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Mr.Javed filed a consumer case on 17 Dec 2020 against The New India Insurance CO.LTD. in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/63/2018 and the judgment uploaded on 18 Dec 2020.
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग-द्वितीय, मुरादाबाद
परिवाद संख्या-63/2018
जावेद पुत्र श्री नन्हे निवासी म0नं0-8 मौ0-नाला दीपा सराय नगर व जिला संभल। ..........परिवादी
बनाम
दा न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लि0 द्वारा अपने मण्डलीय प्रबन्धक मण्डलीय कार्यालय द्वितीय 105 शान्ति नगर सिविल लाइन्स, मुरादाबाद।.......विपक्षी
वाद दायरा तिथि: 08-08-2018 निर्णय तिथि: 07-12-2020
(श्रीमती अलका श्रीवास्तव, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
1-परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी के विरूद्ध प्रश्नगत दुर्घटनाग्रस्त बस की बीमा धनराशि 2,63,000/-रूपये मय 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज व मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति अंकन-50,000/-रूपये एवं वाद व्यय दिलाये जाने हेतु योजित किया है।
2-संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी की बस पंजीकरण संख्या-यूपी 38टी-2319 का बीमा 20 लाख रूपये के लिए विपक्षी के यहां कराया गया था, जो दिनांक 11-01-2017 से 10-01-2018 तक वैध व प्रभावी था। बीमित अवधि में दिनांक 01-12-2017 को उक्त बस संभल से बदायॅू जा रही थी, रोहडिया के पास समय करीब 8.30 बजे एक नील गाय के अचानक सामने आ जाने पर उक्त बस अनियंत्रित होकर पेड़ से टकरा गई, जिससे बस काफी क्षतिग्रस्त हो गई और कोई जानी नुकसान नहीं हुआ। सूचना देने पर विपक्षी ने बस का स्थल निरीक्षण कराया, सर्वेयर के कहने पर बस मरम्मत में होने वाले व्यय का एस्टीमेट विपक्षी कार्यालय में जमा कराया, जिसमें अनुमानित व्यय लगभग 5 लाख रूपये पाया गया। विपक्षी ने कहा कि परिवादी अपने स्तर से वाहन की मरम्मत करा ले, जो भी व्यय आयेगा, परिवादी को उसका भुगतान कर दिया जायेगा। परिवादी ने उक्त बस की मरम्मत करायी, जिसमें परिवादी को लगभग 4 लाख रूपये व्यय करने पड़े, जिसके बिलों को परिवादी ने विपक्षी को उपलब्ध कराया और व्यय हुए 4 लाख रूपये की मांग की, जिसपर विपक्षी ने जांचोपरान्त मात्र 1,37,000/-रूपये का भुगतान परिवादी को किया गया और सैकड़ों चक्कर लगाने के बावजूद शेष राशि 2,63,000/-रूपये का भुगतान करने से विपक्षी ने इंकार कर दिया। अतएव उक्त अनुतोष हेतु यह परिवाद योजित किया गया है।
3-परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में बीमा पालिसी, प्रीमियम शैड्यूल, बस का पंजीकरण प्रमाण पत्र, संबंधित थाने में दिये गये प्रार्थना पत्र व अपना शपथपत्रीय साक्ष्य 8क प्रस्तुत किया है।
4-विपक्षी ने अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें वाद का विरोध मुख्य रूप से इस आधार पर किया है कि दिनांक 01-12-2017 को कथित दुर्घटना के पश्चात बस को परिवादी ने मौके से हटा दिया तथा नियमानुसार कंपनी को समय से सूचना नहीं दी गई बल्कि काफी विलम्ब से दिनांक 04-12-2017 को सूचना दी गई, जिस कारण से स्पोट सर्वे नहीं किया जा सका, जबकि 24 घण्टे के अंदर सूचना देना अनिवार्य था, परिवादी ने बीमा शर्तों का स्वयं उल्लंघन किया है। दिनांक 05-12-2017 को सर्वेयर श्री वी.पी. माहेश्वरी को बस में हुए नुकसान के आंकलन हेतु नियुक्त किया गया परन्तु क्लेम फार्म परिवादी द्वारा आईडीबी व एस्टीमेट मरम्मत के साथ दाखिल नहीं किया गया, जो कि विपक्षी द्वारा दाखिल किया गया है। सर्वेयर द्वारा 62,700/-रूपये लेबर चार्ज तथा मैटल, रबर एवं ग्लास पार्ट के संदर्भ में नियमानुसार ह्रास के घटाते हुए 1,38,009.24 रूपये व कुल 2,01,719/-रूपये के संदर्भ में रिपोर्ट सर्वेयर के द्वारा दी गई। स्थल निरीक्षण न करने के कारण कुल धनराशि की 25 प्रतिशत राशि कम करते हुए तथा 1500 रूपये एवं 10780 रूपये साल्वेज आदि के कम करते हुए कथित धनराशि की अदायगी की गई, जिस संदर्भ में किसी प्रकार की कोई आपत्ति परिवादी ने चेक प्राप्त करते समय नहीं की। परिवाद असत्य कथनों व दुर्भावना पर आधारित तथा नियम व प्रावधानों के विपरीत है, जो खारिज होने योग्य है।
5-विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में मोटर वाहन दुर्घटना की सूचना, मोटर क्लेम फार्म, रिवाइज्ड एस्टीमेट, फाईनल सर्वे रिपोर्ट, शरीफ बॉडी मेकर, सम्भल द्वारा जारी एस्टीमेट, परिवादी द्वारा थाने में दिये गये प्रार्थना पत्र, क्षतिग्रस्त बस के फोटो, मोटर क्लेम एनलाइसिस शीट एवं विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा परिवादी को प्रेषित पत्रों को अपने शपथपत्र के साथ प्रस्तत किया है तथा अपने काउन्टर शपथपत्र के साथ भी उक्त प्रपत्रों को पुन: दाखिल किया गया है।
6-हमने पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी और पत्रावली का पूर्ण रूप से परिशीलन किया।
7-परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद पत्र को दोहराते हुए मुख्य तर्क दिया है कि प्रश्नगत दुर्घटनाग्रस्त बीमित बस की कम मरम्मत राशि का भुगतान करके और शेष मरम्तत धनराशि अंकन-2,63,000/-रूपये का भुगतान न करके विपक्षी बीमा कंपनी ने सेवा में कमी की है। विपक्षी ने सर्वे रिपोर्ट के समर्थन में सर्वेयर का शपथपत्र प्रस्तुत नहीं किया है, जो मान्य नहीं है। अतएव वांछित अनुतोष दिलाया जाये।
8-विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने उपरोक्त तर्कों के विरोध में अपने प्रतिवाद पत्र को दोहराते हुए मुख्य तर्क दिया है कि परिवादी ने बस दुर्घटना की सूचना अत्यन्त विलम्ब से दी, जिसके कारण घटना का स्पोट सर्वे नहीं कराया जा सका, परिवादी ने स्वयं बीमा शर्तों का उल्लंघन किया है। सर्वेयर की रिपोर्ट के अनुसार उसे क्लेम का भुगतान किया जा चुका है, अब कोई अन्य राशि परिवादी पाने का हकदार नहीं है। परिवाद मिथ्या कथनों पर आधारित है। परिवाद निरस्त किया जावे।
9-दुर्घटना में प्रश्नगत बीमित बस का क्षतिग्रस्त होना दोनों पक्षों को स्वीकार है, जिसका सर्वे रिपोर्ट में भी कोई एतराज नहीं किया गया है। विवाद केवल इस बात का है कि परिवादी के अनुसार बस की मरम्मत में 4 लाख रूपये खर्च हुए, जिसमें से मात्र 1,37,000/-रूपये का भुगतान विपक्षी ने परिवादी को किया। इसके विपरीत विपक्षी का कथन है कि सर्वे रिपोर्ट के अनुसार ही परिवादी को उक्त धनराशि का भुगतान नियमानुसार किया गया है। परिवादी ने उपरोक्तानुसार दिनांक 01-12-2017 को बस दुर्घटनाग्रस्त होना बताया है, जबकि कंपनी को इसकी सूचना अत्यन्त विलम्ब से दिनांक 04-12-2017 को दी गई, जिसकी पुष्टि विपक्षी द्वारा दाखिल प्रपत्र 7क/8 दिनांकित 04-12-2017 मोटर वाहन दुर्घटना की सूचना से होती है। इसी संदर्भ में विपक्षी की ओर से अपने प्रतिवाद पत्र व शपथपत्र के साथ परिवादी द्वारा कंपनी में प्रस्तुत किया गया क्लेम फार्म कागजल सं.-7क/9ता10 भी प्रस्तुत किया गया है, जो दिनांक 04-12-2017 को ही विपक्षी कार्यालय में दिया गया है। ये दोनों प्रपत्र परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र या शपथपत्र के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया है। जिससे यह तथ्य साबित होता है कि परिवादी ने उक्त बस दुर्घटना के 3 दिन बाद घटना की सूचना विपक्षी को दी है, जो बीमा शर्तों का घोर उल्लघन है तथा यह ‘तुरन्त सूचना’ की श्रेणी में नहीं आता है। देर से सूचना देने तथा बस को मौके से हटा देने के कारण स्थल निरीक्षण नहीं कराया जा सका तथा सर्वेयर ने मैटल, रबर व ग्लास के पार्टस का ह्रास व साल्वेज उपलब्ध न कराने के कारण नियमानुसार कटौतियां करते हुए दुर्घटनाग्रस्त बस में हुए नुकसान का आंकलन करते हुए, जिस धनराशि के भुगतान की संस्तुति की गई, उसके संदर्भ में परिवादी को 1,37,000/-रूपये का भुगतान किया गया है, जो सही है। परिवादी ने जबकि परिवादी ने बस मरम्मत में 4 लाख रूपये खर्च होना बताया है। इस संदर्भ में दोनों पक्षों की ओर से शरीफ बॉडी मेकर, संभल द्वारा सादे कागज पर हस्तलिखित एस्टीमेट की छायाप्रति दाखिल की गई है लेकिन परिवादी की ओर से ऐसी कोई रसीद आदि दाखिल नहीं की गई है, जिससे यह साबित हो कि परिवादी ने बस मरम्मत कर्ता को 4 लाख रूपये का भुगतान किया गया है। विपक्षी ने पार्टस व साल्वेज आदि के संदर्भ में कटौतियां करते हुए किये गये भुगतान के संबंध में अपना प्रति शपथपत्र प्रस्तुत किया गया है, जिसके खण्डन में परिवादी की ओर से कोई रिज्वाइंडर शपथपत्र भी प्रस्तुत नहीं किया गया है। न ही परिवादी ने यह कथन किया गया है कि सर्वे रिपोर्ट गलत है। तर्क के दौरान परिवादी के अधिवक्ता द्वारा मात्र यह कथन किया गया कि बस का बीमा 20 लाख रूपये का था तथा बस के दुर्घटना के संदर्भ में उसे पूर्ण धनराशि 4 लाख रूपये अदा की जानी चाहिए। इस संदर्भ में विपक्षी की ओर से आयोग के समक्ष कई नजीरें प्रस्तुत की गई हैं। विपक्षी द्वारा प्रस्तुत दृष्टान्त IV(2010) सीपीजे 237(एनसी), के.आर. राजशेखर बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा यह अवधारित किया गया है कि यदि पूर्ण संतुष्टि के आधार पर परिवादी द्वारा धनराशि प्राप्त कर ली गई है और उस समय कोई आपत्ति नहीं की गई है तो इस संदर्भ में बाद में सर्वेयर की रिपोर्ट को प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है। जबकि परिवादी द्वारा परिवाद में यह कथन नहीं किया गया है कि उसके द्वारा उपरोक्त चेक अथवा सर्वेयर की रिपोर्ट के संबंध में विपक्षी के समक्ष अपनी आपत्ति की गई थी। III(2017) सीपीजे 123(एनसी), नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि0 बनाम रामदेव मोदी व अन्य में संदर्भित श्री वेंकटेश्वरा सिंडीकेट बनाम ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लि0 व अन्य II(2010) एसएलटी 664 (एनसी) में मा0 न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त सर्वेयर की सर्वे रिपोर्ट में किये गये नुकसान के आंकलन के अनुसार ही क्लेम का निस्तारण करना चाहिए अर्थात सर्वेयर की रिपोर्ट को ही आधार माना जाना चाहिए। जिस संदर्भ में परिवादी की ओर से IV(2013) सीपीजे 116 (एनसी), वीर सिंह मलिक(डा0) बनाम ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लि0 प्रस्तुत करते हुए तर्क दिया गया है कि पालिसी में यदि वाहन की कीमत बतायी गई हो तो बाजारी कीमत के आधार पर नुकसान का आंकलन नहीं किया जाना चाहिए बल्कि पालिसी में दिये गये मूल्यांकन के आधार पर किया जाना चाहिए। वस्तुत: इस संदर्भ में जबकि परिवादी द्वारा परिवाद में न तो सर्वेयर रिपोर्ट, न ही उसमें दिये गये विवरण कि किस-किस पार्टस का आंकलन मरम्मत के संदर्भ में गलत किया गया, स्पष्ट रूप से जबकि सभी पार्टस के संदर्भ में सर्वेयर द्वारा बाजारी कीमत व उस पर ह्रास मूल्य नियमानुसार लगाते हुए किया गया है, ऐसा कोई अन्य शपथपत्रीय साक्ष्य नहीं है कि उपरोक्त बदले गये पार्टस से छोड़ा गया हो अथवा सर्वेयर ने किसी पार्टस का मूल्यांकन कम अथवा गलत किया हो। परिवादी की ओर से मात्र एक आपत्ति यह की गई है कि सर्वेयर को बतौर साक्षी सर्वे रिपोर्ट को साबित करने हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया है। जबकि विपक्षी द्वारा अपने साक्ष्य शपथपत्र का अंश उपरोक्त सर्वेयर रिपोर्ट को नहीं बनाया गया है। जिला आयोग द्वारा परिवादी को यह मौका भी दिया गया था कि वह बस मरम्मत हेतु अदा की गई राशि के संदर्भ में विवरण व रसीद आदि दाखिल करे किन्तु पत्रावली पर कोई साक्ष्य इस संदर्भ में प्रस्तुत नहीं किया गया है।
10-परिवादी द्वारा विधि व्यव्था 2015(2) सीपीआर 265 (एनसी), एम देवपन्ना कंचन बनाम यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी प्रस्तुत करते हुए कथन किया है कि सर्वेयर द्वारा जिस प्रकार से लगाये गये सामान के अनुमानित मूल्य तथा वास्तविक देय मूल्य को निर्धारित किया गया है और जिस प्रकार से उसमें प्रतिशत कटौतियां रबर, स्टील व कांच के पार्टस के संदर्भ में मनमाने तरीके से की हैं, क्लेम यदि वास्तविक व सत्य है तो फिर सर्वेयर की रिपोर्ट की गई कटौतियों के संदर्भ में बीमाकर्ता द्वारा आधार नहीं हो सकती। वस्तुत: बीमा कर्ता तथा परिवादी के बीच बीमा पालिसी के संदर्भ में शर्तों के अनुसार ही क्लेम देखा जाता है। वाहन इस्तेमाल के संदर्भ में ह्रास का मूल्यांकन वर्ष 2016-17 के लिए किया गया था, जिस पर प्रीमियम लिया गया तो फिर बाजारी मूल्य के आधार पर मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए। वस्तुत: रबर व स्टील के पार्टस के संदर्भ में की गई कटौती जो कि करीब 2,62,000/-रूपये कम करते हुए अंकन-1,37,000/-रूपये का भुगतान किया गया और कुल खर्च 4 लाख रूपये का बताया गया है। वस्तुत: अंतर अधिक है किन्तु परिवादी द्वारा वाहन मरम्मत के संदर्भ में कोई बिल, रसीदें अथवा किसी वर्कशॉप की कोई रसीद, जिससे यह स्पष्ट होता हो कि वास्तविक भुगतान उक्त् संदर्भ में पूरा 4 लाख रूपये का किया गया है अथवा कथित धनराशि जिसकी कोई प्राप्ति रसीद मूल या उसकी छायाप्रति दाखिल नहीं की है, केवल शपथपत्र में कथन के अतिरिक्त। जबकि विपक्षी ने अपने जवाब दावे के साथ संलग्नक के रूप में उक्त वाहन की मरम्मत के संबंध में शरीफ बाडी मेकर, सम्भल का एक हस्तलिखित अनुमानित अस्टीमेट दाखिल किया है, जिसमें नये सामान के संदर्भ में 1,91,560/-रूपये प्लस 48675/-रूपये, सप्लीमेंट्री अस्टीमेट 49900/-रूपये, मरम्मत के अंकन-95000/-रूपये इस प्रकार कुल 3,89,135/-रूपये का यह अस्टीमेट बनाया गया है किन्तु उक्त संदर्भ में वर्कशॉप/बाडी मेकर को वास्तविक रूप से कितनी धनराशि का भुगतान किया गया, इसकी कोई रसीद अथवा उपरोक्त सामान के खरीदारी/बाजारी मूल्य की कोई रसीद आदि साक्ष्य परिवादी ने प्रस्तुत नहीं किया है। उक्त् अस्टीमेट भी विपक्षी ने अपने प्रतिशपथपत्र के साथ दाखिल किया है। परिवादी द्वारा अपने शपथपत्रीय साक्ष्य में कहीं पर 2,63,000/-रूपये का भुगतान किया जाना, कहीं पर लगभग 4 लाख रूपये मरम्मत में खर्च आना, कहीं पर बीमा राशि 4 लाख रूपये का भुगतान किये जाने हेतु उल्लिखित किया है किन्तु ऐसा कोई प्रपत्र या साक्ष्य परिवादी की ओर से आयोग के समक्ष पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे यह साबित हो कि परिवादी ने प्रश्नगत वाहन की मरम्मत पर 4 लाख रूपये खर्च किये हों, जिसके अभाव में परिवादी का परिवाद साबित नहीं है।
11-उपरोक्त विवेचन, समस्त तथ्यों व पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि परिवादी अपने परिवाद को साबित करने में असफल रहा है। अतएव परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है और परिवादी का परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। वाद व्यय उभयपक्ष स्वयं वहन करेंगे।
(रूचिका सारस्वत) (चन्द किरन सिंह) (अलका श्रीवास्तव)
सदस्य, सदस्य, अध्यक्ष,
आज यह निर्णय हमारे द्वारा हस्ताक्षरित एवं दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(रूचिका सारस्वत) (चन्द किरन सिंह) (अलका श्रीवास्तव)
सदस्य, सदस्य, अध्यक्ष,
दिनांक: 07-12-2020
परिवाद सं.-63/2018
आज इस परिवाद में निर्णय उद्घोषित किया गया। आदेश हुआ कि परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। वाद व्यय उभयपक्ष स्वयं वहन करेंगे।
पत्रावली आवश्यक कार्यवाही के पश्चात दाखिल दफ्तर की जावे।
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