(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0-833/2019
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 820/2017 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.05.2019 के विरुद्ध)
कानपुर इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, A-1 UPSIDC Industrial Area, रूमा कानपुर नगर।
......अपीलार्थी
बनाम
उस्मान अहमद पुत्र श्री महमूद अहमद निवासी-102/85 कर्नलगंज, कानपुर नगर।
.........प्रत्यर्थी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री आर0डी0 क्रान्ति,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री मो0 शीष अंसारी,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 09.09.2021
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्षद्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील कानपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी A-1 UPSIDC Industrial Area, रूमा कानपुर नगर द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 820/2017 में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 07.05.2019 के विरुद्ध योजित की गई है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0डी0 क्रान्ति उपस्थित हुए हैं एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मो0 शीष अंसारी उपस्थित हुए हैं।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी संस्थान में सत्र 2016-17 में बी-टेक (CS) पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में प्रवेश हेतु रू0 20,000/- दि0 02.06.2016 को जमा किया गया था। तदोपरांत पांच दिन के पश्चात ही छात्रों को ज्ञात हुआ कि संस्थान में छात्रों का पूरा सेमेस्टर पूर्ण (Complete) नहीं हो पायेगा क्योंकि कॉलेज की मान्यता कभी भी रद्द (Cancel) हो सकती है। तदोपरांत दिनांक 18.06.2016 के दैनिक समाचार पत्र ‘’हिन्दुस्तान’’ में एक लेख छपा कि ‘’शैक्षणिक संस्थान की जमीन की जांच में खुलासा बिना भू उपयोग परिवर्तन के ही मिलीभगत से खड़ी हुई बिल्डिंग बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था। ‘’के0आई0टी0 की इमारत अवैध कसा शिकंजा’’ जिसमें स्पष्ट लिखा हुआ था कि बिना भू उपयोग परिवर्तन के ही बिल्डिंग भी बना ली गई। के0डी0ए0 से एन0ओ0सी0 नहीं ली गई तथा UPSIDC ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि के0आई0टी0 में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं के लिये वह अर्थात UPSIDC जिम्मेदार नहीं है, प्रवेश कराने या पढ़ने के लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे।‘’ इसके पश्चात पुन: दिनांक 19.06.2016 को दैनिक समाचार पत्र ‘’हिन्दुस्तान’’ के पृष्ठ संख्या- 5 पर छात्रों के एडमीशन असुरक्षित होने की सूचना आयी। जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी अपने भविष्य को लेकर परेशान हो गया और उसके द्वारा जमा की गई टोकन धनराशि रू0 20,000/- कॉलेज/अपीलार्थी से वापसी की मांग की गई। इस सम्बन्ध में एक प्रार्थना पत्र जून 2016 को कॉलेज में प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी/विपक्षी संस्थान के द्वारा आश्वासन दिया जाता रहा, किन्तु बावजूद विधिक नोटिस, दिनांकित 30.05.2017 प्रत्यर्थी/परिवादी को उसके द्वारा जमा की गई उपरोक्त धनराशि अपीलार्थी/विपक्षी संस्थान द्वारा वापस नहीं दी गई। फलस्वरूप जिला उपभोक्ता आयोग में प्रत्यर्थी/परिवादी को परिवाद योजित करना पड़ा।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र का सम्यक परिशीलन किया गया तथा पाया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची कागज सं0- 3/1 के माध्यम से रसीद सं0- 1779 दिनांक 02.06.2016 रू0 20,000/-, हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र का दिनांक 18 जून 2016 पृष्ठ संख्या- 3, एवं दिनांक 19.06.2016 का पृष्ठ संख्या- 5 व दिनांक 20.06.2016 का पृष्ठ संख्या- 5 आदि प्रपत्रों की छायाप्रतियां कागजसं0- 03/2 लगायत 03/5 दाखिल की हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से साक्ष्य शपथ पत्र के साथ पुन: फेहरिस्त से उपरोक्त जमा धनराशि की मूल रसीद व समाचार पत्रों की छायाप्रतियां दाखिल की गई हैं।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा उपरोक्त तथ्यों का सम्यक परिशीलनोपरांत तथा प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के कथन को सुनने के उपरांत निम्न आदेश पारित किया गया:-
‘’परिवादी द्वारा अपने कथन के समर्थन में सूची के माध्यम से अभिलेखीय साक्ष्य जिनका विस्तृत विवरण निर्णय के प्रस्तर-4 में दिया गया है, दाखिल किये गये हैं तथा अपने कथन को शपथ पत्र से समर्थित किया है। परिवादी द्वारा विपक्षी संस्थान में फीस जमा करने की दाखिल मूल रसीद से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी को अभिकथित धनराशि अदा करके उसके संस्थान में प्रवेश लिया गया। तदोपरांत पांच दिन के पश्चात ही छात्रों को ज्ञात हुआ कि संस्थान का छात्रों का पूरा सेमेस्टर पूर्ण (Complete) नहीं हो पायेगा। कॉलेज की मान्यता कभी भी रद्द (Cancel)हो सकती है। उक्त के सम्बन्ध में समाचार पत्रों में कथित समाचार प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात परिवादी द्वारा विपक्षी संस्थान से अपनी जमा धनराशि की मांग की गई। परन्तु विपक्षी द्वारा उक्त धनराशि रू0 20,000/- वापस नहीं की गई। पत्रावली के परिशीलन से स्पष्ट होता है कि विपक्षी बावजूद तलब-तकाजा उपस्थित नहीं आया और न ही तो विपक्षी के द्वारा परिवादी के उपरोक्त कथन व साक्ष्य का खण्डन किसी भी प्रलेखीय अथवा शपथपत्रीय साक्ष्य से किया गया। अत: परिवादी के उपरोक्त शपथपत्रीय व अभिलेखीय साक्ष्य पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण नहीं है और प्रथम दृष्टया परिवादी का कथन याचित उपशम के ऑंशिक भाग के लिये सिद्ध होना प्रतीत होता है।‘’
संस्थान/अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश पूर्णत: अविधिक है, क्योंकि संस्थान/अपीलार्थी को कोई भी अवसर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रदान नहीं किया गया तथा एकपक्षीय रूप से प्रस्तुत किए गए अभिलेखीय साक्ष्य को विश्लेषणोंपरांत जिला उपभोक्ता आयोग ने अपना निर्णय पारित किया, जिसके द्वारा यह माना गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी संस्थान के सम्मुख दि0 02.06.2016 को धनराशि रू0 20,000/- जमा की गई जिसको वापस करने हेतु जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा आदेशित किया गया। साथ ही संस्थान को उपरोक्त जमा धनराशि को वापस करने के साथ 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से मुकदमा कायम करने की तिथि से लेकर धनराशि अदा करने की तिथि तक देयता सुनिश्चित की गई तथा वाद व्यय के रूप में 3,000/-रू0 देयता निर्धारित की गई।
दौरान बहस हमारे सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षी संस्थान के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि अपीलार्थी/संस्थान, प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि रू0 20,000/- देने के लिए सहमत है, परन्तु जो ब्याज की देयता 08 प्रतिशत की दर से निर्धारित की गई है एवं जो परिवाद व्यय के रूप में रू0 3,000/- निर्धारित की गई है वह अधिक है।
हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया। जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय व आदेश का परिशीलन किया गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों को दृष्टिगत रखते हुए यह पाया गया कि प्रस्तुत अपील पूर्णत: निरस्त होने योग्य है, क्योंकि यह अविवादित है कि संस्थान द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी से रू0 20,000/- प्राप्त किया गया तथा यह कि संस्थान द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को अपने संस्थान में गलत सूचना के आधार पर एडमीशन देने का आश्वासन दिया गया जो अंतत: नहीं दिया जा सका। संस्थान की अन्य कार्यप्रणाली भी संदिग्धता की ओर इंगित करती है। अतएव ऐसे संस्थान के प्रति किसी प्रकार का कोई नरम रुख अख्तियार करने की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु अपीलार्थी/संस्थान को 45 दिन की अवधि/समय प्रदान किया जाता है। अपीलार्थी/संस्थान द्वारा प्रस्तुत अपील दाखिल करने के समय यदि कोई धनराशि इस राज्य आयोग के कार्यालय में जमा की गई हो, को नियमानुसार 01 माह की अवधि में वापस करने हेतु आदेशित किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
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