(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-3171/2006
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद संख्या-362/2005 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.11.2006 के विरूद्ध)
1. Senior Superintendent of Post Offices, Postal Division, Agra.
2. Senior Post Master, Head Post Office, Mall Road, Agra.
3. The Post Master General, Head Post Office, Agra.
4. Chief Post Master General, U.P. Circle, Lucknow.
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
Sonpal Singh son of Late Sri Bhikam Pal Singh, resident of Village-Akbarabad, District-Etah, Presently residing at 7 Jawahar Nagar, P/S Hari Parvat, District-Agra.
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डा0 उदय वीर सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 21.01.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. दिनांक 29.09.2009 को इस आयोग द्वारा प्रस्तुत अपील संख्या-3171/2006, सीनियर सुपरिटेण्डेण्ट ऑफ पोस्ट आफिस व अन्य बनाम सोनपाल सिंह को स्वीकार करने का आदेश पारित किया गया था, इस आदेश को श्री सोनपाल सिंह द्वारा माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष पुनरीक्षण संख्या-30/2010 द्वारा चुनौती दी गई, जिसको स्वीकार करते हुए माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने यह निर्देश दिया कि इस आयोग द्वारा प्रकरण को गुणदोष के आधार पर सुना जाए, इस आदेश को प्राप्त करने के पश्चात् इस आयोग द्वारा पत्रावली को पुन: सुनवाई के लिए नियत की गई। पूर्व तिथि को केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हुए थे और प्रत्यर्थी को अंतिम अंतिम सुनवाई का अवसर दिया गया था तथा पत्रावली दिनांक 11.01.2021 को नियत की गई थी। दिनांक 11.01.2021 को भी केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ही उपस्थित हुए थे और केवल उन्हें ही सुना जा सका। प्रत्यर्थी द्वारा कोई बहस नहीं की गई, अत: केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता डा0 उदय वीर सिंह की बहस सुनकर प्रकरण का निस्तारण किया जा रहा है।
2. परिवाद संख्या-362/2005, श्री सोनपाल सिंह बनाम श्रीमान वरिष्ठ अधीक्षक डाकघर तथा अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.11.2006 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा-15 के अन्तर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने निम्नलिखित आदेश पारित किया है :-
'' परिवाद स्वीकृत कर विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि आदेश पारित होने के 45 दिन के अन्दर परिवादी या उसके पारिवारिजन विकास पत्र धारकों को 3,20,000/- रू0 का भुगतान किसान विकास पत्रों की परिपक्वता तिथि से 12 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज लगाकर किया जावे तथा सेवा में त्रुटि व मानसिक उत्पीड़न की बावत 5,000/- रू0 (पांच हजार) व वाद व्यय का 1,000/- रू0 परिवादी को उक्त अवधि में भुगतान करें।
निर्धारित अवधि में आदेश का पालन न करने पर विकास पत्रों की परिपक्वता धनराशि 3,20,000/- रू0 पर आदेश की तिथि से 14 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज देय होगी।
विपक्षी का प्रतिवादपत्र में कथन है कि दिनांक 03.08.1999 के किसान विकास पत्र का भुगतान 27.12.2005 को चेक से कर दिया है, लेकिन पत्रावली पर साक्ष्य नहीं है। यदि कोई भुगतान विपक्षी ने कर दिया है, उसे समायोजित किया जावे। ''
3. परिवाद पत्र के अनुसार दिनांक 17.07.1999 को मुख्य डाकघर, आगरा के अधिकृत एजेण्ट श्री सुरेश चन्द्र अग्रवाल के माध्यम से अंकन 50,000/- रूपये प्रारम्भिक मूल्य के किसान विकास पत्र जमा किए जाने के पश्चात्, जिनका पंजीकरण संख्या-70437 है। नए किसान विकास पत्र संख्या-77सीसी973108, 77सीसी973110, 77सीसी973109, 77सीसी973106 व 77सीसी973107 क्रय किए गए थे। क्रय करने से पूर्व ही असली होने की पुष्टि मुख्य डाकघर के लिपिक एवं अधिकृत एजेण्ट द्वारा की गई थी। दिनांक 21.07.2000 को इन किसान विकास पत्रों की द्वितीय प्रतिलिपि श्रीमती शारदा सिंह एवं निर्मला सिंह गांव अकबराबाद जिला एटा के हक में हस्तांतरित करके दी गई थी, जिसका पंजीकरण संख्या-70437ए दिया गया था। 05 वर्ष पश्चात् यानी दिनांक 17.07.2005 को ये किसान विकास पत्र भुगतान हेतु मुख्य डाकघर में प्रस्तुत किए गए थे, परन्तु भुगतान नहीं किया गया और कारण भी दर्शित नहीं किया गया। लिखित प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने पर भी वरिष्ठ अधीक्षक, डाकघर, आगरा के कार्यालय से कोई जवाब नहीं दिया गया।
4. परिवाद पत्र में आगे उल्लेख किया गया है कि दिनांक 22.07.1999 को अंकन 50,000/- रूपये के किसान विकास पत्र मुख्य डाकघर, आगरा के अधिकृत एजेण्ट श्री सुरेश चन्द्र अग्रवाल के माध्यम से पंजीकरण संख्या-70583 से क्रय किए गऐ थे, जिनके असली होने की पुष्टि मुख्य डाकघर के लिपिक एवं एजेण्ट द्वारा की गई थी। दिनांक 28.07.2000 को क्रय किए गए मूल पांचों किसान विकास पत्रों के साथ हस्तांतरण आवेदन पत्र मुख्य डाकघर आगरा में प्रस्तुत किया और द्वितीय प्रतिलिपि को परिवादी एवं श्रीमती रेनू सिंह के हक में हस्तांतरित करके दे दिए गए थे, इनका पंजीकरण संख्या-70583ए है। मूल आवंटन के 06 वर्ष बाद परिपक्वता अवधि दिनांक 22.07.2005 को मुख्य डाकघर में भुगतान हेतु प्रस्तुत किए गए थे, परन्तु भुगतान नहीं किया गया।
5. दिनांक 22.07.1999 को अंकन 50,000/- रूपये के प्रारम्भिक मूल्य के पंजीकरण संख्या-70584 के द्वारा 05 किसान विकास पत्र क्रय किए गए थे, जिनके असली होने की पुष्टि मुख्य डाकघर के लिपिक एवं एजेण्ट द्वारा की गई थी। दिनांक 28.07.2000 को उक्त किसान विकास पत्रों की द्वितीय प्रतिलिपि परिवादी व उसके पुत्र राकेश कुमार सिंह के नाम से हस्तांतरित करके दी गई थी। मूल आवंटन से 06 वर्ष पश्चात् परिपक्वता तिथि दिनांक 22.07.2005 को भुगतान हेतु मुख्य डाकघर, आगरा में प्रस्तुत किया गया, परन्तु भुगतान नहीं किया गया और न ही कोई कारण बताया गया।
6. दिनांक 03.08.1999 को अंकन 10,000/- रूपये के किसान विकास पत्र पंजीकरण संख्या-70976 से क्रय किया गया था, तत्पश्चात् आवेदन प्रस्तुत किया गया। दिनांक 16.08.2000 को इस किसान विकास पत्र की द्वितीय प्रतिलिपि श्रीमती शारदा सिंह एवं श्रीमती रेनू सिंह के हक में हस्तांतरित करके दी गई, जिसका पंजीकरण संख्या-70976ए था। परिपक्वता तिथि दिनांक 03.08.2005 को मुख्य डाकघर, आगरा में भुगतान हेतु प्रस्तुत किया गया, परन्तु कोई भुगतान प्राप्त नहीं हुआ और न ही कोई उत्तर दिया गया। इस प्रकार परिवादी द्वारा कुल अंकन 1,60,000/- रूपये के किसान विकास पत्र के प्रारम्भिक मूल्य की परिपक्व राशि अंकन 3,20,000/- रूपये होती है, जो विपक्षीगण द्वारा भुगतान नहीं किए गए हैं।
7. विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत लिखित कथन में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि परिवादी को प्रश्नगत किसान विकास पत्र हस्तांतरित किए गए थे। आगे उल्लेख किया गया है कि चेक क्लीयरेंस फ्रॉड केस में श्री भूपेन्द्र पाल सिंह, डाक सहायक निलंबित के विरूद्ध सीबीआई कोर्ट, देहरादून में शिकायत दर्ज कराई गई थी, इस शिकायत से संबंधित प्रकरण न्यायालय में प्रचलित है। परिवाद पत्र के क्रम संख्या-5 के संबंध में यह कथन किया गय है कि इन किसान विकास पत्रों का भुगतान दिनांक 27.12.2005 को चेक द्वारा कर दिया गया है। यह भी आपत्ति की गई कि चूंकि प्रकरण स्पेशल जज के न्यायालय में लम्बित है, इसलिए इस उपभोक्ता फोरम/आयोग को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
8. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात् विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, प्रथम आगरा द्वारा उपरोक्त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया गया, जिसे इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश तथ्यों एवं साक्ष्यों के विपरीत है। मूल रूप से क्रय किए गए किसान विकास पत्र मूल्य रहित थे, यानी उनकी कीमत अदा नहीं की गई थी, इसलिए इन किसान विकास पत्रों का विक्रय करना कानून की नजर में विक्रय नहीं था। इस प्रकार पाश्चात्यवर्ती अंतरण जो एक दोषपूर्ण स्वामित्व के तहत किया गया, का कोई विधिक प्रभाव नहीं है। अपीलार्थीगण, विभाग को यथार्थ में कोई भुगतान नहीं किया गया, इसलिए परिवादी एवं विपक्षीगण विभाग के मध्य कोई संविदा नहीं हुई है। परिवादी ने अपने परिवार के सदस्यों के नाम किसान विकास पत्र अंतरित कराए, इस कार्य के लिए विपक्षीगण विभाग के कर्मचारी भूपेन्द्र पाल सिंह के खिलाफ मुकदमा चल रहा है, उसने धोखा कारित किया है। परिवादी के परिवार के सदस्यों के नाम जो किसान विकास पत्र हैं, वे किसान विकास पत्रों के एवज में धोखे से क्रए किए गए और विभाग के कर्मचारी द्वारा यह धोखे का कार्य किया गया है। चूंकि विभाग द्वारा किसान विकास पत्रों के क्रय विक्रय में किसी प्रकार का प्रतिफल प्राप्त नहीं किया है, इसलिए विभाग के विरूद्ध भुगतान का आदेश देना विधिसम्मत नहीं है। किसान विकास पत्रों का विक्रय विभाग द्वारा किया जाता है तथा विक्रय करने की संविदा उसके धारक के साथ होती है। परिवादी ने जो संविदा की, वह भारत सरकार के नियमों के विपरीत थी।
9. अपील के ज्ञापन में तथा अपीलार्थीगण की ओर से प्रस्तुत की गई बहस में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि विभाग के कर्मचारी भूपेन्द्र पाल सिंह द्वारा जो पोस्टल सहायक के पद पर तैनात था और चेक क्लीयरेन्स सीट का कार्य देखता था, धोखे से परिवादी के परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए चेक को क्लीयर कर दिया गया, जिन्होंने किसान विकास पत्र क्रय किए थे। बहस में यह भी स्वीकार किया गया है कि कर्मचारी के धोखे से किए गए कार्य के कारण विभाग को आर्थिक क्षति हुई है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 10 की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया गया। धारा 10 के प्रावधानों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी तथा उसके परिवार के सदस्य डाकघर के जिस कर्मचारी से संविदा कर रहे थे, वे दोनों ही व्यक्ति संविदा करने के लिए सक्षम नहीं थे। परिवादी द्वारा स्वेच्छा से संविदा की जा रही थी और यदि विभाग के कर्मचारी द्वारा कोई धोखा कारित किया गया है और परिवादी द्वारा दिया गया चेक धोखे से क्लीयर कर दिया गया है तथा किसान विकास पत्र के क्रय विक्रय को अनुमति प्रदान की गई है तब इस समस्त कार्यवाई को विभाग की ओर से की गई कार्यवाई माना जाएगा। चूंकि विभाग के कर्मचारी द्वारा अपने कर्तव्य के दौरान धोखा किया गया है, इसलिए इस धोखे के कारण परिवादी तथा उसके परिवार के सदस्यों के अधिकार को विनष्ट नहीं किया जा सकता। अपीलार्थीगण विभाग अपने कर्मचारी के धोखे के आधार पर उठाए जाने वाले नुकसान को संबंधित कर्मचारी के वेतन, ग्रेज्यूटी, पेन्शन आदि से प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, परन्तु किसी भी स्थिति में विभाग अपने उत्तरदायित्व से यह कहकर नहीं बच सकता कि उसके कर्मचारी द्वारा चेक क्लीयरेन्स में धोखा किया गया, जिसके कारण कर्मचारी के विरूद्ध सक्षम न्यायालय में आपराधिक वाद विचाराधीन है।
10. विधि का सुस्थापित सिद्धान्त है कि अपने कर्मचारी के अपकृत्य एवं दोष के लिए मुखिया (Principal) उत्तरदाई है। लॉयड बैंक लिमिटेड बनाम पी.ई. गुजदार तथा कंपनी AIR Kolkata 22 की नजीर में बैंक के कर्मचारी को जेवरात सुपुर्द किए गए थे, जो उसने धोखे से खुद के लिए इस्तेमाल कर लिए थे, तब बैंक को उत्तरदाई माना गया। प्रस्तुत केस के सभी तथ्यों को विपक्षीगण द्वारा स्वीकार किया गया है, सिवाय इस तथ्य के कि उन्हें कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं हुआ है, परन्तु चूंकि यदि चेक का क्लीयर होना स्वीकार किया गया है यद्यपि ऐसा कर्मचारी के धोखे के कारण होना कहा गया, परन्तु जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि इस संबंध में विधि की स्थिति स्पष्ट है कि अपने कर्मचारी की लापरवाही के लिए केवल विपक्षी ही उत्तरदाई है।
11. अपीलार्थीगण की ओर से नजीर Rakesh Kumar Sharma Vs. ICICI Prudential Life Insurance Co.Ltd & Anr. II (2014) CPJ 196 (NC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें यह व्यवस्था दी गई है कि धोखे एवं छल से संबंधित मामलें जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष संधारणीय नहीं होते और उचित प्लेटफार्म सिविल कोर्ट में मुकदमा प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस केस के तथ्यों के अनुसार परिवाद पत्र में स्वंय छल एवं कपट का उल्लेख किया गया था, इसलिए प्रकरण सिविल न्यायालय द्वारा संधारणीय माना गया, जबकि प्रस्तुत केस से संबंधित परिवाद में छल एवं कपट का कोई उल्लेख नहीं है। परिवादी का यह कथन नहीं है कि विभाग द्वारा उसके साथ छल किया गया, बल्कि विभाग का यह कथन है कि उसके कर्मचारी द्वारा छल कपट किया गया है और अपने कर्मचारी के कृत्यों के लिए विभाग उत्तरदाई है न कि परिवादी।
12. अपीलार्थीगण की ओर से एक अन्य नजीर Synco Industries Vs. State Bank of Bikaner & Jaipur and others (2002) 2 Supreme Court Cases 1 प्रस्तुत की गई है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि जहां पर किन्हीं तथ्यों को साबित करने के लिए विस्तृत साक्ष्य की आवश्यकता है तब प्रकरण जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा संधारणीय नहीं है। प्रस्तुत केस में साक्ष्य की विस्तृत आवश्यकता नहीं है। किसान विकास पत्र के क्रय विक्रय को लिखित कथन में स्वीकार किया गया है। लिखित कथन में केवल विभाग के कर्मचारी के आपराधिक कृत्य को दर्शित किया गया है, इसलिए उपरोक्त नजीर में दी गई व्यवस्था अपीलार्थीगण के पक्ष में लागू नहीं होती। अपीलार्थीगण की ओर से अन्य नजीर III (2013) CPJ 523 (NC), 2012 CJ (NCDRC) 466, 2011 CJ (NCDRC) 171 तथा II (2008) CPJ 19 (SC) प्रस्तुत की गईं हैं। इन सभी नजीरों में भी धोखे से संबंधित मामलों का क्षेत्राधिकार सिविल न्यायालय बताया गया है, जबकि प्रस्तुत केस में ऊपर निष्कर्ष दिया जा चुका है कि विभाग के कर्मचारी द्वारा धोखा किया गया है। परिवादी ने स्वंय कोई धोखा नहीं किया है, इसलिए उपरोक्त नजीर प्रस्तुत केस में लागू नहीं होती। प्रस्तुत केस में किसान विकास पत्रों के क्रय एवं विक्रय को विपक्षीगण द्वारा अपने लिखित कथन में निम्न रूप में स्वीकार किया गया है :-
'' यह कि परिवाद पत्र की मद संख्या-2 की बावत इस हद तक स्वीकार है कि परिवादी को प्रश्नगत किसान विकास पत्र स्थानांतरित (हस्तांतरित) किए गए।
यह कि परिवाद पत्र की मद संख्या-4 में वर्णित किसान विकास पत्र स्थानांतरित (हस्तांतरित) किए गए, यह कथन भी स्वीकार है।
यह कि परिवाद पत्र की मद संख्या-5 की बावत यह कहा गया है कि इस मद में वर्णित किसान विकास पत्र का भुगतान धारक को दिनांक 27.12.2005 को चेक द्वारा कर दिया गया है। ''
उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि परिवादी द्वारा किसान विकास पत्र के बदले नए किसान विकास पत्र क्रय किए गए और भुगतान विभाग के कर्मचारी को किया गया। यद्यपि जैसा कि विभाग का कथन है कि कर्मचारी द्वारा धोखा कारित किया गया और धोखे से चेक क्लीयर कर दिए गए। अपने कर्मचारी के इस धोखापूर्ण कृत्य के लिए विभाग अपने कर्मचारी से किसी भी रूप में वसूली कर सकता है, परन्तु परिवादी तथा उसके परिवार के सदस्यों को किसान विकास पत्रों के भुगतान का उत्तरदायित्व स्थापित है।
13. विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने अपने निर्णय में निर्देशित किया है कि अपीलार्थीगण को परिपक्व राशि के अलावा इस राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने का आदेश दिया गया है, ब्याज की यह दर उच्च श्रेणी की है। अत: ब्याज राशि 06 प्रतिशत करने का आदेश देना उचित होगा साथ ही यदि कोई भुगतान अपीलार्थीगण द्वारा कर दिया गया है जैसा कि लिखित कथन में उल्लेख किया गया है तब यह राशि समायोजित की जाएगी। अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत अपील तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
14. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.11.2006 इस रूप में परिवर्तित किया जाता है कि अंकन 3,20,000/- रूपये की राशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज निर्णय की तिथि दिनांक 01.11.2006 से वास्तविक अदागयी की तिथि तक देय होगी।
15. अपील में उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
16. उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2