मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
परिवाद संख्या 197 सन 2002
बागपत को-आपरेटिव सुगर मिल्स लि0 बागपत द्वारा जनरल मैनेजर ।
.......परिवादी
-बनाम-
1. यू0पी0 पावर कार्पोरेशन लि0 द्वारा चेयरमैन शक्ति भवन, लखनऊ ।
2. इक्जीक्यूटिव इंजीनियर, विद्युत वितरण खण्ड, बागपत, जिला बागपत ।
. .........विपक्षीगण
समक्ष:-
मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य ।
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री सर्वेश कुमार शर्मा ।
विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री इसार हुसैन ।
दिनांक:-08.02.2021
श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
यह परिवाद, विपक्षी विद्युत कम्पनी से 70 के0वी0ए0 का विद्युत कनेक्शन प्राप्त करने के लिए, परिवादी द्वारा जमा की गयी राशि पर 24 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने के लिए एंव वैकल्पिक रूप से अंकन 3,61,906.00 रू0 24 प्रतिशत ब्याज सहित प्रदान करने के लिए, मानसिक प्रताड़ना के लिए 02 लाख तथा वाद खर्च के लिए 10 हजार रू0 प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी सुगर मिल ने घरेलू विद्युत कनेक्शन 70 के0वी0ए0 का प्राप्त करने के लिए अपने कर्मचारियों की कालोनी में फैन एवं लाइट के कनेक्शन हेतु आवेदन किया था। विपक्षी द्वारा अंकन 3,67,555.00 रू0 का स्टीमेट बनाया गया । परिवादी द्वारा दिनांक 26.03.99 को इस आशय का पत्र लिखा गया कि नई विद्युत लाइन बिछाने की आवश्यकता नहीं है इसलिए अंकन 21,000.00 रू0 प्रतिभूति के रूप में जमा करने के लिए परिवादी तैयार है और अनुरोध किया कि अंकन 3,67,555.00 रू0 जमा न कराऐं जाऐं। परन्तु विपक्षीगण ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया और अंकन 3,40,906.00 रू0 विद्युत लाइन बिछाने के बावत मांग की।
परिवादी ने यह राशि जमा कर दी है परन्तु इस राशि के प्राप्त करने के बावजूद प्रतिवादीगण ने विद्युत कनेक्शन जारी नहीं किया और दिनांक 17.07.02 के पत्र द्वारा सूचित किया कि परिवादी पर 12,01,582.00 विद्युत उपभोग का बकाया है, इसलिए जब तक उस राशि का भुगतान नही कर दिया जाता तब तक नया विद्युत कनेक्शन जारी नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर परिवाद प्रस्तुत कर उपरोक्त वर्णित अनुतोष की मांग की गयी ।
प्रतिवादीगण का मुख्य कथन यह है कि चूंकि परिवादी पर पहले का विद्युत बिल बकाया है, इसलिए जब तक उस रकम का भुगतान नहीं कर दिया जाता तब तक दूसरा बिजली कनेक्शन जारी नहीं किया जा सकता तथा परिवादी उपभोक्ता न होने तथा परिवाद समायावधि से बाधित होने की भी आपत्ति की गयी है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क यह है कि परिवादी एक सहकारी समिति है, इसलिए उपभोक्ता की श्रेणी में आती है, जबकि विपक्षीगण का तर्क है कि परिवादी एक कम्पनी है तथा व्यापारिक कार्य में संलग्न है, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(डी) में वर्णित उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आती है।
जैसा कि परिवादी के पदनाम से ही जाहिर हो जाता है कि परिवादी सहकारी समिति है, अत: उपभोक्ता की श्रेणी में आती है और उसे विद्युत विभाग के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।
जहां तक परिवादी के व्यापारिक कार्यो में संलग्न होने का प्रश्न है, इसका उत्तर है कि परिवादी विद्युत विभाग से विद्युत प्राप्त कर किसी अन्य व्यक्ति को आपूर्ति नही करता है इसलिए परिवादी व्यापारी नहीं है और अपने मिल के कर्मचारियो को विद्युत की आपूर्ति के लिए उपभोक्ता मात्र है।
अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या परिवादी को परिवाद पत्र में वर्णित अनुतोष या वैकल्पिक अनुतोष प्रदान किया जा सकता है। बहस के दौरान यह स्थिति स्पष्ट हुयी है कि परिवादी मिल पर विद्युत विभाग का बकाया है, इसलिए बकाए के भुगतान के बिना विद्युत विभाग को यह अधिकार प्राप्त है कि वह परिवादी के पक्ष में नया विद्युत कनेकशन जारी न करे।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गयी है कि बिद्युत बसूली से संबंधित एक मामला मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के समक्ष लम्बित है। विद्युत विभाग के विद्वान अधिवक्ता को भी इस तर्क से इन्कार नहीं है कि विद्युत शुल्क बकाया से संबंधित प्रकरण मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष लम्बित है । उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
परिवाद खारिज किया जाता है।
पक्षकार अपना खर्च स्वयं वहन करेंगे।
(सुशील कुमार) (गोवर्धन यादव)
सदस्य सदस्य
कोर्ट-2
(Subol)