राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-1813/2015
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-195/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 03-08-2015 के विरूद्ध)
लक्ष्मी नारायण जायसवाल पुत्र स्व0 केशव प्रसाद निवासी 136 ए, चन्द्र नगर, चरारी लाल बंगला, कानपुर नगर।
...........अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम
1. वर्मा ट्रैक्टर्स, 14, फ्रैण्ड्स कालोनी, सफीपुर सेकण्ड, जी0टी0 रोड, कानपुर नगर द्वारा प्रौपराइटर/मैनेजर।
2. स्कूटर्स इण्डिया लि0, सरोजनी नगर, लखनऊ।
............ प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्हा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित:श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- 15-02-2023.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-195/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 03-08-2015 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि परिवादी ने इस कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया कि उसने अपने जीविकोपार्जन एवं उपयोग हेतु दो यूनिट विक्रम थ्री व्हीलर सी0एन0जी 1500 वर्मा ट्रैक्टर्स विपक्षी से बुक कराई, जिनकी डिलीवरी दिनांक 01-11-06 को समस्त भुगतान लेने के पश्चात्
-2-
उपरोक्त गाडि़यॉं जिनका चेसिस व इंजन नम्बर क्रमश: 001920 ए0सी0जे0 49521, 002046 इंजन नं0-ए0सी0जे0 47381 परिवादी के पते पर कराई गई। विपक्षी द्वारा उक्त थ्री व्हीलर पर 6 महीने तक मैन्यूफैक्चरिंग व तकनीकी खराबी पर रिप्लेसमेंट की सुविधा बतायी थी। परिवादी ने गाडि़यों का तुरंत मुआयना किया तो पाया कि दोनों गाडि़यों में लगी स्टेरयिंग की फिटिंग ठीक नहीं है। परिवादी ने तुरंत गाड़ी की डिलवरी देने आये वर्कर/ड्राइवर से शिकायत की तो उन्होंने बताया कि कंपनी में ऐसी ही स्टेयरिंग हो रही है और आश्वासन दिया कि वह विपक्षी को शिकायत पहुंचा देंगे। परिवादी ने उक्त गाडि़यां प्राइवेट ड्राइवर से चलवाई तो स्टेयरिंग सहित फिटिंग न होने की शिकायत प्राइवेट ड्राइवर ने परिवादी को बतायी। इस पर परिवादी ने प्राइवेट ड्राइवरों से उपरोक्त कमियों को विपक्षी द्वारा जल्द-से-जल्द सुधार का आश्वासन देकर किसी तरह से दोनों गाडि़यों को चलवाया गया। परिवादी ने स्टेयरिंग की फिटिंग गलत व होने वाली दिक्कतों को विपक्षी से बताया कि मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट है और गाडि़यां वारंटी पीरियड में है। अत: उन्हें बदलकर दूसरी दोनों गाडि़यां दे दी जाये। जिस पर विपक्षी ने सर्विस सेंटर के कर्मचारियों को भेजकर जल्द से जल्द सही कराने का आश्वासन दिया और फाल्ट को मामूली फाल्ट बताया। विपक्षी ने यह भी कहा कि तब तक आप गाडि़यां चलवायें अपने व्यवसाय का नुकसान न कीजिए। विपक्षी द्वारा उक्त कमी को लगातार संपर्क के बावजूद ठीक नहीं करवाया गया। परिवादी के द्वारा दिसम्बर के प्रथम सप्ताह व्यतीत होने के बाद सर्विस स्टेशन से एक मैकेनिक आया और चाबी लेकर दोनों गाडि़यां स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन गाडियां स्टार्ट नहीं हुई। उक्त ड्राइवर ने गाडि़यों में तकनीकी कमियां बतायी और यह कहा कि अगले दिन अनुभवी मैकेनिक को साथ लेकर आऊंगा तब देखूंगा की
-3-
गाड़ी में क्या तकनीकी कमी है। दिनांक 13.12.06 को सर्विस सेंटर का मैकेनिक अपने साथ एक व्यक्ति लेकर आया। दोनों गाडि़यों को काफी देर देखने के बाद यह बताया कि गाड़ी में माड स्विच खराब है, जिससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही है और दोनों गाडि़यों की स्टेयरिंग फिटिंग सही नहीं है। आपकी गाड़ी से माड स्विच निकालकर ले जा रहा हूँ। आप साथ में चलिए जिससे माड स्विच की रिसीविंग ले लीजिए। परिवादी शोरूम में आया और कहा कि आपकी दोनों गाडि़यों में तकनीकी व मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट है। आप दोनों गाडि़यों को बदलो किन्तु विपक्षी ने परिवादी से कहा कि गाड़ी बदलने में बहुत झंझट है। आपकी शिकायत मैं दर्ज कर लेता हूँ और कंपनी की तरफ से आपकी गाड़ी रिप्लेसमेंट की सुविधा आयेगी तब मैं गाड़ी आपके यहां मंगा लॅूगा फिलहाल दोनों माड स्विच जमा कर लेता हॅू।1-2 दिन में आपकी गाडि़यां स्टार्ट कर दॅूगा। इसलिए माड स्विच की रिसीविंग परिवादी का दे दी। दिनांक 13.12.06 से परिवादी लगातार विपक्षी के आफिस के चक्कर लगाता रहा। परिवादी का रोजाना किया जाने वाला व्यवसाय भी चौपट हो गया, जिससे परिवादी का बैंकिंग दर से ब्याज बढ़ता चला गया, किन्तु उक्त गाडि़यों का रिप्लेसमेंट विपक्षी द्वारा नहीं किया गया।
परिवादी ने कहा कि इसके कारण उसे अत्यधिक क्षति हो रही है। अपीलार्थी ने 06 माह की वारण्टी दी थी जो किसी तकनीकी अथवा निर्माण सम्बन्धी दोष के सम्बन्ध में थी।
विपक्षी ने शिकायत प्राप्त होने पर अपना एक मैकेनिक मौके पर भेजा जिसने गाडि़यों को चेक किया। विपक्षी ने कथन किया कि ये गाडि़यॉं व्यापार के उद्देश्य के लिए ली गई थीं। अत: परिवादी का मामला फोरम में विचारणीय नहीं था फिर भी विद्वान जिला फोरम ने इसका संज्ञान लिया।
-4-
बिना किसी विशेषज्ञ साक्ष्य के यह नहीं कहा जा सकता कि वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष है। अपीलार्थी के अनुसार विद्वान जिला आयोग का निर्णय मनमाना, तथ्यों के विपरीत है। विद्वान जिला आयोग ने अभिलेखों और परिवाद के अभिकथनों का भली-भांति अवलोकन नहीं किया और विधि विरूद्ध तरीके से परिवाद खारिज कर दिया।
वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष था और इस सम्बन्ध में विपक्षी ने अपना मैकेनिक भी भेजा जिसने बताया कि वाहन स्विच में दोष होने के कारण स्टार्ट नहीं हो रहे थे। विपक्षी सं0-1 ने विद्वान जिला आयोग के समक्ष कोई भी साक्ष्य नहीं दिया। मैकेनिक ने स्वयं वाहन का निरीक्षण कर कहा था कि यह स्टार्ट नहीं हो रहा है और इस सम्बन्ध में वह किसी विशेषज्ञ के साथ आएगा और वाहन का निरीक्षण करेगा। दिनांक 13-12-2006 को वह दोबारा आया और पाया कि 03 माड स्विच में दोष होने के कारण वाहन स्टार्ट नहीं हो रहे हैं। परिवादी ने शो-रूम पहुँच कर अपने वाहनों को बदलने का निवेदन किया जिस पर विपक्षी ने निर्माता कम्पनी से बात कर इनको बदलने का आश्वासन दिया लेकिन न तो वाहन बदला गया और न ही माड स्विच बदले गए। इस कारण ये वाहन स्टार्ट नहीं हुए और परिवादी को अत्यधिक क्षति कारित हुई। इसलिए माननीय राज्य आयोग से निवेदन है कि विद्वान जिला फोरम का प्रश्नगत निर्णय अपास्त करते हुए अपील स्वीकार की जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा एवं प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
हमने विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का
-5-
अवलोकन किया। विद्वान जिला फोरम ने अपने समक्ष प्रस्तुत अभिलेखीय साक्ष्य और शपथ पत्र का अवलोकन करने के पश्चात् यह पाया कि परिवादी द्वारा विपक्षी की ओर से प्रस्तुत उपरोक्त प्रलेखीय साक्ष्य के विरूद्ध कोई सारवान साक्ष्य अथवा सारवान तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा विपक्षी की ओर से प्रस्तुत उपरोक्त प्रलेखीय साक्ष्य के विरूद्ध कोई सारवान साक्ष्य अथवा सारवान तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में ही यह स्वीकार किया गया है कि उसके द्वारा दो विक्रम क्रय किये गये हैं। परिवादी के उपरोक्त स्वीकारोक्ति से भी यह स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा अपने निजी जीविकोपार्जन हेतु नहीं बल्कि वाणिज्यिक प्रयोग के लिए उपरोक्त वाहन लिए गये हैं क्योकि परिवादी मात्र एक वाहन/विक्रम चला सकता है और अपना जीविकोपार्जन कर सकता है। दो वाणिज्यिक किस्म के वाहन क्रय करने से ही यह बात स्पष्ट होती है कि परिवादी द्वारा उक्त वाहन वाणिज्यिक प्रयोग के उद्देश्य से क्रय किये गये हैं। अत: फोरम इस मत का है कि प्रस्तुत मामले में परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा- 2 (1) (डी) के प्राविधान के अनुसार उपभोक्ता की कोटि में नहीं आता है।
परिवादी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध यदि कथित वाहनों में मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट थी, तो उसे विशेषज्ञ की राय से सिद्ध करना चाहिए था किन्तु निर्माण सम्बन्धी दोष के संबंध में भी कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये गये हैं। परिवाद पत्र के अवलोकन से भी विदित होता है कि स्वयं परिवादी के द्वारा यह कहा गया है कि जब वह विपक्षी के शोरूम में आया तो उसने अपनी दोनों गाडि़यों के संबंध में यह बताया कि दोनों गाडि़यों में तकनीकी एवं मैन्यूफक्चरिंग डिफेक्ट है। इस संबंध में विपक्षी की ओर से फोरम का ध्यान विधि निर्णय कुमारी नम्रता सिंह बनाम मैनेजर इण्ड्स 2012 (95) ए.एल.आर. 829 की ओर आकृष्ट
-6-
किया गया है, जिसमें मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के द्वारा यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया गया हैकि निर्माणी त्रुटि को साबित करने के लिए विशेषज्ञ की राय प्रस्तुत की जानी चाहिए। इस संबंध में परिवादी द्वारा किसी विशेषज्ञ की राय/जॉच रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत की गयी है। उभयपक्षों की ओर से अपने-अपने कथन के समर्थन में शपथपत्रीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। किन्तु जो तथ्य अन्य प्रलेखीय साक्ष्य से साबित किया जा सकता है, उन तथ्यों के संबंध में शपथपत्रीय साक्ष्य स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अत: उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में तथा उपरोक्तानुसार उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये प्रलेखीय साक्ष्यों के विश्लेषणोपरान्त फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद कालबाधित होने तथा निर्माणी त्रुटि के संबंध में किसी विशेषज्ञ की राय/जॉच रिपोर्ट प्रस्तुत न करने के कारण स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
दो वाहनों के वाणिज्यिक प्रयोग के सम्बन्ध में कोई भी साक्ष्य विपक्षी की ओर से नहीं दिया गया है जिससे यह स्पष्ट हो कि इनका वाणिज्यिक उपयोग हो रहा था जबकि वाहन को क्रय करने के तुरन्त बाद ही उनमें दोष पाया गया और इसकी सूचना डीलर को दी गई जिसने मैकेनिक को मौके पर भेज कर यह पाया कि वाहन का माड स्विच खराब है। विपक्षी कम्पनी की ओर से ऐसी कोई मीटर रीडिंग प्रस्तुत नहीं की गई है जो यह दिखाती हो कि माड स्विच के अभाव में भी ये वाहन चल रहे थे और इनका प्रयोग किया जा रहा था। यदि किसी व्यक्ति ने दो विक्रम वाहन खरीदे हैं तो यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि वह इनका वाणिज्यिक प्रयोग कर रहा था।
-7-
यह देखना होगा कि परिवादी का परिवार इतना छोटा था कि यह निष्कर्ष निकाल सके कि वाहनों का प्रयोग वाणिज्यिक रूप से किया जा रहा था। यदि परिवार में 7 – 8 सदस्य या अधिक हों तो यह नहीं कहा जा सकता कि विक्रम जैसे दोनों वाहनों से वह व्यापारिक कमाई कर रहा था बल्कि यह तो परिवार के भरण-पोषण में ही खर्च हो जाता है।
जहॉ तक वाणिज्यिक प्रयोग का सम्बन्ध है, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष उचित नहीं है।
अगर मैकेनिक ने यह बताया कि इनके माड स्विच खराब हैं और उन्हें आज तक नहीं बदला गया तब यह लापरवाही किसकी मानी जाएगी ?
स्पष्ट है कि यह लापरवाही डीलर की है न कि निर्माता कम्पनी की। वाहन को ठीक करने अथवा बदलने का दायित्व डीलर का है। जब डीलर को यह मालूम हो चुका था कि माड स्विच खराब है तब उसे इसे अविलम्ब बदलना चाहिए था और वाहन को चलने योग्य बनाया जाना चाहिए था जो उसके द्वारा नहीं किया गया। विद्वान जिला आयोग का निर्णय तथ्यों के अनुसार नहीं है। परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में अभिलेखीय साक्ष प्रस्तुत किए हैं। बिना किसी स्पष्ट साक्ष्य के विद्वान जिला आयोग का यह कहना कि वाहन वाणिज्यिक प्रयोग के लिए लिए गए थे, गलत सिद्ध होता है क्योंकि माड स्विच के अभाव में वाहन चलने का या उससे किसी प्रकार का कोई कार्य लेने का कोई साक्ष्य नहीं है। यहॉं निर्माण सम्बन्धी दोष का कोई प्रश्न नहीं है क्योंकि मात्र स्विच खराब हुआ और उसे बदलने का दायित्व डीलर का था न कि निर्माता कम्पनी का। विद्वान जिला आयोग द्वारा यह कहा गया कि परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में स्वीकार किया गया है कि उसके द्वारा दो विक्रम क्रय किए गए हैं और इस कथन से विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि ये वाहन
-8-
वाणिज्यिक प्रयोग के लिए लिए गए हैं।
स्पष्ट है कि उपरोक्त दोनों वाहन दिनांक 01-11-2006 को क्रय किए गए थे और अब 16 वर्ष बीत चुके हैं और ये वाहन प्रत्येक दशा में निष्प्रयोज्य हो चुके हैं। इस मामले में विद्वान जिला आयेाग ने समस्त तथ्यों का भली-भांति आंकलन नहीं किया है और अनुमानों के आधार पर परिवाद खारिज कर दिया है जो उचित नहीं है। विद्वान जिला आयोग का निर्णय विधि सम्मत न होने के कारण अपास्त होने योग्य है और वर्तमान अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील सव्यय स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-195/2007 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 03-08-2015 अपास्त किया जाता है। परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को संयुक्त एवं पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया जाता है कि वे अपीलार्थी/परिवादी को उक्त दोनों वाहनों के बदले इस निर्णय के 60 दिन के अन्दर नये वाहन उपलब्ध कराऐं अथवा उक्त दोनों वाहनों का मूल्य और उस पर दिनांक 01-11-2006 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी वास्तविक भुगतान के दिनांक तक अदा करें।
विपक्षीगण को यह भी आदेश दिया जाता है कि वे उक्त् वाहनों के न चलने के कारण हुए नुकसान की मद में 01.00 लाख रू0, मानसिक परेशानी की मद में 01.00 लाख रू0 और वाद व्यय के रूप में 20,000/- रू0 कुल 2,20,000/- रू0 और इस धनराशि पर भी इस निर्णय के 60 दिन के अन्दर दिनांक 01-11-2006 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी वास्तविक भुगतान के दिनांक तक अदा करें।
-9-
यदि उक्त सम्पूर्ण धनराशि यदि इस निर्णय के 60 दिन के अन्दर अदा नहीं की जाती है तब उक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 10 प्रतिशत के स्थान पर 15 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज देय होगा।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.