| Final Order / Judgement | राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। (सुरक्षित) अपील सं0 :- 1033/2010 (जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0- 393/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 03/03/2010 के विरूद्ध) श्रीमती सुन्दरावती देवी पत्नी दयानन्द मिश्र निवासी एच.आई.जी. 04 राप्ती नगर, फेज-चतुर्थ, शहर गोरखपुर, जनपद गोरखपुर उ0प्र0। - अपीलार्थी/परिवादिनी
बनाम - मेसर्स टाटा मोटर्स लि0 रजिस्टर्ड आफिस बाम्बे हाउस 24 होमी मोदी स्ट्रीट मुम्बई द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
- श्री राहुल गुप्ता चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0 हलवासिया मार्केट हजरतगंज, लखनऊ।
- जनरल मैनेजर मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0 सिविल लाइन, जिला परिषद रोड, एम0पी0 बिल्डिंग, गोलघर गोरखपुर।
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री बी0के0 उपाध्याय प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर विद्वान अधिवक्ता:-श्री राजेश चड्ढा प्रत्यर्थी सं0 2 व 3 के विद्धान अधिवक्ता:- श्री एम0एच0 खान दिनांक:-28.10.2022 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह अपील विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0 393 सन 2007 श्रीमती सुन्दरावती देवी बनाम मेसर्स टाटा मोटर्स लिमिटैड में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03.03.2010 से व्यथित होकर परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत की गयी है। निर्णय के माध्यम से परिवादिनी का परिवाद निरस्त किया गया है।
- परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा विपक्षी सं0 1 से वित्तीय सहायता लेकर 01 ट्रक क्रय करके पंजीकृत कराया था। विपक्षी सं0 3 द्वारा निर्धारित किश्तों के अनुसार अपीलार्थी/परिवादिनी नियमित किश्तों का भुगतान करती रही। उक्त ऋण के संबंध में किश्त की धनराशि रूपये 29,669/- थी, जिसका भुगतान नवम्बर 2002 से आरंभ होकर के सितम्बर 2005 तक किया जाना था। परिवादिनी उक्त किश्तों का भुगतान नियमित रूप से जनवरी 2004 तक करती रही। कभी कभी भुगतान जल्दी पूरा हो जाने के उद्देश्य से किश्तों से अधिक धनराशि का भुगतान अपीलार्थी/परिवादिनी ने किया, किन्तु अपीलार्थी/परिवादिनी की उक्त ट्रक संख्या यूपी 53टी/1780 को विपक्षीगण ने जबरदस्ती बिना किसी आधार के 05.01.2005 को जबरदस्ती खिंचवा रहा, जिसके लिए परिवादिनी ने विपक्षीगण से बार-बार शिकायत की और यह कहा कि ट्रक की खींचा जाना अवैध है, उसे वापस कर दे, जिससे ट्रक की आमदनी से ऋण की समस्त देयकों की अदायगी परिवादिनी सुनिश्चित कर दे, किन्तु विपक्षीगण ने अपीलार्थी/परिवादिनी के निवेदन पर कोई ध्यान नहीं दिया। विवश होकर परिवादिनी ने पंजीकृत डाक से विपक्षीगण को सूचना भेजी। अपीलार्थी/ परिवादिनी ने बार-बार पत्र एवं नोटिस विपक्षी को दिया, किन्तु उसका जवाब नहीं दिया गया न ही गाड़ी वापस की। अपीलार्थी/परिवादिनी के अनुसार विपक्षीगण अपीलार्थी/परिवादिनी के उक्त वाहन का अवैध रूप से संचालन जनपद सोनभद्र में कर रहे हैं। उक्त जिले में पंजीकृत मुकदमा संख्या 126 सन 2007 विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनभद्र में चल रहा है, जिसका सम्मन अपीलार्थी/परिवादिनी को प्राप्त हुआ है। अपीलार्थी/परिवादिनी ने इस परिवाद के माध्यम से प्रश्नगत ट्रक का अनाधिकृत खींचे जाने तथा अब तक न लौटाये जाने के एवज में 10,00,000/- की क्षतिपूर्ति एवं ट्रक वापस दिलाये जाने हेतु परिवाद प्रस्तुत किया है।
- प्रत्यर्थी सं0 1/विपक्षी सं0 1 ने अपनी विस्तृत आपत्ति दी, जिसमें परिवाद के समय सीमा से बाधित होने की आपत्ति उठायी गयी। विपक्षी के अनुसार प्रश्नगत ट्रक ‘’किराया व खरीद’’ हायर परचेज योजना के अंतर्गत खरीदी गयी। वस्तुत: ट्रक की स्वामिनी परिवादिनी नहीं है बल्कि वित्त पोषक संस्था ही ट्रक की स्वामी है। प्रश्नगत ट्रक व्यवसायिक वाहन है। अपीलार्थी/परिवादिनी ट्रक ड्राइवर रखकर ट्रक चलवाती है। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी में भी नहीं आती है। मात्र इसी आधार पर परिवाद अस्वीकार किये जाने योग्य है क्योंकि प्रश्नगत ट्रक व्यवसायिक उद्देश्य से लाभ अर्जित करने हेतु खरीदा गया है।
- विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने इन आधारों पर परिवाद अस्वीकार किया कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने नवम्बर 2003 के बाद से 12 माह किश्तों की अदायगी नहीं की थी। इसके अतिरिक्त अपीलार्थी/परिवादिनी की व्यथा वस्तुत: हिसाब किताब के बिन्दु पर है, इसलिए उपभोक्ता मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। विपक्षीगण ने प्रश्नगत वाहन अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा अनुबंध की शर्तों को प्रारंभ एवं पूरा न किये जाने के कारण अपने आधिपत्य में लिया है इसलिए विपक्षीगण ने सेवा मे कोई कमी नहीं की है। अपीलार्थी/परिवादिनी किश्तों के भुगतान के संबंध में सदैव से लापरवाह रही। वह चूक करती रही। अपीलार्थी/परिवादिनी ने जब विभिन्न अनुरोध, स्मरण पत्र, व्यक्तिगत सम्पर्क के बाद भी किश्तों की अदायगी नहीं की, तब अनुबंध की शर्तों के अनुसार वित्त पोषक संस्था, जो विधिक रूप से वाहन की स्वामी थी, अनुबंध को समाप्त करते हुए शांतिपूर्ण ढंग से ट्रक को वापस ले लिया। यह ट्रक परिवादिनी के प्रतिनिधि से वित्त पोषक संस्था ने अपने अधिकार में लिया था। अत: जबरदस्ती ट्रक खींचे जाने का तथ्य साबित नहीं होता है। वित्त पोषक संस्था ने प्रश्नगत ट्रक को निलाम करने के पूर्व परिवादिनी को सूचना भी दी थी। दिनांक 05.01.2005 को परिवादिनी के जिम्मे रूपये 2,88,895/- की देयता बाकी थी। अपीलार्थी/परिवादिनी किश्तों के भुगतान के संबंध में गंभीर रूप से लापरवाह रही है। वह दिनांक 05.01.2005 को समस्त देयों की अदायगी के बाद ट्रक को वापस ले सकती थी, किन्तु परिवादिनी ने कोई रूचि नहीं दिखायी। अत: इसके उपरान्त वित्त पोषक संस्था द्वारा हनी मोटर्स के माध्यम से प्रश्नगत ट्रक को निलाम कर दिया गया। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने यह भी माना कि दिनांक 05.01.2005 को ट्रक को जबरदस्ती खिंचवाने का आक्षेप लगाया गया है, किन्तु परिवादिनी ने दिनांक 17.07.2007 को अपना पहला परिवाद प्रस्तुत किया है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार समय-सीमा के बाहर है क्योंकि वाद योजन की समयसीमा वाद के कारण उत्पन्न होने के 02 वर्ष के भीतर दी गयी है। उक्त आधार पर जिला मंच ने परिवादिनी का परिवाद निरस्त किया है, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिया गया है कि विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा दिनांक 03.03.2010 विधि विरूद्ध एवं नियम के विपरीत है, जो निरस्त होने योग्य है एवं परिवाद स्वीकार होने योग्य है। विपक्षीगण ने ट्रक वाहन सं0 यू0पी0 53टी/1780 को जबरदस्ती अविधिक तौर से खींचवा लिए जबकि वाहन को गैर कानूनी ढंग से खींचने का अधिकार विपक्षीगण को नहीं था। कानून हाथ में लेकर गंभीर प्रकृति का अपराध किये जाने एवं अन्य फेयर ट्रेड प्रैक्टिस विपक्षीगण की साबित होने के बावजूद भी मा0 फोरम द्वारा परिवाद सरसरी तौर पर टेक्निकल कारण दर्शाकर परिवाद को कालबाधित मानकर खारिज कर भूल की है, जो निरस्त होने योग्य है, एवं परिवाद स्वीकार होने योग्य है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा परिवाद स्वीकार कर वाहन खींचने की तिथि से वित्तीय सहायता राशि पर ब्याज न देने तथा वाहन कम मूल्य में बेचने के कारण एवं वाहन के खरीद मूल्य से ह्रास के अनुसार मूल्य बीमा कम्पनी के नियमों के तहत घटाकर जो धनराशि बन रही है, से कम मूल्य में विक्रय की गयी धनराशि घटाकर जो धनराशि बच रहा है से वाहन खींचने की तिथि को वित्तीय सहायता राशि से किश्तों की जमा राशि घटाकर जो धनराशि बच रही है घटाने के बाद शेष धनराशि मय 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित परिवाद को दिलवाये जाने का अनुरोध किया गया है एवं कानून हाथ में लेने तथा त्रुटिपूर्ण कृत्य के लिए 2,00,000/- रूपये प्यूनिटिव डैमेजेज दिलवाये जाने एवं साथ ही साथ वाद व्यय एवं स्पेशल कास्ट के मद में 10,000/- रूपये दिलवाये जाने हेतु अपीलार्थी द्वारा अनुरोध किया गया है।
- अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय एवं प्रत्यर्थी सं0 1 के विद्धान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्यर्थी सं0 2 व 3 के विद्धान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान को विस्तृत रूप से सुना गया। तत्पश्चात पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से है:-
- अभिलेखों से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने नवम्बर 2003 के उपरान्त किश्तों की अदायगी नहीं की है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने भी निष्कर्ष दिया है कि नवम्बर 2003 के बाद से लगभग 12 माह की किश्तों का अदायगी अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा नहीं की गयी, जिसका खण्डन अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से यह नहीं दर्शाया गया है कि उसने नवम्बर 2003 के उपरान्त नियमित अदायगी की है। अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा अंतिम अदायगी दिनांक 05.01.2004 को की गयी है। इसके उपरान्त किश्तों का दिया जाना अपीलार्थी/परिवादिनी ने स्पष्ट नहीं किया है जबकि प्रश्नगत वाहन दिनांक 05.01.2005 को विपक्षी द्वारा अपने कब्जे में लिया जाना स्वयं अपीलार्थी/परिवादिनी ने स्वीकार किया है। इस प्रकार लगभग 01 वर्ष तक किश्तों की अदायगी अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा किये जाने का प्रमाण अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से नहीं दिया गया है।
- विपक्षी की ओर से मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय सूर्यपाल सिंह प्रति सिद्धि विनायक मोटर्स प्रकाशित II (2012) CPJ PAGE 8 प्रस्तुत किया गया, जिसमें यह निर्णीत किया गया है कि वाहन के हायर परचेज एग्रीमेंट के करार में यदि उपभोक्ता द्वारा किश्तों का भुगतान नहीं किया गया है और फाइनेंसर द्वारा इस आधार पर वाहन को अपने कब्जे में ले लिया है तो यह अवैध कब्जा नहीं माना जा सकता है क्योंकि फाइनेंसर ही वाहन का वास्तविक स्वामी है जब तक कि ऋण अदा न हो जाये और ऋण अदा होने तक क्रेता उक्त वाहन को Bailee माना जा सकता है यदि ऐसे में किश्तें अदायगी न होने पर फाइनेंसर वाहन को अपने कब्जे में ले सकता है।
- प्रत्यर्थी की ओर से माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक अन्य निर्णय अनूप शर्मा प्रति भोलानाथ शर्मा प्रकाशित IV (2012) CPJ PAGE III (S.C.) प्रस्तुत किया गया है, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णीत किया है कि हायर परचेज करार में क्रेता Bailee अथवा ट्रस्टी के रूप में रहता है जब तक कि समस्त ऋण की अदायगी नहीं हो जाती और इस दौरान क्रेता वाहन को फाइनेंसर के Bailee अथवा ट्रस्टी के रूप में रखता है यदि वाहन स्वामी द्वारा किश्तों की अदायगी न होने पर वाहन अपने कब्जे में ले लिया जाता तो कोई दाण्डिक कार्यवाही उसके विरूद्ध नहीं की जानी चाहिए।
- इस मामले में जनवरी 2004 के उपरान्त किश्तों की अदायगी किया जाना साबित नहीं किया गया है। अत: किश्तों की अदायगी न होने के आधार पर यदि फाइनेंसर द्वारा वाहन को अपने कब्जे में ले लिया है तो अपीलार्थी/परिवादिनी के विरूद्ध वाहन वापसी की कोई विधिक कार्यवाही माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के आधार पर आज्ञप्ति योग्य नहीं है।
- अपीलार्थी की ओर से एक तर्क यह लिया गया है कि फाइनेंसर द्वारा प्रश्नगत वाहन का कब्जा लिये जाने के पूर्व कोई सूचना या नोटिस नहीं दी गयी थी। अत: यह कब्जा इस आधार पर भी अवैध है इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय मैसर्स मेग्मा फिनकार्प लिमिटेड प्रति राजेश कुमार तिवारी सिविल अपील सं0 5622 सन 2019 निर्णय तिथि दिनांक 01.10.2020 प्रकाशित II (2021) SLT PAGE 366 इस संबंध में उल्लेखनीय है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के प्रस्तर 86 में यह निर्णीत किया गया है कि हायर परचेज करार में समस्त किश्तों की अदायगी हो जाने तक वाहन का वास्तविक स्वामी फाइनेंसर रहता है और वह प्रश्नगत वाहन को अपने कब्जे में ले सकता है। वाहन को कब्जे में लेने के पूर्व नोटिस की आवश्यकता है अथवा नहीं, इस बिन्दु को मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के प्रस्तर 88 एवं 89 में स्पष्ट किया गया है कि यदि हायर परचेज करार में प्रश्नगत वाहन को फाइनेंसर द्वारा कब्जा लेने के पूर्व नोटिस की अनिवार्यता दी गयी है। उसी दशा में नोटिस अनिवार्य मानी जायेगी और बिना नोटिस के फाइनेंसर द्वारा वाहन को कब्जे में लिया जाना अवैध होगा, किन्तु करार में यदि ऐसी कोई शर्त नहीं दी गयी है अथवा करार के उपबंधों से ऐसा कुछ स्पष्ट नहीं होता है कि फाइनेंसर द्वारा वाहन को कब्जे में लेने के पूर्व नोटिस की आवश्यकता है। ऐसी शर्त के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष अनुपस्थिति की दशा में वाहन को फाइनेंसर द्वारा कब्जे मे लिया जाना अवैध नहीं माना जा सकता है और इस आधार पर अपीलार्थी/परिवादिनी को वाहन वापस दिलवाये जाने का अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
- माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के प्रकाश में प्रस्तुत मामले में अपीलार्थी/परिवादिनी ने साक्ष्य द्वारा ऐसी कोई शर्त हायर परचेज एग्रीमेंट में नहीं दर्शायी है। अत: विपक्षी द्वारा वाहन को कब्जे में लिया जाना अवैध नहीं माना जा सकता है एवं वाहन को वापसी दिलवाये जाने का आदेश भी इस परिवाद के तथ्यों के आधार पर दिया जाना उचित नहीं है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने उचित प्रकार से अपीलार्थी/परिवादिनी को अनुतोष न दिलाकर परिवाद निरस्त किया है जो उचित प्रतीत होता है। निर्णय में हस्तक्षेप की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है। प्रश्नगत निर्णय पुष्ट होने योग्य है एवं अपील निरस्त होने योग्य है।
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अपील निरस्त की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है। अपील में उभय पक्ष अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3 | |