Uttar Pradesh

Chanduali

CC/63/2013

Shivam Pharma - Complainant(s)

Versus

United India Ins.co.Ltd - Opp.Party(s)

R.K SINGH

17 Oct 2016

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Complaint Case No. CC/63/2013
 
1. Shivam Pharma
Gandhi Nagar Panchayat Katara Word No10 GT Road Chandauli
...........Complainant(s)
Versus
1. United India Ins.co.Ltd
Mughalsarai Chandauli
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 17 Oct 2016
Final Order / Judgement

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 63                                सन् 2013ई0
में0 शिवम फार्मा वार्ड नं0 10 गांधीनगर नगर पंचायत कटरा चन्दौली जरिये प्रोपराइटर अरविन्द कुमार यादव पुत्र स्व0 बैजनाथ यादव निवासी धमिना थाना अलीनगर जिला चन्दौली।
                                      ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
1-यूनाइटेड इश्योरेंस कम्पनी लि0 614बेचूपुर नई बस्ती जी0टी0 रोड मुगलसराय जरिये प्रबन्धक इश्योरेंस कम्पनी उपरोक्त।
2-यूनाइटेड इश्योरेंस कम्पनी लि0 24 हवाइट्स रोड चेन्नई जरिये प्रबन्ध निदेशक कम्पनी उपरोक्त मुख्य शाखा।
3-सिंडीकेट बैंक चन्दौली जरिये शाखा प्रबन्धक ।
                                            .............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप,सदस्य
                                                                                                निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1-    परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण से परिवादी की दूकान में आगजनी से हुई  क्षति हेतु रू0 700000/- तथा मानसिक क्षति हेतु रू0 200000/- कुल रू0 900000/- तथा वाद व्यय मय व्याज  दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2-    संक्षेप में परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि परिवादी शिवम फार्मा के नाम से अंग्रेजी दवाओं का थोक व्यवसाय करता है तथा उक्त फर्म का प्रोपराइटर है। परिवादी सिंडीकेट बैंक चन्दौली के माध्यम से सी.सी.लोन एकाउण्ट नम्बर 867612420 खोला था तथा व्यापार में आवश्यक धन बैंक की शर्तो के मुताबिक धन निकासी व जमा करता था। परिवादी ने बैंक के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठान का बीमा कराया था जिसका बीमा पालिसी संख्या 081082/11/12/11/00000026 है। उक्त बीमा दिनांक 30-7-2012 से दिनांक 29-7-2013 तक प्रभावी रहा। परिवादी के गोदाम में दिनांक 27-6-2013 को रात्रि 9 बजे बिजली के शार्ट सर्किट की वजह से आग लग गयी। परिवादी दूकान बन्द करके अपने घर चला गया था। आग लगने की सूचना परिवादी को मोबाइल पर प्राप्त हुई। तत्पश्चात परिवादी ने घटना की सूचना फायर विग्रेड तथा थाना कोतवाली चन्दौली को दिया। परिवादी के गोदाम में आग लगने से गोदम में रखी गयी रू0 704586/- की दवाएं पूरी तरह से जलकर नष्ट हो गयी।परिवादी के द्वारा थाना चन्दौली को दी गयी सूचना को दिनांक 28-6-2013 को दर्ज किया गया। फायर विग्रेड द्वारा मौके पर अनुमानित क्षति का आंकलन रिर्पोट रू0 500000/- का तैयार किया गया। परिवादी ने क्षतिपूर्ति हेतु आवश्यक कागजात के साथ बैंक के माध्यम से बीमा कम्पनी को आवेदन किया। बीमा कम्पनी ने अपने अधिकारी के माध्यम से मौके का सर्वे कराकर मनमाने तौर पर परिवादी का दावा इस आधार पर निरस्त कर दिया कि नष्ट दवाएं एक्सपायरी डेट की थी। परिवादी द्वारा स्टाक में रखी गयी दवाओं का बिल बाउचर दिया गया है उसमे बैच नम्बर,
                                                                                                        2
 मैन्युफैक्चरिंग डेट व एस्पायरी डेट उपलब्ध है। विपक्षी संख्या 3 ने अपने पत्र दिनांकित 25-11-2013 द्वारा परिवादी के बीमा दावा को खारिज कर दिया।
4-    विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि ने परिवाद बिल्कुल असत्य कथन पर दाखिल किया है जो स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। परिवादी के प्रतिष्ठान का प्रश्नगत बीमा, शॉप कीपर बीमा पालिसी का था जिसमे मात्र परिवादी के दूकान में रखे गये सामानों की क्षति का आवरण पालिसी में वर्णित नियम,उपनियम,प्रतिबन्ध व अपर्वजन शर्तो के साथ रहा।परिवादी के प्रतिष्ठान के क्षतिदावे में भारत सरकार के मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ श्री ए0के0 पाण्डेय के द्वारा स्थल के निरीक्षण के उपरान्त जो आख्या उपलब्ध करायी गयी है उसमें अग्नि दूकान से सटे भाग में लगी थी जिसे परिवादी द्वारा गोदाम के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। अतः अग्नि गोदाम में लगी थी जो प्रश्नगत बीमा पालिसी से आच्छादित नही रही। आग में नष्ट हुई दवाएं एक्सपायरी डेट की पायी गयी। तथा परिवादी अपने प्रतिष्ठान के आय-व्यय विवरण,स्टाक रजिस्टर आदि सत्यापन हेतु अन्वेषककर्ता को उपलब्ध नहीं कराया जिससे क्षति का सही-सही आंकलन किया जा सके। बीमा पालिसी में बीमाधन मात्र रू0 500000/- प्रदर्शित है जबकि परिवादी प्रतिष्ठान के द्वारा स्टाक की कीमत रू0 704586/- दिखाया गया है। परिवादी प्रतिष्ठान के द्वारा कम धनराशि का बीमा कराया गया है तथा प्रश्नगत बीमा अण्डर इश्योरेंस दोषयुक्त है। प्रश्नगत बीमा व्यवसायिक बीमा है। उक्त बीमा पालिसी के प्रति क्षतिदावा के लिए रू0 10000/- का एक्सेस क्लाज की शर्त उल्लिखित है। इस प्रकार क्षति विशेषज्ञ ने परिवादी के प्रतिष्ठान की कुल क्षति रू0 18667.13 पैसा मात्र की क्षति अनुमोदित किया है। परिवादी ने एक्सपायरी डेट की दवाओं को जलाकर क्षति प्राप्त करने का प्रयास किया है। इसलिए क्षति रिर्पोट में प्रदर्शित क्षति की धनराशि से अधिक की धनराशि परिवादी प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। इश्योरेंस अधिनियम 1938 के प्राविधान के अनुसार विपक्षी कम्पनी क्षति विशेषज्ञ से प्राप्त आख्यानुसार ही क्षति पूर्ति का निस्तारण करने के लिए बाध्य है। क्षति विशेषज्ञ के द्वारा अनुमोदन क्षति धनराशि देय न पाये जाने के कारण परिवादी का क्षतिदावा निरस्त करने का निर्णय बीमा कम्पनी के सक्षम अधिकारी द्वारा लिया गया है।
5-    विपक्षी संख्या 3 द्वारा जबाबदावा प्रस्तुत करते हुए संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी मेसर्स शिवम फार्मा एकल स्वामित्व प्रतिष्ठान है जिसके स्वामी अरविन्द कुमार यादव है जिनके द्वारा दवाओं के थोक क्रय-विक्रय का व्यवसाय किया जाता है। परिवादी के अनुरोध पर विपक्षी संख्या 3 द्वारा समस्त विधिक औपचारिकताएं पूर्ण कर रू0 200000/- का वित्तीय सहायता एस0ओ0डी0खाता संख्या 86761240000020 प्रदान किया गया जिससे परिवादी अपना कारोबार संचालित करता था। परिवादी के सहमति पर रू0 200000/- का बीमा विपक्षी संख्या 1 से कराया गया। जिसके किश्तों का भुगतान विपक्षी संख्या 3 द्वारा परिवादी के खाते से नियमित रूप से विपक्षी संख्या 1 के नियम एवं शर्तो के अधीन
                                                                                 3
 किया जाता था। परिवादी द्वारा दिनांक 28-6-2013 को पत्र के माध्यम से शिवम फार्मा में शार्ट सर्किट द्वारा दिनांक 27-6-2013 को आग लगने एवं तमाम दवाओं के जलकर नष्ट होने की सूचना दी गयी जिसकी कीमत परिवादी द्वारा लगभग 704586/- बतायी जा रही है। परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 1 व 2 से दावा पूर्ति हेतु अनुरोध किया गया था जिससे विपक्षी संख्या 3 को उक्त घटना की जानकारी प्राप्त हुई। विपक्षी संख्या 1 द्वारा हम विपक्षी को सूचित किया गया कि आग लगने के कारण जली हुई दवाएं एक्सपायरी डेट की है। अतएव क्षतिपूर्ति का दावा तद्नुसार निर्णित कर दिया गया है। परिवादी ने हम विपक्षी से कोई अनुतोष नहीं मांगा है इस प्रकार विपक्षी संख्या 3 किसी भी प्रकार से कत्तई उत्तरदायी नहीं है। इस प्रकार विपक्षी संख्या 3 ने परिवादी के परिवाद पत्र को अपने विरूद्ध निरस्त करने की प्रार्थना की है।
6-    परिवादी की ओर से अपने परिवाद के समर्थन में परिवादी अरविन्द कुमार यादव का शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादी ने अपनी प्रतिष्ठान के सेल लाइसेंस,टीन नम्बर से सम्बन्धित प्रमाण पत्र की छायाप्रतियां दाखिल की है इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा थाना प्रभारी कोतवाली चन्दौली को दिये गये प्रार्थना पत्र की छायाप्रति दाखिल की है तथा परिवादी की दूकान मे मौजूद जो दवाएं जलना कहा जाता है उससे सम्बन्धित बिल बाउचर/रसीदें,समाचारपत्रों की छायाप्रतियां तथा शाखा प्रबन्धक सिडीकेट बैंक चन्दौली को परिवादी की ओर से प्रेषित प्रार्थना पत्र की छायाप्रतियां दाखिल की गयी है जो कागज संख्या 3/1लगा03/44 है।
7-    विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से उनके प्रतिवाद पत्र के समर्थन में यूनाइटेड इण्डिया इश्योंरेस कम्पनी के वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक श्री आर0के0 गोस्वामी का शपथ पत्र दाखिल है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में क्षति रिर्पोट दिनांकित 8-8-2013,परिवादी द्वारा दिये गये क्लेम फार्म की छायाप्रति,बीमा पालिसी की छायाप्रति,परिवादी द्वारा सिडीकेट बैंक चन्दौली के शाखा प्रबंधक को दिये गये पत्र की छायाप्रति,परिवादी द्वारा थाना प्रभारी कोतवाली चन्दौली को दिये गये प्रार्थना पत्र की छायाप्रति,समाचार पत्रों की छायाप्रति 2 अदद्,क्षतिग्रस्त स्टाक की सूची की छायाप्रति तथा क्षतिग्रस्त सामानों की कीमत के विवरण की छायाप्रति दाखिल की गयी है जो कागज संख्या 19/2लगा0 19/14 है। इसके अतिरिक्त विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से क्षति विशेषज्ञ ए0के0 पाण्डेय का शपथ पत्र भी दाखिल किया गया है।
8-    विपक्षी संख्या 3 सिडीकेट बैंक की ओर से भी उनके जबाबदावा के समर्थन में बैंक के शाखा प्रबन्धक श्री ए0के0 वर्मा का शपथ पत्र दाखिल है।
9-    पक्षकारों की ओर से लिखित तर्क दाखिल किया गया है और उनके विद्वान अधिवक्तागण की मौखिक बहस भी सुनी गयी है। पत्रावली का पूर्ण रूपेण परिशीलन किया गया।

                                                                                4
10-    परिवादी की ओर से तर्क दिया गया कि परिवादी ने अपनी दूकान व दवा स्टाक का बीमा यूनाइटेड इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 से बैंक के माध्यम से करवाया था और यह बीमा दिनांक 30-7-2012 से दिनांक 29-7-2013 तक वैध था और इसी अवधि में दिनांक 27-6-2013 को रात्रि 9 बजे बिजली के शार्ट शर्किट के कारण परिवादी की दूकान में आग लग गयी उस समय परिवादी की दूकान बन्द थी और वह अपने घर चला गया था। जब आसपास के लोगों ने उसे सूचित किया तब उसने आग लगने के सम्बन्ध में फायर बिग्रेड तथा थाना चन्दौली को सूचना दिया, और थाने पर रिर्पोट दर्ज हुई। आग लगने से परिवादी के मेडिकल स्टोर से लगभग 704586/-की दवाएं जलकर नष्ट हो गयी। अग्निशमन विभाग मौके पर आकर आग बुझाया था तथा क्षति का आंकलन किया था और उनके मुताबिक परिवादी की रू0 500000/- की क्षति हुई थी। परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी को बैंक के माध्यम से क्लेम हेतु आवेदन किया लेकिन बीमा कम्पनी ने परिवादी का क्लेम इस आधार पर निरस्त कर दिया कि जली हुई दवाएं एक्सपायरी डेट की थी जिसका विपक्षी के पास कोई आधार नहीं है और न ही कोई ऐसा साक्ष्य मौके से प्राप्त हुआ है जिससे साबित हो कि दवायें एक्सपायर्ड थी। विपक्षी बीमा कमपनी ने एकतरफा और मनमाने तौर पर परिवादी का क्लेम खारिज किया है जबकि परिवादी अपने स्टाक में जो दवा रखा था उसका बिल बाउचर मौजूद है जिस पर बैच नम्बर तथा मैन्यूफैक्चरिंग डेट व एक्सपायरी डेट उपलब्ध है। परिवादी ने बीमा कम्पनी से क्लेम पर पुर्नविचार करने का अनुरोध किया था लेकिन उन्होंने पुर्नविचार करने से दिनांक 10-12-2013 को इन्कार कर दिया।
11-    परिवादी के अधिवक्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि विपक्षी का यह कथन गलत है कि बीमा दूकान का कराया था जबकि आग गोदाम में लगी है। बल्कि सत्यता यह है कि परिवादी अपनी दूकान को ही गोदाम के रूप में इस्तेमाल करता है वह अन्य किसी जगह स्टाक नहीं रखता है बल्कि बीमित स्थान पर ही वह दवाओं का स्टाक रखता है और बीमा पालिसी में स्टाक रखने का पता स्पष्ट रूप से अंकित है। इस प्रकार परिवादी का क्लेम विपक्षी बीमा कम्पनी ने गलत ढंग से खारिज किया है। अतः परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है और परिवादी मांगी गयी क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
12-    इसके विपरीत विपक्षी संख्या 1 व 2 के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि परिवादी ने जो क्लेम फार्म क्षतिपूर्ति प्राप्त करने हेतु जमा किया है उसमे क्षति दूकान के पीछे गोदाम में होना उल्लिखित है जबकि बीमा पालिसी के अनुसार बीमा दूकान में रखे गये सामान का कराया गया है। परिवादी का गोदाम बीमा पालिसी के तहत आच्छादित नहीं है। अतः गोदाम में रखी गयी दवाओं के जलने से जो क्षति हुई है उसके लिए बीमा कम्पनी उत्तरदायी नहीं है।

                                                                                           5
    विपक्षी संख्या 1 व 2 के अधिवक्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि प्रस्तुत मामले में बीमा कम्पनी ने सर्वेयर से घटनास्थल का सर्वे कराया है और सर्वेयर द्वारा निरीक्षण किये जाने पर जली हुई दवाएं एक्सपायरी पायी गयी। क्षति विशेषज्ञ (सर्वेयर) ने अपनी आख्या में यह कहा है कि क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए परिवादी ने बनावटी क्षति का सहारा लिया है। क्षति के आंकलन के लिए परिवादी ने वांछित प्रपत्र भी उपलब्ध नहीं कराया। परिवादी के प्रतिष्ठान की जो स्टाक की सीमा बतायी गयी है वह बीमा धन से अधिक कीमत की है। अतः बीमा पालिसी से कम बीमा कराये जाने का दोष निहित है। परिवादी ने स्वच्छ ह्दय से परिवाद प्रस्तुत नहीं किया है। विपक्षी बीमा कम्पनी के द्वारा क्षति दावे में प्राप्त अभिलेखों का विधिवत अध्ययन करते हुए मस्तिष्क लगाकर निर्णय लिया गया है और विपक्षी कम्पनी द्वारा क्लेम निरस्त करने के सम्बन्ध में जो निर्णय लिया गया है उसमें कोई त्रुटि नहीं है। अतः परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है और उसका परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है। 
    विपक्षी संख्या 3 की ओर से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी के अनुरोध पर विपक्षी संख्या 3 अर्थात सिडीकेट बैंक चन्दौली ने परिवादी के परिसर का बीमा विपक्षी संख्या 1 व 2 के यहॉं से कराया था और यह बीमा दुर्घटना के समय जारी था। विपक्षी संख्या 3 की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। अतः वह किसी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है और परिवादी ने उसके विरूद्ध कोई अनुतोष भी नहीं चाहा है अतः उसके विरूद्ध परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
    पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिशीलन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी ने अपनी दूकान का बीमा विपक्षी संख्या 1 व2 अर्थात यूनाइटेड इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 से कराया था और यह बीमा दिनांक 30-7-2012 से 29-7-2013 तक वैध था। परिवादी के परिसर में दिनांक 27-6-2013 को रात्रि 9 बजे आग लगने का तथ्य भी स्वीकृत है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से परिवादी का क्लेम खारिज करने के सम्बन्ध में मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी ने बीमा अपनी दूकान का कराया था जबकि आग उसके गोदाम में लगी थी और उसने क्लेम फार्म में भी गोदाम में आग लगने की बात कहते हुए क्षतिपूति प्राप्त करने हेतु आवेदन किया था जबकि उसके गोदाम का कोई बीमा हुआ ही नहीं है। इस सम्बन्ध में विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से उनके अधिवक्ता द्वारा सर्वेयर ए0के0 पाण्डेय की रिर्पोट तथा उनके द्वारा दाखिल शपथ पत्र का हवाला दिया गया है। सर्वेयर की रिर्पोट के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि इसमे यह कहा गया है कि परिवादी की दूकान 12 फिट, /10फिट,/10फिट की है जिसमे 2 शटर लगे है और 3 तरफ की दीवालों में रैक बने है और सामने लकडी का काउन्टर बना है और इसके ठीक पीछे ही दूसरी दूकान है जिसमे 1 शटर लगा है जिसका फर्श कच्चा है और दीवाले प्लास्टर नहीं की गयी है जिसके दो तरफ अस्थायी रैक बने है जिसमे खाली कार्टून और एक्सपायरी दवाएं रखी गयी है तथा एक कम्प्यूटर 
                                                                                 6
रखा गया है। इस प्रकार सर्वेयर की रिर्पोट से भी यह स्पष्ट होता है कि परिवादी के जिस परिसर में आग लगी है वह दूकान ही है जो आगे व पीछे दो भागों में विभक्त है। सर्वेयर ने भी अपनी रिर्पोट में कही गोदाम होने का उल्लेख नहीं किया है। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि बीमा शिवर्म फार्मा अर्थात परिवादी की दूकान का ही हुआ है। पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि परिवादी की दूकान व गोदाम अलग-अलग परिसरों में स्थित है। जब  एक ही दूकान आगे पीछे दो हिस्से में बनी है तब यह नहीं माना जा सकता है कि परिवादी ने उक्त दूकान के आधे भाग का बीमा कराया हो और आधा भाग बीमा रहित हो।अतः मुकदमें के सम्पूर्ण तथ्यों,परिस्थितियों एवं साक्ष्य के परिशीलन से फोरम की राय में विपक्षी यह सिद्ध करने में विफल रहा है कि परिवादी ने बीमा अपनी दूकान का काराया था जबकि आग उसके गोदाम में लगी है और गोदाम बीमा से आच्छादित नही है क्योंकि परिवादी ने अपने शपथ पत्र में बीमा कराने की बात कही है और अग्निशमन अधिकारी चन्दौली की जो रिर्पोट कागज संख्या 3/5ता3/6 दाखिल की है उससे भी यह स्पष्ट होता है कि आग परिवादी के मेडिकल स्टोर में ही लगी है जिसे फायर बिग्रेड द्वारा बुझाया गया है। इस रिर्पोट में कही यह नहीं कहा गया है कि परिवादी की दूकान और गोदाम अलग-अलग है। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जिस परिसर में आग लगी थी वह परिसर विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमित रहा है।
विपक्षी 1 व 2 की ओर से दूसरा तर्क यह दिया गया है कि जो दवाएं जली थी वह एक्सपायर्ड थी जैसा कि सर्वेयर की रिर्पोट एवं उनके शपथ पत्र में उल्लिखित है।
    इस सम्बन्ध में परिवादी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया है कि जो दवाएं जली थी उनमे से कोई भी दवा एक्सपायरी नहीं थी जो दवाएं जली थी उनका बिल बाउचर परिवादी की ओर से पत्रावली में दाखिल किया गया है जिसमे सभी दवाओं का बैच नम्बर तथा एक्सपायरी की डेट का स्पष्टरूप से उल्लेख किया है और इनके अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई दवा एक्सपायर्ड नहीं थी। परिवादी पक्ष के उपरोक्त तर्क में बल पाया जाता है क्योंकि जब विपक्षीगण की ओरसे यह अभिकथन किया गया है कि जली हुई दवाएं एक्सपायर्ड थी तो इस तथ्य को सिद्ध करने का भार मूल रूप से विपक्षी संख्या 1 व2 पर ही है किन्तु उनकी ओर से ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है जिससे यह साबित हो कि जो दवाएं जली थी वे एक्सपायर्ड थी जहॉंतक सर्वेयर की रिर्पोट का प्रश्न है तो यह रिर्पोट फोरम की राय में बिल्कुल विश्वास योग्य नही पायी जाती क्योंकि इस रिर्पोट में सर्वेयर ए0के0 पाण्डेय ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि उन्होनें घटनास्थल के 16 फोटोग्राफ लिये थे जिससे प्रभावित परिसर की स्थिति,स्टाक तथा एक्सपायरी डेट के बारे में जानकारी होती है उन्होने अपनी रिर्पोट में लिखा है कि यह 16 फोटोग्राफ रिर्पोट के साथ संलग्न है किन्तु विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से
                                                                                                   7
सर्वेयर की जो रिर्पोट कागज संख्या 19/2 ता 19/6 दाखिल है उसके साथ एक भी फोटोग्राफ दाखिल नहीं है अतः सर्वेयर रिर्पोट की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है क्योंकि विपक्षीगण की ओर से इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया है कि, जब सर्वेयर की रिर्पोट उनके द्वारा दाखिल की गयी है, तो उसके साथ संलग्न 16 फोटोग्राफ दाखिल क्यों नहीं किये गये, इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि इन फोटोग्राफ में जो तथ्य पाये गये वे विपक्षी बीमा कम्पनी के प्रतिकूल थें इसीलिए उन्होंने इन फोटोग्राफों को फोरम के समक्ष दाखिल नहीं किया। यहॉं यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि यदि सर्वेयर को मौके पर दवा का कोई ऐसा रैपर या कवर मिली थी जिसके आधार पर उन्होंने दवाओं को एक्सपायर्ड कहा था तो उक्त एक्सपायर्ड दवाओं के जले हुए रैपरों या कवरों को सर्वेयर द्वारा कब्जे में लिया जाना चाहिए था और उन्हें फोरम के समक्ष भी दाखिल किया जाना चाहिए था लेकिन विपक्षी की ओर से ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है। अतः विपक्षी 1 व 2 यह सिद्ध करने में भी पूर्णतः विफल रहे है कि जली हुई दवाएं एक्सपायर्ड दवाएं थी।
    विपक्षी संख्या 1 व 2 की ओर से यह भी तर्क दिया गया है कि परिवादी की दूकान में जो आग लगी है वह शार्ट सर्किट से नहीं लगी थी बल्कि क्लेम प्राप्त करने के लिए परिवादी ने बनावटी क्षति का सहारा लिया है। फोरम की राय में विपक्षीगण के उपरोक्त तर्क में कोई बल नहीं पाया जाता है क्योंकि परिवादी की ओर से अग्निशमन अधिकारी चन्दौली की रिर्पोट दाखिल की गयी है जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा सूचना देने के बाद अग्निशमन अधिकारी जब मौके पर पहुंचे तो उस समय परिवादी अरविन्द कुमार के मेडिकल स्टोर में आग लगी थी जो तेजी से जल रही थी जिससे दूकान का शटर काफी गर्म हो गया था जिसको एम0एफ0ई0 से पम्पिंग कर ठण्डा किया गया और फिर मालिक अर्थात अरविन्द कुमार द्वारा चाभी से शटर को खोलवाया गया और तब रूक-रूक के पम्पिंग करते हुए आग को पूर्ण रूप से बुझा दिया गया। अग्निशमन अधिकारी ने अपनी आख्या में लिखा है कि आग इलेक्ट्रिक शार्ट सर्किट से लगना ज्ञात हुआ है। अग्निशमन अधिकारी की उपरोक्त रिर्पोट से यह स्पष्ट है कि जिस समय परिवादी की दूकान में आग ली थी उसी समय अग्निशमन अधिकारी मौके पर पहुचे थे और उनके द्वारा आग बुझवायी गयी थी उन्होनें आग लगने का कारण बिजली के शार्ट सर्किट होना पाया है,जब वह मौके पर पहुंचे उस समय परिवादी की दूकान बन्द थी और उनके सामने शटर को ठण्डा करके परिवादी से चाभी लगवाकर शटर खोलवाया गया जहॉं मौके पर आग लगी हुई पायी गयी। अग्निशमन अधिकारी की रिर्पोट के अनुसार रू0 500000/-की सम्पत्ति की क्षति हुई। मौके पर कोई ऐसी ज्वलनशील सामग्री या ईधन नहीं पाया गया जिससे यह माना जा सके कि परिवादी प्रायोजित ढंग से क्लेम प्राप्त करने के लिए दूकान में आग लगाया हो। अग्निशमन अधिकारी एक सरकारी अधिकारी है और वे जिस समय आग लगी थी उसी समय घटना स्थल पर पहुचे है। अतः उनकी निष्पक्षता एवं उनके रिर्पोट की विश्वसनीयता पर संदेह नहीं किया जा सकता है।
                                                                                 8
    अतः पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों के परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी ने अपनी दूकान/मेडिकल स्टोर का बीमा विपक्षी संख्या 1 व 2 से कराया था और दिनांक 27-6-2013 को रात्रि 9 बजे परिवादी की दूकान में आग लगने के कारण दवाएं जलकर नष्ट हो गयी। उस समय परिवादी का बीमा प्रभावी था। अतः परिवादी विपक्षी संख्या 1 व 2 से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। जहॉंतक क्षतिपूर्ति की धनराशि का प्रश्न है तो परिवाद में परिवादी ने यह कहा है कि आग लगने से उसकी रू0 704586/- की दवाएं जलकर पूरीतरह से नष्ट हो गयी थी अपने शपथ पत्र में भी परिवादी ने यही बात कही है और उसकी ओर से जली हुई दवाओं का जो बिल-बाउचर दाखिल किया है वह भी लगभग रू0 704586/- का है किन्तु अग्निशमन अधिकारी चन्दौली की जो रिर्पोट स्वयं परिवादी की ओर से दाखिल की गयी है उसमे सम्पत्ति की क्षति रू0 500000/- का दिखायी गयी है। परिवादी ने जो बीमा कराया है वह भी रू0 500000/-का है। अतः उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए परिवादी के मेडिकल स्टोर में आग लगने से जो क्षति हुई उसकी क्षतिपूर्ति के रूप में परिवादी को विपक्षी संख्या 1 व 2 से बतौर क्षतिपूर्ति रू0 500000/- दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है इसके अतिरिक्त परिवादी को मानसिक परेशानी के कारण हुई क्षति के क्षतिपूर्ति हेतु रू0 50000/- दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है तथा वाद व्यय के रूप में रू0 2,000/- अर्थात कुल रू0 507000/- क्षतिपूर्ति दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है और इस प्रकार उसका परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
                                                                                          आदेश
    परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 1 व 2 को आदेशित किया जाता है कि वे  निर्णय की तिथि से 2 माह के अन्दर परिवादी की दूकान में आग लगने के कारण जो क्षति हुई है उसकी क्षतिपूर्ति के रूप में परिवादी को रू0 500000/-(पांच लाख) तथा परिवादी को जो मानसिक परेशानी हुई है उसकी क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 5000/-(पांच हजार) तथा वाद व्यय के रूप में रू0 2000/-(दो हजार) अर्थात कुल रू0 507000/-(पांच लाख सात हजार) अदा करें। यदि विपक्षी संख्या 1 व 2 उपरोक्त अवधि में उपरोक्त धनराशि का भुगतान नहीं करते है तो परिवादी निर्णय की तिथि से पैसा प्राप्त होने की तिथि तक उपरोक्त धनराशि पर 8 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से व्याज प्राप्त करेगा।

 (लक्ष्मण स्वरूप)                                     (रामजीत सिंह यादव)
 सदस्य                                                            अध्यक्ष
                                                                   दिनांकः 17-10-2016

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.