राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1431/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्या 121/2014 में पारित आदेश दिनांक 30.09.2015 के विरूद्ध)
Tata AIA Life Insurance Company Limited
(earlier known as “Tata AIG Life Insurance Company Limited”)
14th Floor, Tower A,
Peninsula Business Park, Senapati Bapat Marg,
Lower Parel, Mumbai – 400013
Also At:-
Tata AIA Life Insurance Company Limited
First Floor, Pratibha Complex
Jubilee Road, Gorakhpur (U.P.)
....................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Suman Singh
W/o Late Dr. Shree Prakash Singh
R/o House No.43, Jail Road,
Shahpur, Post: Geeta Vatika
Dist.-Gorakhpur (U.P.) ................प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अवनीश पाल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री अशोक शुक्ला,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 28.06.2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-121/2014 सुमन सिंह बनाम टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 में जिला उपभोक्ता विवाद
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प्रतितोष फोरम, गोरखपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30.09.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष मियाद अवधि समाप्त होने के बाद विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्तुत की गयी है।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अवनीश पाल और प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक शुक्ला उपस्थित आए हैं।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र पर सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश जिला फोरम द्वारा दिनांक 30.09.2015 को पारित किया गया है। आक्षेपित निर्णय और आदेश की नि:शुल्क प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक 15.10.2015 को अपीलार्थी/विपक्षी को प्रदान की गयी है। इस प्रकार अपील प्रस्तुत करने हेतु मियाद दिनांक 14.11.2015 तक थी, परन्तु अपील मियाद अवधि समाप्त होने के 249 दिन बाद प्रस्तुत की गयी है। अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब का कारण अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र में यह बताया गया है कि अक्टूबर, 2015 में अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने विभिन्न अनुस्मारकों के बाद अपीलार्थी/विपक्षी को सूचित किया कि निर्णय जिला फोरम ने सुरक्षित रखा है। निर्णय
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आने पर अपीलार्थी/विपक्षी को सूचित किया जाएगा। तदोपरान्त दिसम्बर, 2015 में पुन: अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने अधिवक्ता से परिवाद की अद्यतन स्थिति से अवगत कराने हेतु अनुरोध किया, परन्तु सम्बन्धित लॉ फर्म ने उसे कोई सूचना नहीं दी। तदोपरान्त जनवरी, 2016 में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने दिल्ली स्थित बी0एस0के0 लीगल को मामले की जांच करने और वाद की स्थिति बताने हेतु नियुक्त किया, तब अपीलार्थी/विपक्षी को यह ज्ञात हुआ कि परिवाद दिनांक 30.09.2015 को निर्णीत किया जा चुका है। तब अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने उपरोक्त बी0एस0के0 लीगल से जिला फोरम के निर्णय की प्रति व अन्य अभिलेख प्राप्त करने का अनुरोध किया। तब उपरोक्त लॉ फर्म ने दिनांक 20.02.2016 को परिवाद से सम्बन्धित अभिलेख प्राप्त कर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के बम्बई कार्यालय को भेजा और अपीलार्थी/विपक्षी से डिस्कस किया तब अपीलार्थी/विपक्षी की विधिक समिति ने अपील प्रस्तुत करने का निर्णय लिया और उपरोक्त लॉ फर्म को दिनांक 18.03.2016 को अवगत कराया। उसके बाद दिनांक 25.03.2016 को अपील तैयार की गयी और अनुमोदन के बाद दिनांक 28.03.2016 को उपरोक्त लॉ फर्म को अपील आवश्यक संशोधन हेतु भेजी गयी। इसके साथ ही अपील के साथ अतिरिक्त अभिलेख भी भेजे गए, जो लॉ फर्म को दिनांक 04.04.2016 को प्राप्त हुए और लॉ फर्म ने आवश्यक संशोधन के बाद पुन: अपील दिनांक 06.04.2016 को
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अपीलार्थी/विपक्षी को भेजा, जो अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं दिनांक 07.04.2016 को प्राप्त हुआ। तब दिनांक 12.04.2016 को अपीलार्थी/विपक्षी ने अपील की नोटराइज्ड कॉपी पर हस्ताक्षर किया और उपरोक्त लीगल फर्म को दिनांक 14.04.2016 को प्राप्त कराया। उसके बाद अपीलार्थी/विपक्षी की लीगल फर्म ने दिनांक 15.04.2016 को अपील लखनऊ के स्थानीय अधिवक्ता को प्रेषित किया, जिन्होंने अपील प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रस्तुत विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के समर्थन में श्री अनमोल किशोर का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के विरूद्ध आपत्ति प्रस्तुत की गयी है और विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र का विरोध किया गया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपील प्रस्तुत करने में विलम्ब प्रारम्भ में अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के कारण हुआ है और उसके बाद आवश्यक औपचारिकतायें पूरी होने में समय लगा है। अपीलार्थी/विपक्षी ने जानबूझकर अपील प्रस्तुत करने में विलम्ब नहीं किया है। अत: अपील प्रस्तुत करने में हुआ विलम्ब क्षमा कर अपील का निस्तारण गुणदोष के आधार पर किया जाना उचित है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपील के साथ जो आक्षेपित निर्णय और आदेश की प्रमाणित
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प्रतिलिपि संलग्न की गयी है, वह दिनांक 15.10.2015 को अपीलार्थी/विपक्षी को जिला फोरम द्वारा जारी की गयी है। यह नकल अपीलार्थी/विपक्षी को कब प्राप्त हुई इसका कोई उल्लेख न तो विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र में है और न ही उसके सम्बन्ध में प्रस्तुत शपथ पत्र में कोई कथन है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र में कथित तथ्यों से स्पष्ट है कि जनवरी, 2016 में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से अवगत हो चुकी थी फिर भी अपील कई महीने बाद दिनांक 20.07.2016 को प्रस्तुत की गयी है और इतने लम्बे विलम्ब का जो कारण विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र में दर्शित किया गया है उससे ही यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी को अपील प्रस्तुत करने में जल्दी नहीं थी और उसने जानबूझकर अपील विलम्ब से प्रस्तुत किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंशुल अग्रवाल बनाम न्यू ओखला इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी IV (2011) CPJ 63 (SC) के वाद में पारित निर्णय सन्दर्भित किया है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि आक्षेपित निर्णय और आदेश की नि:शुल्क प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी/विपक्षी को दिनांक 15.10.2015 को प्राप्त हुई है और अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा
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विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र में किए गए कथन से भी यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी को आक्षेपित निर्णय और आदेश की जानकारी लॉ फर्म बी0एस0के0 के माध्यम से जनवरी, 2016 में हो चुकी थी। फिर भी अपील दिनांक 20.07.2016 को प्रस्तुत की गयी है। अपीलार्थी/विपक्षी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि दिनांक 15.10.2015 को जिला फोरम द्वारा जारी आक्षेपित निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि उसे कब और कैसे प्राप्त हुई है और उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अपील आक्षेपित निर्णय की प्रति अपीलार्थी/विपक्षी को जिला फोरम द्वारा उपलब्ध कराए जाने के 249 दिन बाद प्रस्तुत की गयी है।
अंशुल अग्रवाल बनाम न्यू ओखला इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के उपरोक्त वाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत वाद में विलम्ब माफी के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किया है, जिसे नीचे उद्धरित किया जा रहा है:-
“It is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind that the special period of limitation has been prescribed under the Consumer Protection Act, 1986 for filing appeals and revisions in consumer matters and the object of expeditious adjudication of the consumer disputes will
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get defeated if this Court was to entertain highly belated petitions filed against the orders of the consumer Foras.”
आक्षेपित निर्णय के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत परिवाद में अपीलार्थी/विपक्षी उपस्थित हुआ है और उसके विद्वान अधिवक्ता को सुनकर आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया गया है। आक्षेपित निर्णय की प्रति दिनांक 15.10.2015 को अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता को उपलब्ध करायी गयी है। अपीलार्थी/विपक्षी के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने उसे दिसम्बर, 2015 तक अनुस्माकर प्रेषित किए जाने के बाद भी निर्णय से अवगत नहीं कराया है, परन्तु इस बात का कोई साक्ष्य या अभिलेख पत्रावली पर नहीं लाया गया है। अपीलार्थी/विपक्षी को आक्षेपित निर्णय और आदेश की प्रति जो दिनांक 15.10.2015 को जारी की गयी है उसे कैसे और कब प्राप्त हुई है यह स्पष्ट नहीं किया गया है जैसा कि ऊपर उल्लिखित किया गया है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को जिला फोरम के निर्णय का आदर करना चाहिए था और उसका अनुपालन समय से करना चाहिए था। यदि वह निर्णय से सन्तुष्ट नहीं थी तो उसे अपील समय-सीमा के अन्दर प्रस्तुत करना चाहिए था, परन्तु उसने अपील बहुत विलम्ब से मियाद समाप्त होने के 249 दिन बाद प्रस्तुत किया है तथा विलम्ब का जो कारण उल्लिखित किया है वह आधार युक्त और उचित नहीं दिखता है।
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सम्पू्र्ण तथ्यों, परिस्थितियों एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए हम इस मत के हैं कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपील प्रस्तुत करने में हुआ विलम्ब क्षमा करने हेतु उचित आधार नहीं है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है और अपील कालबाधा के आधार पर अस्वीकार की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थी द्वारा धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को आक्षेपित निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (महेश चन्द)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1