सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 1820/2015
(जिला उपभोक्ता फोरम, इटावा द्वारा परिवाद संख्या-08/2008 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 29-07-2015 के विरूद्ध)
1- मैसर्स आयशर ट्रैक्टर आफिस, आयशर हाउस 12, को-मारको ब्राइड काम्पलेक्स ग्रेटर कैलाश 11 नई दिल्ली द्वारा चेयरमैन।
2- मैसर्स आयशर ट्रैक्टर आफिस, आयशर हाउस 12, को-मारको ब्राइड काम्पलेक्स ग्रेटर कैलाश 11 नई दिल्ली द्वारा मैनेजर 59 NIT फरीदाबाद, हरियाणा।
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
1- सोबरन सिंह पुत्र श्री जितवार सिंह, निवासी नगरा छत्ती मौजा खुडीसर पोस्ट बसरेहर, जिला इटावा, वर्तमान पता मोहल्ला मकसूद पुरा शहर वह जिला इटावा।
2- मैसर्स स्वदेशी ट्रैक्टर एजेन्सी माल गोदाम, रोड सिटी व जिला इटावा।
3- मैसर्स रमेश आटो मोबाइल्स, पक्का बाद जिला व शहर इटावा।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री अरूण टण्डन
प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री ए0के0 पाण्डेय
प्रत्यर्थी सं0 2 की ओर से उपस्थित: विद्वान अधिवक्ता, श्री ए0के0 सिंह।
दिनांक: 21-12-2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 08 सन् 2008 सोवरन सिंह बनाम मैसर्स आयशर ट्रैक्टर कम्पनी व तीन अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, इटावा द्वारा
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पारित निर्णय और आदेश दिनांक 29-07-2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुये निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवाद विपक्षी संख्या 1 व 2 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। उन्हें आदेशित किया जाता है कि परिवादी से अपना ट्रैक्टर वापस लेकर स्कीम के अनुसार निर्णय के एक माह के अन्दर 1,90,000/- रू० (एक लाख नब्बे हजार रूपया) परिवादी को अदा करें। इस अवधि के उपरान्त इस धनराशि पर वास्तविक भुगतान तक 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देय होगा ।"
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण, मैसर्स आयशर ट्रैक्टर आफिस, न्यू दिल्ली, व मैसर्स आयशर ट्रैक्टर आफिस, फरीदाबाद, हरियाणा ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन उपस्थित आए। प्रत्यर्थी संख्या-1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय और प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 सिंह उपस्थित आए। प्रत्यर्थी संख्या-3 की ओर से नोटिस तामीला पर्याप्त माने जाने के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने अपीलार्थी, एवं प्रत्यर्थीगण संख्या 1 और 2 के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ
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प्रस्तुत किया है कि विपक्षीगण संख्या 1 और 2 आयशर ट्रैक्टर निर्माता कम्पनी हैं और विपक्षी संख्या 3 उनका अधिकृत विक्रेता है, उसके साथ ही विपक्षी संख्या 4 भी विक्रेता है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उत्पादक कम्पनी की स्कीम के अन्तर्गत उसने एक आयशर ट्रैक्टर चेचिस नं० उ12011871746 तथा इन्जन नम्बर 51928205967 बिल संख्या 41 दिनांक 12-11-1997 के द्वारा विपक्षीगण संख्या 1 और 2 के तत्कालीन अधिकृत विक्रेता से 2,28,000/-रू० में खरीदा और उस समय लागू स्कीम के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी और विपक्षी संख्या 3 में अनुबन्ध हुआ कि खरीद के दिनांक 12-11-1997 से पॉच वर्ष के उपरान्त 1,75,000/- रू० में ट्रैक्टर को पुन: खरीद लेगें। अत: पॉंच वर्ष के उपरान्त अनुबन्ध के अनुपालन हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण से सम्पर्क किया तो उन्होंने अनुबन्ध का पालन करने से इन्कार कर दिया। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि परिवादी से उनकी कोई संविदा नहीं थी। पुर्न खरीद स्कीम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2 डी के अन्तर्गत नहीं आती है और परिवादी उनका उपभोक्ता नहीं है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि संविदा के विशिष्ट अनुपालन हेतु वाद जिला फोरम के समक्ष नहीं चल सकता है। लिखित कथन में विपक्षीगण संख्या 1 और 2 की ओर से यह भी कहा गया है कि बाय बैक स्कीम वैकल्पिक और स्वैच्छिक थी और यह ट्रैक्टर की खरीद हेतु शर्त नहीं थी।
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जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या 3 की ओर भी लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है। लिखित कथन में उसने स्वीकार किया है कि एक ट्रैक्टर उसने पुर्नखरीद योजना के अन्तर्गत परिवादी को बेंचा है। उसने अपने लिखित कथन में कहा है कि यह योजना ट्रैक्टर की बिक्री बढ़ाने हेतु की गयी थी। लिखित कथन में विपक्षी संख्या 3 की ओर से कहा गया है कि जिला फोरम को परिवाद की सुनवाई का अधिकार नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी संख्या 3 की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 200 घण्टे ट्रैक्टर चलाने अथवा तीन माह के अन्दर एक बार विधिवत ट्रैक्टर की सर्विस नहीं करायी है। इसलिए उसका ट्रैक्टर पॉंच वर्ष के अन्दर सड़क पर चलने की स्थिति में नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में वह प्रत्यर्थी/परिवादी का ट्रैक्टर खरीदने का तैयार नही हुआ था। निर्माता विपक्षीगण संख्या 1 और 2 को पुन: स्कीम के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/परिवादी ने पत्र भेजा परन्तु उन्होंने ट्रैक्टर खरीदने के लिए विपक्षी संख्या 3 के पास जवाब नहीं भेजा इसलिए उसने ट्रैक्टर नहीं खरीदा।
विपक्षी संख्या 4 की ओर से जिला फोरम के समक्ष कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन पर विचार कर यह निष्कर्ष निकाला है कि ट्रैक्टर खरीद की तिथि दिनांक 12-12-1997 के पॉच वर्ष बाद अर्थात 12-11-2002 को अथवा उसके बाद ट्रैक्टर 1,75,000/- रू0 में विपक्षीगण संख्या 1 व 2 को पुन: खरीदना था जो उन्होंने नहीं किया। अत: परिवादी, विपक्षगण संख्या 1 और 2 से यह धनराशि पाने का अधिकारी है। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह भी माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षीगण संख्या 1 व 2 से 10,000/- रू० क्षतिपूर्ति दिलाया जाना
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और 5,000/- रू० वाद व्यय दिलाया जाना उचित है। अत: जिला फोरम ने उपरोक्त प्रकार से आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि ट्रैक्टर की पुर्नखरीद की योजना वैकल्पिक और स्वेच्छिक थी और यह ट्रैक्टर बिक्री की शर्त नहीं थी। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ट्रैक्टर की पुर्नखरीद की कथित मांग उपभोक्ता विवाद नहीं है और परिवाद जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष ग्राह्य नहीं है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद जिला फोरम इटावा की स्थानीय क्षेत्राधिकारिता से भी परे है। अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद दिल्ली में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
प्रत्यर्थी संख्या 1 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है, इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
प्रत्यर्थी संख्या 2 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रश्नगत ट्रैक्टर की पुर्नखरीद में प्रत्यर्थी संख्या 2 की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभय पक्ष के अभिकथन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 12-11-1997 को निर्माता अपीलार्थी/विपक्षीगण से आयशर ट्रैक्टर 2,28,000/- रू० में खरीदा जाना निर्विवाद है। इसके साथ ही ट्रैक्टर के सम्बन्ध
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में प्रत्यर्थी/परिवादी एवं परिवाद के विपक्षी संख्या 3 मैसर्स स्वदेशी ट्रैक्टर्स, जो अपीलार्थी/विपक्षीगण का अधिकृत विक्रेता है, के बीच पॉंच साल के बाद ट्रैक्टर की पुर्नखरीद 1,75,000/- रू० में किये जाने हेतु करार पत्र निष्पादित किया जाना भी अविवादित है। अपीलार्थी/विपक्षीगण के लिखित कथन एवं उनके विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपील में किये गये तर्क से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने ट्रैक्टर की पुर्नखरीद की स्कीम से पूर्ण रूप से इन्कार नहीं किया है। मात्र उनका कथन यह है कि ट्रैक्टर पुर्नखरीद की यह योजना वैकल्पिक और स्वेच्छिक थी। ट्रैक्टर बिक्री की यह शर्त नहीं थी। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अपने ट्रैक्टर की पुर्नखरीद योजना चलायी थी। यह योजना उत्पादन की बिक्री बढ़ाने हेतु निर्माता द्वारा चलायी गयी है। अत: भले ही यह योजना ट्रैक्टर की खरीद की शर्त न हो फिर भी प्रश्नगत ट्रैक्टर खरीदने हेतु यह योजना निश्चित रूप से एक प्रलोभन है और कम्पनी का आफर है। कम्पनी की इस योजना को दृष्टिगत रखते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी ने ट्रैक्टर खरीदा है और योजना के अनुसार पुर्नखरीद का करार किया है। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण उसके पालन हेतु वचनबद्ध है।
उभय पक्ष के अभिकथन एवं सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्तु मैं इस मत का हॅूं कि यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्ता है और अपीलार्थी/विपक्षीगण अपनी स्कीम के अन्तर्गत दिये गये आफर से वचनबद्ध हैं। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षीगण की योजना के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/परिवादी और अपीलार्थी/विपक्षीगण के बीच हुये लिखित करार के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का ट्रैक्टर वापस लेकर उसे जो 1,75,000/- रू० देने
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हेतु अपीलार्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया है वह अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण ने ट्रैक्टर की बिक्री जनपद इटावा में किया है और अपीलार्थी/विपक्षीगण के अधिकृत विक्रेता द्वारा ट्रैक्टर की पुर्नखरीद का करार पत्र जनपद इटावा में निष्पादित किया गया है। इसके साथ ही प्रश्नगत ट्रैक्टर जनपद इटावा में ही रहा है। अत: कहना उचित नहीं है कि जिला फोरम इटावा को परिवाद ग्रहण करने की अधिकारिता प्राप्त नहीं है। अत: इस सन्दर्भ में अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा किया गया तर्क उचित और आधारयुक्त नहीं दिखता है।
जिला फोरम ने जो 15,000/- रूपये मानसिक कष्ट हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलाया है वह भी वाद की परिस्थितियों को देखते हुए उचित प्रतीत होता है क्योंकि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अपने उत्पादन की बिक्री बढ़ाने हेतु स्कीम चलाया है परन्तु स्कीम का पालन नहीं किया है जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक कष्ट झेलना पड़ा है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हॅूं कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अनुचित और अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगें।
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धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/- रू० अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट 01