(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1002/2005
मै0 बजाज आटो लि0 व अन्य।
बनाम
सुभाष अग्रवाल।
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री बदरुल हसन, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री कोई नहीं।
दिनांक:- 09.08.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 1523/2000 सुभाष अग्रवाल बनाम बजाज आटोमोबाइल्स व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 09.05.2005 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादी का परिवाद स्वीकृत किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देश दिया जाता है कि इस आदेश के एक माह के अंदर वह परिवादी को स्कूटर बदल कर दें। यदि यह संभव न हो तो विपक्षीगण परिवादी को स्कूटर की कीमत रू0 31,500.73/- अदा कर दें। विपक्षीगण परिवादी को रू0 30,500.73/- पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिनांक 1.11.2000 से आदेश पालन की तिथि तक अदा करेंगे तथा रू0 1,000.00 वाद व्यय भी विपक्षी परिवादी को दे दें। अनुपालन न करने पर अनुपालन न करने की तिथि से समस्त धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देय होगा।‘’
3. प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि उसने अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 से बजाज लीजेण्ड फोर स्ट्रोक स्कूटर जिसका नं0- यू0पी032-एक्स-4158 और चेसिस नं0- 28सीबीईके03232 तथा इंजन नं0- 28ईबीईजे03132 था, दि0 28.01.1999 को क्रय किया जिसकी रसीद सं0- 11798 व कीमत रू031500.73पैसे थी और एसेसीरीज, इंश्योरेंस व रजिस्ट्रेशन चार्जस अलग थे। प्रत्यर्थी/परिवादी उक्त स्कूटर क्रय करने के एक सप्ताह बाद ही स्कूटर में कम एवरेजव कलच की समस्या से ग्रस्त हो गया। अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 को दिखाया जिनके द्वारा यह आश्वासन दिया गया कि पहली फ्री सर्विस में यह समस्या दूर कर दी जायेगी तथा अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 द्वारा ऐसा किया भी गया, परन्तु दि0 24.04.1999 को जब प्रत्यर्थी/परिवादी स्कूटर से जा रहा था तब स्कूटर का पिछला पहिया जाम हो गया और वह स्कूटर से गिर पड़ा, जिसकी लिखित शिकायत अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 से उसी दिन कर दी गई। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दो माह पश्चात अगस्त 1999 में पुन: पहिया जाम हो गया, जिसे अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 द्वारा दि0 17.08.1999 को उक्त समस्या को दूर कर दिया गया, परन्तु दि0 12.11.1999 को पुन: यह समस्या उत्पन्न हो गई तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 को पत्र लिखा।
4. यह भी कथन किया गया है कि अपीलार्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 का पत्र दि0 06.12.1999 को प्राप्त हुआ जिसमें कहा गया कि समस्या अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 को रिफर कर दी गई है। अपीलार्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 के आश्वासन पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने दि0 23.12.1999 को उक्त स्कटूर अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 के कर्मचारी को सौंप दी। जनवरी 2000 में उसे उक्त स्कूटर वापस कर दी गई और कहा गया कि अब स्कूटर ठीक से काम करेगा तथा रिमार्क में कहा गया कि ‘’इंजन जाम निर्माण दोष के कारण।‘’ दि0 13.01.2000 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक पत्र अपीलार्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 को लिखकर उक्त समस्या के बारे जानकारी चाही, जिसके उत्तर में अपीलार्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 ने स्वीकार किया कि पहले भी इस तरह की शिकायत आयी है और खराबी कमी की हो सकती है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह भी कहा गया है कि सितम्बर 2000 में उक्त वाहन जाम हो गया, जिसे अपीलार्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 के वर्कशाप में ठीक कर दिया गया, परन्तु दि0 01.11.2000 को पुन: पिछला पहिया जाम होने की शिकायत आने लगी, जिससे व्यथित होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
5. अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने लिखित उत्तर में कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा गाड़ी मैनुअल के अनुसार नहीं चालायी गई जिसके कारण स्कूटर खराब हुई। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जब भी शिकायत की गई उसकी स्कूटर की मरम्मत की गई। स्कूटर में कोई निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है। अत: जॉब कार्ड यह लिखने का कोई औचित्य नहीं उठता।
6. आदेश दि0 20.12.2017 के द्वारा प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामीली पर्याप्त मानी जा चुकी है, फिर भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बदरुल हसन को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया।
7. प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा स्कूटर में निर्माण सम्बन्धी दोष था जिसके कारण स्कूटर का पहिया बार-बार जाम हो जा रहा था। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय दि0 09.05.2005 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रश्नगत निर्णय में जॉब कार्ड दि0 28.01.1999 में निर्मित दोष ‘’लिखे जाने के आधार पर यह निष्कर्ष दिया गया है कि प्रश्नगत स्कूटर में निर्माण सम्बन्धी दोष था। इसके अतिरिक्त विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग का यह भी निष्कर्ष आया है कि गाड़ी का बार-बार जाम होना निश्चित रूप से निर्माण सम्बन्धी दोष को सिद्ध करता है, किन्तु इस तर्क में बल नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मात्र अभिकथन किया गया है कि गाड़ी का पहिया बार-बार जाम हो जा रहा था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने न्यायालय के समक्ष ऐसे जॉब कार्ड नहीं रखा है जिससे प्रश्नगत स्कूटर का बार-बार जाम होना उल्लिखित हो और इस आशय का कोई निष्कर्ष प्रश्नगत निर्णय दि0 09.05.2005 में नहीं आया है।
8. निर्माण सम्बन्धी दोष को सिद्ध करने के लिए किसी विशेषज्ञ की आख्या प्रस्तुत नहीं की गई है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राकेश गौतम बनाम संघी ब्रदर्स लि0 III(2010) CPJ 105 (N.C.) में पारित निर्णय के अनुसार किसी वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष केवल परिवादी के अभिकथन के आधार पर नहीं माना जा सकता है। इसको सिद्ध करने के लिए किसी तकनीकी विशेषज्ञ की साक्ष्य अथवा आख्या आवश्यक है एवं इस आधार पर कि वाहन में कुछ त्रुटियां उत्पन्न हो गई थीं। वाहन का सम्पूर्ण मूल्य अथवा पुराने वाहन के स्थान पर नया वाहन दिलवाया जाना उचित नहीं है।
9. उपरोक्त विवेचना के आधार पर परिवाद के स्तर पर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्नगत स्कूटर में निर्माण सम्बन्धी दोष सिद्ध नहीं किया गया है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा बिना पर्याप्त साक्ष्य के निर्माण सम्बन्धी दोष मान लिया गया है, जब कि इसके लिए किसी विशेषज्ञ आख्या की आवश्यकता थी। पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
10. अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3