Uttar Pradesh

StateCommission

A/1449/2018

Lalta Prasad - Complainant(s)

Versus

The Branch Manager Bank Of Baroda - Opp.Party(s)

Vashudev Mishra

17 May 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1449/2018
( Date of Filing : 09 Aug 2018 )
(Arisen out of Order Dated 07/05/2018 in Case No. C/542/2009 of District Lucknow-I)
 
1. Lalta Prasad
S/O Late Badkau R/O Village Sirsa Deori Majara- Deori Rukhara Post Arjunpur P.S. Bakshi Ka Talab Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. The Branch Manager Bank Of Baroda
Jankipuram Branch Bhavna Complex Hall-B Sahara State Road Sector _F Jankipuram P.S. Madiaon Lucknow
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 17 May 2023
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1449/2018

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, प्रथम लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-542/2009 में पारित निर्णय दिनांक 07.05.2018 के विरूद्ध)

लालता प्रसाद पुत्र स्‍व0 बदकऊ।           ........अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

दि ब्रांच मैनेजर, बैंक आफ बड़ौदा व चार अन्‍य।

                                   ......प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

समक्ष:-

1. मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित       : श्री वासुदेव मिश्रा, अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं0 1 एवं 2 की ओर से उपस्थित : श्री सतीश चंद्र श्रीवास्‍तव,

                                    अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं0 3 की ओर से उपस्थित      : श्री आर0डी0 क्रान्ति,

                                     अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं0 4 एवं 5 की ओर से उपस्थित : श्री शरद कुमार शुक्‍ला,

                                    अधिवक्‍ता।

दिनांक 21.06.2023

मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.   परिवाद संख्‍या 542/2009 लालता प्रसाद बनाम ब्रांच मैनेजर बैंक आफ बड़ौदा व अन्‍य में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 07.05.2018 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। जिला उपभोक्‍ता मंच ने परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि परिवादी के खाते में 17.04.09 को केवल रू. 476/- मात्र थे, इसलिए चेक गुम हो जाने पर कोई नुकसान कारित नहीं हुआ है।

2.   इस निर्णय व आदेश को स्‍वयं परिवादी द्वारा इस आधार पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्‍ता मंच ने विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है तथा नजीरों का सही अवलोकन नहीं किया।

-2-

3.   सभी पक्षकारों के विद्वान अधिवक्‍ताओं को सुना गया तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।

4.   परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार विपक्षी बैंक में परिवादी का एक खाता संख्‍या 31880100000453 संचालित है। परिवादी ने अंकन एक लाख रूपये में विपक्षी संख्‍या 3 का कुछ पेड़ विक्रय किए थे। रू. 1000/- अग्रिम दिए गए थे तथा दो एकाउन्‍टपेयी चेक संख्‍या 428703 दिनांकित 25.09.08 मूल्‍य रू. 54000/- के चेक संख्‍या 428704 दिनांकित 28.09.08 मूल्‍य रू. 45000/- जारी किए थे। ये दोनों चेक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अटरिया शाखा के थे, जो विपक्षी संख्‍या 1 के यहां 08.12.08 को भुगतान के लिए प्रस्‍तुत किए गए। दि. 16.12.08 को परिवादी को एक पत्र दिया गया कि दोनों चेक कोरियर सेवा द्वारा 10.12.08 में खो दिए गए हैं और यह सलाह दी गई कि चेक जारी करने वाले व्‍यक्ति से संपर्क कर नया चेक प्राप्‍त कर लें। विपक्षी संख्‍या 3 ने नए चेक जारी करने से इंकार कर दिया गया, इसलिए परिवादी को पैसा प्राप्‍त नहीं हो सका। परिवादी द्वारा 12.12.08 को भी एक पत्र लिखा गया, जिसमें पुन: कहा गया कि चेक कोरियर द्वारा खो दिया गया है।

5.   विपक्षी संख्‍या 1 एवं 2 द्वारा प्रस्‍तुत लिखित कथन में उनके बैंक में परिवादी का खाता होने, चेक जमा होना, क्‍लीरियन्‍स के लिए भेजा जाना स्‍वीकार किया गया है, अत: इन बिन्‍दुओं पर विस्‍तृत विवेचना की आवश्‍यकता नहीं है। बैंक ने यह भी स्‍वीकार किया है कि जब चेक क्‍लीरियन्‍स के लिए भेजे गए तब वो रास्‍ते में खो गए और इसकी सूचना परिवादी को दे दी गई। यह भी उल्‍लेख किया गया है

-3-

कि चेक निर्गत करने वाले ने स्‍टाप पेमेन्‍ट कर दिया था और उसके खाते में केवल रू. 476/- थे, इसलिए चेक की राशि का भुगतान हो ही नहीं सकता था, परन्‍तु यह उल्‍लेख करने मात्र से बैंक अपने लापरवाहीपूर्ण कृत्‍य से विमुक्‍त नहीं हो सकता। यदि उनके द्वारा चेक क्‍लीरियन्‍स के लिए भेजे गए और चेक निर्गत करने वाले व्‍यक्ति के खाते में प्राप्‍त धनराशि नहीं थी या स्‍टाप करा दी गई थी तब चेक वापस प्राप्‍त होने पर परिवादी को भेजी जाती तब परिवादी एन.आई एक्‍ट की धारा 138 के अंतर्गत चेक जारी करने वाले व्‍यक्ति के विरूद्ध कार्यवाही करने में असमर्थ हो सकता था, परन्‍तु बैंक ने अपने लापरवाहीपूर्ण कृत्‍य के कारण परिवादी को इस अधिकार से वंचित कर दिया। यद्यपि चूंकि चेक की राशि कभी भी बैंक को प्राप्‍त नहीं हुई, इसलिए चेक में वर्णित राशि को अदा करने का दायित्‍व चेक निर्गत करने वाले व्‍यक्ति पर बना रहेगा, इसके लिए परिवादी चेक निर्गत करने वाले व्‍यक्ति के विरूद्ध सक्षम न्‍यायालय में कार्यवाही कर सकता है, परन्‍तु बैंक को चेक की समस्‍त धनराशि को लौटाने का आदेश नहीं दिया जा सकता, क्‍योंकि बैंक को यह राशि कभी भी प्राप्‍त नहीं हुई है, परन्‍तु परिवादी को जिस अधिकार से वंचित कर दिया गया उस अधिकार की हानि के कारण बैंक क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्‍तरदायी है। जिला उपभोक्‍ता मंच का यह निष्‍कर्ष विधि विरूद्ध है कि चेक निर्गत करने वाले व्‍यक्ति के खाते में केवल रू. 476/- बकाया थे, इसलिए चेक की राशि का भुगतान हो ही नहीं सकता। जिला उपभोक्‍ता मंच ने इस बिन्‍दु पर कोई विचार नहीं किया कि चेक राशि का भुगतान न होने के कारण परिवादी को धारा 138 एन.आई. एक्‍ट

-4-

के अंतर्गत आपराधिक कार्यवाही करने का अवसर प्राप्‍त होता, जिसके माध्‍यम से वह चेक में वर्णित धनराशि की वसूली कर सकता था, इसलिए जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्‍त होने योग्‍य है तथा चूंकि बैंक के स्‍तर से लापरवाही कारित की गई है, इसलिए बैंक अंकन 5 हजार रूपये की धनराशि की पूर्ति के लिए तथा 5 हजार रूपये परिवाद व्‍यय के रूप में अदा करने के लिए उत्‍तरदायी है।

आदेश

6.   अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्‍त किया जाता है। परिवाद इस सीमा तक स्‍वीकार किया जाता है कि विपक्षी संख्‍या 1 एवं 2 बतौर क्षतिपूर्ति परिवादी को रू. 5000/-(रूपये पांच हजार) अदा करेंगे तथा परिवाद व्‍यय के रूप में अंकन रू. 5000/-(रूपये पांच हजार) अदा करेंगे। इस राशि पर परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज भी देय होगा। परिवादी चेक निर्गतकर्ता के विरूद्ध अपने धन की वसूली के लिए सक्षम न्‍यायालय में कार्यवाही कर सकता है और उसे इसक लिए मर्यादा अधिनियम की धारा 14 का लाभ प्राप्‍त होगा।

     आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

         

       (सुशील कुमार)                      (राजेन्‍द्र सिंह)                                                                                                                                                   सदस्‍य                           सदस्‍य

 

-5-

निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

 

        (सुशील कुमार)                      (राजेन्‍द्र सिंह)                                                                                                                                                   सदस्‍य                            सदस्‍य         

राकेश, पी0ए0-2

कोर्ट-2

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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