(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1391/2003
Life Insurance Corporation Of India
Versus
Kalindi W/O Late Sri Tribhuwan Singh
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री संजय जायसवाल, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री ए0के0 मिश्रा, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :12.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-04/2001, श्रीमती कालिन्दी बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में विद्वान जिला आयोग, जौनपुर द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 28.04.2003 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्के को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए परिवादिनी के पति स्व0 त्रिभुवन सिंह द्वारा करायी गयी तीसरी पॉलिसी सं0 281436604 की बीमित राशि 2,00,000/-रू0 तथा चौथी बीमा पॉलिसी सं0 281671542 की बीमित राशि अंकन 2,00,000/-रू0 अदा करने का आदेश पारित किया है, साथ ही 08 प्रतिशत की दर से ब्याज के लिए भी आदेशित किया गया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के पति स्व0 त्रिभुवन सिंह ने चार पॉलिसी प्राप्त की थी। पॉलिसी सं0 1 एवं 2 की बीमित राशि का भुगतान बीमाधारक की मृत्यु पर दिनांक 21.08.1998 को कर दिया गया, परंतु पॉलिसी सं0 3 एवं 4 का बीमा क्लेम नकार दिया गया।
4. विपक्षी का कथन है कि बीमाधारक द्वारा अल्प अवधि में पॉलिसी प्राप्त की गयी। अल्प अवधि में मृत्यु होने के कारण जांच करायी गयी और जांच में पाया कि सभी पूर्व की पॉलिसियों का विवरण नहीं दिया गया है, इसलिए पॉलिसी सं0 3 एवं 4 पर बीमा क्लेम देय नहीं है।
5. पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि सभी बीमा पॉलिसी विपक्षी के कार्यालय से जारी की गयी है, इसलिए सभी पॉलिसी का विवरण उनके कार्यालय में मौजूद है, इसलिए स्वयं विपक्षी द्वारा अपने दायित्व का पालन नहीं किया गया है, इसलिए तृतीय एवं चतुर्थ पॉलिसी की राशि का भुगतान करने का दायित्व बीमा कम्पनी पर है।
6. अपील के ज्ञापन तथा अपीलार्थी के मौखिक तर्कों का सार यह है कि अधिक मूल्य की पॉलिसी लेने पर ई0सी0जी0 कराया जाना आवश्यक था। परिवादी द्वारा पूर्व की पॉलिसी को छिपाया गया, इसलिए ई0सी0जी0 नहीं कराया गया। ई0सी0जी0 कराया जाता तब बीमारी का ज्ञान हो सकता था और विभाग द्वारा पॉलिसी जारी नहीं की जाती, परंतु चूंकि जैसा कि जिला उपभोक्ता आयोग ने अपने निर्णय में अंकित किया है कि सभी बीमा पॉलिसी स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी के कार्यालय से जारी हुई है, इसलिए अपीलार्थी के कार्यालय का उत्तरदायित्व था कि पूर्व कि बीमा पॉलिसी के संबंध में अपने स्तर से भी जांच कराते और परिवादी को बुलाकर स्थिति को स्पष्ट कराते, परंतु बीमा पॉलिसी जारी करते समय इन सभी स्थितियों पर विचार नहीं किया, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2