सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या 2595/2015
(जिला उपभोक्ता फोरम, इटावा द्वारा परिवाद संख्या-07/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28-10-2015 के विरूद्ध)
चोलामण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 रीजनल आफिस, द्धितीय फ्लोर 4 मेरी गोल्ड शाहनजफ रोड, शप्रू मार्ग लखनऊ द्वारा असिस्टेंट जनरल मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
सुशील कुमार पुत्र श्री रोशल लाल निवासी ग्राम बिचपुरी खेड़ा पो0 अधियापुर थाना वैदपुरा, जिला इटावा।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री तरूण कुमार मिश्रा।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री ए0के0 पाण्डेय।
दिनांक: 05-10-2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 07 सन् 2014 सुशील कुमार बनाम चोलामण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, इटावा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 28-10-2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षीगण चोलामण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 की ओर से धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुये निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवाद विपक्षी संख्या 1 के विरूद्ध 5,38,961/- रू० की धनराशि की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है। इस धनराशि पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 7 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देना होगा। विपक्षी संख्या 1 को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्तानुसार धनराशि निर्णय के एक माह में परिवादी को अदा कर दें। भविष्य में यदि वाहन मिल जाता है तो उस पर स्वामित्व विपक्षी बीमा कम्पनी का होगा।"
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर उपरोक्त परिवाद के विपक्षी चोलामण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री तरूण कुमार मिश्रा और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय उपस्थित आए।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त और सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि महेन्द्रा बुलैरो एस०एल०एक्स० यू0पी0 75/पी-7574 का वह पंजीकृत स्वामी है जिसे उसने बैंक आफ बड़ौदा, इटावा से ऋण लेकर खरीदा था और उसका बीमा विपक्षी संख्या 1 चोलामण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 कराया था। बीमा अवधि में ही दिनांक 31-01-2012 की रात में साढ़े नौ बजे विद्युत विभाग की आवासीय कालोनी में अधीक्षण अभियन्ता के
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लॉन के बाहर स्थित स्टेशन रोड शास्त्रीनगर चौराहे के पास गाड़ी खड़ी करके ताला लगाकर प्रत्यर्थी/परिवादी अपने घर चला गया। दूसरे दिन 11 बजे आया तो वहॉ से गाड़ी गायब थी। खोजबीन के बाद भी कुछ पता नहीं चला। प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 05-02-2012 को थाना कोतवाली इटावा में दर्ज कराया जिस पर अपराध संख्या 212/12 धारा 379 आई०पी०सी० अज्ञात चोरों के विरूद्ध दर्ज किया गया और पुलिस ने विवेचना की तथा वाद विवेचना अंतिम रिपोर्ट न्यायालय प्रेषित किया जिसे न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने गाड़ी की चोरी की सूचना दिनांक 05-02-2012 को फोन पर विपक्षी बीमा कम्पनी को दिया और उसके बाद जांच अधिकारी को लिखित रूप से मय कागजात सूचना दिनांक 05-03-2012 को दिया तथा बीमा धनराशि की मांग की । परन्तु विपक्षीगण ने बीमा धनराशि उसे प्रदान नहीं की । अत: विवश होकर उसने विपक्षीगण को नोटिस भेजा और परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया ।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से उत्तर पत्र दाखिल कर कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन दिनांक 31-01-2012 / 01-02-2012 की दरमियानी रात में चोरी होना बताया गया है जबकि पुलिस में चोरी की रिपोर्ट दिनांक 05-02-2012 को दर्ज करायी गयी है। बीमा कम्पनी को भी चोरी की सूचना विलम्ब से दी गयी है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
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जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन व उनकी ओर से प्रस्तुत अभिलेखों पर विचार करने के उपरान्त आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह
उल्लिखित किया है कि क्लेम खारिज करने का महत्वपूर्ण कारण यह रहा है कि चोरी की सूचना थाने में और बीमा कम्पनी को देरी से की गयी है जो बीमा शर्त का उल्लंघन है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह निष्कर्ष निकाला है कि यदि वाहन स्वामी बीमा कम्पनी की शर्त का उल्लंघन करता है तब भी उसे कुछ धनराशि काटकर बीमाधन का भुगतान कराया जा सकता है।
अत: जिला फोरम ने वाहन की बीमित धनराशि 6,54,951/- रू० से 20 प्रतिशत कटौती पर नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन की शेष बीमित धनराशि 5,23,961/- रू० अदा करने हेतु आदेशित किया है। इसके साथ ही जिला फोरम ने 10,000/- रू० मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति और 5,000/- रू० वाद व्यय भी दिलाया है।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन की कथित चोरी की घटना की रिपोट पुलिस में विलम्ब से दर्ज कराया है और बीमा कम्पनी को भी विलम्ब से सूचना दिया है। अत: ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा निरस्त किये जाने योग्य है क्योंकि उसने चोरी की घटना की सूचना पुलिस और बीमा कम्पनी को तुरन्त न देकर बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन किया है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा आंशिक रूप से स्वीकार कर नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर जो बीमा धनराशि अदा करने हेतु आदेश पारित किया है वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय और माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा विभिन्न निर्णयों में
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प्रतिपादित सिद्धान्त के विरूद्ध है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद निरस्त किया जाना आवश्यक है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्न नजीरें प्रस्तुत की हैं :-
- IV (2012) सी0पी0जे0 441 (एन0सी0) न्यू इण्डिया इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम त्रिलोचन जैन।
- 1 (2013) सी0पी0जे0 662 (एन0सी0) मल्लिकार्जुन बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंश कम्पनी लि0।
- II (2014) सी0पी0जे0 33 (एन0सी0) सागर कुमार बनाम यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंश कम्पनी लि0।
- स्पेशल लीव टू0 अपील (सिविल) न० 12741/2009 ओरियण्टल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम परवेश चड्ढा आदि में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 17-08-2010 की प्रति।
- पुनरीक्षण याचिका संख्या 1054/2016 रिलायंस जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम अरूण कुमार सिंह व एक अन्य में माननीय राष्ट्रीय आयोग में पारित निर्णय और आदेश दिनांक 03 जनवरी 2017 की प्रति।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन की चोरी की जानकारी दिनांक 11-02-2012 को 11 बजे दिन में हुयी तब उसने गाड़ी की खोजबीन की और उसके
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बाद दिनांक 05-02-2012 को घटना की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराया। इसके साथ ही प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि दिनांक 01-02-2012 से दिनांक 03-03-2012 तक डाक्टर ने प्रत्यर्थी/परिवादी को कम्पलीट बेड रेस्ट की सलाह दी थी, फिर भी उसने दिनांक 05-02-2012 को एफ०आई०आर० थाना में दर्ज कराया और चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को फोन द्वारा दी है। अत: पुलिस और बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना देने का पर्याप्त कारण है। ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा विलम्ब से पुलिस और बीमा कम्पनी को सूचना देने के आधार पर निरस्त किया जाना विधि विरूद्ध है और बीमा कम्पनी की सेवा में त्रुटि है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा नेशनल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम लाजवंती में दिया गया निर्णय जो II (2007) सी0पी0जे0 48 (एन0सी0) में प्रकाशित है, सन्दर्भित किया है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नेशनल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम नितिन खण्डेलवाल के वाद में दिया गया निर्णय जो IV (2008) सी0पी0जे0 1 (एस0सी0) में प्रकाशित है, भी सन्दर्भित किया है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय में यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत वाहन की चोरी की सूचना पुलिस और बीमा कम्पनी को विलम्ब से दिया है।
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परिवाद पत्र में मात्र यह कहा गया है कि काफी खोजबीन के बाद वाहन का पता नहीं चला जिसकी रिपोर्ट दिनांक 05-02-2012 को परिवादी ने थाना कोतवाली में अपराध संख्या 212 सन् 2012 अन्तर्गत धारा 379 आई०पी०सी० बनाम अज्ञात पर दर्ज कराया। परिवाद में परिवादी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट विलम्ब से दर्ज कराने का कोई कारण नहीं बताया है। परन्तु अपील में लिखित तर्क के साथ प्रत्यर्थी/परिवादी ने संलग्नक 2 अपने चिकित्सीय प्रमाण पत्र और संलग्नक 08 बीमा कम्पनी को दिये आवेदन पत्र दिनांक 16-10-2012 की प्रतियां लगायी हैं। इस आवेदन पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने माना है कि उसने विलम्ब से बीमा कम्पनी को सूचना दिया है और इसका कारण अपनी बीमारी बताया है जिसका चिकित्सीय प्रमाण पत्र उसने संलग्न किया है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने डाक्टर गोपाल गुप्ता एम०बी०बी०एस० एम०डी० द्वारा जारी चिकित्सीय प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है जिसमें दिनांक 01-02-2012 से 03-03-2012 तक प्रत्यर्थी/परिवादी को ज्वांडिस की बीमारी होना और पूर्ण विश्राम की राय अंकित है, परन्तु जिला फोरम ने इस चिकित्सीय प्रमाण पत्र के सन्दर्भ में विवेचना कर इस बिन्दु पर निष्कर्ष अंकित नहीं किया है कि क्या प्रत्यर्थी द्वारा विलम्ब से सूचना देने का प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बताया गया बीमारी का कारण वास्तविक है और स्वीकार किये जाने योग्य है।
अत: इस बिन्दु पर उभय पक्ष को साक्ष्य एवं सुनवाई का अवसर देकर विचार कर पुन: निर्णय पारित करने हेतु पत्रावली जिला फोरम को प्रत्यावर्तित किया जाना आवश्यक है।
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जिला फोरम ने जो पुलिस व बीमा कम्पनी दोनों को वाहन चोरी की सूचना विलम्ब से देना मानकर भी प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा
नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर स्वीकार किया है वह ओरियण्टल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम परवेश चड्ढा आदि के वाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त के विरूद्ध है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित बीमारी के सन्दर्भ में उभय पक्ष को साक्ष्य व सुनवाई का अवसर देकर इस बिन्दु पर विचार करें कि क्या प्रत्यर्थी/परिवादी की बीमारी वास्तविक है और क्या पुलिस व बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना देने का कारण प्रत्यर्थी/परिवादी की बीमारी है ? जिला फोरम इस बिन्दु को निर्णीत करते हुए पुन: विधि के अनुसार निर्णय व आदेश पारित करेगा।
उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 27-11-2017 को उपस्थित हों।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज के साथ अपीलार्थी को वापस की जाएगी।
अपील में पारित अन्तरिम आदेश दिनांक 22-01-2016 के अनुपालन में जमा धनराशि जो प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं दी गयी है अर्जित
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ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जाएगी, परन्तु जो धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को अवमुक्त की जा चुकी है वह परिवाद के अन्तिम
निर्णय के अधीन रहेगी। परिवाद के अन्तिम निर्णय के अनुसार इसके सम्बन्ध में आदेश पारित किया जाएगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट 01