Uttar Pradesh

StateCommission

A/2000/2609

Jay Bhagwan Gupta - Complainant(s)

Versus

UP Avas Vikas Parisad - Opp.Party(s)

Pratyush Kumar

09 May 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2000/2609
( Date of Filing : 19 Oct 2000 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Jay Bhagwan Gupta
Ghaziabad
...........Appellant(s)
Versus
1. UP Avas Vikas Parisad
Lucknow
...........Respondent(s)
First Appeal No. A/2001/75
( Date of Filing : 15 Jan 2001 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. U P Avas Vikas Parisad
A
...........Appellant(s)
Versus
1. Jai Bhagwan Gupta
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 09 May 2019
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-2609/2000

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या 106/94 में पारित निर्णय दिनांक 18.09.2000 के विरूद्ध)

जय भगवान गुप्‍ता(मृतक)

1. देवेन्‍द्र मोहन पुत्र स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

2. रेनू मित्रा पुत्री स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

3. नीलम गर्ग पुत्री स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

4. श्रीमती रामरती देवी पत्‍नी स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

    निवासी 25 कल्‍यान नगर, मेरठ शहर। (वारिसान)

                                     .......अपीलार्थीगण/परिवादीगण

बनाम्

1.संपत्ति प्रबंध अधिकारी यूपी एईवीपी वसुन्‍धरा योजना गाजियाबाद।

2.हाउसिंग कमिश्‍नर यूपी एईवीपी 104, एम.जी.मार्ग लखनऊ।

                                        ......प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

अपील संख्‍या-75/2001

इस्‍टेट मैनेजमेंट आफिसर उत्‍तर प्रदेश आवास एण्‍ड विकास

परिषद वसुन्‍धरा योजना गाजियाबाद।               .......अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्

जय भगवान गुप्‍ता(मृतक)

1/1. देवेन्‍द्र मोहन पुत्र स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

1/2. रेनू मित्रा पुत्री स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

1/3. नीलम गर्ग पुत्री स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

1/4. श्रीमती रामरती देवी पत्‍नी स्‍व0 जय भगवान गुप्‍ता

    निवासी 25 कल्‍यान नगर, मेरठ शहर। (वारिसान)

                                        ......प्रत्‍यर्थीगण/परिवादीगण

समक्ष:-

1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सर्वेश कुमार शर्मा, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   :श्री मनोज मोहन श्रीवास्‍तव, विद्वान

                          अधिवक्‍ता।

दिनांक 13.06.2019

 

 

-2-

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

     प्रस्‍तुत अपीलें जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या 106/94 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दि. 18.09.2000 के विरूद्ध योजित की गई है। दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित किए जाने के कारण इन अपीलों का निस्‍तारण साथ-साथ किया जा रहा है।

     मूल परिवाद के परिवादी श्री जय भगवान गुप्‍ता की दौरान सुनवाई अपील मृत्‍यु हो जाने के कारण उसके विधिक उत्‍तराधिकारीगण प्रतिस्‍थापित किए गए। अपील संख्‍या 2609/2000 अग्रणी होगी।

     संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि अपीलकर्ता के कथनानुसार परिवादी ने प्रत्‍यर्थी परिषद में रू. 5000/- धनराशि जमा करके वर्ष 1981 में एक आवासीय भूखंड खरीदने हेत आवेदन किया। परिवादी का आवेदन पंजीकृत किया गया तथा दि. 05.10.91 को आयोजित ड्रा के आधार पर परिवादी को अपनी वसुन्‍धरा कालोनी में नगद पद्धति पर 122 वर्ग मीटर का एक भूखंड संख्‍या 11/166 आवंटित किया गया तथा इस आवंटन

की सूचना परिवादी को पत्र दिनांकित 29.10.91 द्वारा दी गई। इस आवंटन पत्र के अनुसार पंजीकरण धनराशि समायोजित करते हुए रू. 1874425/- शेष धनराशि की मांग दि. 21.12.91 तक की गई। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कथनानुसार उसने आवंटित भूखंड अपना मकान बनाने हेतु लिया था। अपीलकर्ता द्वारा यह आश्‍वासन दिया गया कि वह भूखंड स्‍तर पर समस्‍त  नागरिक सुविधाएं विकसित करके आवंटित भूखंड का कब्‍जा परिवादी को तुरंत उपलब्‍ध करा देगा, जिससे परिवादी उक्‍त आवंटित भूखंड पर अपना

 

 

-3-

भवन निर्माण कर सके। परिवादी ने अपने पत्र दिनांकित 25.12.91 से अपीलकर्ता से अनुरोध किया कि नियमानुसार परिवादी को सभी सुविधाओं सहित भूखंड उपलब्‍ध कराना था, किंतु भूखंड स्‍थल पर क्‍योंकि कोई नागरिक सुविधाएं जो आवास के लिए आवश्‍यक है विद्यमान नहीं थी, अत: प्रत्‍यर्थी परिवाद से यह अपेक्षित था कि वह उक्‍त नागरिक सुविधाओं को उपलब्‍ध कराने तक अपीलकर्ता परिवादी से मांगी गई वांछित धनराशि जमा करने की

अवधि बढ़ाए। परिवादी के पत्र दिनांकित 25.12.91 के उत्‍तर में अपीलकर्ता ने अपने पत्र दि. 23.01.92 के माध्‍यम से सूचित किया कि परिवादी भूखंड के मूल्‍य की कुल 10 प्रतिशत धनराशि परिवादी के खाते में 15 दिन के अंदर जमा करे। यदि वह ऐसा करते हैं तो परिवादी को शेष धनराशि अंतिम देय तिथि से 3 माह के अंदर भुगतान करने का समय प्रदान किया गया। परिवादी ने अपीलकर्ता के उक्‍त पत्र दिनांकित 24.01.92 के उत्‍तर में आवंटित भूखंड के संपूर्ण मूल्‍य का 10 प्रतिशत अंकन रू. 19425/- अपीलकर्ता के बैंक में जमा कर दिया तथा परिवादी ने दि. 12.02.92 को अपीलकर्ता से निवेदन किया कि भूखंड स्‍थल पर बिजली, सड़क, पानी आदि की नागरिक सुविधाएं उपलब्‍ध कराई जाए और जब तक उक्‍त सुविधाएं उपलब्‍ध न हो परिवादी के विरूद्ध जो धनराशि 10 प्रतिशत के रूप में अतिरिक्‍त देय है उसका समय और बढ़ाया जाए। इस प्रकार प्रत्‍यर्थी ने परिवादी को अपने पत्र दिनांकित 25.09.92 से सूचित किया कि परिवादी परिवाद के पक्ष में रू. 171974/- जमा करे, अन्‍यथा उसे 18 प्रतिशत ब्‍याज अतिरिक्‍त स्‍वरूप में देना होगा। परिवादी के अनुसार अपीलकर्ता का उक्‍त आचरण अनुचित एवं विधिविरूद्ध था। परिवादी ने प्रत्‍यर्थी से दि.

 

-4-

12.10.92 को पुन: निवेदन किया कि वह भुगतान करने की अवधि उक्‍त समय तक स्‍थगित कर दें, जब तक कि आवंटित भूखंड के स्‍तर पर प्रत्‍यर्थी आवश्‍यक नागरिक सुविधाएं उपलब्‍ध नहीं कराता। परिवादी प्रत्‍यर्थी के अधिकारियों से अनेक बार व्‍यक्तिगत रूप से मिला तथा निवेदन किया, क्‍योंकि वह पूर्व में रू. 20000/- की धनराशि उनके खाते में जमा कर चुके हैं, यदि प्रत्‍यर्थी आवंटित भूखंड पर विकास कार्य पूर्ण कर दें तो परिवादी अपने विरूद्ध देय संपूर्ण धनराशि जमा कर देगा। परिवादी ने प्रत्‍यर्थी को इस आशय का पत्र दि. 01.12.92 को भी लिखा, किंतु वादी के इस पत्र का भी कोई उत्‍तर नहीं दिया गया। दि. 21.12.92 को प्रत्‍यर्थी ने परिवादी को सूचित किया कि वह आवंटित भवन पर कब्‍जा  प्राप्‍त कर सकता है, इसके लिए परिवादी से अपेक्षित है कि वह अपने विरूद्ध देय संपूर्ण राशि जमा कर दे और कब्‍जे के लिए अपेक्षित आवश्‍यक औपचारिकताएं पूर्ण करे। प्रत्‍यर्थी ने परिवादी से अपेक्षा की थी कि दि. 05.01.93 तक संपूर्ण धनराशि जमा करके अपनी रजिस्‍ट्री करा सकता है, अन्‍यथा उसे देय धनराशि विलम्‍ब शुल्‍क के साथ जमा करनी होगी। परिवादी का यह भी कहना है कि दि. 19.04.93 को रू. 25000/- की अतिरिक्‍त राशि उसके द्वारा जमा की गई और इसकी सूचना प्रत्‍यर्थी को देते हुए निवेदन किया गया कि प्रत्‍यर्थी आवंटित भूखंड स्‍थल पर शीघ्र ही सभी नागरिक सुविधाएं उपलब्‍ध करा दें, जिससे शेष राशि जमा करके परिवादी आवंटित भूखंड पर कब्‍जा प्राप्‍त करें। प्रत्‍यर्थी ने अपने पत्र दि. 09.11.93 द्वारा परिवादी को सूचित किया कि परिवादी का भूखंड आवंटन एकपक्षीय रूप से रद्द किया जाता है तथा परिवादी ने जो धनराशि रू. 60198/- की अपीलकर्ता के यहां जमा की थी

 

 

-5-

उसे जब्‍त किया जाता है। इस प्रकार परिवादी के कथनानुसार आवंटित भूखंड के स्‍थल पर पूर्ण नागरिक सुविधाएं प्रत्‍यर्थी द्वारा दिए गए आश्‍वासन के अनुसार उपलब्‍ध नहीं कराई गई तथा मनमाने ढंग से परिवादी के आवंटन को निरस्‍त कर दिया गया, अत: सेवा में कमी अभिकथित करते हुए परिवाद जिला मंच के समक्ष आवंटित भूखंड संख्‍या 11/66 वसुन्‍धरा कालोनी में संपूर्ण नागरिक सुविधाओं सहित कब्‍जे का अनुतोष प्रदान करने हेतु तथा परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि पर 18 प्रतिशत ब्‍याज जोड़कर वादी के विरूद्ध देय धनराशि में समायोजित करते हुए वादी के नाम जमा आरक्षित भूखंड आवंटित करने के अनुतोष एवं क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।     

     प्रत्‍यर्थी के कथनानुसार परिवादी को उसकी लिखित सहमति के आधार पर नगद पद्धति पर भूखंड आवंटित किया गया, जिसका भुगतान दि. 31.12.91 तक किया जाना था। परिवादी के द्वारा अनुरोध पर उसकी 10 प्रतिशत धनराशि जमा करके शेष धनराशि 18 प्रतिशत ब्‍याज सहित 3 माह के अंदर जमा करने की अनुमति दी गई। परिवादी ने 10 प्रतिशत धनराशि जमा की, किंतु शेष धनराशि स्‍वीकृत 3 माह के अंदर जमा नहीं की गई। प्रत्‍यर्थी ने अपने पत्र दिनांकित 24.01.91 द्वारा परिवादी को शेष धनराशि जमा करने का अवसर दिया, किंतु परिवादी ने मात्र रू. 20000/- जमा किए, शेष धनराशि जमा नहीं की गई। प्रत्‍यर्थी के कथनानुसार प्रश्‍नगत भूखंड नगद पद्धति पर वादी की पूर्ण सहमति से दिया गया था। परिवादी को धनराशि जमा करने हेतु अनेक अवसर प्रदान किए गए। परिवादी ने अपने अवसरों का लाभ नहीं उठाया, अत: परिवादी का भूखंड निरस्‍त कर दिया गया।

 

-6-

     जिला मंच ने मामले की परिस्थितियों के आलोक में प्रश्‍नगत भूखंड का कब्‍जा परिवादी को दिलाया जाना उपयुक्‍त न मानते हुए परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि ब्‍याज सहित वापस दिलाया जाना उपयुक्‍त माना। तदनुसार परिवाद अपीलकर्ता के विरूद्ध स्‍वीकार किया तथा अपीलकर्ता को निर्देशित किया गया कि परिवादी को निर्णय की तिथि से 2 माह के अंदर परिवादी द्वारा जमा धनराशि 8 प्रतिशत बयाज सहित परिवादी को वापस की जाए। यह भी निर्देशित किया गया कि ब्‍याज की गणना वार्षिक होगी एवं साधारण होगी तथा ब्‍याज की गणना जमा करने की तिथि से की जाएगी। यदि अपीलकर्ता परिवादी को उपरोक्‍त धनराशि उक्‍त अवधि में वापस करने में असमर्थ रहता है तो परिवादी अपीलकर्ता से उक्‍त धनराशि पर उक्‍त ब्‍याज के उसके अंतिम भुगतान तक प्राप्‍त करने का अधिकारी होगा। इसके अतिरिक्‍त परिवादी को रू. 200/- वाद व्‍यय दिलाए जाने हेतु भी निर्देशित किया गया। इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गई।

हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री मनोज मोहन श्रीवास्‍तव के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया। अधिवक्‍ता प्रत्‍यर्थी द्वारा लिखित तर्क भी दाखिल किया गया।

प्रत्‍यर्थी आवास विकास परिषद के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि अपीलकर्ता मूल परिवादी ने प्रत्‍यर्थी परिषद से एक आवासीय भूखंड वर्ष 1995 में खरीदने हेतु रू. 500/- जमा करके पंजीकरण कराया था। अपीलकर्ता के सहमति पत्र दि. 23.09.91 के आधार पर दि. 05.10.91 को लाटरी ड्रा द्वारा 162 वर्ग मीटर का एक प्‍लाट संख्‍या

 

-7-

11/116 वसुन्‍धरा कालोनी गाजियाबाद नगद क्रय पद्धति पर आवंटित किया गया तथा प्रत्‍यर्थी परिषद ने परिवादी को प्रदेशन पत्र दि. 29.10.91 जारी किया प्रदेशन पत्र के अनुसार पंजीकरण धनराशि समायोजित करने के उपरांत दि. 31.12.91 तक रू. 187425/- परिवादी को जमा करने थे, किंतु उक्‍त तिथि तक परिवादी द्वारा यह धनराशि जमा नहीं की गई। दि. 25.12.91 को परिवादी द्वारा एक पत्र इस आशय से प्रेषित किया गया कि शेष धनराशि जमा करने के लिए समय सीमा बढ़ाई जाए तथा सीवर, नाली, सड़क व बिजली की सुविधा दी जाए, जबकि उक्‍त सुविधाएं पहले से ही विद्यमान थी। परिवादी के प्रार्थना पत्र पर परिषद ने परिवादी को अपने पत्र दिनांकित 24.01.92 द्वारा सूचित किया कि भूखंड के मूल्‍य की कुल 10 प्रतिशत धनराशि परिषद के खाते में 15 दिन के अंदर जमा करें तो वादी को शेष धनराशि अंतिम देय तिथि से 3 माह के अंदर भुगतान करने का समय प्रदान किया जा सकता है। दि. 24.01.92 के पत्र के आधार पर आवंटित भूखंड के संपूर्ण मूल्‍य का 10 प्रतिशत रू. 19425/- परिवादी द्वारा प्रत्‍यर्थी परिषद के बैंक में जमा किया गया। परिवादी ने पुन: एक पत्र दिनांकित 12.02.92 धनराशि जमा किए जाने का समय बढ़ाने के लिए लिखा, जिसके उत्‍तर में परिषद ने पत्र दिनांकित 25.09.92 द्वारा सूचित किया कि परिवादी शेष धनराशि रू. 171974/- जमा करे, अन्‍यथा प्रदेशन पत्र के नियमों के अनुसार 18 प्रतिशत ब्‍याज अतिरिक्‍त देय होगा, क्‍योंकि परिवादी ने भूखंड नगद क्रय के आधार पर लाटरी के माध्‍यम से क्रय किया था। इस बीच परिवादी ने प्रत्‍यर्थी परिषद के बैंक खाते में रू. 20000/- और जमा किए, लेकिन संपूर्ण शेष धनराशि जमा नहीं की। परिषद ने पत्र दिनांकित 21.12.92 के माध्‍यम से सूचित किया कि परिवादी आवंटित

 

-8-

भवन पर कब्‍जा प्राप्‍त कर सकता है। परिवादी से अपेक्षा है कि अपने विरूद्ध देय संपूर्ण धनराशि जमा कर कब्‍जे के लिए अपेक्षित सभी आवश्‍यक औपचारिकता पूर्ण करें। पुन: परिषद ने अपीलार्थी परिवादी को पत्र दिनांकित 05.01.93 द्वारा सूचित किया कि संपूर्ण धनराशि जमा करे, अपनी रजिस्‍ट्री कराने हेतु सूचित करे, अन्‍यथा उसे शेष धनराशि विलम्‍ब शुल्‍क के साथ जमा करनी होगी, किंतु परिवादी ने ऐसा न करके प्रत्‍यर्थी परिषद के खाते में रू. 25000/- की धनराशि दि. 19.04.93 को जमा की। प्रत्‍यर्थी परिषद की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि उभय पक्ष पर प्रदेशन पत्र दिनांकित 29.10.91 की शर्तें बाध्‍यकारी हैं। परिवादी को भूखंड नगद क्रय पद्धति के आधार पर आवंटित किया गया। परिषद ने पत्र दि. 16.03.93 के माध्‍यम से सूचित किया कि पत्र की प्राप्ति के 15 दिन के अंदर शेष धनराशि रू. 159496/- जमा करे, किंतु परिवादी द्वारा ऐसा नहीं किया गया, अत: परिवादी द्वारा धनराशि की अदायगी में चूक किए जाने के कारण एवं प्रदेशन पत्र की शर्तों का अनुपालन न किए जाने के कारण कई निर्देश देने के उपरांत आवंटन एवं प्रदेशन पत्र निरस्‍त कर दिया गया। प्रत्‍यर्थी परिषद की ओर से यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि उपभोक्‍ता मंच पक्षकारों के मध्‍य निष्पादित संविदा की शर्तों में परिवर्तन नहीं कर सकता है, किंतु जिला मंच द्वारा इस विधिक स्थि‍ति पर ध्‍यान न देते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया गया।  

अपीलकर्ता/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत योजना जिसमें प्रश्‍नगत भूखंड आवंटित किया गया के विषय में यह प्रचारित किया गया कि योजना के अंतर्गत विकसित भूखंड प्रदान किए जाने तथा सभी आवश्‍यक मूलभूत सुविधाएं प्रदान की जाएंगे।

 

-9-

जिला मंच द्वारा भी इस बिन्‍दु पर विचार करते हुए यह मत व्‍यक्‍त किया गया प्रश्‍नगत प्‍लाट के संदर्भ में आवश्‍यक विकास प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा नहीं किया गया। अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत निर्णय के विरूद्ध प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा भी अपील संख्‍या 75/01 योजित की गई, किंतु उक्‍त अपील के आधारों में परिषद द्वारा यह अभिकथित नहीं किया गया कि प्रश्‍नगत योजना के अंतर्गत विकास कार्य पूर्ण किया जा चुका था। प्रत्‍यर्थी परिषद ने अपीलकर्ता/परिवादी का प्रश्‍गनत भूखंड इस आधार पर निरस्‍त कर दिया कि परिवादी द्वारा भूखंड का मूल्‍य जमा नहीं किया गया, किंतु परिवादी का यह कथन है कि परिवादी द्वारा भूखंड का मूल्‍य इसलिए जमा नहीं किया गया है, क्‍योंकि प्रश्‍गनत प्‍लाट तथा प्रश्‍नगत योजना के अंतर्गत अपेक्षित विकास कार्य प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा नहीं कराया गया था। अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि विकास कार्य कराए बिना परिषद प्‍लाट के संपूर्ण मूल्‍य की मांग नहीं कर सकता है। इस संदर्भ में अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता  द्वारा मेरठ डेवलपमेन्‍ट अथारिटी बनाम मुकेश कुमार गुप्‍ता वैल्‍यूम 4 (2002) सीपीजे पेज 12 एनसी के मामले में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा दिए गए निर्णय पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया गया।

     यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रश्‍नगत भूखंड अपीलार्थी/परिवादी ने नगद क्रय भुगतान के आधार पर क्रय किया था। यह तथ्‍य भी निर्विवाद है कि प्रश्‍नगत भूखंड के संदर्भ में प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा जारी किए गए प्रदेशन पत्र के अनुसार अपीलकर्ता/परिवादी ने दि. 31.12.91 तक रू. 187425/- का भुगतान नहीं किया। दि. 25.12.91 को अपीलकर्ता परिवादी द्वारा अपेक्षित धनराशि जमा किए जाने हेतु समय सीमा बढ़ाने हेतु पत्र प्रेषित किया

 

-10-

क्‍योंकि कि स्‍थल पर विकास कार्य परिषद द्वारा नहीं कराया गया। सीवर, नाली, सड़क, बिजली आदि की सुविधाएं विकसित नहीं की गई हैं। पुन: इस संदर्भ में अपीलकर्ता परिवादी द्वारा अने पत्र दिनांकित 12.02.92 समय सीमा बढ़ाए जाने हेतु प्रेषित किया गया। प्रत्‍यर्थी परिषद ने जिला मंच के समक्ष ऐसी कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं की कि परिवादी द्वारा प्रेषित किए गए इन पत्रों के उत्‍तर में प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा सूचित किया गया कि प्रश्‍नगत भूखंड से संबंधित समस्‍त विकास कार्य पूर्ण हो चुका है न ही ऐसी कोई साक्ष्‍य जिला मंच के समक्ष प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा प्रस्‍तुत की गई जिससे यह विदित हो कि अपीलकर्ता/परिवादी द्वारा आपत्ति प्रस्‍तुत करते समय प्रश्‍नगत भूखंड से संबंधित विकास पूर्ण हो चुका था न ही ऐसा कोई अभिकथन प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा योजित अपील संख्‍या 75/01 में अपील के आधारों में अभिकथित किया गया है।

     यद्यपि प्रश्‍नगत भूखंड नगद भुगतान पद्धति के अंतर्गत क्रय किया गया, किंतु प्रत्‍यर्थी परिषद से अपेक्षित था कि प्रश्‍नगत भूखंड से संबंधित मूलभूत सुविधाएं बिजली, पानी, सड़क आदि विकसित स्थिति में आवंटी को उपलब्‍ध कराई जाए।

     किंतु प्रस्‍तुत प्रकरण के संदर्भ में यह तथ्‍य भी महत्‍वपूर्ण है कि दिसम्‍बर 1991 में ही अपीलकर्ता/परिवादी को इस तथ्‍य का ज्ञान हो चुका था कि प्रश्‍नगत भूखंड के संदर्भ में मूलभूत सुविधाएं प्रत्‍यर्थी परिषद द्वारा उपलब्‍ध नहीं कराई गई है। इस जानकारी के बावजूद अपीलकर्ता/परिवादी ने निर्विवाद रूप से नगद क्रय पद्धति के आधार पर प्रश्‍नगत भूखंड क्रय करने के बावजूद अपने आपको इस योजना से सम्‍बद्ध रखा, किंतु संपूर्ण धनराशि का भुगतान नहीं किया।

 

-11-

उल्‍लेखनीय है कि विकास प्राधिकरण द्वारा भी विभिन्‍न संस्‍थाओं से ऋण लेकर योजनाएं क्रियान्‍वित की जाती हैं तथा ब्‍याज का भुगतान भी विभिन्‍न संस्‍थाओं को परिषद द्वारा किया जाता है। ऐसी परिस्थिति में आवंटी से यह भी अपेक्षित है कि शर्तों के अनुसार धनराशि जमा किया जाना सुनिश्चित करें। यदि अपीलकर्ता/परिवादी प्रश्‍नगत योजना से ऐसी परिस्थिति में भी स्‍वयं को सम्‍बद्ध रखना चाहता था तो प्रदेशन पत्र की शर्तों के अनुसार उससे अपेक्षित था कि धनराशि जमा की जाती तथा बिना विकास के धनराशि प्राप्‍त करने के कारण अनुचित व्‍यापार प्रथा कारित किया जाना अभिकथित करते हुए परिवाद योजित किया जाता। यदि प्रश्‍नगत भूखंड विकसित न होने के कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत योजना के अंतर्गत धनराशि जमा नहीं की जानी थी तो इस आधार पर प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपनी जमा की गई धनराशि मय ब्‍याज वापस प्राप्‍त करने की मांग कर सकता था। आवंटन की शर्तों का अनुपालन किए बिना योजना में बने रहने की स्‍वतंत्रता प्रदान नहीं की जा सकती, साथ ही योजना के अंतर्गत अपेक्षित विकास किए बिना आवंटी द्वारा जमा धनराशि को जब्‍त करने की स्‍वतंत्रता विकास प्राधिकरण को नहीं दी जा सकती।

 प्रश्‍नगत निर्णय द्वारा जिला मंच ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि को जमा किए जाने की ति‍थि से 8 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज सहित वापस किए जाने हेतु आदेशित किया है। मामले के तथ्‍य एवं परिस्थितियों के आलोक में हमारे विचार से जिला मंच द्वारा पारित निर्णय में कोई त्रुटि नहीं है। अपीलकर्ता/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा उपरोक्‍त संदर्भित मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा दिए गए निर्णय से संबंधित मामले के तथ्‍य प्रस्‍तुत मामले के तथ्‍य से भिन्‍न होने के कारण उक्‍त

 

-12-

निर्णय का लाभ प्रस्‍तुत प्रकरण के संदर्भ में अपीलकर्ता/परिवादी को प्रदान नहीं किया जा सकता। अपील में बल नहीं है, तदनुसार दोनों अपीलें निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

     अपील संख्‍या 2609/2000 तथा अपील संख्‍या 75/2001 निरस्‍त की जाती है।

     उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

     निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

 

 

       (उदय शंकर अवस्‍थी)                        (गोवर्धन यादव)                                                                                                                                                पीठासीन सदस्‍य                               सदस्‍य         

राकेश, पी0ए0-2

  कोर्ट-2

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER

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