राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१२०४/२०००
(जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-५६८/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०१-२००० के विरूद्ध)
चेयरमेन, ईसान इन्स्टीट्यूट आफ मैनेजमेण्ट एण्ड टेक्नॉलाजी, हैड आफिस, १७९८/५२, एच0एस0 रोड, नेवला, करोल बाग, नई दिल्ली-११०००५. कैम्पस : इन्स्टीट्यूसनल ऐरिया (सूरजपुर-कासना रोड), ग्रेटर नोएडा, जिला गौतम बुद्ध नगर (यू0पी0)। ................. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
विकास सक्सेना पुत्र श्री आनन्द स्वरूप सक्सेना, निवासी कटोरा ताल, कालेज रोड, काशीपुर, ऊधम सिंह नगर। ............... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीग की ओर से उपस्थित :- श्री एस0के0 श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री वी0एस0 बिसारिया विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : १३-०१-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-५६८/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०१-२००० के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-१५ के अन्तर्गत प्रस्तुत की गई है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0के0 श्रीवास्तव एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया को सुना। पत्रावली का परिशीलन किया।
परिवादी श्री विकास सक्सेना को ईशान इन्स्टीट्यूट आफ मैनेजमेण्ट एण्ड टेक्नॉलाजी में पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स में प्रवेश के लिए दिनांक १४-०२-१९९८ को ४५,५००/- रू० जमा कराना था, जिनमें से ३४,०००/- रू० प्रथम सेमेस्टर की फीस और शेष ११,५००/- रू० हॉस्टल फीस/ सुरक्षा के मद में जमा होनी थी। जब संस्थान ने दिनांक ०७-०७-१९९८ को उसे अपने संस्थान में प्रवेश के लिए बुलाया तब परिवादी ने बताया कि उसका प्रवेश दिल्ली में हो गया है और वह अब इस संस्थान में प्रवेश लेने का इच्छुक नहीं है। परिवादी ने अपनी जमा धनराशि की वापसी के लिए कहा और इस सम्बन्ध में जब उसने आवेदन किया तब परिवादी से कहा गया कि उसे कुल जमा धनराशि का चौथाई भाग मिलेगा किन्तु उसे सम्पूर्ण धनराशि की वापसी की प्राप्ति के हस्ताक्षर करने होंगे। इसलिए परिवादी ने परिवाद जिला फोरम, गाजियाबाद में दाखिल किया।
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जिला फोरम ने अपने प्रश्नगत निर्णय में कहा कि परिवादी उपभोक्ता है और विपक्षी को आदेश दिया कि वह ४५,५००/- रू० की धनराशि १० प्रतिशत ब्याज सहित वापस करे। इसके अतिरिक्त मानसिक उत्पीड़न के लिए १,०००/- रू० तथा वाद व्यय के रूप में १००/- रू० अदा करने का भी आदेश दिया। इस निर्णय से व्यथित होकर वर्तमान अपील संस्थित की गई।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि जिला फोरम, गाजियाबाद द्वारा अवैधनिक, त्रुटिपूर्ण तथा तथ्यों के विपरीत और अभिलेखों के विपरीत आदेश पारित किया गया है। उसे किसी प्रकार की नोटिस जारी नहीं की गई और बिना उसे सुने निर्णय पारित किया गया। इस प्रकार विद्वान जिला फोरम ने आज्ञापक प्रावधानों का उल्लंघन किया। जिला फोरम, गाजियाबाद को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं था क्योंकि मामला नोएडा से सम्बन्धित है। जिला फोरम ने इस सम्बन्ध में नियमों का उल्लंघन किया और यह देखने में चूक की कि जमा की गई फीस वापसी योग्य नहीं है। यदि ३० दिन के भीतर शुल्क वापसी के लिए आवेदन किया जाता तब ५० प्रतिशत धनराशि वापस हो सकती थी लेकिन्तु परिवादी ने इस तथ्य को छिपाया। जिला फोरम ने इस तथ्य को नहीं समझा कि जब कोई छात्र प्रवेश लेता है तब उसे प्रवेश सम्बन्धी संस्थान के नियमों का पालन करना होता है। संस्थान राजकीय सहायता प्राप्त संस्थान है जो ए0आई0टी0ई0 नई दिल्ली से सम्बन्धित है और यह लाभ के लिए व्यवसाय नहीं करती है। परिवादी कोई उपभोक्ता नहीं है, अत: उसे परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं था। यदि कोई छात्र स्वयं अपने स्तर से प्रवेश प्रक्रिया पूरी होने के बाद संस्थान छोड़ता है तब उसका स्थान संस्थान में खाली हो जाता है और इसके लिए उसे धनराशि वापस नहीं की जाती क्योंकि पूरे स्टाफ के वेतन एवं अन्य कार्य के लिए धन की आवश्यकता होती है। जिला फोरम का निर्णय मात्र परिकल्पनाओं और अनुमानों पर आधारित है। अपीलार्थी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। अत: जिला फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-५६८/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २४-०१-२००० को अपास्त किया जाए।
प्रत्यर्थी की ओर से बहस करते हुए कहा गया कि अपीलार्थी द्वारा लिए गए आधार मिथ्या, बनावटी हैं, जिनका विधि में कोई स्थान नहीं है और उसके द्वारा यह अपील मात्र विद्वान जिला फोरम के निर्णय को शून्य करने के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत निर्णय समस्त साक्ष्यों का भलीभांति अवलोकन करने के उपरान्त दिया गया है। वर्तमान अपील निरस्त होने योग्य है।
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प्रत्यर्थी ने अपने कथन के समर्थन में IV(2019) CPJ 334 (NC) बरीत चन्द (डॉ0) बनाम आई0एम0एस0 इन्जीनियरिंग कालेज व अन्य का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है जिसका तथ्य यह था कि याची के पुत्र रवि अरोड़ा ने प्रत्यर्थी सं0-१ इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लिया और विपक्षी ने उसका प्रवेश इस आधार पर निरस्त किया कि उसने मूल टी0सी0 और माइग्रेशन सर्टिफिकेट दाखिल नहीं किया। याची ने इस सम्बन्ध में जिला फोरम, मुरादाबाद के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया जिसमें फोरम ने आंशिक रूप से परिवाद स्वीकार किया। मा0 राज्य आयोग ने अपील निरस्त की। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह माना कि विद्यार्थी एक उपभोक्ता नहीं है क्योंकि संस्थान कोई सेवादाता नहीं होता। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी बनाम सुरजीत कौर, IV (2010) SLT 525 का न्यायिक दृष्टान्त में कहा गया कि विद्यार्थी उपभोक्ता नहीं है और इसलिए उपभोक्ता फोरम ऐसे मामलों में सुनवाई नहीं कर सकता। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह कहा कि उनके विचार से फीस के मामले को (फिक्शेसन नहीं) उपभोक्ता फोरम द्वारा देखा जा सकता है। ए0आई0सी0टी0ई0 के दिशा निर्देशों के अन्तर्गत यदि कोई अभ्यर्थी अन्तिम दिनांक से पहले अपना प्रवेश वापस लेता है तब उसे १,०००/- रू० काटते हुए शेष समस्त धनराशि वापस की जाएगी। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि जिला फोरम ४०,०००/- रू० हर्जाना प्रदान कर चुका है और प्रत्यर्थी का एक वर्ष नष्ट हो गया इसलिए वह रू० एक हजार को छोड़ते हुए शेष धनराशि वापस प्राप्त करने का अधिकारी है। इस मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने इस आधार पर १,०००/- रू० छोड़ते हुए पूरी धनराशि वापस करने का आदेश दिया कि याची/छात्र का एक वर्ष नष्ट हो गया और यह मानवता के आधार पर किया गया जबकि मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार छात्र उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।
अपीलार्थी की ओर से इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा जो २६१/२०१२, २२३८/२०१८, २६७/२०१२ और इसके अतिरिक्त पुनरीक्षण याचिका १३६६/२०१९, १७३१/२०१७, १७३२/२०१७, १७३३/२०१७, १९०७/२०१६, २०४७/२०१३, २२२/२०१५, २९५५/२०१८ तथा इसप्रकार के अन्य अन्य मामले बनाम विनायक मिशन यूनिवर्सिटी तमिलनाडु, छत्रपति शिवाजी व अन्य कई सम्बन्धित संस्थानों के मामले में दिनांक २०-०१-२०२० को पारित अपने निर्णय में कहा कि कोचिंग क्लासेस, एजूकेशन के क्षेत्र में नहीं आते हैं जैसा कि मा0 सर्वोच्च न्यायाल के ०७ जजों की पीठ ने पी0ए0 इनामदार के मामले में कहा है। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि ऐसे संस्थान
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जो अध्यापन कार्य के साथ अन्य कोर्सेज प्रवेश के पूर्व और प्रवेश के पश्चात बाहर ले जाने वाले शैक्षणिक भ्रमण व अन्य क्रियाकलापों में संलग्न हैं, वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत नहीं आते।
वर्तमान मामले में प्रत्यर्थी द्वारा प्रवेश लेने के पश्चात् संस्थान को यथाशीघ्र सूचना नहीं दी गई कि उसे दिल्ली में प्रवेश मिल गया है ओर जब नया सत्र शुरू हुआ तब उसने कहा कि उसे दिल्ली में प्रवेश मिल गया है और उसका प्रवेश शुल्क वापस किया जाए। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दिनांक १४-०२-१९९८ को प्रवेश शुल्क जमा कराया गया और दिनांक ०७-०७-१९९८ को अर्थात् लगभग ०५ माह बाद जब सत्र प्रारम्भ हुआ तब उसने संस्थान को बताया कि उसे प्रवेश दिल्ली में मिल गया है और उसका शुल्क वापस किया जाए। यहॉं पर परिवादी ने अपनी मर्जी से संस्थान छोड़ा और उसका कोई वर्ष व्यर्थ नहीं गया। ऐसी परिस्थिति में मा0 सर्वोच्च न्यायालय और मा0 राष्ट्रीय आयोग के निर्णय कि विद्यार्थी उपभोक्ता नहीं हैं, यहॉं पर लागू होते हैं और साथ ही साथ प्रवेश के ०५ माह बाद उसने अपनी इच्छा से संस्थान छोड़ा है। इसलिए वह कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं था। इस सम्बन्ध में जिला फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किए जाने योग्य है तथा अपील तद्नुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-५६८/१९९८ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक २४-०१-२००० अपास्त किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.