राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-928/2003
मारूति उद्योग लि0 11वां फ्लोर जीवन प्रकाश बिल्डिंग 25
कस्तूरबा गांधी मार्ग न्यू दिल्ली 110001 .........अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
मि0 विनय कुमार अग्रवाल निवासी 207/5 ए, विजय नगर
कालोनी आगरा, यू0पी0 एवं अन्य। ........प्रत्यर्थी/परिवादी
अपील संख्या-2536/2006
श्री राहुल गहलोत पुत्र श्री तारा सिंह गहलोत निवासी कालिन्दीपुरम
मऊ रोड, खन्दारी आगरा एवं अन्य। .........अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
श्री विनय कुमार अग्रवाल पुत्र श्री वी0के0 अग्रवाल निवासी 207/5 ए,
विजय नगर कालोनी आगरा, एवं अन्य। ........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सी0बी0 श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एस0पी0 पाण्डेय व अंकित श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :श्री यू0के0 श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 21.01.16
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत उपरोक्त दोनों अपीलें अपील संख्या 928/2003 व 2536/2006 जिला मंच के निर्णय/आदेश दि. 04.01.2003 के विरूद्ध संस्थित की गई है। चूंकि दोनों अपीलों की विषयवस्तु समान है और जिला मंच का प्रश्नगत आदेश भी एक है, अत: इन दोनों अपीलों का निस्तारण एक साथ किया जाता है। अपील संख्या 928/2003 मुख्य अपील होगी।
संक्षेप में परिवादी के अनुसार तथ्य इस प्रकार हैं कि विपक्षीगणों ने समाचार पत्र में मारूति वैन(ओमनी) के विक्रय हेतु एक विज्ञापन निकाला गया था, जिससे प्रभावित होकर परिवादी द्वारा मारूति के डीलर राधिका आटो मोबाइल्स विपक्षी संख्या 3 से संपर्क किया तथा डीलर से प्रोफार्मा इनवायस प्राप्त किया। विज्ञापन में निम्न तथ्य दिए गए थे '' क्या आपने अभी तक ओमनी नहीं खरीदी है तो फिर जल्दी खरीदिए और पाईए रू. 5555/- का गिफ्ट चेक और कई आकर्षक ईनाम 5 अगस्त से 30 सितम्बर 1999 तक इनवायस की गई मारूति(ओमनी) पर ।'' परिवादी के अनुसार
-2-
राधिका आटो मोबाइल्स ने आश्वासन दिया कि डिलेवरी 3 दिन के अंदर दे देंगे। उसके द्वारा दि. 24.09.99 को आर्डर बुंक कराया और रू. 162463.35 पैसे का चेक भुगतान किया। दि. 30.09.99 तक परिवादी ने विपक्षी राधिका आटो मोबाइल्स के यहां डिलेवरी हेतु लगातार संपर्क किया, लेकिन डीलर ने अपनी शर्तों के अनुसार वाहन उपलब्ध नहीं कराया।
पीठ द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस को सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी/विपक्षी संख्या 4 का कथन है कि परिवादी ने वाहन पर बढ़ी हुई धनराशि और बढ़े हुए रोड टैक्स को बिना किसी प्रतिवाद के भुगतान किया था। इस प्रकार दोनों की संविदा पूर्ण हो चुकी है। जिला मंच का आदेश कल्पना पर आधारित है। प्रोफार्मा इनवायस बाध्यकारी प्रभाव नहीं रखता है। वाहन को 3 दिन के अंदर डिलेवरी करने का कोई आश्वासन नहीं दिया गया था। अपीलार्थी ने कोई संविदा परिवादी के साथ नहीं हुई थी, वरन परिवादी की संविदा प्रत्यर्थी संख्या 1 व 2 के साथ वाहन विक्रय की हुई थी, अत: जिला मंच का अपीलार्थी के विरूद्ध आदेश विधि विरूद्ध है। यह विवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है।
अपीलार्थीगण(अपील संख्या 2536/2006)/विपक्षी संख्या 1 व 2 का कथन है कि वे विपक्षी संख्या 3 के शोरूम में केवल कर्मचारी थे और उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। वे प्रत्यर्थी संख्या 2/विपक्षी संख्या 3 के शोरूम में केवल कार्य करते थे, वाहन की डिलेवरी में अपीलार्थीगण की कोई भूमिका नहीं थी। यदि इस प्रकरण में कोई जिम्मेदारी बनती है तो प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 ही जिम्मेदार है।
प्रत्यर्थी संख्या 1/परिवादी का कथन है कि उनके द्वारा समाचार पत्रों में छपे विज्ञापन के आधार पर दि. 24.09.99 को मारूति वैन(ओमनी) बुक कराई गई थी और उनके द्वारा इस क्रम में रू. 162463.35 पैसे का भुगतान किया गया था। चेक का भुगतान अपीलार्थी ने दि. 27.09.99 को प्राप्त किया, परन्तु विपक्षीगण ने उन्हें वाहन की डिलेवरी नहीं की।
यह निर्विवाद है कि अपीलार्थी ने मारूति वैन(ओमनी) के विक्रय संबंधी विज्ञापन कई दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित किया, जिसमें यह अंकित है कि 5 अगस्त 1999 और 3 सितम्बर 1999 के मध्य इनवायस की गई मारूति वैन(ओमनी) पर आकर्षक ईनाम मिलेंगे जिनमें रू. 5555/- का एक गिफ्ट भी स्वीकृत था। अपीलार्थीगणों ने इस विज्ञापन से इंकार नहीं किया है। उनके द्वारा इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया है कि उनके द्वारा मारूति
-3-
वैन(ओमनी) की बिक्री के लिए एक प्रोफार्मा इनवायस परिवादी को दी थी, परन्तु मारूति उद्योग का यह कहना है कि प्रोफार्मा इनवायस केवल एक आफर होता है और इसमें दिए हुए तथ्य बाध्यकारी नहीं होते हैं, परन्तु अपीलार्थी का यह कथन मान्य नहीं है प्रोफार्मा इनवायस एक ऐसा अभिलेख होता है जिसमें किसी सामान को विक्रय करने का एक निश्चित तिथि व निश्चित विक्रय मूल्य पर सामान दिए जाने का वादा होता है और प्रोफार्मा इनवायस में सामान की बिक्री के जो मूल्य और डिलेवरी की जो तिथि दी जाती है वह बाध्यकारी होती है। परिवादी ने विज्ञापन में दिए गए तथ्य से प्रभावित होकर वाहन को दि. 24.09.99 को बुक कराया जो कि विज्ञापन में दी गई तिथि 5 अगस्त 1999 और 30 सितम्बर 1999 के मध्य थी। उसके द्वारा रू. 162463.35 पैसे का चेक भी दिया गया, जिसका भुगतान अपीलार्थी ने प्राप्त किया। साक्ष्यों से यह भी स्पष्ट है कि मारूति कंपनी और डीलर ने सितम्बर माह में अपने वाहन की बिक्री बढ़ाने के लिए इस प्रकार के विज्ञापन दिए और यह सामान्य बात है कि हल्के वाहन की बिक्री बढ़ाने के लिए इस तरह के विज्ञापन कई कंपनियां देती हैं। प्रोफार्मा इनवायस में डिलेवरी की कोई तिथि नहीं दी गई थी और डिलेवरी की तिथि के स्थान पर एन.ए लिखा हुआ था। यह सामान्य जानकारी में है कि डीलर डिलेवरी की तिथि प्रोफार्मा इनवायस पर लिखते हैं, जबकि इसमें एन.ए. लिखा हुआ था, जिससे स्पष्ट है कि वे जल्दी ही इसका डिलेवरी करना चाहते थे और परिवादी के इस कथन को अमान्य करने का कोई कारण नहीं है कि डीलर ने डिलेवरी 3 दिन के अंदर देने को कहा था। जिला मंच के समक्ष जो कोटेशन परिवादीको दिया गया था उसकी प्रति प्रस्तुत की गई थी, जिसमें डिलेवरी की अवधि 3 दिन लिखी गई थी। जिला मंच के समक्ष भी इस तथ्य का कोई प्रतिवाद नहीं किया गया है। इससे स्पष्ट है कि अपीलार्थी व उसके डीलर द्वारा प्रोफार्मा इनवायस और कोटेशन के अनुसार जो वाहन डिलेवरी 3 दिन में होने की बात कही थी और आकर्षक गिफ्ट देने की बात की थी, उसका अनुपालन नहीं किया। उपरोक्त से स्पष्ट है कि अपीलार्थी व उसके डीलर द्वारा अनुचित व्यापार पद्धति अपनायी और सेवा में कमी कारित की। जिला मंच ने साक्ष्यों की पूर्ण विवेचना करते हुए अपना निर्णय दिया है, जो विधिसम्मत है और हम उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं पाते हैं। तदनुसार अपील 928/2003 निरस्त किए जाने योग्य है। जहां तक अपील संख्या 2536/2006 का प्रश्न है अपीलार्थीगण विपक्षी मारूति डीलर के कर्मचारी थे, और उन्होंने कंपनी के डीलर के निर्देशानुसार ही कृत्य किए और चूंकि स्वामी अपने सेवक के कृत्यों के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी होता है, अत: कंपनी
-4-
और डीलर की वादा खिलाफी और लापरवाही के लिए या उनके द्वारा अपनाई गई अनुचित व्यापार पद्धति के लिए कर्मचारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी विधिक रूप से नहीं बनती है और उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसकी पूर्ण जिम्मेदारी मारूति कंपनी व उसके डीलर की है। इस प्रकार अपील संख्या 2536/2006 आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी की अपील संख्या 928/2003 निरस्त की जाती है तथा अपील संख्या 2536/06 इस रूप में स्वीकार की जाती है कि अपीलार्थी संख्या 1 व 2 को देयता से मुक्त किया जाता है। जिला मंच के शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।
इस निर्णय की प्रति अपील संख्या 2536/06 में भी रखी जाए।
पक्षकार अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(सी0बी0 श्रीवास्तव) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-2