दिनांक तक परिवादी 09 प्रतिशत ब्याज पाने का भी अधिकारी होगा। परिवादी की जो धनराशि विपक्षी विभाग के यहां जमा है, उसको कनेक्‍शन न  देने की स्थिति में परिवादी को वापस की जाए और उस पर जमा होने के दिनांक से निर्णय के दिनांक तक 06 प्रतिशत ब्‍याज भी विपक्षी विभाग अदा करे। ''

उक्‍त निर्णय एवं आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपील प्रस्‍तुत की गयी हैं।

     मेरे द्वारा पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेखों का परिशीलन किया तथा उपस्थित विद्धान अधिवक्‍ता के तर्को को सुना गया ।

     दौरान बहस अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उक्‍त परिवाद में जो 10,000.00 रू0  क्षतिपूर्ति तथा 2,000 रू0 वाद व्‍यय के रूप में आरोपित किया गया है, वह अधिक है ।

विद्धान अधिवक्‍ता अपीलार्थी को सुनने के उपरान्‍त प्रस्‍तुत अपील, जो इस न्‍यायालय के सम्‍मुख विगत 14 वर्षों से लम्बित है को अंतिम रूप से निस्‍तारित किया जाता है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय दिनांक     11.12.2008 का समर्थन किया जाता है परन्‍तु विद्धान जिला आयोग, द्वारा अपीलार्थी पर जो 10,000.00 रू0  क्षतिपूर्ति तथा 2,000 रू0 वाद व्‍यय के रूप में आरोपित किया गया है  उसे अनुचित पाते हुए निरस्‍त 10,000.00 रू0  क्षतिपूर्ति के स्‍थान पर 2,000.00 रू0 तथा वाद व्‍यय 2000.00 के स्‍थान पर 1,000.00 रू0 संशोधित किया जाता है।  जिला आयोग के निर्णय का शेष भाग/आदेश यथावत रहेगा।

तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जातीं है एवं जिला आयोग, द्वारा पारित निर्णय दिनांक 11.12.2008 उपरोक्‍तानुसार संशोधित किया जाता है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

           

(न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)

अध्‍यक्ष

सुबोल श्रीवास्‍तव

पी0ए0(कोर्ट नं0-1)

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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