राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-189/2016
(जिला फोरम, गोरखपुर द्धारा परिवाद सं0-126/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 05.10.2015 के विरूद्ध)
1- PNB Metlife India (formally known as MetLife) Insurance Company Ltd., Registered office-Brigade Seshamahal, 5 Vani Vilas Road, Basavanagudi, Bangalore-560004 Karnataka.
2- PNB Metlife India Insurance Company IInd Floor, Mangalam Tower Golghar, Gorakhpur.
........... Appellants/ Opp. Parties
Versus
1- Smt. Meera Devi, Age 39yrs, W/o Shri Yogendra Yadav, Girdhr Ganj, Near Yadav Tola Post Kudaghat District- Gorakhpur.
…….. Respondent/ Complainant
2- Senior Manager, Punjab National Bank Branch Koodaghat, Gorakhpur.
3- Shri Rajesh Kumar Singh, Senior Manager, Punjab National Bank, Main Branch Maharajganj.
4- Ajay Kumar Rai, Agent PNB Metlife India Insurance Company Ltd., Punjab National Bank Branch Koodaghat Gorakhpur.
…….. Respondents/ Opp. Parties
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थीगण के अधिवक्ता : श्री अंग्रेज नाथ शुक्ला
प्रत्यर्थीगण सं0-2 व 3 के अधिवक्ता : श्री एस0एस0 बाजपेई के
सहयोगी श्री अंशुमाली सूद
प्रत्यर्थीगण सं0-1 व 4 के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक:- 06-3-2020
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-126/2013 मीरा देवी बनाम पंजाब नेशनल बैंक व चार अन्य में जिला फोरम, गोरखपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 05.10.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद के विपक्षीगण सं0-4 और 5 के विरूद्ध स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवादिनी का परिवाद विरूद्ध विपक्षी सं0-4 व 5 स्वीकार किया जाता है। परिवादिनी, विपक्षी सं0-4 व 5 से 163983.00 (एक लाख तीरसठ हजार नौ सौ तिरासी रू0) की क्षतिपूर्ति की धनराशि प्राप्त करने की अधिकारी है। विपक्षी सं0-4 व 5 को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय व आदेश के दिनांक से एक माह की अवधि के अन्तर्गत समस्त धनराशि परिवादिनी को प्रदान करे अथवा बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से मंच में जमा करे, जो परिवादिनी को दिलाई जा सके। नियत अवधि में आदेश का परिपालन न किए जाने की स्थिति में परिवादिनी समस्त आज्ञप्ति की धनराशि पर 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज प्रार्थना पत्र के दिनांक से अंतिम वसूली तक विपक्षी
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सं0-4 व 5 से प्राप्त करने का अधिकारी होगी एवं समस्त आज्ञप्ति की धनराशि विपक्षी सं0-4 व 5 से विधि अनुसार वसूल की जाएगी।
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी सं0-4 और 5 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अंग्रेज नाथ शुक्ला और प्रत्यर्थीगण सं0-2 और 3 के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0एम0 बाजपेई के सहयोगी श्री अंशुमाली सूद उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी सं0-1 को नोटिस भेजी गई है परन्तु प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। प्रत्यर्थी सं0-4 की ओर से भी कोई उपस्थित नहीं है।
आदेश दिनांक 02.2.2016 के द्वारा अपील इस शर्त पर ग्रहण की गई है कि विलम्ब मॉफी प्रार्थना पत्र का निस्तारण अंतिम सुनवाई के समय किया जायेगा। आक्षेपित आदेश की प्रति दिनांक 16.10.2015 को अपीलार्थी द्वारा प्राप्त की गई है और दिनांक 29.01.2016 को अपील 75 दिन विलम्ब से प्रस्तुत की गई है। उचित प्रतीत होता है कि अपील का निस्तारण गुणदोष के आधार पर किया जाये। अत: विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र स्वीकार करते हुए अपील का निस्तारण गुणदोष के आधार पर किया जा रहा है।
मैंने अपीलार्थी और प्रत्यर्थीगण सं0-2 और 3 के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
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अपीलार्थी की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया गया है। मैंने अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी सं0-1 ने परिवाद अपीलार्थीगण और प्रत्यर्थीगण सं0-2, 3 और 4 के विरूद्ध जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसकी माता श्रीमती गुलाइची देवी का खाता प्रत्यर्थी सं0-2 पंजाब नेशनल बैंक शाखा कूड़ाघाट गोरखपुर में था जिसका नम्बर-1914000309167856 था और ग्राहक सं0-सी0वी0पी0-005106 थी इस खाते में अपनी माता की नामिनी प्रत्यर्थी सं0-1 श्रीमती मीरा देवी थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसकी माता की मृत्यु के बाद उसके माता के खाते की उपरोक्त धनराशि देने में प्रत्यर्थी सं0-3 ने उसे काफी तंग किया और घूस की मॉग की और अंत में प्रत्यर्थी सं0-2 ने दिनांक 20.3.2012 को 7,61,370.00 रू0 प्रत्यर्थी/परिवादिनी के खाता सं0-19140010023104 में जमा किया और प्रत्यर्थी/परिवादिनी को जानकारी दिये बिना इस धनराशि में से 1,51,983.00 रू0 अपीलार्थीगण जो परिवाद में विपक्षीगण सं0-4 व 5 है के खाते में प्रत्यर्थी सं0-3 व प्रत्यर्थी सं0-4 जो परिवाद में विपक्षी सं0-2 हैं ने मिलकर अंतरित कर दिया। परिवाद पत्र के अनुसार
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि वह एक अनपढ़ महिला है। उससे धोखे से कागज पर हस्ताक्षर बिना कागज को पढकर सुनाये करा लिया गया तथा उससे कहा गया कि उसकी माता गुलाइची देवी का रूपया हस्तांतरित करने के लिए हस्ताक्षर व फोटो तथा कुछ अन्य कागजात की आवश्यकता है। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने कहा है कि उसने न तो कभी अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को इंश्योरेंस के लिए बताया और न इंश्योरेंस हेतु कभी कोई वार्ता हुई। उसकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपीलार्थी/विपक्षीगण से इंश्योरेंस कराये वह बीमा कराने में पूर्णतया असमर्थ थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपने खाते से 1,51,983.00 रू0 प्रत्यर्थीगण सं0-2 और 3 द्वारा अपीलार्थी विपक्षीगण के खाते में हस्तांतरित करने के सम्बन्ध में पूंछा तो प्रत्यर्थी सं0-3 ने उसे अवगत कराया कि गलती से विपक्षीगण सं0-4 और 5 के खाते में 1,51,983.00 रू0 हस्तांतरित हो गया है कुछ दिन बाद ठीक हो जायेगा और उसके बाद खाते में रूपया वापस आ जायेगा। वह बराबर अपना रूपया प्राप्त करने हेतु प्रयासरत रही। अन्त में फरवरी, 2013 में जब वह प्रत्यर्थी सं0-2 के कार्यालय में गई तो उसे उपरोक्त इंश्योरेंस की जानकारी दी गई और सम्बन्धित अभिलेख प्राप्त कराये गये। उसने बीमा के कागजात प्राप्त करते समय ऐतराज किया फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। तब वह पालिसी लेकर अपने अधिवक्ता के पास गई और जानकारी चाही तो
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ज्ञात हुआ कि पालिसी में विवरण अंदाज से उसकी जानकारी के बिना भरा गया है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति खेती नहीं करते थे और उनके पास कोई जमीन नहीं थी उनके पति की खेत से आमदनी पॉच लाख व सात लाख कभी नहीं रही है। यह सूचना पालिसी में गलत अंकित की गई है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति मजदूर थे और शुरू से ही प्रत्यर्थी/परिवादिनी ग्रहणी रही है। वह कभी बीमार नहीं रही और नहीं कभी डॉक्टर को दिखाया है न उसका कोई आपरेशन हुआ था। वर्ष-2009 में उसकी दवा हुई थी और आपरेशन हुआ था।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्रत्यर्थीगण सं0-2 और 3 द्वारा उसके खाते से अपीलार्थी/विपक्षीगण को इंश्योरेंस पालिसी हेतु अंतरित की गई धनराशि जिला फोरम के समक्ष परिवाद उपरोक्त अभिकथन के साथ प्रस्तुत कर वापस चाही है और क्षतिपूर्ति और वाद व्यय भी मॉगा है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है। उसने सोच समझकर बीमा पालिसी प्राप्त की है। उसे पालिसी सं0-20803736 दिनांक 02.5.2012 को जारी की गई है और कोरियर से दिनांक 08.5.2012 को सभी शर्तों की प्रति उसे प्रदान कर दी गई है। अगर परिवादिनी को यह शर्त मंजूर नहीं थी तो 15 दिन की अवधि के अन्दर पालिसी
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वापस कर सकती थी। आई.आर.डी.ए. के नियमों के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा कार्य किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया है और 1,51,597.50 रू0 प्रीमियम अदा किया है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी 10 वीं कक्षा तक पढ़ी है और पालिसी के तथ्य को समझने में सक्षम है। परिवाद गलत कथन के साथ प्रस्तुत किया गया है और निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थीगण सं0-2 और 3 ने भी अपना लिखित कथन में अलग-अलग जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है। प्रत्यर्थी सं0-2 की तरफ से कहा गया है कि प्रत्यर्थी सं0-2 अपीलार्थीगण जो परिवाद में विपक्षीगण सं0-4 और 5 है का कारपोरेट एजेण्ट है और उसके बैंक में प्रत्यर्थी/परिवादिनी की माता गुलाइची देवी के नाम खाता सं0-1914000309167856 था। जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादिनी नामिनी थी। अत: माता की मृत्यु के बाद नामिनी के नाते वह खाते की धनराशि प्राप्त करने की अधिकारी है। यह कहना गलत है कि उससे घूस मॉगी गई है और उसे परेशान किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी की माता की समस्त धनराशि उसके खाते में अंतरित कर दी गई है।
प्रत्यर्थी सं0-3 ने भी अपने लिखित कथन में प्रत्यर्थी सं0-2 के उपरोक्त कथन को दोहराया है और कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी एवं उसके पति के उपस्थित होने पर उनकी इच्छा के अनुरूप
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विपक्षीगण सं0-4 व 5 जो अपील के अपीलार्थीगण है, ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी को बीमा पालिसी के सम्बन्ध में सूचित किया था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने गलत कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया है।
प्रत्यर्थी सं0-4 ने भी लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और कहा है कि वह अपीलार्थीगण का एजेन्ट है उसे गलत तौर पर परिवाद में पक्ष बनाया गया है। उसने प्रत्यर्थी/परिवादिनी से कोई धोखा नहीं किया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि प्रश्नगत बीमा पालिसी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को धोखा देकर प्रदान की गई है। अत: जिला फोरम ने यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपनी जमा धनराशि 1,51,983.00 अपीलार्थीगण जो परिवाद में विपक्षीगण सं0-4 और 5 है, से पाने की अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्रश्नगत बीमा पालिसी स्वेच्छा से समझबूझ कर ली है और बैंक के माध्यम से प्रीमियम धनराशि अदा की है। अपीलाथीगण की सेवा में कोई कमी नहीं है। जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है और निरस्त किये जाने योग्य है।
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प्रत्यर्थीगण सं0-2 और 3 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि उनकी सेवा में कोई कमी नहीं है। जिला फोरम ने परिवाद उनके विरूद्ध निरस्त कर कोई गलती नहीं की है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
उभय पक्ष के अभिकथन एवं सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों और प्रत्यर्थी/परिवादिनी की आर्थिक स्थिति पर विचार करते हुए यह मानने हेतु उचित और युक्ति संगत आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रश्नगत बीमा पालिसी कपटपूर्ण ढंग से प्रदान की गई है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी जमा धनराशि ब्याज सहित वापस करने हेतु जिला फोरम ने जो अपीलार्थी/विपक्षीगण अर्थात परिवाद के विपक्षीगण सं0-4 और 5 को आदेशित किया है वह भी उचित है। जिला फोरम ने जो वाद व्यय 2,000.00 रू0 प्रदान किया है वह भी उचित है। जिला फोरम ने जो 10,000.00 रू0 प्रत्यर्थी/परिवादिनी को शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति देने हेतु अपीलार्थीगण को आदेशित किया है उसे अपास्त किया जाना उचित प्रतीत होता है।
सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश इस प्रकार संशोधित किया जाना उचित है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण जो परिवादी के विपक्षीगण सं0-4 व 5 हैं प्रत्यर्थी/परिवादिनी की जमा धनराशि 1,51,983.00 रू0 प्रत्यर्थी/परिवादिनी के खाते में इस
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निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर परिवादिनी को वापस करें और इसके साथ ही उसे जिला फोरम द्वारा आदेशित 2,000.00 रू0 वाद व्यय भी प्रदान करे और नियत अवधि में परिवादिनी की सम्पूर्ण जमा धनराशि 1,51,983.00 रू0 का भुगतान न करने पर वे प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उसकी जमा धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक जिला फोरम द्वारा आदेशित 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से ब्याज भी अदा करें।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा आदेशित शारीरिक और मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति की धनराशि 10,000.00 रू0 अपास्त की जाती है। इसके साथ ही जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश संशोधित करते हुए अपीलाथीगण जो परिवाद में विपक्षीगण सं0-4 व 5 हैं, को आदेशित किया जाता है कि वे इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादिनी के द्वारा प्रश्नगत पालिसी के सम्बन्ध में जमा की गई धनराशि 1,51,983.00 रू0 उसे वापस करे। यदि वे नियत अवधि में यह धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को वापस नहीं करते है तो इस धनराशि पर वे प्रत्यर्थी/परिवादिनी को परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी देगे। उपरोक्त के अतिरिक्त अपीलार्थी/विपक्षीगण प्रत्यर्थी/परिवादिनी को जिला फोरम द्वारा
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आदेशित वाद व्यय की धनराशि 2,000.00 रू0 का भी भुगतान करेंगे।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000.00 रू0 अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1