Uttar Pradesh

StateCommission

A/1778/2016

Tata AIA Life Insurance Co. Ltd - Complainant(s)

Versus

Smt. Meena - Opp.Party(s)

Prasoon Srivastava

20 Nov 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1778/2016
( Date of Filing : 09 Sep 2016 )
(Arisen out of Order Dated 20/02/2016 in Case No. C/23/2013 of District Shahjahanpur)
 
1. Tata AIA Life Insurance Co. Ltd
Mumbai
...........Appellant(s)
Versus
1. Smt. Meena
Shahjahanpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 20 Nov 2019
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-1778/2016

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, शाहजहॉंपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 23/2013 में पारित आदेश दिनांक 20.02.2016 के विरूद्ध)

TATA AIA LIFE INSURANCE CO. LTD.

Registered office at:

14th Floor, Tower A,

Peninsula Business Park

Senapati Bapat Road, Lower Parel

Mumbai-400013

                           ..................अपीलार्थी/विपक्षी सं01

बनाम

1. Smt. Meena

D/o Late Sh. Rameshwar Dayal

R/o Mohalla MNJE Jalalnagar

District-Shahjahanpur (UP).

2. Vijay Bahadur S/o Late Sh. Rameshwar Dayal

3. Aakash S/o Late Sh. Rameshwar Dayal

4. Vikas S/o Late Sh. Rameshwar Dayal

5. Suraj S/o Late Sh. Rameshwar Dayal

All R/o L-5A Pashchimi Cabin Dhaka Talab, Sadar, Shahjahanpur

     ...................प्रत्‍यर्थीगण/परिवादिनी व विपक्षीगण सं02 ता 5

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रसून श्रीवास्‍तव,                               

                           विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन,                               

                             विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 02.01.2020

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद  संख्‍या-23/2013   श्रीमती   मीना   बनाम   टाटा

 

 

-2-

ए.आई.जी. लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 व चार अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, शाहजहॉंपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 20.02.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

जिला फोरम ने आक्षेपित  निर्णय  व  आदेश  के द्वारा  परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

''परिवाद सं0-23/2013 मीना बनाम टाटा ए.आई.जी. लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी आदि स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-1 टाटा ए.आई.जी. लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 को आदेशित किया जाता है कि वह पालिसी सं0-C193023266 C193022649 के सापेक्ष मृतक रामेश्‍वर दयाल की बीमा राशि का भुगतान परिवादिनी श्रीमती मीना व अन्‍य चार वारिसों (विजय बहादुर, आकाश, विकास व सूरज) को 60-दिन में करे। परिवादिनी वाद व्‍यय के रूप में अंकन 3,000/-रू0 उक्‍त अवधि में विपक्षी सं0-1 से प्राप्‍त करने की अधिकारी है। उक्‍त अवधि में बीमा राशि का भुगतान न किये जाने की स्थिति में परिवादिनी तथा शेष चार वारिस बीमाराशि पर          6-प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज भी विपक्षी सं0-1 बीमा कम्‍पनी से प्राप्‍त करने के अधिकारी होंगे।''

जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षी टाटा ए.आई.ए. लाइफ इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 की ओर से यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।

 

 

-3-

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से                  विद्वान अधिवक्‍ता  श्री प्रसून श्रीवास्‍तव और प्रत्‍यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री इसार हुसैन उपस्थित आये हैं।

मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है। 

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया है। मैंने प्रत्‍यर्थीगण की ओर से प्रस्‍तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-1 बीमा कम्‍पनी एवं परिवाद के विपक्षीगण विजय बहादुर, आकाश, विकास और सूरज के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसके पिता रामेश्‍वर दयाल ने अपीलार्थी/विपक्षी                बीमा कम्‍पनी से पालिसी संख्‍या सी 193022649, 12,50,000/-रू0 की और पालिसी संख्‍या सी 193023266, 30,000/-रू0 की ली   थी, जिनकी वार्षिक प्रीमियम धनराशि क्रमश: 9376/-रू0 और 3889/-रू0 थी। दोनों पालिसी की प्रीमियम धनराशि का भुगतान प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पिता समय से करते रहे और इसी बीच दिनांक 23.05.2010 को उनका देहान्‍त हो गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पिता ने दोनों बीमा पालिसी में विजय बहादुर को बतौर नामिनी मनोनीत किया था।  

 

 

-4-

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि पिता की मृत्‍यु के बाद भुगतान हेतु प्रार्थना पत्र उसने दिया, परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। परिवाद पत्र के अनुसार माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने 2010 (2) एस0सी0सी0डी0 666 के निर्णय में व्‍यवस्‍था दी गयी है कि नामिनी राशि प्राप्‍त करने का हकदार है, परन्‍तु उसे विधिक उत्‍तराधिकारियों को भुगतान देना होगा।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसके पिता की मृत्‍यु के बाद बीमा क्‍लेम अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया और सभी औपचारिकतायें पूर्ण की गयीं। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा बीमित धनराशि                     के भुगतान का आश्‍वासन दिया जाता रहा, परन्‍तु अन्‍त में               दिनांक 30.01.2013 को मौखिक रूप से बीमित धनराशि का भुगतान करने से इन्‍कार कर दिया गया। तब क्षुब्‍ध होकर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है और अपने पिता के अन्‍य विधिक उत्‍तराधिकारियों को परिवाद में विपक्षीगण संख्‍या-2, 3, 4 व 5 बनाया है।

जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है और कहा गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पिता ने बीमा पालिसी प्रस्‍ताव फार्म में अपनी गलत आयु दर्शित करते हुए प्राप्‍त की है। उसने अपनी सही आयु छिपाया है।

 

-5-

लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी की ओर से कहा गया है कि दोनों पालिसी में बीमित का पुत्र विजय बहादुर नामिनी है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी दोनों बीमा पालिसी में नामिनी नहीं है। अत: वह उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है।

लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी की ओर से कहा गया है कि बीमित ने बीमा पालिसी लेते समय प्रस्‍ताव फार्म में अपनी जन्‍म तिथि 15.08.1961 अंकित की थी, जिस पर विश्‍वास करते हुए उसे बीमा पालिसी जारी की गयी है।

लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि बीमित द्वारा प्रीमियम का भुगतान न किये जाने के कारण पालिसी संख्‍या- सी193023266 दिनांक 09.05.2011 को रद्द हो गयी थी, जिसकी सूचना बीमित को दी गयी थी। बीमा कम्‍पनी को दिनांक 10.08.2010 को मात्र पालिसी संख्‍या- सी193022649 के सापेक्ष क्‍लेम प्रपत्र प्राप्‍त हुआ था, परन्‍तु नामिनी अथवा प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी में से किसी ने भी पालिसी संख्‍या- सी193023266 की जानकारी बीमा कम्‍पनी को नहीं दी। बीमा पालिसी संख्‍या- सी193022649 के सापेक्ष प्राप्‍त बीमा दावा की जांच बीमा कम्‍पनी द्वारा करायी गयी तो यह पता चला कि बीमित रेलवे विभाग में कार्यरत् था, वह शराब का सेवन करता था तथा उसका लीवर का इलाज चल रहा था। इसके साथ ही विभागीय अभिलेख के अनुसार उसकी जन्‍म तिथि 28.05.1950 थी, जबकि उसने बीमा पालिसी लेते समय अपनी  जन्‍म  तिथि  15.08.1961

 

-6-

घोषित की थी। लिखित कथन के अनुसार उपरोक्‍त आधार पर ही प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का क्‍लेम दिनांक 20.04.2011 को खारिज कर दिया गया है और चेक सं0-349575 दिनांकित 18.04.2011 के माध्‍यम से 8,613.33/-रू0 की धनराशि फाइनल सेटलमेन्‍ट के रूप में वापस कर दी गयी है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी की सेवा में कोई कमी नहीं है।

जिला फोरम के समक्ष प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पिता के अन्‍य उत्‍तराधिकारीगण, जो परिवाद में विपक्षीगण संख्‍या-2, 3, 4 व 5 हैं, ने लिखित कथन प्रस्‍तुत कर कहा है कि बीमा कम्‍पनी ने बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया है।

     जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों

पर विचार करने के उपरान्‍त यह माना है कि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी यह साबित नहीं कर सकी है कि बीमित रामेश्‍वर दयाल का बीमा पालिसी लेने के पूर्व लीवर का इलाज चल रहा था और वह शराब पीता था। जिला फोरम ने यह भी माना है कि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के बीमित पिता द्वारा घोषित जन्‍म तिथि 15.08.1961 को गलत साबित नहीं कर सकी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए उपरोक्‍त प्रकार से आदेश पारित किया है।

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्‍य और विधि के विरूद्ध है।

 

-7-

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के बीमित पिता स्‍व0 श्री रामेश्‍वर दयाल ने बीमा प्रस्‍ताव में अपनी गलत जन्‍म तिथि 15.08.1961 दर्शित करते हुए गलत कथन के आधार पर बीमा पालिसी प्राप्‍त की है।

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के बीमित पिता स्‍व0 श्री रामेश्‍वर दयाल भारतीय रेलवे में कर्मचारी थे। उनकी जन्‍म तिथि 28.05.1950 थी। दिनांक 31.05.2010 को उनका रिटायरमेन्‍ट था जैसा कि रेल विभाग के इम्‍पलायर मेमो से स्‍पष्‍ट है।

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के बीमित पिता स्‍व0 श्री रामेश्‍वर दयाल शराब के आदी थे और उन्‍हें लीवर की बीमारी थी, परन्‍तु यह तथ्‍य भी उन्‍होंने बीमा पालिसी प्राप्‍त करते समय छिपाया है।

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के बीमित पिता स्‍व0 श्री रामेश्‍वर दयाल ने रेल विभाग में दिनांक 03.11.1977 को ज्‍वाइन किया है। अत: उनकी जन्‍म तिथि 15.08.1961 कदापि नहीं हो सकती है।

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के बीमित पिता स्‍व0 श्री रामेश्‍वर दयाल ने प्रश्‍नगत दोनों बीमा पालिसी अपनी सही आयु व अपनी पूर्व बीमारी को छिपाते हुए गलत कथन के आधार पर प्राप्‍त किया है। अत: बीमा कम्‍पनी को बीमा दावा रिपुडिएट करने का अधिकार है। बीमा

 

-8-

कम्‍पनी की सेवा में कोई कमी नहीं है।

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी अपने पिता की बीमा पालिसी की नामिनी नहीं है। अत: वह अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी की उपभोक्‍ता नहीं है और उसे परिवाद प्रस्‍तुत करने का अधिकार नहीं है।

अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश दोषपूर्ण है और निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

प्रत्‍यर्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश तथ्‍य और विधि के अनुकूल है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पिता बीमाधारक स्‍व0 श्री रामेश्‍वर दयाल ने अपनी सही आयु बताते हुए बीमा पालिसी प्राप्‍त की है। यह कहना गलत है कि वह शराब के आदी थे और उन्‍हें बीमा पालिसी प्राप्‍त करने के पहले से लीवर की बीमारी रही है। इस सन्‍दर्भ में अपीलार्थी द्वारा किया गया कथन गलत है।

प्रत्‍यर्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी द्वारा मृतक स्‍व0 श्री रामेश्‍वर दयाल की बीमा पालिसी की बीमित धनराशि का भुगतान न किया जाना अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी की सेवा में कमी है।

मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्‍लेख किया है  कि  बीमा

 

-9-

कम्‍पनी ने रेल विभाग द्वारा जारी प्रमाण पत्र और रेलवे के चिकित्‍साधिकारी की रिपोर्ट प्रस्‍तुत किया है, परन्‍तु प्रस्‍तुत रेल विभाग के प्रपत्रों में सम्‍बन्धित व्‍यक्ति का नाम रामेश्‍वर अंकित है, जबकि प्रश्‍नगत दोनों पालिसी के बीमित व्‍यक्ति का नाम रामेश्‍वर दयाल अंकित है और व्‍यवसाय व्‍यापार (दुकान मालिक) अंकित है। अत: जिला फोरम ने माना है कि बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रस्‍तुत रेल विभाग के प्रपत्र किसी दूसरे व्‍यक्ति के हैं। परन्‍तु प्रत्‍यर्थीगण की ओर से अपील में प्रस्‍तुत लिखित तर्क से स्‍पष्‍ट है कि बीमित रामेश्‍वर दयाल रेलवे में कार्यरत् थे और उनके रेल विभाग से सम्‍बन्धित अभिलेख जो अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी ने जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है, प्रत्‍यर्थीगण को स्‍वीकार हैं। लिखित तर्क में प्रत्‍यर्थीगण की तरफ से यह कहा गया है कि रेल विभाग के अस्‍पताल के प्रमाण पत्र के अनुसार बीमित का इलाज मई 2010 में हुआ है, जबकि बीमित द्वारा प्रश्‍नगत बीमा पालिसी दिनांक 20.03.2010 को ली गयी है। अत: यह कहना उचित नहीं है कि बीमित ने पालिसी लेते समय सारवान तथ्‍य को छिपाया है।

लिखित तर्क में प्रत्‍यर्थीगण की ओर से कहा गया है कि बीमित रामेश्‍वर दयाल चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था और रेल विभाग में उसकी आयु अन्‍दाज से लिखायी गयी थी। प्रत्‍यर्थीगण की ओर से प्रस्‍तुत लिखित तर्क में कहा गया है कि बी‍मा पालिसी में बीमित ने अपनी आयु अन्‍दाज से लिखायी है। बीमा कम्‍पनी के डाक्‍टर ने बीमा पालिसी जारी करने के पहले उसका  डाक्‍टरी  परीक्षण  किया

 

-10-

था। लिखित तर्क में प्रत्‍यर्थीगण की ओर से राज्‍य आयोग द्वारा अपील नम्‍बर 1078/2013 एल0आई0सी0 बनाम विजय कुमार में पारित निर्णय दिनांक 01.10.2019 सन्‍दर्भित किया गया है और कहा गया है कि इस निर्णय में राज्‍य आयोग ने आयु में 05 वर्ष के अन्‍तर को नहीं माना है और अपील निरस्‍त कर दिया है।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से अपील में प्रस्‍तुत लिखित तर्क के उपरोक्‍त कथन के आधार पर यह स्‍पष्‍ट है कि बीमित रामेश्‍वर दयाल पालिसी प्राप्‍त करते समय भारतीय रेलवे में कर्मचारी था और बीमा कम्‍पनी ने जिला फोरम के समक्ष जो रेलवे का प्रमाण पत्र एवं रेलवे के चि‍कित्‍साधिकारी की रिपोर्ट प्रस्‍तुत किया है वह बीमित रामेश्‍वर दयाल के ही हैं। अत: जिला फोरम ने बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रस्‍तुत भारतीय रेलवे की सेवा के अभिलेखों को बीमित व्‍यक्ति से भिन्‍न व्‍यक्ति के अभिलेख मानकर गलती की है। जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रस्‍तुत रेल विभाग के प्रमाण पत्र एवं बीमित की सेवा पुस्तिका की प्रति से स्‍पष्‍ट है कि बीमित रामेश्‍वर दयाल रेल कर्मी था और उसकी जन्‍म तिथि 28.05.1950 रेल विभाग के अभिलेखों में अंकित थी तथा उसका रिटायरमेन्‍ट दिनांक 31.05.2010 को होना था। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि बीमित रामेश्‍वर दयाल ने               दिनांक 15.08.1961 अपनी गलत जन्‍म तिथि घोषित कर अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी से बीमा पालिसी प्राप्‍त किया है। बीमित ने रेल विभाग में दिनांक 28.05.1950 जन्‍म  तिथि  बताकर  नौकरी

 

-11-

किया है। जब तक सक्षम अधिकारी या न्‍यायालय द्वारा उसकी इस घोषित आयु में कोर्इ संशोधन नहीं किया जाता है तब तक रेल विभाग में नौकरी हेतु उसके द्वारा घोषित जन्‍म तिथि से भिन्‍न उसकी कोई और जन्‍म तिथि स्‍वीकार नहीं की जा सकती है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि बीमित रामेश्‍वर दयाल ने अपनी वास्‍तविक जन्‍म तिथि दिनांक 28.05.1950 को छिपाकर जन्‍म तिथि दिनांक 15.08.1961 घोषित कर बीमा पालिसी प्राप्‍त किया है। वास्‍तविक जन्‍म तिथि घोषित करने पर वह बीमा पालिसी हेतु अर्ह नहीं होता। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि उसने अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी से सारवान तथ्‍य छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्‍त की है। अत: माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा एल0आई0सी0 आफ इण्डिया बनाम आशा गोयल (2001) 2 S.C.C. 160 के निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्‍त के आधार पर बीमा कम्‍पनी को बीमा दावा अस्‍वीकार करने का अधिकार है। अत: बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थीगण को बीमा पालिसी की बीमित धनराशि का भुगतान न कर सेवा में कमी नहीं की है। जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार कर गलती की है।

बीमाधारक रामेश्‍वर दयाल ने प्रत्‍यर्थी विजय बहादुर को अपना नामिनी बनाया है और नामिनी विजय बहादुर ने जो बीमा दावा अपीलार्थी बीमा कम्‍पनी के समक्ष प्रस्‍तुत किया है, उसे बीमा कम्‍पनी ने खारिज कर दिया है, परन्‍तु नामिनी विजय बहादुर ने परिवाद प्रस्‍तुत नहीं किया है। ऐसी  स्थिति  में  प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी

 

-12-

द्वारा उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध प्रस्‍तुत परिवाद ग्राह्य नहीं है।

उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण विवेचना एवं निष्‍कर्ष के आधार पर अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश अपास्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त किया जाता है।   

उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

अपील में धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को वापस की जाये।

 

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

                    अध्‍यक्ष             

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1    

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 

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