न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 38 सन् 2014ई0
सुमेर पुत्र स्व0 मेघन निवासी परसियॉं पो0 सोगाई जिला चन्दौली।(मृतक)
1/1बंशरोपन उम्र करीब 60 वर्ष पुत्र स्व0 सुमेर निवासीगण परसियां
1/2नामवर उम्र करीब 55 वर्ष पत्र स्व0 सुमेर चन्दौली
1/3 सुखा देवी पत्नी राजकुमार उम्र 45 वर्ष पुत्री स्व0 मेघन निवासी डोमरी थाना अदलहाट जिला मीरजापुर
...........परिवादी बनाम
1-दि न्यू इण्डिया एश्योरेन्स कम्पनी लि0 मण्डलीय कार्यालय सिगरा वाराणसी-221010 ब्रांच कार्यालय प्रबन्धक न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी जी0टी0रोड नई बस्ती मुगलसराय जनपद चन्दौली।
2-शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा सैयदराजा जिला चन्दौली।
.............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप, सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादी ने यह परिवाद चोरी गये ट्रैक्टर की क्षतिपूर्ति मु0 5,00000/- मानसिक शारीरिक क्षति हेतु मु0 1,00000/- वाद खर्च मु0 5000/- मय 12 प्रतिशत ब्याज विपक्षीगण से दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादी की ओर से परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी ने दिनांक 31-8-2006 को विपक्षी संख्या 2 से कृषि कार्य करने हेतु न्यू हालैण्ड ट्रैक्टर माडल नं0 3230 क्रय करने हेतु मु0 340370/- का ऋण लिया। जिसका चेचिस नम्बर 447194 व इंजन नं0 बी86483 रजिस्ट्रेशन संख्या यू.पी.67एन एम 0001 था। जिसका बीमा विपक्षी संख्या 2 के माध्यम से विपक्षी संख्या 1 से कराया गया, जिसकी बीमा पालिसी संख्या 42070131100100005561है। जिसकी वैधता तिथि 4-11-2010 से 3-11-2011 है।दिनांक 10-5-2011 को समय 10 बजे दिन में परिवादी के रिश्तेदार केशनाथ उर्फ स्वयमनाथ निवासी बेन थाना इलियॉ जिला चन्दौली कृषि कार्य हेतु परिवादी का ट्रैक्टर,ट्राली,थ्रेसर,हलचेन व हालर लेकर अपने घर गये और कृषि कार्य करके ट्रैक्टर लौटाने की बात कहे, किन्तु परिवादी के रिश्तेदार बेईमानी,छल कपट करके परिवादी का ट्रैक्टर व सामान कही गायब कर दिये, जिसकी काफी खोजबीन करने के बावजूद ट्रैक्टर नहीं मिला। तत्पश्चात परिवादी विवश होकर दिनांक 29-6-2011 को ट्रैक्टर के गायब होने की प्रथम सूचना रिर्पोट थाना सैयदराजा में दिया, साथ ही विपक्षी संख्या 2 को भी दिया। किन्तु थाना सैयदराजा द्वारा रिर्पोट लिखने में टाल-मटोल करने पर परिवादी ने दिनांक 23-8-2011 को पुलिस अधीक्षक चन्दौली को प्रार्थना पत्र दिया किन्तु कोई सुनवाई न होने पर दिनांक 21-10-2011 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली के न्यायालय में धारा 156(3) द0प्र0सं0 के तहत प्रार्थना पत्र दिया जिस पर माननीय न्यायालय द्वारा थाना सैयदराजा को घटना के सम्बन्ध में मुकदमा दर्ज कर
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विवेचना किये जाने का आदेश पारित किया जिस पर थाना सैयदराजा में दिनांक 10-4-2012 को प्रथम सूचना रिर्पोट मु0अ0सं0 89/12 धारा 406,407,420 आई.पी.सी. बनाम केशनाथ यादव दर्ज हुआ। परिवादी द्वारा प्रथम सूचना रिर्पोट की प्रति सहित अप्रैल 2012 में विपक्षीगण को ट्रैक्टर गायब होने की सूचना दिया। परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 2 को सूचना दिये जाने के बावजूद परिवादी के हित में कोई कार्यवाही नहीं हुई ,जबकि ट्रैक्टर का बीमा विपक्षी संख्या 2 के माध्यम से विपक्षी संख्या 1 से कराया गया था। विपक्षी संख्या 2 को घटना की सूचना दिये जाने के बावजूद दिनांक 3-12-2013 को परिवादी के विरूद्ध वसूली नोटिस जारी किया गया है। परिवादी ने ट्रैक्टर गायब होने का साक्ष्य सबूत के आधार पर केशनाथ के विरूद्ध आरोप पत्र संख्या 115/2012 मुकदमा अपराध संख्या 89/2012 धारा 406,407,420 आई.पी.सी. थाना सैयदराजा का मुकदमा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली के न्यायालय में पुलिस ने दाखिल किया है किन्तु परिवादी का ट्रैक्टर बरामद नहीं हुआ। परिवादी ने दिनांक 26-3-2014 को रजिस्टर्ड डाक से समस्त कागजात के साथ विपक्षी संख्या 2 को ट्रैक्टर गायब होने की सूचना पुनः दिया। विपक्षी संख्या 2 द्वारा अपने पत्र दिनांक 21-4-2014 द्वारा परिवादी को सूचित किया कि प्रश्नगत वाहन का बीमा दावा विपक्षी संख्या 1 द्वारा निरस्त कर दिया गया है। इस आधार पर परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करके प्रश्नगत वाहन की बीमा धनराशि दिलाये जाने हेतु प्रार्थना की गयी है।
3- विपक्षी संख्या 1 की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी ने परिवाद बिना किसी विधिक आधार के गलत तौर पर दाखिल किया गया है जो खारिज किये जाने योग्य है। विपक्षी संख्या 2 द्वारा प्रीमियम की धनराशि अदा करके बीमा पालिसी प्राप्त की गयी है। अतः उपभोक्ता बैंक है न कि परिवादी। परिवादी का ट्रैक्टर न तो चोरी हुआ है और न ही क्षतिग्रस्त हुआ है और न ही ट्रैक्टर द्वारा किसी तृतीय पक्ष को क्षति पहुंचाया है। अतः बीमा कम्पनी किसी क्षतिपूर्ति को देने के लिए जिम्मेदार नहीं है। परिवादी ने प्रश्नगत वाहन अपने रिश्तेदार को दिया था जिसने उसके साथ धोखा-धड़ी करके ट्रैक्टर गायब कर दिया जिसका वाद अभी लम्बित है इसलिए परिवाद पोषणीय नहीं है। प्रश्नगत वाहन को कपट,पूर्वक ले जाने की घटना दिनांक 10-5-2011 की है और पुलिस में सूचना देने की तिथि 10-4-2012 है एवं बीमा कम्पनी को सूचना देने की तिथि 9-4-2014 है। उपरोक्त आधार पर भी परिवादी का परिवाद कालबाधित है। परिवादी के स्वयं के कृत्य से उसका ट्रैक्टर उसके रिश्तेदार के पास है और वह जानबूझकर ऋण की अदायगी से बचने के लिए उपरोक्त कुचक्र रचकर परिवाद प्रस्तुत किया गया है जो निरस्त किये जाने योग्य है।
4- विपक्षी संख्या 2 की ओर से जबाबदावा प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी ने बेबुनियाद,आधारहीन तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है जो खारिज किये जाने योग्य है। परिवादी ने विपक्षी संख्या 2 के बैंक से
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दिनांक 31-8-2006 को मु0 340370/- का ऋण प्राप्त किया। जिसके ऋण खाते में माह सितम्बर 2014 तक मु0 637170/- बकाया हो गया है। जिसके वसूली हेतु आर0सी0 जारी की गयी है जो बैंक का अधिकार है और बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। परिवादी का परिवाद पोषणीय नहीं है तथा परिवादी द्वारा बैंक को पक्षकार बनाकर परेशान किया गया है। अतः परिवादी से स्पेशल कास्ट दिलाये जाने हेतु प्रार्थना की गयी है।
5- परिवादी की ओर से साक्ष्य में परिवादी सुमेर का शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त विनोद यादव तथा वंशरोपन का शपथ पत्र दाखिल किया गया है इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में थानाध्यक्ष सैयदराजा को परिवादी सुमेर द्वारा प्रेषित प्रार्थना पत्र की कार्बन प्रति, पुलिस अधीक्षक चन्दौली को प्रेषित प्रार्थना पत्र की कार्बन प्रति, डी0आई0जी0 वाराणसी को प्रेषित प्रार्थना पत्र की कार्बन प्रति, पुलिस अधीक्षक चन्दौली को दिनांक 5-10-2011 को प्रेषित प्रार्थना पत्र की कार्बन प्रति, शाखा प्रबन्धक, यूनियन बैंक आफ इण्डिया को प्रेषित प्रार्थना पत्र की कार्बन प्रति, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली के न्यायालय में धारा 156(3)सी.आर.पी.सी. के तहत दिये गये प्रार्थना पत्र की कार्बन प्रति,मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली द्वारा पारित आदेश दिनांकित 2-11-2011 की सत्यप्रतिलिपी,प्रथम सूचना रिर्पोट की सत्य प्रतिलिपि,आरोप पत्र की सत्य प्रतिलिपि,यूनियन बैंक आफ इण्डिया द्वारा परिवादी सुमेर को भेजे गये प्रार्थना पत्रों की छायाप्रतियॉं तथा शाखा प्रबन्धक द्वारा सुमेर को प्रेषित प्रार्थना पत्र दिनांकित 21-4-2014 की मूल प्रति, बीमा पालिसी की छायाप्रति तथा दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित 16-4-2014 की छायाप्रति दाखिल की गयी है जिसके द्वारा परिवादी का क्लेम बीमा कम्पनी ने खारिज किया है। विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से बीमा पालिसी/प्रमाण पत्र की प्रतिलिपि एडजेस्टमेन्ट बाउचर की प्रतिलिपि दाखिल की गयी है।
6- पक्षकारों के अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी है। पक्षकारों द्वारा दाखिल लिखित बहस तथा पत्रावली का सम्यक परिशीलन किया गया।
7- परिवादी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी सुमेर(मृतक) ने यूनियन बैंक आफ इण्डिया की सैयदराजा शाखा से रू0 3,403743/- लोन लेकर कृषि कार्य हेतु ट्रैक्टर क्रय किया था जिसका रजिस्ट्रेशन संख्या यू0पी0 67 एन.एम.0001 था। इस ट्रैक्टर का बीमा परिवादी ने बैंक शाखा के माध्यम से विपक्षी दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 से करवाया था जिसकी पालिसी संख्या 42070131100100005561 थी और यह बीमा दिनांक 4-11-2010 से 3-11-2011 तक वैध था। दिनांक 10-5-2011 को केशनाथ यादव उर्फ स्वयंनाथ पुत्र गजाधर निवासी बेन थाना इलिया जिला चन्दौली परिवादी का ट्रैक्टर,थै्रसर,हल,चैन व हालर परिवादी से यह कहकर ले गया कि खेती का काम
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करने के बाद वह ट्रैक्टर तथा उपरोक्त सामान पहुंचा देगा लेकिन केशनाथ की नियत खराब हो गयी और उसने बेइमानी पूर्वक परिवादी के ट्रैक्टर व सामान को कही गायब कर दिया। परिवादी काफी दिनों तक अपना ट्रैक्टर व सामान की खोजबीन करता रहा लेकिन जब ट्रैक्टर नहीं मिला तो अन्त में दिनांक 29-6-2011 को ट्रैक्टर गायब होने की सूचना थाना सैयदराजा में दी गयी तथा यूनियन बैंक आफ इण्डिया सैयदराजा को भी सूचना दी गयी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई तब दिनांक 23-8-2011 को परिवादी ने पुलिस अधीक्षक चन्दौली को प्रार्थना पत्र दिया इसके बावजूद कोई कार्यवाही न होने पर पुनः दिनांक 5-10-2011 को पंजीकृतडाक के जरिये पुलिस अधीक्षक चन्दौली तथा डी0आई0जी0 वाराणसी को भी प्रार्थना पत्र दिया लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं किया तब लाचार होकर परिवादी ने दिनांक 21-10-2011 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में धारा 156(3) सी.आर.पी.सी. के तहत प्रार्थना पत्र दिया और अन्ततः न्यायालय के आदेश से प्रथम सूचना रिर्पोट थाना सैयदराजा में दर्ज हुई और विवेचना के बाद साक्ष्य सबूत के आधार पर पुलिस ने केशनाथ के विरूद्ध धारा 406,407,420 आई.पी.सी. के तहत आरोप पत्र मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली के न्यायालय में प्रेषित किया। परिवादी ने विपक्षी बैंक से भी यह निवेदन किया कि वह बीमा कम्पनी से अपना पैसा वसूल ले, लेकिन विपक्षी बैंक बीमा कम्पनी से पैसा न लेकर परिवादी के विरूद्ध आर0सी0 जारी कर दिया और दिनांक 21-4-2014 को विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया के माध्यम से परिवादी को सूचित किया गया कि उसका क्लेम विपक्षी संख्या 1 अर्थात दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा खारिज कर दिया गया है जिससे परिवादी को काफी मानसिक शारीरिक कष्ट हुआ तथा आर्थिक क्षति हुई। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी के ट्रैक्टर का बीमा विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया के माध्यम से दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा किया गया था और बीमा के किश्त का पैसा परिवादी के लोन खाते से ही दिया गया था।अतः परिवादी विपक्षी संख्या 1 व 2 का उपभोक्ता है परिवादी के अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि जिस समय ट्रैक्टर गायब हुआ उस समय ट्रैक्टर का बीमा वैध था इसलिए बीमा कम्पनी विधिक रूप से परिवादी को बीमित धनराशि व क्षतिपूर्ति देने को बाध्य है और इस प्रकार परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
8- विपक्षी संख्या 1 दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।अतः परिवाद पोषणीय नहीं है। इसके अतिरिक्त परिवादी का ट्रैक्टर न तो चोरी हुआ है और न क्षतिग्रस्त हुआ है और न ही ट्रैक्टर द्वारा किसी तृतीय पक्ष को क्षति पहुंची है इसलिए बीमा कम्पनी किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति के लिए जिम्मेदार नहीं है। परिवादी के ट्रैक्टर को उसके रिश्तेदार ने धोखा-धडी करके गायब कर दिया है और इस सम्बन्ध में न्यायालय में मुकदमा विचाराधीन है। ट्रैक्टर को धोखा-धडी करके छीनने की घटना सन् 2011 की है और बीमा कम्पनी
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को सूचना सन् 2014 में दी गयी है इसलिए परिवादी का परिवाद कालबाधित होने के कारण से पोषणीय न होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है।
9- विपक्षी संख्या 2 यूनियन बैंक आफ इण्डिया की ओर से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी ने बैंक से रू0 3,40370/- का ऋण लिया था और सितम्बर सन् 2014 तक व्याज सहित परिवादी के जिम्मे रू0 637170/- बकाया था परिवादी के कथनों से ही यह साबित है कि परिवादी का ट्रैक्टर उसके रिश्तेदार केशनाथ उर्फ स्वयंनाथ ले गये है। चूंकि परिवादी के जिम्मे लोन की धनराशि बाकी थी इसलिए बैंक द्वारा विधिक रूप से अपने लोन की वसूली हेतु आर0सी0 जारी की गयी है और बैंक को अपने धन की वसूली हेतु आर0सी0 जारी करने का पूर्ण अधिकार है अतः बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है और इस प्रकार यह परिवाद विपक्षी संख्या 2 के विरूद्ध वैधानिक दृष्टि से पोषणीय नहीं है और तद्नुसार निरस्त किये जाने योग्य है।
10- पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादी सुमेर(मृतक)ने विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया से लोन लेकर ट्रैक्टर क्रय किया था और बैंक के माध्यम से ही इस ट्रैक्टर का बीमा विपक्षी संख्या 1 दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा किया गया था। परिवादी की ओर से बीमा की कापी दाखिल की गयी है यह बीमा दिनांक 4-11-2010 से 3-11-2011 तक वैध रहा है पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि परिवादी का ट्रैक्टर दिनांक 10-5-2011 को गायब हुआ है अतः उस समय वाहन का बीमा पूर्णतः वैध था।
11- विपक्षी बीमा कम्पनी के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि परिवादी का ट्रैक्टर न तो चोरी हुआ है और न तो क्षतिग्रस्त हुआ है और न ही किसी तृतीय पक्ष को कोई क्षति पहुंची है बल्कि परिवादी ने स्वयं अपने रिश्तेदार को अपना ट्रैक्टर तथा उससे सम्बन्धित सामान दे दिया है। अतः यदि उसके रिश्तेदार ने ट्रैक्टर व सामान गायब कर दिया तो इसके लिए बीमा कम्पनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इस सम्बन्ध में विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से 1997 (।)सी.पी.आर.2015 में0 सीमर्स विजनेस हाउस प्रा0लि0 बनाम यूनाइटेड इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे केन्द्र शासित प्रदेश चण्डीगढ के माननीय राज्य आयोग द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि जहॉं बीमा पालिसी बैंक द्वारा प्राप्त की गयी हो और बैंक जो कि आवश्यक पक्षकार है उसे पक्षकार न बनाया गया हो वहॉं परिवादी को ऐसे बीमा पालिसी के आधार पर परिवाद दाखिल करने का अधिकार नहीं है। माननीय राज्य आयोग द्वारा उपरोक्त विधि व्यवस्था में प्रतिपादित सिद्धान्तों का पूर्ण सम्मान किया जाता है किन्तु फोरम की राय में उपरोक्त विधि व्यवस्था का कोई लाभ प्रस्तुत मामले में विपक्षी बीमा कम्पनी को नहीं दिया जा सकता है क्योंकि प्रस्तुत मुकदमें के तथ्य एवं परिस्थितियॉं उद्वृत मुकदमें से नितान्त भिन्न है। उद्धृत मुकदमें में परिवादी ने बैंक के माध्यम से बीमा कराया था किन्तु बैंक को पक्षकार नहीं बनाया
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गया था लेकिन प्रस्तुत मुकदमें में परिवादी ने बैंक को विधिवत पक्षकार बनाया है और विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया की ओर से इस मुकदमें में जबाबदावा दाखिल किया गया है और मुकदमा कन्टेस्ट किया जा रहा है। अतः उक्त विधि व्यवस्था का कोई लाभ इस मामले में विपक्षी को नहीं दिया जा सकता है।
12- विपक्षी संख्या 2 की ओर से माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग राजस्थान की एक विधि व्यवस्था अनिल कुमार पारिख बनाम म्युनिसिपल बोर्ड की छायाप्रति दाखिल की गयी है किन्तु इसमें किसी साइटेशन का उल्लेख नहीं है और इस विधि व्यवस्था के तथ्य एवं परिस्थितियां प्रस्तुत मुकदमें से नितान्त भिन्न है अतः फोरम की राय में इसका कोई लाभ विपक्षी को नहीं दिया जा सकता है।
13- विपक्षीगण की ओर से तर्क दिया गया है कि प्रस्तुत मामले में ट्रैक्टर दिनांक 10-5-2011 को परिवादी के रिश्तेदार ले गये जब कि परिवाद दिनांक 2-6-2014 को अर्थात 3 वर्ष से भी अधिक समय बाद दाखिल किया गया है। अतः परिवाद कालबाधित है इसके जबाब में परिवादी की ओर से यह तर्क दिया गया है कि प्रस्तुत मामले में ट्रैक्टर गायब होने के काफी दिनों तक परिवादी अपने रिश्तेदार केशनाथ से इसके सम्बन्ध में पूछताछ करता रहा तथा ट्रैक्टर की खोजबीन करता रहा उसने इसकी सूचना विपक्षीगण को भी दिया और अन्ततः दिनांक 21-4-2014के पत्र के माध्यम से विपक्षी संख्या 2 द्वारा परिवादी को यह बताया गया कि बीमा कम्पनी ने उसका क्लेम खारिज कर दिया है अतः वाद कारण क्लेम खारिज होने की जानकारी होने के बाद ही प्रारम्भ होगा। क्लेम खारिज होने की सूचना संबंधित दिनांक 21-4-2014 का पत्र बैंक ने लगभग 1 महीने बाद परिवादी सुमेर को बैंक में बुलाकर दिया था अतः उस दिन से ही वाद कारण उत्पन्न होना माना जायेगा और इस प्रकार परिवाद कालबाधित नहीं है इसके अतिरिक्त इस फोरम ने परिवाद को ग्रहण करते समय दिनांक 2-6-2014 के आदेश में परिवाद को समय-सीमा के अर्न्तगत प्रस्तुत होना माना है जिस पर विपक्षीगण की ओर से कभी कोई आपत्ति नहीं की गयी है। यदि परिवाद 2-4 दिन विलम्ब से भी दाखिल हो तो इस सम्बन्ध में परिवादी की ओर से 2000(3) सी.पी.आर.97 ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी बनाम महावीर सिंह तथा अन्य की विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं परिवादी का क्लेम बीमा कम्पनी ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि क्षति चोरी के कारण कारित नहीं हुई थी बल्कि आपराधिक न्यास भंग(क्रिमिनल ब्रीच आफ ट्रस्ट) द्वारा हुई थी वहॉं माननीय राज्य आयोग ने यह निर्धारित किया है कि बीमा कम्पनी का उपरोक्त कृत्य विधिसम्मत नहीं है। इसी प्रकार माननीय राज्य आयोग ने परिवाद दाखिल होने में 9 दिन बिलम्ब को भी परिवाद खारिज किये जाने का उचित कारण नहीं माना है इस विधि व्यवस्था में माननीय राज्य आयोग ने 1991 सीपीजे,700भारत सिंह बनाम ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी के विधि व्यवस्था का भी हवाला दिया है।
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14- प्रस्तुत मुकदमें के तथ्य एवं परिस्थितियॉं उपरोक्त उद्धत मुकदमें से बिल्कुल मिलते-जुलते है क्योंकि प्रस्तुत मुकदमें में भी परिवादी का ट्रैक्टर आपराधिक न्यास भंग के जरिये उसके रिश्तेदार ने गायब किया है जिसके सम्बन्ध में विवेचना के उपरान्त पुलिस द्वारा परिवादी के रिश्तेदार केशनाथ के विरूद्ध आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया जा चुका है जिसकी सत्यप्रतिलिपि परिवादी ने दाखिल की है। अतः माननीय राज्य आयोग द्वारा उपरोक्त विधि में प्रतिपादित सिद्धान्तों के प्रकाश में फोरम की राय में परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
15- जहॉंतक क्षतिपूर्ति का प्रश्न है तो परिवादी ने अपने परिवाद में बतौर क्षतिपूर्ति रू0 500000/-शारीरिक मानसिक क्षति हेतु रू0 100000/- तथा वाद व्यय रू0 5000/- मय 12 प्रतिशत व्याज दिलाये जाने की प्रार्थना की है किन्तु प्रस्तुत मुकदमें में परिवादी की ओर से जो बीमा की प्रतिलिपि दाखिल की गयी है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी का बीमा रू0 1,82500/- का है ऐसी स्थिति में परिवादी के ट्रैक्टर की क्षतिपूर्ति के रूप बीमित धनराशि रू0 1,82500/- मय ब्याज दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है तथा शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु रू0 5000/- तथा वाद व्यय हेतु रू0 1,000/- दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है विपक्षी संख्या 1 दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को बीमित धनराशि रू0 1,82,500(एक लाख बयासी हजार पांच सौ)तथा इस धनराशि पर परिवादी की तरफ से क्लेम दाखिल होने की तिथि से इस धनराशि के भुगतान की तिथि तक उपरोक्त धनराशि पर 8 प्रतिशत वार्षिक व्याज तथा रू0 5000/-(पांच हजार) शारीरिक मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति तथा रू0 1000/-(एक हजार) बतौर वाद व्यय का भुगतान दो माह के अन्दर करें।
(लक्ष्मण स्वरूप) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांकः30-11-2016